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लिख-लिख कर खुदा खोजता रहा वो बूढ़ा

मोहनदास करमचंद गांधी को महात्मा गांधी बनाने वाली किताबें लिखी थीं

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सौजन्य: ओपन कल्चर

इल्म पढ़-पढ़ फ़ाज़िल होया, कदे अपने आप नू पढ्या नहीं ! बुल्ले शाह का ये गाना या फिर कबीर का पोथा पढ़-पढ़ बड़ा-बड़ा पंडित होया न कोय...लेव तोल्स्तोय की किताबों पर लागू नहीं होता है. लेव तोल्स्तोय, लियो टॉल्स्टॉय के नाम का मूल उच्चारण यही है, ने जो कुछ भी लिखा वो आज साहित्य की अमरनिधि है. तोल्स्तोय ने तीन भारी-भरकम पोथेनुमा उपन्यास लिखे. 'युद्ध और शांति' जिसे दुनिया की सबसे बढ़िया किताब माना जाता है. 'आन्ना कारेनिना' – दुनिया की सर्वश्रेष्ठ किताबों की कोई भी सूची ले लीजिए उसमें आन्ना कारेनिना का नाम ज़रूर होगा. 'पुनरुत्थान' – वो किताब जिसने मोहनदास करमचंद गांधी को महात्मा गांधी बनने की राह पर डाल दिया. और फिर बच्चों की कहानियों से लेकर मौत के रहस्यों पर लिखी गंभीर कहानियां, तोल्स्तोय का सब कुछ क्लासिक है.


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सौजन्य विकी कॉमन्स

महात्मा गांधी को शिक्षा देने वाले तोल्स्तोय एक समय ताश के बहुत बड़े खिलाड़ी हुआ करते थे. जवानी में खूब दारू और जुआ चला करता था. अगर आपका बचपन संयुक्त राष्ट्र से मान्यता प्राप्त इंटरनेशनल स्कूलों में नहीं बीता है तो तोल्स्तोय की एक-आध कहानी आपने ज़रूर पढ़ी होगी. उनकी सबसे चर्चित कहानी है – इवान इल्यीच की मौत. इस कहानी में एक अधेड़ और अमीर आदमी जवानी जाने के बाद आती हुई मौत के बारे में सोचकर ही सकपका जाता है और इस सकपकाहट का नतीजा ये कि इवान इल्यीच को बिताया गया अपना सारा जीवन निरर्थक नज़र आता है. मौत से डरे इंसान इवान इल्यीच की मौत हो जाती है और आसपास के लोग फिर अपने ढंग से जीने लगते हैं. आदमी बुलबुला है पानी का...

रोंगटे खड़े कर देने वाली कहानियों में तोल्स्तोय की क्रूज़र सोनाटा का नाम भी है. लव और सेक्स पर सबसे विवादित कहानियों में शुमार क्रूज़र सोनाटा ने प्रतिबंध भी झेला था. लेकिन तोल्स्तोय को रॉकस्टार की ख्याति मिली महाकाय, महान उपन्यास 'युद्ध और शांति' से. 4 खंड़ों और 1500 से ज़्यादा पन्नों में फैले इस उपन्यास को तोल्स्तोय ने अपनी शादी के ठीक बाद लिखना शुरू किया. इस काम को करने में उनकी मदद करती थीं उनसे 16 साल छोटी पत्नी सोफिया. रूसी में ‘वोयना इ मीर’ नाम से छपे इस उपन्यास को तोल्स्तोय ने 15 बार कांट-छाट कर अंतिम रूप दिया. यानी करीब 15-20 हज़ार पन्नों का लेखन. सोफिया, तोल्स्तोय के लिखे पन्नों में मात्रा ठीक करतीं, उन्हें अंतिम रूप देतीं. इस उपन्यास में नेपोलियन का रूस पर हमला और उसके बाद रूसी जनता की देशभक्ति के साथ बचपन से लेकर बुढ़ापे तक का सफर है. सैंकड़ों पात्रों से सजे 'युद्ध और शांति' में बच्चे, बच्चों के बाप बन जाते हैं और राजनीति से लेकर अर्थनीति और जीवन की निरर्थकता पर बात होती है. यूरोप में किताबें पढ़ने वाले लोग हफ्ते-हफ्ते की छुट्टियां लेकर इस उपन्यास को पढ़ते हैं. ये पूरे जीवन की यात्रा है. पढ़ने वाले की विश्व-दृष्टि बदलने का माद्दा रखता ये उपन्यास आते ही बेस्टसेलर बन गया था.


सौजन्य : http://humweb.ucsc.edu/
सौजन्य : http://humweb.ucsc.edu/

लेकिन इस कामयाबी के बाद तोल्स्तोय ने लिखना पढ़ना बंद कर दिया. युद्ध और शांति लिखने के दौरान लेखन कार्य ने तोल्स्तोय की शक्ति को निचोड़ दिया और तोल्स्तोय लिखना-पढ़ना बंद करके पहुंच जाते हैं अपने गांव. अपनी ज़मींदारी पर जाकर तोल्स्तोय अपने खेतों में काम करने लगे. अपने यहां काम करने वाले किसानों को पढ़ाने लगे. किसानों के बच्चों के लिए स्कूल खोला, उन्हें कहानियां सुनाते. पर किसानों को पढ़ाने का प्लान मुंह के बल गिरा. जो पढ़ाई की कीमत न समझे वो बर्बाद होने के लिए अभिशप्त हैं, ये दुखभरा एहसास भी तोल्स्तोय के मन में घर करने लगा.

इसी निराशा के दिनों में एक ट्रेन यात्रा के दौरान उन्हें अपने दूसरे महान उपन्यास आन्ना कारेनिना का प्लॉट मिलता है. एक दिन तोल्स्तोय ने रेलवे प्लेटफॉर्म पर भीड़ देखी और पूछताछ करने पर पता चला कि एक खूबसूरत, अमीर महिला ने ट्रेन से कटकर आत्महत्या कर ली है. इस महिला का पति बड़ा अधिकारी और बड़ी उम्र वाला था. ये पति को तलाक देकर अपने प्रेमी से शादी करना चाहती थी. पैसे और खूबसूरती के बावजूद जीवन की ये दुर्गति तोल्स्तोय को इतना हिला गई कि अगले तीन साल आन्ना कारेनिना लिखने में लगा दिए.

इस उपन्यास में तोल्स्तोय ने अपनी प्रेम कहानी और गांव में बिताए गए अपने सफल जीवन की कहानी को भी गूंथ दिया. तोल्स्तोय बहुत पैसे वाले थे. उन्होंने हाई सोसाइटी और शहरों की पार्टियों के पीछे की हक़ीक़त देखी थी और लिखी भी है जो पढ़ने पर आपको किसी भी देश की हाई सोसाइटी के किस्से जैसी लगेगी. आन्ना कारेनिना को दुनिया का सर्वश्रेष्ठ सोशल नोवल माना जाता है.

और फिर आता है तोल्स्तोय का वो उपन्यास, पुनरुत्थान - जिसको पढ़कर मोहनदास करमचंद गांधी ने तोल्स्तोय को अपना आध्यात्मिक गुरू मान लिया. पुनरुत्थान में एक अमीरज़ादा अपने यहां काम करने वाली एक लड़की का लगातार बलात्कार करता है. वह लड़की उसे कई सालों बाद मिलती है – एक वेश्या और कैदी के रूप में. अदालत में इस वेश्या कैदी की सुनवाई करने वाली पंचायत में वह खुद भी होता है. एक मासूम लड़की को अपनी वजह से वेश्या बना हुआ देखकर हीरो पगला जाता है और फिर उसे छुड़ाने की कोशिश और पश्चाताप करता है. आखिर में हीरो इस वेश्या से शादी करना चाहता है लेकिन ये वेश्या ही इस पैसेवाले को ठुकरा देती है.

तोल्स्तोय के ये तीनों महान उपन्यास सच्ची घटनाओं पर आधारित हैं. तोल्स्तोय अपने मित्रों को बताते थे, ‘कोई रचना तभी अच्छी होती है जब उसमें कल्पना और विवेक का सही सामंजस्य हो, जैसे ही इनमें से कोई एक, दूसरे पर हावी हो जाता है, सब कुछ समाप्त हो जाता है. तब बेहतर यही है कि इसे दरकिनार कर नई शुरूआत की जाए.’


नेज़्वस्तस्नया- 1883 में इवान क्रामस्कोई की बनाई अज्ञात महिला की पेंटिंग को आन्ना कारेनिना के तुल्य माना जाता है
नेज़्वस्तस्नया- 1883 में इवान क्रामस्कोई की बनाई अज्ञात महिला की पेंटिंग आन्ना कारेनिना के मुखपृष्ठों पर छपती है

तोल्स्तोय का कुछ भी उठा लीजिए सब कुछ क्लासिक है. एक आदमी इतनी क्लासिक रचनाएं कैसे लिख सकता है, वो भी ऐसी किताबें जो अपने देश में ही नहीं, पूरी दुनिया में छा गईं ? अमीर ज़मींदार परिवार में पैदा हुए तोल्स्तोय ने भगवा चोला धारण नहीं किया था बस, बाकि उनका सब-कुछ खुद को और ईश्वर को ढूंढने में लगा रहा. वो अपनी तरह के बाबा थे जो अपने लिखने में भगवान ढूंढते थे. हालांकि उनकी आत्मकथा लिखने की इच्छा कभी पूरी नहीं हो पाई लेकिन एक पतली सी किताब ‘मुक्ति की खोज’ में तोल्स्तोय ने कई जगह लिखा है, 'मैं ज़िंदगी के मकसद और भगवान् के अस्तित्व से जुड़े सवालों से तंग आकर आत्महत्या करना चाहता था.' और भगवान् की खोज करते-करते तोल्स्तोय दुनिया का हर धर्म, हर दर्शन पढ़ गए. हमारे भारत का अध्यात्म भी चाट गए.

तोल्स्तोय भयंकर आस्तिक थे और जीवन के उत्तरार्ध में शाकाहारी हो गए थे. रूस में शाकाहारी होना मुश्किल और अनोखी बात थी तब. उनके उपन्यासों में ईसाई धर्म दिखेगा. इसका मतलब ये नहीं की वो कट्टर ईसाई थे. उनकी किताबों में सारे पात्र ही ईसाई धर्म के थे और उन कथानकों में दूसरी आस्थाओं का समावेश संभव नहीं था.

तोल्स्तोय एक कामयाब प्रेमी थे. आन्ना कारेनिना में तोल्स्तोय ने अपनी पत्नी को 'कहो ना प्यार है' कहने से लेकर बाप बनने तक की खुशी का खूबसूरत चित्रण किया है. उनकी पत्नी ही उनकी निजी सचिव थीं. वही सारे काग़ज़ात तैयार करती थीं. जब तोल्स्तोय साहित्य के रॉकस्टार हो गए तब उनको पता चला कि कॉपीराइट और रॉयल्टी कैसे काम करती है. ये सुनकर तोल्स्तोय ने कहा,’यह तथ्य की पिछले दस सालों में मेरी रचनाओं की खरीद-बिक्री हुई है, मेरे लिए मेरे जीवन की सबसे दुखद घटना है.’


सौजन्य: http://humweb.ucsc.edu/
सौजन्य: http://humweb.ucsc.edu/

तोल्स्तोय गरीबों के मसीहा थे. अकाल पड़ने की ख़बर मिलते ही, घोड़े-गाड़ी जोड़कर किसानों और गरीबों की मदद करने यूरोपियन रूस से एशियन रूस तक पहुंच जाते थे. कितने ही तरीकों से उन्होंने गरीबों की मदद करनी चाही और की भी. और उनमें एक चीज़ और थी. हम अपने लिखे हुए को काटना तक पसंद नहीं करते और वो थे कि अपने लिखे हुए को नष्ट तक कर देते थे. जब आन्ना कारेनिना पूरे यूरोप में धूम मचा रहा था तब तोल्स्तोय बड़े शर्मिंदा हुए, जो कोई भी पूछता उसे कह देते – ऐसा वाहियात उपन्यास कोई कैसे लिख सकता है. एक अमीर औरत और जवान फ़ौजी अफ़सर की प्रेम कहानी लोगों को क्यों पसंद आ रही है ?

तोल्स्तोय की ख्याति पूरी दुनिया में फैल चुकी थी लेकिन तोल्स्तोय को अपने आध्यात्मिक शिष्य महात्मा गांधी की तरह ही नोबेल पुरस्कार कभी नहीं मिला. दरअसल नोबेल वाले कभी भी निष्पक्ष नहीं रहे हैं. तब भी नहीं थे. तोल्स्तोय के जीवनकाल में नोबेल देने वाले स्कैंडिनेवियन देशों के साथ रूस के संबंध खराब रहे. खैर, ये नोबेल का ही नुकसान है कि वो दुनिया के महानतम लेखक को नोबेल नहीं दे पाया.

सफल और कामयाब दांपत्य जीवन और अच्छे-भरे पूरे परिवार के साथ रह रहे तोल्स्तोय जैसे-जैसे लिखते जा रहे थे वैसे-वैसे जीवन क्या है और भगवान कहां हैं जैसे प्रश्न और-और परेशान करते जा रहे थे. इसी दौरान उनकी एक बेटी का देहांत हो जाता है. इस दुख के बाद वृद्ध तोल्स्तोय अपने में ही खो गए. धीरे-धीरे परिवार और तोल्स्तोय की वैरागी होती जीवनशैली के बीच तालमेल नहीं बन पाया और तोल्स्तोय ने घर छोड़ने का फैसला कर लिया. इनकी एक बेटी भी इनके साथ चल दीं.

https://www.youtube.com/watch?v=9XjN4DCNt6E

घर से निकलने के 10 दिन बाद अस्तापोवो नाम के एक  गांव में ठंड लगने से तोल्स्तोय को निमोनिया हो गया. वहां के रेलवे स्टेशन मास्टर तोल्स्तोय को अपने घर ले गए. लेकिन इस अस्तापोवो स्टेशन को इतिहास में ‘आखिरी स्टेशन’ के नाम से दर्ज होना था. 20 नबंवर 1910 को 82 साल की आयु में भगवान को लिख-लिखकर खोजते इस बुढ़े का देहांत हो जाता है.  एक जुआरी, नशेड़ी से लेकर दुनिया के महानतम लेखक होने का सफर खत्म होता है. तोल्स्तोय के देहांत के बाद ये खबर आग की तरह फैल गई. पुलिस को भीड़ रोकने में पसीने छूट गए. किसान-गरीब टूट पड़े, विरोध प्रदर्शन भी हुए. पुलिस और प्रशासन की बंदिशों के बावजूद तोल्स्तोय की अंतिम यात्रा में हज़ारों लोग आए. इस किस्से पर हॉलीवुड में 'लास्ट स्टेशन' नाम से फिल्म भी बनी है.

तोल्स्तोय का स्थान deआज तक खाली है. विश्व साहित्य में कोई ऐसा नहीं है जिससे तोल्स्तोय की तुलना की जा सके. वो लेखक तो बाद में हुए थे. किशोर अवस्था नशे और जुए में बिताई, फिर जबरदस्त वफ़ादार प्रेमी बने और फिर बने गरीबों के मसीहा...नए ज़माने में अहिंसा और आज़ादी का आईडिया सबसे पहले तोल्स्तोय ने लिख दिया था खुदा खोजते-खोजते...

तोल्स्तोय का लिखा सब कुछ मूल रूसी से हिंदी में अनुवाद होकर छपा है और आज भी उपलब्ध है. डॉ मधुसूदन 'मधु' ने तो युद्ध और शांति का अनुवाद करने में तीन साल लगा दिए थे. वो भी तब जब रोज़ 6-8 घंटे अनुवाद करते थे. इन्होंने ही आन्ना कारेनिना का अनुवाद किया है और भीष्म साहनी ने पुनरुत्थान और इवान इल्यीच की मौत का हिंदी उल्था किया है. प्रेमचंद ने भी तोल्स्तोय की कुछ कहानियों का अनुवाद किया था. वक्त मिले तो पढ़िएगा...ये सब मिल जाता है.