पर इन सबमें जो सबसे अच्छी बात है वो है फेक न्यूज को लेकर. फेक न्यूज कहीं पर भी हिंसा भड़का सकती है. क्योंकि कोई भी कंटेंट अब छुपा नहीं है. इसे रोकने में भी वक्त लगता है. पर उतनी देर में ये लोगों के दिमाग को लहका देता है. नतीजा, हिंसा होती है.इसके बाद वो अब्राहम लिंकन का एक कोट देते हैं. जो कि अमेरिकन सिविल वॉर में दिया गया था-
हम लोग साथ रहकर ही सक्सेसफुल हो सकते हैं. ये कल्पना करने की बात नहीं है, बल्कि ये वो चीज है जो हम कर सकते हैं. पुरानी परंपराएं वर्तमान के खतरनाक समय के लिए पर्याप्त नहीं हैं. बहुत मुश्किलें हैं. पर हमें उठ के काम करना चाहिए. हमारा मामला नया है, इसलिए हमें नया सोचना चाहिए.ये वाकई में जमाने को बदलने वाला लगता है. किसी देश के प्रधानमंत्री ने भी इतने बड़े वादे नहीं किये होंगे. ये टेक्नॉल्जी को लोगों के इमोशन और निजी जिंदगी तक एक झटके में लाने का प्लान है. पर इसका एक दूसरा पक्ष भी है. फेसबुक की इस दुनिया में लोकतंत्र का चौथा स्तंभ पत्रकारिता कैसे सर्वाइव करेगी. क्योंकि ये फेसबुक का जर्नलिज्म प्लान है. फेसबुक के पास पैसा किसी मीडिया हाउस से ज्यादा ही है. जितने ऑनलाइन एडवर्टिजमेंट होते हैं उनका 85 प्रतिशत फेसबुक और गूगल को ही जाता है. न्यूज संस्थानों को ये पैसा नहीं मिलता. अगर आप फेसबुक पर बढ़ती न्यूज को देखें तो पाएंगे कि जनता यहीं से न्यूज ग्रहण कर रही है.
अगर द अटलांटिक की मानें तो मार्क एक ऐसी न्यूज संस्था बना रहे हैं जिसमें पत्रकार ही नहीं रहेंगे.फेसबुक पर 200 करोड़ एक्टिव यूजर रहते हैं हर महीने. इतना दुनिया के किसी अखबार की सर्कुलेशन नहीं है. कई देशों के अखबारों को मिला दें तो भी इतना नहीं होगा. ये यूजर ही न्यूज देंगे और न्यूज पढ़ेंगे. फेसबुक को एडिटर की जरूरत नहीं पड़ेगी. ये काम बॉट्स करेंगे. वही बॉट्स जो डाटा एनालिसिस कर कंपनियों को बताते हैं कि क्या बिकता है जमाने में. क्या चल रहा है. क्या चलाना चाहिए. अब दोनों बातें आ सकती हैं. पहली कि दुनिया में पॉजिटिविटी फैलेगी. लोगों तक अच्छी न्यूज फैलेगी. फेक न्यूज को काउंटर कर दिया जाएगा. मदद करने वाले लोग किसी भी देश में मदद कर सकते हैं. बिचौलियों की हरकतें बंद होंगी. जो न्यूज छुप जाती हैं, वो सामने आ जाएंगी. जैसे चीन और नॉर्थ कोरिया की चीजें. कोई ना कोई तो बता ही देगा. पत्रकारिता हमेशा के लिए बदल जाएगी. क्योंकि सबको आवाज मिल जाएगी. दूसरी कि दुनिया में सब कुछ रोबोटिक हो जाएगा. तब लोगों को बरगलाना आसान हो जाएगा. एक आदमी कंपनी कंट्रोल कर रहा है, वही सब करेगा. पत्रकार खबरों की इंटेंसिटी से ज्यादा फेसबुक से जुड़े होने की बात करेंगे. उन्हें वो ग्लैमर पसंद आएगा. फिर ये भी होगा कि अमेरिका का दूसरे देशों की पत्रकारिता में दखल बढ़ जाएगा. पर जो भी हो, भारत में कई चीजें बदल जाएंगी. भारत के लोग नेट पर लिखने में उस्ताद हैं. कोरा वेबसाइट पर यहीं के लोग खूब लिखते हैं. फेसबुक को भी यहां पर पॉलिटिकल डिस्कशन के लिए इस्तेमाल किया जाता है. इसके अलावा निगेटिव साइड भी उतना ही स्ट्रॉन्ग है. दंगों के वक्त भी इसका सहारा लिया गया था. फेक न्यूज फैलाने में भी यही माध्यम काम आ रहा था. तो अब भारत में कई तरह का डिस्कोर्स आ गया है. इन सारी बातों में बदलाव तो आएगा ही. कुछ भी हो सकता है. ये हमेशा होते आया है. चीजें बदलती हैं, सब कुछ खो देने का डर आ जाता है. फिर कोई आ जाता है क्रूसेडर बनकर. सौ साल पहले महात्मा गांधी ने कहा था कि पत्रकारिता का स्तर एकदम गिर गया है. उनकी बातें पढ़कर लगेगा कि आज की बात हो रही है. ऐसे में मार्क जकरबर्ग का मैनिफेस्टो कुछ नया ही ले के आ रहा है. देखते हैं क्या होता है. या तो एकदम से लेवल बढ़ जाएगा या फिर ऐसा हो जाएगा कि न चाहते हुए भी चीजें खराब हो जाएंगी. ये भी पढ़ें-
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