प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मणिपुर की घटना से दुखी हैं. क्रोधित हैं. जिन्होंने ये कृत्य किया है, उन्हें माफ़ नहीं करेंगे. सख़्त से सख़्त कार्रवाई करेंगे. ऐसा प्रधानमंत्री ने कहा है. हिंसा शुरू होने के 78 दिन बाद कहा है. 78 दिन तक चुप थे. 78 दिन तक क्या किया?
मणिपुर की घटना पर इन 10 सवालों के जवाब कौन देगा?
घटना के 77 दिन बाद वीडियो वायरल हुआ तब जाकर पुलिस 1 आरोपी को पकड़ पाई है.

दो विदेशी दौरों से हो आए. अनेक वंदे भारतों को हरी झंडी दिखा दी. कर्नाटक में चुनाव प्रचार किया. 2000 का नोट बंद कराया. नई संसद का उद्घाटन किया. बालासोर ट्रेन दुर्घटना का दौरा किया. फिर UCC की जिरह की. विपक्ष के ख़िलाफ़ अपने संगठन को मज़बूत करने के लिए पुराने सहयोगी जुटाए. ये सब किया.
क्या नहीं किया? मणिपुर के सिविल सोसायटी संगठनों ने प्रधानमंत्री से कहा, कि वो कुछ तो बोलें. ये काम नहीं हुआ. सूबे से दो-दो विधायक मंडल दिल्ली आए प्रधानमंत्री से मिलने. ये काम भी नहीं हुआ. विधायकों को दूसरे मंत्रियों से काम चलाना पड़ा. तर्क उछाला गया कि ज़रूरी है प्रधानमंत्री सबकुछ बोलें? करके भी तो दिखा सकते हैं? फिर वो बोले क्यों? क्या इसलिए, कि वीडियो सामने आने के बाद चुप रहने का ऑप्शन बचा नहीं था.
ये वही प्रधानमंत्री हैं, जिन्होंने "पहले" नॉर्थ-ईस्ट को लेकर ख़ूब चिंता जताई है. बारहा कहा है कि पूर्व की सरकारों ने पूर्वोत्तर को अलग-थलग कर दिया था और पूर्वोत्तर, मोदी सरकार के लिए "फ़ोकस एरिया" है. ये वही प्रधानमंत्री हैं, जिन्होंने 25 फरवरी 2017 को ट्वीट किया था -- जो लोग राज्य में शांति सुनिश्चित नहीं कर सकते, उन्हें मणिपुर पर शासन करने का कोई अधिकार नहीं है.
मणिपुर में छिड़े गृहयुद्ध पर ज़िम्मेदारों की चुप्पी को एक ब्लर वीडियो ने तोड़ ही दिया. अब जो कहा जा रहा है, उसका मतलब हम क्या निकालें? इसमें उस साफ नीयत को कहां ढूंढें, जो न उस इंफाल में नज़र आ रही है जहां ढाई महीने बाद जाकर एक आरोपी गिरफ्तार हुआ. और न ही उस दिल्ली में, जहां संसद की बैठक शुरू होते ही ठप हो गई.
बीती शाम, माने 19 जुलाई को ट्विटर पर एक वीडियो सामने आया. कई लोगों ने शेयर किया. हम न आपको वो वीडियो दिखाएंगे, न उसकी पूरी डिटेल्स बताएंगे. वीडियो में पुरुषों की एक भीड़ है. दो महिलाएं दिख रही हैं, जिनके तन पर एक तिनका भी नहीं है. कुछ लड़कों ने इन दोनों महिलाओं को दबोचा हुआ है. बाकी लोग उन्हें इधर-उधर हाथ लगा रहे हैं. और ये जुलूस गांव की सड़क से होता हुआ धान के खेतों की ओर जा रहा है.
इंडिया टुडे नॉर्थईस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक़, दोनों पीड़िताएं कुकी-ज़ो समुदाय की हैं. घटना 4 मई की है. माने 3 मई को राज्य-व्यापी हिंसा शुरू हुई और ये घटना, ठीक एक दिन बाद की है. पुलिस को दी गई शिकायत में गांव के मुखिया ने इस घटना का पूरा ब्योरा दिया है. इसके मुताबिक़, 4 मई की दोपहर 3 बजे के आसपास लगभग 900-1000 लोगों की भीड़ उनके गांव 'बी. फीनोम' आई. भीड़ में संभवतः मैतेई संगठनों के लोग थे. उनके पास भारी मात्रा में ऑटोमैटिक हथियार थे. उन लोगों ने गांव के घरों में तोड़फोड़ और लूटपाट की. घरों को आग लगा दी.
भीड़ से जान बचाने के लिए 3 महिलाएं और 2 पुरुष जंगलों की तरफ़ भागे. उन्हें पुलिस की एक टीम मिली, जो उन्हें बचाते हुए पुलिस स्टेशन ले जाने लगी. मगर भीड़ ने उन लोगों का रास्ता रोक लिया. हिंसक भीड़ ने पुलिस से जबरन इन पांच लोगों को छुड़ा लिया. फिर 56 साल के एक आदमी को भीड़ ने वहीं मार डाला. 21 साल, 42 साल और 52 साल की तीन महिलाओं के कपड़े फाड़े और निर्वस्त्र करके उनका जुलूस निकाला और इस सबका वीडियो भी बनाया. इसके बाद ये भीड़ धान के खेतों की ओर गई, जहां 21 साल की लड़की का उसके 19 साल के भाई के सामने गैंगरेप किया गया. बाद में तीनों महिलाएं कुछ लोगों की मदद से वहां से भाग निकलीं. ये तहरीर में लिखा है, जो गांव के मुखिया ने पुलिस की दी है. हालांकि, उनमें से एक सर्वाइवर ने इंडियन एक्सप्रेस की सुक्रिता बरुआ को बताया कि भीड़ ने पुलिस से जबर उन्हें नहीं छीना. पुलिस ने ख़ुद ही उन्हें भीड़ के हवाले किया था.
इसमें एक और मामला है, जो आपको जानना चाहिए. द प्रिंट की सोनल मथारू की रिपोर्ट के मुताबिक़, 3 मई को चूराचांदपुर में एक फोटो वायरल होती है. फोटो में पॉलिथीन में लिपटी एक महिला की लाश थी. वायरल फोटो के साथ एक मेसेज भी वायरल था. मेसेज ये कि एक मैतेई महिला के साथ कुकी लड़कों ने मेडिकल कॉलेज में रेप किया और उसकी हत्या कर दी. वायरल होते ही मैतेई समाज में हंगामा मच गया. हिंसा भड़क गई. कुछ ही देर में पुलिस ने कहा कि ये फेक न्यूज़ है. पुलिस ने ये भी बताया कि जिस लड़की की फोटो वायरल हो रही है, वो दिल्ली की है. उसकी हत्या किन्हीं और कारणों से हुई है. घटना 2022 की है. मणिपुर से कोई लेना देना नहीं है.
लेकिन तब तक देर हो चुकी थी. पुलिस के स्पष्टीकरण का फर्क़ नहीं पड़ा. एक समुदाय दूसरे को पहले से ज़्यादा नफ़रत भरी निगाह से देख रहा था. हिंसा भड़की, तो निशाने पर कुकी महिलाओं को लिया गया. और जो वीडियो अब वायरल हो रहा है, ये इसी नफ़रत का नतीजा है.
इसके अलावा न्यूज़ क्लिक की एक रिपोर्ट में भी छपा है कि राज्य में और ‘फेक फोटोज़’ को इस्तेमाल किया गया है. ख़बर के मुताबिक़, अरुणाचल प्रदेश की महिला की तस्वीर को भी मैतेई महिला के रूप में बताया गया. कहा गया कि कुकी भीड़ इस महिला के साथ मारपीट की है. जबकि असल में हुआ ये था कि उस महिला के साथ घरेलू उत्पीड़न किया गया था. सोनल मथारू मणिपुर गई भी थीं. उन्होंने रिलीफ़ कैम्प में रहने वाले सर्वाइवर्स से बात की और उनका कहना है कि उन्हें उस कैम्प में 6 रेप पीड़िताएं मिलीं. इनमें से एक टीनेजर भी है और 40 साल की एक महिला भी. इन पीड़िताओं के मेडिकल से सिद्ध हुआ है कि इनका बलात्कार किया गया है और इनके परिवारों ने शिकायत दर्ज भी करवाई है.
माने हमारे सामने वीडियो एक घटना का आया, लेकिन असल स्केल इससे कहीं बड़ा है.
लौटते हैं 4 मई की घटना पर. ये घटना इंफाल घाटी में स्थित थाउबल ज़िले में हुई, जो कि मैतेई बाहुल है. किसी तरह छूट कर पीड़िताएं कांगपोकपी पहुंची, जहां कुकी आबादी अच्छी संख्या में बसती है. 18 मई को जाकर मामले में 'ज़ीरो FIR' दर्ज हुई. माने घटना के दो हफ़्ते बाद. ज़ीरो FIR क्षेत्र की परवाह किए बिना किसी भी पुलिस स्टेशन में दर्ज की जा सकती है. लेकिन कार्रवाई तो थाउबल में होनी थी. इसके लिए FIR को ट्रांसफर होना था. अब इतना तो आप जानते ही हैं कि FIR चलकर नहीं जाती, आजकल फैक्स और मेल का ज़माना है. लेकिन मान लीजिए कि FIR के पैर होते हैं, और वो चलकर ही जाती है. तब भी इसे कांगपोकपी से थाउबल की 65 किलोमीटर की दूरी तय करने में 32 दिन नहीं लगने चाहिए. जी हां. थाउबल के के नोंगपोक सेकमाई थाने में पक्की FIR 21 जून को जाकर दर्ज हुई. ऐसी है गृहमंत्री बीरेन सिंह की करामाती पुलिस और उसपर गृहमंत्री अमित शाह द्वारा भेजे गए सुरक्षा सलाहकारों का नियंत्रण.
इस FIR की एक स्कैन कॉपी दी लल्लनटॉप के पास भी है. इसमें अज्ञात हथियारबंद आरोपियों के खिलाफ अपहरण, गैंगरेप और हत्या आदि का केस दर्ज किया गया. FIR में एक पीड़िता के साथ गैंगरेप की बात भी लिखी है. 376 की धारा दर्ज है. हालांकि, सर्वाइवर्स ने दो समाचार पोर्टल्स से कहा है कि पीड़िताओं ने गैंगरेप की बात से इनकार किया है. क्या इस इनकार से फर्क पड़ेगा? इस विषय पर दी लल्लनटॉप ने सुप्रीम कोर्ट के वकील सुशील टेकरीवाल से बात की. उन्होंने कहा कि इस केस में भारतीय दंड संहिता की धारा 376 लगेगी. भारतीय कानून के मुताबिक ये जरूरी नहीं है कि पेनिट्रेशन हो. अगर किसी महिला के निजी अंग को छुआ गया यानी स्किन टू स्किन टच हुआ, तो उसे रेप केस माना जाएगा. धारा 376 सिद्ध होने पर 10 साल से आजीवन कारावास तक की सजा हो सकती है. यानी कम से कम 10 साल और ज्यादा से ज्यादा लाइफ इम्प्रजनमेंट.
इतने गंभीर मामले में गृहमंत्री बीरेन सिंह की पुलिस ढाई महीने में किसी को गिरफ्तार नहीं कर पाई. जब वीडियो वायरल हुआ और पूरे देश में थू-थू होने लगी, तब जाकर मणिपुर पुलिस का बयान आया कि प्रयास जारी है. और 20 जुलाई की सुबह जाकर खबर आई कि उस पूरी भीड़ में से एक शख्स को गिरफ्तार कर मुख्य आरोपी बता दिया गया है. क्या पुलिस वीडियो देखकर भी सिर्फ एक ही आदमी को पकड़ पाई??
वीडियो सामने आने के बाद आदिवासी संगठन इंडिजीनस ट्राइबल लीडर्स फोरम (ITLF) ने प्रेस रिलीज़ जारी किया. घटना की निंदा की. दी लल्लनटॉप ने ITLF के मीडिया प्रभारी से बात की. उन्होंने बताया कि उन्हें ये जानकारी मिली थी कि मैतेई गुट, कुकी महिलाओं का रेप कर रहे हैं. लेकिन वायरल वीडियो से वो भी हतप्रभ हैं. ITLF ने अपनी प्रेस रिलीज़ में एक बहुत ज़रूरी बात कही है. उन्होंने अपील की है कि अपराधियों ने ये वीडियो शेयर कर के इन निर्दोष महिलाओं की पीड़ा को और बढ़ा दिया है. फ़ोरम की बात सही है. हम भी आपसे अपील करते हैं. ये वीडियो पीड़िताओं की पहचान को पब्लिक कर देता है. कुछ प्रतिक्रिया देनी भी हो, तो विज़ुअल न शेयर करें.
यहां हम दो बातों पर ध्यान दिलाना चाहते हैं. पहली तो ये कि ITLF की ये बात सही है कि कुकी महिलाओं को टार्गेट बनाकर रेप किया गया. लेकिन यही सुलूक मैतेई महिलाओं के साथ भी हुआ. जातीय पौरुष पूरे मणिपुर में महिलाओं की कीमत पर ही बुलंद हुआ. दूसरी बात ये, कि ITLF ने 20 जुलाई को चुराचांदपुर में एक बड़ा प्रोटेस्ट पहले से बुलाया हुआ था, माने संसद के मॉनसून सत्र के पहले दिन. ऐसे में वीडियो की टाइमिंग को लेकर सवाल खारिज नहीं किए जा सकते. लेकिन ये कैसे तय किया जाए, कि वीडियो कुकी समूहों ने ही लीक किया. फिर सवाल ये भी है कि लीक कोई करे, क्या उससे वीडियो में नज़र आ रहे अपराध को खारिज किया जा सकता है?
खैर, अब जब मामला प्रकाश में है, ऊपर से नीचे तक हर कोई बहस को किसी और दिशा में घुमाने का प्रयास कर रहा है. और हम ये बात सोदाहरण स्थापित करेंगे. गौर कीजिए -
हम सरकार को कुछ चहरों में खोजते हैं. प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री आदि इत्यादि. लेकिन एक अदृष्य तंत्र है, जो अक्सर ऐसे मामलों में एक्टिव हो जाता है. आज सुबह भी सूत्रों ने दावा कर दिया कि सरकार ने ट्विटर और दूसरी सोशल मीडिया साइट्स को ये आदेश दिया है कि मणिपुर के वीडियो को शेयर न करें. सरकार ने कहा कि सोशल मीडिया कंपनियों को भारतीय कानून का पालन करना होगा. NDTV के लिए वसुधा वेणुगोपाल ने तो अपनी खबर में यहां तक लिखा कि सरकार ट्विटर पर कार्रवाई भी कर सकती है.
ये बात बिलकुल सही है कि यौन अपराधों के मामले में पहचान ज़ाहिर करने की मनाही होती है. IT Rules 2021 के तहत ऐसे मामलों में कार्रवाई भी हो सकती है. लेकिन मौजूदा स्थिति में तो ज़्यादा बड़ा मामला धान के खेत में सरेआम हुआ बलात्कार और जुलूस है, न कि ये कि इसका वीडियो सामने कैसे आ गया.
एक तर्क ये भी उछाला जा रहा है कि ये वीडियो जारी कर मणिपुर का माहौल बिगाड़ने की कोशिश की जा रही है. ऐसी ही स्थिति के लिए अंग्रेज़ी में मुहावरा बना है - शूटिंग द मैसेंजर. माने बात कुछ भी हो, हम तो संदेसा लाने वाले के पीछे पड़ेंगे. भैया ये बताइए कि माहौल रेप की घटना से खराब होता है, या घटना की सूचना से?? ये बात सही है कि वीडियो सामने आने के बाद 19 की शाम को ही मणिपुर के पहाड़ी इलाकों में तनाव की स्थिति बन गई थी. लेकिन इस तनाव का कारण वीडियो नहीं, बीते दो ढाई महीनों से चली आ रही सरकार की मक्कारी है.
बहस को घुमाने वालों में वो लोग भी शामिल हैं, जो बात को बिलकुल ही दूसरा रंग दे रहे हैं. इनका तर्क है कि महिलाओं को दंगाइयों ने ढाल बनाया, इसीलिए वो क्रिया की प्रतिक्रिया का शिकार भी होंगी. कुछ लोग ये तर्क ठेल रहे हैं कि महिलाओं का बर्ताव इस तरह का था, कि ये घटना होनी ही थी. इन लोगों का दुस्साहस देखिए, अपने वाहियात तर्कों के पक्ष में हमारी सेना का वीडियो इस्तेमाल कर रहे हैं. और खुलेआम लोगों को बरगला रहे हैं.
पहली बात तो यही है कि हिंसा भड़कने के अगले ही दिन 4 मई वाली घटना हो गई थी. तो किसी क्रिया-प्रतिक्रिया का सवाल ही नहीं उठता. और फौज का रास्ता रोकने का सच क्या है, हम आपको बताते हैं. पूर्वोत्तर की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी कोलकाता स्थित सेना की पूर्वी कमान की है. और पूर्वोत्तर में से मणिपुर सहित 5 राज्यों की सुरक्षा देखती है दीमापुर स्थित 3 कोर, जिसे स्पीयर कोर भी कहा जाता है. 3 मई की रात से ही कोर के तहत आने वाली टुकड़ियां ऑपरेशन्स में लगी हैं. इन्हीं टुकड़ियों ने एक पैटर्न नोट किया, कि जब जब सेना उग्रवादियों पर कार्रवाई जाती थी, तब तब महिलाएं उनका रास्ता रोक लेती थीं. अब चूंकि सेना के जवानों में महिलाएं न के बराबर हैं, इसीलिए फौज इन प्रदर्शनकारियों पर कोई कार्रवाई नहीं करती. इस बात को कई-कई बार ढाल की तरह इस्तेमाल किया गया. इसका सबसे बड़ा उदाहरण सामने आया 24 जून को. स्पीयर कोर ने ट्वीट कर बताया कि इंफाल ईस्ट ज़िले में तकरीबन 12सौ महिलाओं ने सेना का एक काफिला रोक लिया और उन्हें प्रतिबंधित उग्रवादी संगठन KYKL के 12 दुर्दांत उग्रवादियों को छोड़ने पर मजबूर किया. इनमें से एक स्वघोषित लेफ्टिनेंट कर्नल मोइरांगथेम तंबा उर्फ उत्तम भी था. ये वही उग्रवादी था, जिसने 2015 में सेना की डोगरा रेजिमेंट की टुकड़ी पर हमला कर 20 सैनिकों की जान ली थी. इसी के बाद सेना ने मणिपुर में घुसकर सर्जिकल स्ट्राइक की थी. घटना का मास्टर माइंड सेना के पास था, लेकिन महिलाओं ने उसे छुड़वा लिया. ये मैतेई महिलाओं का गुट था, जिसे मीरा पईबी कहते हैं.
26 जून को तो स्पीयर कोर ने कई वीडियो का एक कोलाज शेयर किया जिसमें मीरा पईबी को एक साथ कई मैतेई बाहुल इलाकों में सेना का रास्ता रोकते और दंगाइयों की ढाल बनते दिखाया गया. सोचिए वो कैसा दबाव रहा होगा, जब मीडिया से हमेशा पर्दा रखने वाली सेना ने खुद ट्वीट करके वीडियो जारी किए, कि हमारे संयम को दुर्बलता न समझा जाए.
तो सेना का रास्ता मीरा पईबी रोक रही थीं, जो कि एक मैतेई गुट है. और 4 मई की घटना हुई कुकी महिलाओं के साथ. हम आपको ये भी बता दें कि मणिपुर के पहाड़ी ज़िलों में कुकी समूहों ने भी सेना का रास्ता रोका, और इस ब्लॉकेड्स में महिलाओं की भागीदारी भी थी. लेकिन सेना के जिन वीडियो को इस्तेमाल कर 4 मई की घटना पर गलतबयानी की जा रही है, उनमें मैतेई महिलाएं ही नज़र आ रही है.
हमारा तो कहना यही है, कि फौज का रास्ता कोई रोके, लेकिन 4 मई की घटना उसका जवाब नहीं हो सकती.
अब आते हैं प्रधानमंत्री के बयान पर. ये बात बिलकुल सही है कि प्रधानमंत्री पूरे देश के लिए ज़िम्मेदार हैं. इसीलिए उन्हें मणिपुर के साथ-साथ राजस्थान और छत्तीसगढ़ पर ज़रूर बोलना चाहिए. लेकिन क्या इन तीन राज्यों में हुई घटनाओं की चर्चा एक सांस में की जा सकती है? इसका फैसला आप कर पाएं, इसीलिए हम आपको बता ही देते हैं कि राजस्थान में हुआ क्या था. जोधपुर के जय नरायण व्यास यूनिवर्सिटी में कथित तौर पर ABVP के दो कार्यकर्ताओं ने एक 17 साल की दलित लड़की का गैंपरेप किया था. भाजपा नेताओं ने इस ख़बर को ख़ारिज किया. तीनों आरोपियों पर POCSO, भारतीय दंड संहिता और SC-ST ऐक्ट की संबंधित धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया. और घटना के दो घंटों के अंदर आरोपियों को गिरफ़्तार कर लिया गया. इसी राजस्थान में एक महिला विधायक ने छेड़खानी की शिकायत भी की है.
लीजिए, हमने आपको बता दिया कि राजस्थान में क्या हुआ था. अब दर्शक तय करें, कि क्या राजस्थान और मणिपुर में हुई घटनाओं की तुलना की जा सकती है? कि इसपर बोलना है, तो उसपर भी बोलो?
प्रधानमंत्री का बयान संसद के बाहर आया था. अब हमारे साथ चलिए संसद के अंदर. हमने 19 जुलाई को आपसे कहा था कि कार्यवाही नए भवन में होगी, लेकिन आज दोनों सदन पुराने भवन से ही चले. 11 बजे दोनों सदनों की कार्यवाही शुरू हुई. पहले चलते हैं लोकसभा की ओर. सबसे पहले जालंधर से चुनकर आए आम आदमी पार्टी के सांसद सुशील कुमार रिंकू ने शपथ ली. फिर इसके बाद दिवंगत सदस्यों को श्रद्धांजलि दी गई. इसके बाद मणिपुर की आवाजें ऊंची होने से पहले ही लोकसभा की कार्यवाही को दोपहर 2 बजे तक के लिए स्थगित कर दिया गया. दोपहर 2 बजे कार्यवाही फिर शुरू हुई. पीठासीन डॉ. किरिट प्रेमजीभाई सोलंकी ने सदस्यों से अपने दस्तावेज सदन के पटल पर रखने को कहा. इस दौरान विपक्षी दलों के सांसद मणिपुर घटना को लेकर नारेबाजी करने लगे.
इसपर बाद संसदीय कार्य मंत्री प्रल्हाद जोशी ने कहा कि सरकार दोनों सदनों में चर्चा के लिए तैयार है. जैसे ही संसदीय कार्यमंत्री बोलकर बैठे वैसे ही सदन की कार्यवाही अगले दिन तक के लिए स्थगित कर दी गई.
कमोबेश यही स्थिति राज्यसभा की भी रही. दिवंगत सदस्यों को श्रद्धांजलि दी गई. फिर 12 बजे तक के लिए सदन स्थगित कर दिया गया. 12 बजे दोबारा कार्यवाही शुरू हुई. राज्यसभा के चेयरमैन जगदीप धनखड़ ने कहा कि शॉर्ट ड्यूरेशन डिस्कशन (अल्पकालिक चर्चा) के लिए उन्हें नियम 176 के तहत 12 नोटिस मिले हैं. 8 नोटिस मणिपुर को लेकर हैं. 3 नोटिस बालासोर हादसे और रेलवे सुरक्षा को लेकर है. जबकि एक नोटिस बेरोजगारी के मुद्दे पर चर्चा के लिए है. इस पर सदन के नेता पीयूष गोयल ने कहा कि सरकार मणिपुर पर चर्चा के लिए तैयार है.
इस पर सभापति धनखड़ ने कहा कि सरकार चर्चा के लिए तैयार है. इसलिए चर्चा के समय और तारीख के लिए उन्हें नेता सदन से बात करनी होगा. इस पर विपक्षी दलों के सदस्यों ने हस्तक्षेप किया. विपक्षी सदस्य नियम 267 के तहत व्यापक बहस की मांग कर रहे थे. अगर 267 के तहत बहस होती है तो अन्य सभी कार्यों को सस्पेंड कर दिया जाता है. तृणमूल कांग्रेस के सदस्य डेरेक ओ ब्रायन ने कहा कि नियम 267 के तहत भी चर्चा के लिए नोटिस दिया गया है. नेता विपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी शॉर्ट डिस्कशन पर आपत्ति जताई. कहा कि आधे घंटे के लिए चर्चा नहीं होगी.
खड़गे ने ये भी कहा कि वे नियमों का पालन करते हुए हाथ उठाकर अपनी बारी का इंतजार करते रहे. लेकिन सभापति का ध्यान उनकी ओर नहीं गया. जबकि नेता सदन अचानक से उठे और अब सभापति शॉर्ट डिस्कशन के लिए तैयार हैं. इसके बाद डेरेक ओ ब्रायन उठकर खड़े हुए. और काफी गुस्से में कहा, प्रधानमंत्री कहां हैं? प्रधानमंत्री को मणिपुर पर अपना मुंह खोलना होगा?
धनखड़ ने कहा कि वे शॉर्ट डिस्कशन के लिए तैयार हैं. नेता सदन के साथ बातचीत के बाद आगे निर्णय लिया जाएगा. और सदन को 2 बजे तक के लिए स्थगित कर दिया गया. 2 बजे कार्यवाही फिर से शुरू हुई. सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने सिनेमैटोग्राफ (सुधार) बिल 2023 पेश किया. मणिपुर पर चर्चा की मांग जारी रही. नेता विपक्ष खड़गे ने 267 के तहत चर्चा की मांग की. अन्य विपक्षी सांसदों का उन्हें समर्थन मिला. और फिर अगले दिन तक के लिए सदन स्थगित कर दिया गया.
दोनों सदनों में आसन जो भी फैसला लेते हैं, सदन चलाने या उसे स्थगित करने का, उसपर टिप्पणी करने का रिस्क हम नहीं लेंगे. लेकिन हम उन आपत्तियों को भी आप तक पहुंचाना चाह रहे हैं, जिनमें विपक्ष ने ऐतराज़ जताया कि उन्हें बोलने का मौका नहीं दिया जा रहा. ये भी पूछा जा रहा है कि कार्यवाही के स्थगन से हासिल क्या हुआ. पक्ष-विपक्ष दोनों नूरा कुश्ती लड़कर अपने अपने घर चले गए. अब दो दिन छुट्टी है. क्या तब तक मणिपुर न्यूज़ साइकिल से बाहर नहीं हो जाएगा? सदन चलाने की प्राथमिक ज़िम्मेदारी सरकार की होती है. ऐसे में इन सवालों के जवाब उसी को देने हैं.
संसद के बाद सुप्रीम कोर्ट. सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर की घटना का स्वत: संज्ञान लिया है. चीफ जस्टिस धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ ने कहा,
हम वायरल वीडियो देखकर व्यथित हैं. अब समय आ गया है कि सरकार सख्त कदम उठाए और कार्रवाई करे. यह अस्वीकार्य है. राज्य और केंद्र की सरकार, कोर्ट को बताए कि अब तक क्या-क्या कदम उठाए गए. सरकार यह भी सुनिश्चित करे कि ऐसी घटनाएं दोहराई न जाएं. मीडिया में दिखाए गए दृश्य मानवाधिकारों और संविधान का उल्लंघन दिखाते हैं. सांप्रदायिक हिंसा में महिलाओं को साधन के रूप में इस्तेमाल करना बिल्कुल अस्वीकार्य है. CJI ने कहा कि मामले पर कार्रवाई करने के लिए सरकार को कुछ समय दिया जाएगा, जिसके बाद वो खुद इस पर एक्शन लेंगे.
इस घटना पर जितनी बात की जाए, उतनी कम है. इसीलिए हम बतौर एक भारतीय और बतौर एक पत्रकार अपनी ज़िम्मेदारी को 10 सालों में बांधकर आपके सामने रख रहे हैं. 9 सवाल बीरेन सिंह सरकार से और 1 सवाल नरेंद्र मोदी सरकार से.
पहला सवाल - FIR में लिखा है कि पुलिस पार्टी से भीड़ ने पीड़ित महिलाओं को छुड़ा लिया. ऐसे में उसी दिन FIR क्यों नहीं दर्ज की गई. पीड़िताओं की तरफ से शिकायत का इंतजार क्यों किया गया? क्या बीरेन सिंह की पुलिस भी कुकी-मैतेई देखकर काम कर रही है?
दूसरा सवाल - भीड़ महिलाओं को पुलिस पार्टी से छुड़ाकर ले गई. तो क्या घटना के बाद पुलिस पार्टी ने रीन्फोर्समेंट मांगा? क्या रीन्फोर्समेंट भेजा गया? अगर नहीं, तो क्या कार्रवाई हुई. क्योंकि ये तो पुलिस पार्टी की सुरक्षा से भी जुड़ा प्रश्न है? और अगर ये बात वाकई सही है कि पीड़िताओं को पुलिस ने ही भीड़ के हवाले किया था, तब पुलिस के पास क्या जवाब है?
तीसरा सवाल - 18 मई को ज़ीरो FIR दर्ज हुई. पक्की FIR दर्ज हुई 21 जून को. दोनों के बीच इतना गैप क्यों? क्या पुलिस के लिए ये घटना सीरियस नहीं थी?
चौथा सवाल - क्या राज्य में इतनी बड़ी घटना होने पर गृहमंत्री बीरेन सिंह को इस बात की जानकारी नहीं थी. क्या गृहमंत्री बीरेन सिंह इस बात से 19 जुलाई को ट्वीटर के माध्यम से वाकिफ हुए? और अगर हां, तो उनका बयान 20 जुलाई को क्यों आया? तब जब प्रधानमंत्री बयान दे चुके थे. बीरेन सिंह ये बताने के लिए प्रेस कॉन्फ्रेंस कर सकते हैं कि उन्होंने कुछ ही घंटों में बहुत सारे आंतकवादी (जो कि तकनीकी रूप से उग्रवादी थे, जिनसे सरकार बातचीत कर रही है) मारे गए हैं लेकिन इस घटना पर बोलने के लिए उन्होंने प्रधानमंत्री के बयान का इंतजार क्यों किया?
पांचवा सवाल - भीड़ इन लोगों को पुलिस पार्टी से इसीलिए छुड़ा पाई क्योंकि इनके पास ऑटोमैटिक हथियार थे. अब तक मणिपुर में तकरीबन 5 हज़ार हथियार लूटे गए. 15सौ के करीब वापिस आए. क्या गृहमंत्री और मुख्यमंत्री बीरेन सिंह हथियारों को लौटाने के प्रयासों में पिछड़ रहे हैं. क्योंकि अगर अब भी हथियार लोगों के पास ही हैं, तो भीड़ आने वाले दिनों में भी कानून को अपने हाथ में ले सकती है.
छठा सवाल - घटना 4 मई की है. पुलिस को घटना की पूरी जानकारी थी. 21 जून को FIR दर्ज हुई. लेकिन पहला आरोपी तब गिरफ्तार हुआ जब घटना का वीभत्स वीडियो वायरल हो गया. वीडियो में सबके चेहरे साफ दिख रहे हैं. लेकिन पुलिस अब तक सभी आरोपियों को क्यों नहीं पकड़ पाई?
सातवां सवाल - खबरों के मुताबिक ये पूरी वारदात एक फेक न्यूज़ के फैलने की वजह से हुई. पुलिस ने फेक न्यूज़ का खंडन भी किया. हिंसा भड़क रही थी. तो अप्रिय घटनाएं होने का डर था. ऐसे में पुलिस ने क्या सुरक्षात्मक कदम उठाए? क्या ये बात आम जनता तक कम्यूनिकेट की गई? क्या पुलिस बल को चौकन्ना किया गया?
आठवां सवाल - अब मुआवज़े का ऐलान हुआ है. जब मामला वायरल हुआ. अगर ये वीडियो दो महीने बाद वायरल होता तो क्या मदद के लिए दो महीने का और इंतजार करना पड़ता? लेकिन पीड़िताओं के मानसिक स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए उन्हें क्या मदद दी गई?
नौवां सवाल - सबसे बड़ा सवाल, साक्ष्य कैसे जुटाएंगे? क्या पुलिस ने मामला बनाने में बहुत देर नहीं कर दी? क्या इससे मामला कमज़ोर नहीं हो जाएगा? अगर आरोपियों में से कोई भी इसके चलते छूटा, तो क्या बीरेन सिंह, जो सख्त कार्रवाई की बात कह रहे हैं, ज़िम्मेदारी लेंगे?
दसवां साल - आखिर सवाल केंद्र से. जिसके सुरक्षा सलाहकार वहां भेजे गए हैं. जिसकी पैरामिलिट्री मणिपुर में तैनात है. मणिपुर पुलिस पर जिस तरह के इल्ज़ाम लग रहे हैं, क्या वो उसके संज्ञान में नहीं हैं. अगर हैं, तो उसने केंद्र को क्या अनुशंसा की है. हम समझते हैं कि सुरक्षा मामलों में कुछ पर्दादारी ज़रूरी है. लेकिन ढाई महीने बहुत होते हैं. उन्हें मणिपुर प्रशासन पर अपनी राय स्पष्ट करनी चाहिए.
एक बात ध्यान में रखिए. तंत्र से अपेक्षा होती है, कि वो आम जनता से ज़्यादा जानकारी रखे. क्योंकि सूचना के माध्यम उसी के पास हैं. नीचे से ऊपर रिपोर्टिंग उसी को की जाती है. ऐसे में जो नेता ट्विटर पर वीडियो वायरल होने के बाद बयान दे रहे हैं, उनकी बातों में मत आइए. अगर इन सबको वाकई ट्विटर से ही पता चला,तो फिर इन्हें भीड़ द्वारा इस्तीफा फाड़ने का इंतज़ार नहीं करना चाहिए. इन्हें खुद ही अपना अपॉइंटमेंट लेटर फाड़ देना चाहिए.
चलते-चलते एक नजर कुछ और खबरों पर भी डाल लेते हैं. हत्या और बलात्कार के दोषी राम रहीम को फिर से पैरोल मिल गई है. इस बार 30 दिन की. 2017 में सजा सुनाए जाने के बाद से अब तक 7 बार राम रहीम को परोल मिल चुकी है. इस साल की शुरुआत में भी 40 दिन की पैरोल पर राम रहीम जेल से बाहर आया था.
अगली खबर पहलवानों के यौन शोषण मामले से जुड़ा है. आज दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट में आरोपी बृजभूषण शरण सिंह और विनोद तोमर की जमानत अर्जी पर सुनवाई हुई. दिल्ली पुलिस ने कहा कि वे न तो जमानत अर्जी का विरोध कर रहे हैं और न ही समर्थन. पहलावनों के वकील ने विरोध किया. कहा कि मामले की जांच और गवाहों को प्रभावित किया जा सकता है. हालांकि कोर्ट ने दोनों आरोपियों को सशर्त जमानत दे दी.