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'जब पत्थर पूजना गलत है, तो शैतान को पत्थर मारना कौन सी समझदारी है'

फेसबुक पर बहस हो गई. गलियां भी पड़ीं और जवाब भी खूब दिए गए.

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मीना शहर में वो जगह जहां हज करने के बाद कंकड़ मारे जाते हैं. source Reuters
पाकिस्तान के राइटर हैं क़ाज़ी अब्दुल जलील. वैसे जाने जाते हैं सूफी अमर जलील के नाम से. रोजाना पाकिस्तानी न्यूज़ पेपर में उनके कॉलम छपते हैं. एक बार उन्होंने बोल दिया कि जब मूर्ति पूजा करना बेवकूफी है, तो शैतान को पत्थर मारना कौन सी दानिशमंदी है. मतलब कौन सी समझदारी है. इस बात को फेसबुक पर लगा दिया ROSHNI नाम के पेज ने. बस फिर क्या था शुरू हो गई बहस.
फेसबुक से लिया गया वो स्क्रीन शॉट जिस पर अमर जलील का कोट है.
फेसबुक से लिया गया वो स्क्रीन शॉट जिस पर अमर जलील का कोट है.

बहस हो अच्छी बात है, लेकिन गालियां भी बेशुमार पड़ीं. मतलब इतनी कि अगर सूफी अमर जलील सामने आ जाएं तो मार-पीट भी दें. क्या-क्या तर्क दिए गए, ये सब जानने से पहले ये जान लो ये शैतान को पत्थर कहां मारे जाते हैं.
मक्का का नाम सुना है. वेस्टर्न सऊदी अरब में है. हर साल लाखों मुसलमान यहां हज यात्रा करने जाते हैं. जो कि इस्लाम के पांच बुनियादी उसूलों में से एक है. हज इस्लामिक कैलेंडर के 12वें महीने में होता है. हज पूरा करने के बाद ईद-उल-अज़हा के दिन शैतान को कंकड़ियां मारी जाती हैं. माना जाता है कि अगर कंकड़ियां नहीं मारी जाएं, तो हज यात्रा पूरी नहीं होगी. ये कंकड़ियां मीना शहर में लगे तीन बड़े-बड़े पत्थर को मारी जाती हैं. जिन्हें रमी जमारत कहा जाता है. इन्हें ही शैतान का रूप बताया जाता है.

ख्वाब में देखा था कुर्बानी करते

मुसलमानों के मुताबिक अल्लाह के पैगम्बर मल्लब अल्लाह के दूत इब्राहिम ने ख्वाब में देखा कि वो अपनी कीमती चीज अल्लाह के लिए कुर्बान कर रहे हैं. ये एक इम्तिहान था अल्लाह का अपने पैगम्बर के लिए. जब इब्राहिम अपने बेटे को कुर्बान करने के लिए चले तो शैतान उन्हें बहकाने के लिए तीन बार आया और उनके दिल में बेटे की मोहब्बत जगाने लगा. तब इब्राहिम ने उसे कंकड़ियां मारकर भगाया. बस ये रस्म वही है. तो अब खुद पढ़ लो क्याहुआ बहस में. वैसे ये बहस एक साल पुरानी है, लेकिन हज यात्रा होने वाली है, इसलिए इस बहस में आप भी शामिल हो सकते हो, शर्त ये है बहस में गंदगी न हो. तर्क देना, गाली आपकी जबान में ही रहे तो अच्छी लगती है.
काज़मी अवैस ने उर्दू में ही कमेंट किया, जिन तीन स्तूपों को कंकड़ियां मारी जाती हैं, ये वो तीन मकाम हैं जहां शैतान ने हजरत इब्राहिम (अल्लाह के पैगम्बर) को बहकाने की कोशिश की. आपका उस मक़ाम पर कंकड़ियां बरसाना असल में शैतान की उस हरकत पर लानत भेजना है. और उससे नफरत जाहिर करना है. जिस तरह काबे से मोहब्बत दिखाई जाती है, क्योंकि वो अल्लाह के कहने पर बना. उसी तरह अल्लाह के मुताबिक उस जगह पर पत्थर मार कर जहां उसने हजरत इब्राहिम को बहकाया, उससे नफरत का इजहार करना है.
मियां नईम अब्बास लिखते हैं, 'जो कंकड़ियां मारी जाती हैं, वो नफरत और मोहब्बत का इजहार है. मूर्ति तोड़ने और पूजने में बहुत फर्क है.
फेसबुक स्क्रीन शॉट.
फेसबुक स्क्रीन शॉट.

फहद मुर्तजा इसके जवाब में लिखते हैं, 'तो फिर जो मूरत को सजदा किया जाता है, वो भी तो अकीदत (आस्था) है.'
मियां नईम अब्बास जवाब देते हैं, 'अकीदत और इबादत में फर्क है. अकीदत मां-बाप की भी होती है, लेकिन इबादत अल्लाह की होती है.'
फैसल कुरैशी लिखते हैं कि मान लिया पत्थर मारना और पूजना एक नहीं हो सकता. तो फिर अगर एक पत्थर भगवान नहीं हो सकता, तो फिर वो पत्थर शैतान कैसे हो सकता है.
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नय्यर ज़हीर ने लिखा इसी लिए तो मारते हैं, क्योंकि वो पत्थर का शैतान है. और दूसरी बात हम उस पत्थर की पूजा नहीं कर रहे, बल्कि ये पत्थर उस जगह पर रखे हैं जहां शैतान ने अल्लाह के पैगम्बर को बहकाया था. उसी जगह पर पत्थर मारे जाते हैं.
जकी-उर-रहमान लिखते हैं, जिसकी पूजा-पाठ करनी है, उसी का कहा मानना समझदारी है. उसने कहा, मेरी मूरत न बनाओ तो नहीं बनाई, उसने पत्थर मारने को कहा तो पत्थर मारते हैं.
फेसबुक स्क्रीन शॉट.
फेसबुक स्क्रीन शॉट.
महमूद अहमद काकर लिखते हैं कि हाजी शैतान को पत्थर नहीं मारते बल्कि कंकड़ियां मारकर हजरत इब्राहिम की शैतान को पत्थर मारकर भगाने वाली बात को ताजा करते हैं. और जहां पत्थर मारे जाते हैं, वो शैतान नहीं है बल्कि उस जगह की पहचान के लिए रखे गए पत्थर हैं, अगर उस पत्थर की जगह अमर जलील साहब को खड़ा कर दिया जाए या फिर किसी और को. फिर पत्थर मारे जाएं तो ये अमल तब भी पूरा हो जाएगा, क्योंकि मुराद उस जगह पर पत्थर मारने से है, जहां शैतान पैगम्बर को बहकाने आया.

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