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तो क्या संस्कृत से निकला है फितूर का नया गाना?

पश्मीं माने ऊनी पर पश्मीना तो जानवर होवे है फिर जानवर से धागे कैसे बने

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Source - Youtube
फितूर का गाना आया है. पश्मीना वाला, अमित त्रिवेदी गाना बजाए हैं और गाएं हैं. लिक्खे स्वानंद किरकिरे हैं. आप सुनिए यहां पर, देखिए भी. https://youtu.be/uxTXp0-iZrY  

अब पढ़िए

पश्मीना धागों के संग,

कोई आज बुने ख्वाब

ऐसे कैसे

वादी में गूंजे कहीं

नए साज़ ये रवाब

ऐसे कैसे

 

पश्मीना धागों के संग

कलियों ने बदले

अभी ये मिज़ाज एहसास

ऐसे कैसे

पलकों ने खोले अभी

नए राज़ जज्बात 

ऐसे कैसे

पश्मीना धागों के संग

कोई आज बुने ख्वाब

ऐसे कैसे

कच्ची हवा कच्चा धुआं घुल रहा

कच्चा सा दिल लम्हें नए चुन रहा

कच्ची सी धूप कच्ची डगर फिसल रही

कोई खड़ा चुपके से कह रहा

मैं साया बनूं तेरे पीछे चलूं चलता रहूं

पश्मीना धागों के संग

कोई आज बुने ख्वाब

ऐसे कैसे

पश्मीना, कश्मीरी ऊन की एक किस्म है. इससे बने कपड़े पहले कश्मीर में बुने जाते थे. यह शब्द असल में परशिया माने फारसी का है. जिसका मतलब है "ऊन से बने." पश्मीना ऊन 4 नस्ल की बकरियों से लिया जाता है. कश्मीर पश्मीना बकरी चंगतंग (कश्मीर) में पाई जाती है. मलरा बकरी कारगिल, चेगू बकरी हिमाचल प्रदेश और नेपाली पश्मीना नेपाल में. पश्मीना शॉल हाथ से काती जाती है, कश्मीर और नेपाल में बुनी जाती है, शॉल के अलावा यह स्कार्फ और स्टोल बनाने के भी काम आती है. खास तौर यूं है कि बहुत मुलायम और गर्म होती है. संस्कृत में खोजें तो पस धातु से पश्मीना आया होगा. उसी से पक्ष्मल और पक्ष जैसे शब्द आए हैं. जिन सबका मतलब लुकाना-मुंदाना-ढांकना-रोएंदार जैसा होता है.

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