पहली बात तो ये कि एक्ट्रेस ने अमेरिका में उस वक्त उफान पर चल रही 'आउटसाइडर्स को भगाओ' मुहीम को सीधे एड्रेस किया. हॉलीवुड में काम करने वाले अपने सहकर्मियों का नाम लेकर बताया कि कौन सा आर्टिस्ट कहां से आया है, और हॉलीवुड को कितना रिच कर रहा है. बताया कि कैसे ब्रुकलिन की सारा पॉल्सन, ओहायो की सारा जेसिका पार्कर, इटली की एमी एडम्स, जेरुसलेम की नैटली पोर्टमैन, यूथोपिया की रूथ नेगा, कैनेडियन रायन गॉसलिंग और केन्या में पैदा होकर लंडन में पले-बढ़े भारतीय मूल के देव पटेल मिलकर हॉलीवुड को खूबसूरत बनाते हैं. पुरज़ोर लहजे में कहा कि हॉलीवुड विदेशी आउटसाइडर्स से भरा पड़ा है. अगर सबको भगा दोगे तो देखने के लिए फुटबॉल और मार्शल आर्ट्स के अलावा कुछ नहीं बचेगा. जो कि आर्ट्स हैं भी नहीं.

प्रिविलेज्ड लोगों का संवेदनशील होना कितना ज़रूरी है, ये बताने वाली स्पीच थी ये.
एक्ट्रेस ने दूसरी करारी बात कही डॉनल्ड ट्रंप को लेकर. जो उस वक्त तक अमेरिका के राष्ट्रपति चुने जा चुके थे. ट्रंप ने अपने इलेक्शन कैम्पेन के दौरान एक डिसेबल्ड पत्रकार का मज़ाक उड़ाया था. बेहद भद्दे तरीके से. उस एक्ट्रेस ने वहां मौजूद तमाम सलेब्रिटीज़ को वो वाकया याद दिलाया. जो कहा वो शब्दशः आपको सुनाते हैं,
"इस साल एक और परफॉरमेंस थी, जिसने मुझे स्तब्ध करके रख दिया. नहीं, ये कोई अच्छी परफॉरमेंस नहीं थी. बल्कि उसमें कुछ भी अच्छा नहीं था. हमारे देश की सर्वोच्च सीट पर बैठने जा रहे शख्स ने एक डिसेबल्ड रिपोर्टर की भद्दी नकल की. एक ऐसे शख्स की, जो उससे प्रिविलेज, पावर और पलटकर वार करने की क्षमता में कमतर था. वो देखकर मेरा दिल टूट गया. वो कोई फिल्म नहीं थी. वो असल में हुआ था. जब ऐसा व्यवहार किसी पावरफुल शख्स द्वारा किया जाता है, तो ये सबकी ज़िंदगी पर असर डालता है. ये एक तरह से बाकी लोगों को भी इतना बुरा बनने की इजाज़त देता है. तिरस्कार से तिरस्कार पैदा होता है. हिंसा, हिंसा को जन्म देती है. जब ताकतवर लोग अपनी पोजीशन का इस्तेमाल दूसरों को बुली करने के लिए करते हैं, हम सबकी हार होती है".हॉलीवुड की तमाम दिग्गज हस्तियां हैरानी के आलम में ये स्पीच सुनती रहीं. एक्ट्रेस की हिम्मत के लिए, उसकी स्पष्टवादिता के लिए तारीफ़ उनकी हैरान आंखों से टपक रही थी. तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा हॉल गूंज गया. दुनिया का चौधरी बनता है अमेरिका. उस अमेरिका की सर्वोच्च हस्ती को आईना दिखाने का हौसला रखनेवाली वो बेबाक एक्ट्रेस थीं मेरिल स्ट्रीप. मेरिल स्ट्रीप, जो आजकल भारत में अन्य कारणों से चर्चा में हैं. कारण चाहे जो हो, मेरिल स्ट्रीप के असामान्य, असाधारण, अद्वितीय काम को हमेशा चर्चा में रहना चाहिए. तो आइए जानते हैं कैसा रहा है मेरिल स्ट्रीप का सफरनामा. # 'मेरी, तुम ये कर सकती हो' 1949 के जून महीने की 22 तारीख को पैदा हुई मेरिल स्ट्रीप का असली नाम मेरी लुइज़ स्ट्रीप था. उनकी मां और नानी का नाम भी मेरी ही था. कन्फ्यूजन टालने के लिए उनके पिता ने नया नाम ईजाद किया, मेरिल. यही नाम आगे चलकर हर सिनेमाप्रेमी की ज़ुबान पर चढ़ जाना था. शुरू में इंट्रोवर्ट रही मेरिल में बला का कॉन्फिडेंस भरने का श्रेय उनकी मां को जाता है. वो अक्सर मेरिल से कहा करती,
"मेरिल, तुम ये कर सकती हो. तुम सक्षम हो. तुम अगर ठान लो, तो जो चाहो वो कर सकती हो. तुम अगर मन लगाओगी, तो तुम्हारे लिए हर चीज़ मुमकिन है".मां की ये हौसलाअफज़ाई मेरिल के लिए सक्सेस मंत्र बन गई. एक्टिंग से पहले सिंगिंग करियर शुरू हुआ. जो ज़्यादा चला नहीं. 12 साल की उम्र में एक स्कूल फंक्शन में गाने के लिए चयन हुआ. तारीफें हुईं तो लगा इसी को करियर बनाते हैं. एस्टेल लाइबलिंग नामक एक मशहूर कोच से चार साल तक ऑपेरा सिंगिंग सीखी. पर मज़ा नहीं आया. बकौल मेरिल वो कुछ ऐसा गा रही थीं जो न तो समझ आता था, न फील होता था. चार साल बाद छोड़ दी सिंगिंग.

टीन एज के दिनों से मेरिल को कैमरे का शौक था. फैमिली वीडियोज़ में सबसे ज़्यादा मेरिल ही फीचर होती.
सिंगिंग के साथ स्कूल-कॉलेज के प्लेज़ में हिस्सा लेना भी जारी था. वो भी कैजुअल ढंग से. एक्टिंग में पहली बार सीरियस रूचि हुई 20 साल की उम्र में. जब कॉलेज में उनके एक प्ले की चहुंओर तारीफ़ होने लगी. साल था 1969. तब पहली बार उन्हें लगा कि उनके पास भी टैलेंट है. तेज़ी से लाइंस याद करने की क्षमता और तरह-तरह के एक्सेंट मिमिक करने की काबिलियत को पहचान मिलने लगी. उस वक्त के उनके एक प्रोफ़ेसर कहते हैं कि मेरिल को किसी ने एक्टिंग नहीं सिखाई. वो खुद की टीचर खुद है. # येल वाली एक्ट्रेस दो साल बाद 1971 में मेरिल ने येल यूनिवर्सिटी के ड्रामा स्कूल में मास्टर ऑफ फाइन आर्ट्स की डिग्री के लिए एडमिशन ले लिया. यूनिवर्सिटी का नाम हम भारतीयों में अब खूब पॉपुलर है. खैर, येल में सर्वाइव करना इतना आसान नहीं था. अपनी फीस भरने के लिए मेरिल ने वेट्रेस से लेकर टाइपिस्ट तक तमाम काम किए. पैसों के लिए दर्जन भर स्टेज शोज़ में एक्टिंग की. एक वक्त तो ऐसा आया कि स्टेज शोज़ का काम और पढ़ाई का दबाव बहुत ज़्यादा बढ़ गया. मेरिल बीमार पड़ गईं. उन्होंने एक्टिंग छोड़ देने तक का सोचा. लॉ में करियर बनाने पर सीरियसली विचार किया. बहरहाल सिनेमा की खुशकिस्मती से ऐसा हुआ नहीं और दो साल का कोर्स चार साल में कम्प्लीट करके मेरिल ने डिग्री हासिल कर ली.

मेरिल स्ट्रीप ने स्टेज पर हर तरह के करैक्टर किए. बूढ़ी जादूगरनी से लेकर फ्रेंच मिस्ट्रेस तक.
डिग्री लेकर मेरिल न्यूयॉर्क पहुंची और ढेर सारे प्रोफेशनल प्लेज़ में काम किया. इसी दौरान उनकी मुलाक़ात हुई जॉन कज़ाल से. जो कि उनकी पहली मुहब्बत थे. और जिनका साथ महज़ तीन साल में ही छूट गया. किसी ब्रेक अप की वजह से नहीं, बल्कि मृत्यु के क्रूर निजाम के सदके. बहरहाल वो कहानी आगे. अभी मेरिल का करियर ग्राफ फॉलो करते हैं. # जब प्रड्यूसर ने बदसूरत बोल दिया 1976 चल रहा था. मेरिल का थिएटर करियर साल भर से जारी था और अच्छा जा रहा था. फिल्मों में एक्टिंग के बारे में सोच भी नहीं रही थीं. ऐसे में एक फिल्म देखी. 'टैक्सी ड्राइवर'. रॉबर्ट डी नीरो की महान फिल्म. फिल्म का मेरिल पर चमत्कारिक असर हुआ. उन्होंने सोचा, 'मुझे इस तरह का एक्टर बनना है'. फिल्मों के लिए ऑडिशन देना शुरू हुआ. और शुरू हुआ रिजेक्ट होने का सिलसिला. ऐसे तमाम रिजेक्शन्स में एक रिजेक्शन का किस्सा बेहद चर्चित है. ये किस्सा पॉपुलर फिल्म 'किंग-कॉन्ग' से जुड़ा है.
'किंग-कॉन्ग' के प्रड्यूसर डीनो डी लॉरेंटिस अपने बेटे के साथ कैंडिडेट्स का ऑडिशन ले रहे थे. मेरिल का नंबर आया. लॉरेंटिस ने अपने बेटे से इटैलियन में कहा,
"ये तो बहुत बदसूरत है. इसे मेरे सामने क्यों लाए हो"?लॉरेंटिस को पता नहीं था कि मेरिल को इटैलियन आती है. मेरिल ने तुरंत जवाब दिया,
"मुझे अफ़सोस है कि मैं आपकी उम्मीदों के हिसाब से सुंदर नहीं हूं. लेकिन जो है सो है. मैं ऐसी ही हूं".ज़ाहिर है मेरिल को वो रोल नहीं मिला. वो रोल एक्ट्रेस जेसिका लैंग की किस्मत में लिखा था, जो आगे चलकर मेरिल की अच्छी दोस्त बन गईं.

मेरिल स्ट्रीप से छूटा रोल जेसिका लैंग को मिला. आगे चलकर दोनों की खूब दोस्ती हुई.
# एडिट टेबल पर कटा-फटा डेब्यू मेरिल स्ट्रीप का सिल्वर स्क्रीन पर आगाज़ हुआ 1977 में आई फिल्म 'जूलिया' से. जिसमें एक और दिग्गज अभिनेत्री जेन फोंडा काम कर रही थीं. मेरिल का ये आगाज़ महज़ कहने भर को था. फिल्म में उनके रोल पर खूब कैंची चली. उनके ज़्यादातर हिस्से एडिटिंग टेबल पर शहीद हो गए. ऊपर से सिनेमा में काम करना उन्हें बहुत कष्टकारी काम महसूस हुआ. उन्हें लगा कि उनसे बहुत बड़ी गलती हो गई है और फिल्मों में काम करने से तौबा कर लेनी चाहिए. बहरहाल, जेन फोंडा की करिश्माई शख्सियत ने मामला संभाला. जेन का काम देखकर उनका खुद का हौसला बुलंद हुआ.
'टैक्सी ड्राइवर' वाले रॉबर्ट डी नीरो ने मेरिल का थिएटर वाला काम देखा था. उन्होंने सुझाया कि वो उनकी फिल्म 'दी डीयर हंटर' में उनकी गर्लफ्रेंड का रोल कर लें. मेरिल ने स्टॉक गर्लफ्रेंड का ये किरदार करना सिर्फ इसलिए कबूल कर लिया, क्योंकि उनके बॉयफ्रेंड जॉन कज़ाल भी फिल्म में काम कर रहे थे. जॉन को लंग कैंसर डायग्नोज़ हुआ था और मेरिल उनका खयाल रखने के लिए हमेशा उनके साथ रहना चाहती थीं. खैर, अनिच्छुक होकर किए गए इस रोल ने मेरिल को उनका पहला ऑस्कर नॉमिनेशन दिलाया. आगे चलकर मेरिल ने इस अवॉर्ड की दुनिया में क्रांति कर देनी थी. नॉमिनेशंस का एवरेस्ट पहाड़ खड़ा करना था. बहरहाल, अगले ही साल 1979 में मेरिल की 'क्रेमर वर्सेस क्रेमर' रिलीज़ हुई और सिनेमा की दुनिया में मेरिल स्ट्रीप का नाम एस्टैब्लिश हो गया.

मेरिल स्ट्रीप का नाम मात्र का डेब्यू. पोस्टर में शक्ल होना तो दूर नाम तक नहीं था.
# अब अपने किरदार के लिए खुद स्पीच लिखी 'क्रेमर वर्सेस क्रेमर' के लिए मेरिल को अपना पहला अकैडमी अवॉर्ड हासिल हुआ. भले ही मेरिल उस वक्त इंडस्ट्री में नई थीं, लेकिन अपने काम को लेकर संजीदगी ने उन्हें हर एक से भिड़ाया. 'क्रेमर वर्सेस क्रेमर' के कुछ संवाद मेरिल ने खुद लिखे. लड़-झगड़कर. ख़ास तौर से एक कोर्टरूम वाले सीन की स्पीच. मेरिल का कहना था कि ये एक महिला की स्पीच नहीं है. ये साफ़ झलक रहा है कि एक पुरुष महिला की स्पीच लिख रहा है. काफी आर्ग्युमेंट के बाद मेकर्स ने उन्हें अपनी स्पीच खुद लिखने की इजाज़त दे दी. बावजूद इसके कि लीड एक्टर डस्टिन हॉफमैन इससे नाखुश थे. हालांकि बाद में हॉफमैन ने उनकी अनथक मेहनत की तारीफ़ ही की. सही बात के लिए लड़-भिड़ जाने का ये जज़्बा मेरिल में हमेशा बना रहा.
'क्रेमर वर्सेस क्रेमर' की सफलता ने मेरिल के करियर को बढ़िया शेप दी. उनका ग्राफ ऊपर ही चढ़ता रहा. इसके बाद न जाने कितनी बेहतरीन फ़िल्में, प्लेज़ और टीवी शोज़ दर्शकों तक पहुंचे. 'आउट ऑफ अफ्रीका', 'जूली एंड जूलिया', 'इन टू दी वुड्स', 'डेथ बिकम्स हर', 'दी डेविल वियर्स प्राडा', 'दी पोस्ट', 'डाउट', 'माम्मा मिया', 'सफ्राजेट', दी आवर्स', 'सिल्कवुड', 'शी डेविल', 'अडैप्टेशन', 'दी ब्रिजेस ऑफ मैडिसन काउंटी', 'हार्टबर्न' जैसी एक से बढ़कर एक शानदार फ़िल्में. सिनेमा इंडस्ट्री के लिविंग लीजेंड्स में शुमार हो गया मेरिल स्ट्रीप का. तमाम फिल्मों पर बात करने लगे तो कई एपिसोड लिखने पड़ेंगे. इस एवरेस्ट पर चढ़ना फिलहाल मुल्तवी ही करते हैं. # भाई का दोस्त मदद करने आया और हमसफ़र बन गया मेरिल स्ट्रीप अपने थिएटर के दिनों के साथी जॉन कज़ाल से बेहद प्यार किया करती थीं. जॉन कज़ाल नाम शायद आपके दिमाग में घंटी न बजाए. एक और तरीका आज़माते हैं. अगर आप सच्चे सिनेमाप्रेमी हैं, तो आपने फ्रांसिस फोर्ड कोपोला की जगतप्रसिद्ध फिल्म 'गॉडफादर' ज़रूर-ज़रूर देखी होगी. उसमें जिस एक्टर ने डॉन वीटो कारलियोन के मंझले बेटे और माइकल कारलियोन के बड़े भाई फ्रीडो कारलियोन का रोल किया था, वही थे जॉन कज़ाल. महज पांच फिल्मों का करियर रहा उनका. जॉन और मेरिल थिएटर के दिनों के साथी थे. एक साथ कई प्लेज़ में काम भी किया. जब जॉन से मेरिल की मुलाक़ात हुई, जॉन गॉडफादर सीरीज़ की दो फ़िल्में कर चुके थे और जाना-माना नाम थे. मेरिल की अभी शुरुआत ही थी. दोनों के रिश्ते को अभी एक साल ही हुआ था कि बुरी खबर आई. जॉन को टर्मिनल लंग कैंसर हुआ था. मेरिल और भी शिद्दत से उन्हें चाहने लगीं. उनके साथ हर वक्त रहती. इसी वजह से उन्होंने 'दी डीयर हंटर' का नापसंदीदा रोल भी किया. जॉन ज़्यादा दिन जी न सकें. 12 मार्च 1978 को उनकी डेथ हो गई.

जॉन कज़ाल के असमय जाने का अफ़सोस. मेरिल स्ट्रीप को उम्रभर रहा.
जॉन की डेथ ने मेरिल को तोड़कर रख दिया. वो न्यूयॉर्क छोड़कर कैनडा चली गईं. कुछ अरसे बाद लौटीं, तो पता चला मकान-मालिक ने अपार्टमेंट खाली करने का नोटिस जारी कर दिया था. सामान पैक करने में मदद करने मेरिल का भाई हैरी आया. और साथ लाया अपने एक दोस्त को. डॉन गमर नाम का उभरता मूर्तिकार. डॉन कुछ अरसे के लिए देश से बाहर जा रहा था. उसने मेरिल को अपने घर में रहने की ऑफर दी. मेरिल वहां रहने लगी. बाहर गए डॉन से खतोकिताबत होने लगी. जो आखिरकार प्यार में बदल गई. 30 सितंबर 1978 को दोनों ने शादी कर ली. जो आज तक कामयाबी से चल रही है.
दोनों के चार बच्चे हैं. एक लड़का और तीन लड़कियां. हेनरी, मामी, लुइज़ा और ग्रेस. हेनरी म्यूज़िशियन है, लुइज़ा मॉडल. मामी और ग्रेस ने अपनी मां की तरह एक्टिंग को ही चुना.

एक अवॉर्ड फंक्शन में मेरिल स्ट्रीप, उनके पति डॉन गमर और चारों बच्चे.
# ये रिकॉर्ड कैसे टूटेगा? अपने पांच दशक तक फैले करियर में मेरिल स्ट्रीप ने कमाल की फ़िल्में दीं. जिन्होंने न सिर्फ अरबों डॉलर का रेवेन्यू जनरेट किया बल्कि मेरिल को एक असाधारण अभिनेत्री के रूप में बेहद ऊंचे पैडस्टल पर बिठा दिया. अवॉर्ड्स और नॉमिनेशंस से झोली भरती रही वो अलग. मेरिल स्ट्रीप ने अब तक तीन बार ऑस्कर अवॉर्ड जीता है. इसके अलावा नौ बार गोल्डन ग्लोब अवॉर्ड और तीन बार ब्रिटिश अकैडमी अवॉर्ड भी उनके नाम हुए हैं. छोटे-मोटे अवॉर्ड्स की तो कोई गिनती ही नहीं. टीवी शोज़ और थिएटर की दुनिया में भी उन पर पुरस्कारों की बारिश होती रही है. लेकिन मेरिल सबसे शानदार कारनामा तो कोई और ही है.
2020 के अंत तक मेरिल स्ट्रीप को 21 बार ऑस्कर अवॉर्ड्स के लिए नॉमिनेट किया गया है. अकैडमी अवॉर्ड्स के पूरे इतिहास में आज तक इतने ज़्यादा नॉमिनेशंस किसी को नहीं मिले हैं. इस उपलब्धि की भव्यता इस तरह देखिए कि इस सूचि में दूसरे नंबर पर एक्टर जैक निकलसन हैं. जो अब तक 12 बार नॉमिनेट हुए हैं. यानी मेरिल से नौ कम. ये एक ऐसा कारनामा है जिसे दोहरा पाना शायद ही किसी के बस का हो. ये कुछ-कुछ डॉन ब्रैडमैन के टेस्ट एवरेज जैसा है. जिसको तोड़ना तो दूर जिसके आसपास पहुंचना भी सपना लगता है. और दुनिया इनसे तुलना करने चली है. बताइए कोई तुक है?

मेरिल के पास जितने अवॉर्ड्स हैं, कई एस्टैब्लिश्ड एक्टर्स ने उतनी फ़िल्में तक न की होंगी.
जाते-जाते उन तीन फिल्मों की बात भी कर ली जाए, जिनके लिए मेरिल स्ट्रीप को ऑस्कर अवॉर्ड मिला.
#1. क्रेमर वर्सेस क्रेमर (1979)
'क्रेमर वर्सेस क्रेमर'. मेरिल का करियर एस्टैब्लिश करने वाली फिल्म. ये एक लीगल ड्रामा फिल्म थी. डिवोर्स के बाद बच्चे की कस्टडी के लिए लड़ रहे एक्स पति-पत्नी की कहानी. जेंडर को लेकर उस वक्त के समाज की मानसिकता और माता-पिता के सेपरेशन का बच्चों पर होने वाला असर जैसे मुद्दों पर ये फिल्म बेस्ड थी. ये उस साल की सबसे ज़्यादा कमाई करनेवाली फिल्म बनी. फिल्म की शूटिंग के दौरान हुई एक घटना मैगज़ीन्स और अखबारों में बार-बार दोहराई गई. हीरो डस्टिन हॉफमैन ने एक सीन में मेरिल को करारा थप्पड़ मार दिया था. ये थप्पड़ न तो स्क्रिप्ट में था, न ही हॉफमैन ने मेरिल से शूट से पहले सहमती ली थी. स्ट्रीप ने ये बात अपने कई इंटरव्यूज़ में कही है. बहरहाल, थप्पड़ भले ही खाया लेकिन फिल्म ने मेरिल को उनका पहला ऑस्कर भी दिलाया.

'क्रेमर वर्सेस क्रेमर' ने कई टैबू सब्जेक्ट्स पर खुलकर बात की थी.
#2. सोफीज़ चॉइस (1982)
मेरिल का दूसरा ऑस्कर तीन साल बाद ही आया. फिल्म थी 'सोफीज़ चॉइस'. एक हॉलोकास्ट सर्वाइवर की कहानी. मेरिल ने सोफी का रोल किया, जो ऑशविट्ज नरसंहार से बचकर आई हुई है. अपने अब्युज़िव यहूदी प्रेमी के साथ अमेरिका में रह रही है. दोनों की लाइफ में एक राइटर की एंट्री होती है, जो सोफी के पास्ट को कुरेदने लगता है. फिल्म का अंत बड़ा मार्मिक था. फिल्म को दर्शकों और आलोचकों से एक समान प्यार मिला. आज भी सोफी को मेरिल स्ट्रीप के टॉप फाइव रोल्स में जगह मिलती है.

'सोफीज़ चॉइस' के लिए मेरिल को पोलिश एक्सेंट में बोलना था, मेरिल ने ये सहजता से कर दिखाया.
#3. दी आयरन लेडी (2011)
अगले ऑस्कर के लिए मेरिल को लगभग तीन दशक तक इंतज़ार करना पड़ा. हालांकि नॉमिनेशन मिलता रहा और अन्य अवॉर्ड्स से झोली भरती रही. 'दी आयरन लेडी' यूके की पहली महिला प्रधानमंत्री मार्गरेट थैचर की ज़िंदगी पर बनी बायोग्राफिकल ड्रामा फिल्म थी. मेरिल ने मार्गरेट का सेंट्रल किरदार निभाया. और डूबकर निभाया. इस किरदार को उनका 'वन ऑफ दी ग्रेटेस्ट' कहा गया. तारीफों के पुल बंधे और उन्हीं के पीछे-पीछे चला आया तीसरा ऑस्कर.

मार्गरेट थैचर का रोल मेरिल स्ट्रीप ने ऐसे करिश्माई ढंग से निभाया है कि इस रोल में किसी और की कल्पना करना भी मुश्किल है.
और सफ़र अभी ख़त्म नहीं हुआ है. मेरिल स्ट्रीप कोई रिटायर्ड एक्ट्रेस नहीं हैं. वो आज भी पूरी सरगर्मी से अपना काम कर रही हैं. न जाने अभी और कितने अवॉर्ड्स उनके हाथों में जाकर गौरवान्वित होने वाले हैं. मेरिल स्ट्रीप वो शख्सियत बन गई हैं, जिनके युग में दुनिया शेयर करना सम्मान की बात होती है.
मेरिल स्ट्रीप वो बेबाक शख्सियत हैं, जिनके द्वारा खुली आलोचना किए जाने पर मुल्क का सर्वोच्च शासक सिवाय खिसियाने के कुछ न कर सका था. हां, कलपकर उन्हें ओवर रेटेड एक्ट्रेस ज़रूर कह गया था. आज वो शासक अपना मज़ाक बनवाकर सत्ता से बाहर हो चुका है. मेरिल का स्ट्रीप का नाम-काम अब भी है. हमेशा रहेगा.