टेनिस. एक खेल जिसे भारत में एलीट क्लास का खेल माना जाता रहा है. बड़े शहरों में ही खेला जाने वाला, हाफ़ पैंट, कॉलर वाली टीशर्ट, टोपी, रिस्ट बैंड से लैस होकर खेला जाने वाला खेल. ये सब बड़े शहरों का ही टन्टा है. कलकत्ता का लिएंडर पेस और चेन्नई का महेश भूपति. भारत के दो बड़े शहर. और मिलकर दी इंडियन एक्सप्रेस. पेस और भूपति की जोड़ी. हाल ही में भूपति ने कहा कि लिएंडर पेस और रोहन बोपन्ना की ओलंपिक के लिए कोई भी तैयारी नहीं थी. और इसलिए इंडिया के ओलंपिक में मेडल जीतने के ज़ीरो चांसेज़ थे. पेस और बोपन्ना की जोड़ी पहले ही राउंड में ओलंपिक से बाहर हो गई थी. और जब ये स्टेटमेंट सुनने में आया तो याद आई लिएंडर पेस और महेश भूपति की पार्टनरशिप. तब जब ये दोनों एक टीम हुआ करते थे. पेस यानी दुनिया का सबसे बेहतरीन डबल्स और मिक्स्ड डबल्स का खिलाड़ी.
जिनके नाम हैं आठ डबल्स और दस मिक्स्ड डबल्स के टाइटल. भूपति कोई भी ग्रैंड स्लैम टूर्नामेंट जीतने वाले पहले इंडियन प्लेयर.

लिएंडर पेस यानी वो लड़का जिसकी खेलने की स्टाइल अजीब थी. वैसी नहीं जैसी टेनिस की किताबों में सिखाई जाती है. आंद्रे अगासी, यानी टेनिस की दुनिया का भीष्म पितामह पेस के बारे में कहता है कि उसके खेल की रफ़्तार को पकड़ना मुश्किल है. पेस यानी वो टेनिस प्लेयर जो दुनिया की सबसे बेहतरीन वॉली खेलते हैं. और साथ ही सबसे अच्छे ड्रॉप शॉट्स मारते हैं. महेश भूपति. साउथ इंडिया की मार लेकर कोर्ट पर उतरने वाला प्लेयर. बड़ी सर्व. वो जिसे रॉजर फेडरर ने कभी दुनिया के सबसे बेहतरीन टेनिस प्लेयर्स में से एक कहा था. लाल बजरी का भगवान नडाल जिसे एडवांटेज कोर्ट पर नहीं खेलने देना चाहता था. क्यूंकि उसका बैक हैंड बहुत ही तगड़ा था. ये दोनों ही टेनिस प्लेयर्स जब एक साथ खेलते थे, गजब खेलते थे. डेविस कप में इनकी बादशाहत कायम हुई थी.
इन दोनों के नाम पर डबल्स में लगातार 24 जीतों का रिकॉर्ड दर्ज है. 1999 से शुरू हुई ये बेहतरीन साझेदारी जिस ऊंचाई से शुरू हुई, 2006 तक आते-आते वो उतनी ही गहराई में जा गिरी. इनकी पार्टनरशिप बहुत अच्छी से ठीक और फिर खराब होती गयी. लिएंडर पेस एक बेहद खुले हुए, आउटगोइंग, स्टाइलिश और ग्लैमर पसंद इंसान थे. वहीं भूपति बिलकुल कंट्रास्ट में थे. शांत रहने वाले, खुद तक सीमित. पहली बार इन दोनों के बीच रार शुरू हुई तब जब पेस के ट्रेनर एनरिको पिपरनो के बारे में दोनों के बीच किसी बात पर सहमति नहीं बन पायी. पेस अपने ट्रेनर पिपरनो को काफी पसंद करते थे. साथ ही पिपरनो भूपति को कुछ खास नहीं पसंद करते थे. और पेस ये भी चाहते थे कि उनका ट्रेनर उनके मैनेजर का भी रोल अदा करे. भूपति का हाल वही था जो अक्सर राहुल द्रविड़ के बारे में कहा जाता था. लोग कहते थे कि द्रविड़ सचिन की छाया में ही रहे. सचिन के भौकाल में दबे रहे. वही हाल भूपति का था. वो पेस की चकाचौंध में धुंधले नज़र आते. उनकी लम्बी सर्व्स सिर्फ कोर्ट तक ही सीमित थीं. क्यूंकि मैच तो महज़ कुछ सेट्स में खतम हो जाता था. और भूपति अपनी इस सिचुएशन को बदलना चाहते थे. वो भी चमकना चाहते थे. चांद की तरह नहीं जो पेस नाम के सूर्य की रोशनी से चमक रहा था. वो भी सोलर सिस्टम का केंद्र बनना चाहते थे.

इन दोनों के बीच चीज़ें शांत भी हो सकती थीं मगर हो नहीं पायीं. वजह थी पेस के पिता के स्टेटमेंट्स. लेकिन फिर भी वो दोनों एक दूसरे के साथ टीम बनाकर खेलते रहे. मगर दोनों के बीच दिक्कतें तब और बढ़ गयीं जब भूपति ने ग्लोबोस्पोर्ट से कॉन्ट्रैक्ट साइन कर लिया. ग्लोबोस्पोर्ट एक स्पोर्ट्स मैनेजमेंट फर्म थी. भूपति मेंटली खिंचते चले गए और उनपर अपनी अलग पहचान बनाने का खुद का डाला हुआ प्रेशर आ पड़ा. कई कोशिशों के बाद 2011 में दोनों मजबूती से दोबारा साथ आये. चेन्नई ओपन जीता. और ऑस्ट्रेलियन ओपन के फाइनल में पहुंच गए. उनकी नज़रें ओलम्पिक पर थीं. मगर साथ आने की कोशिश लॉन्ग-टर्म में सफ़ल नहीं हो पायी. वैसे कई कहानियां और भी हैं. कहते हैं कि जब भूपति चोटिल थे तो पेस ने नया पार्टनर ढूंढ़ लिया. और वापस भूपति के पास नहीं पहुंचे. साथ ही भूपति भी इतने नाराज़ थे कि पेस के पास नहीं गए. दबी ज़ुबान में चेन्नई ओपन से ठीक एक रात पहले किसी फ़िल्म ऐक्ट्रेस के साथ डांस करने के लिए एक दूसरे पर मुक्के बरसाए जाने की कहानी भी कही जाती है. ये बात कित्ती सच्ची है, कित्ती झूठी, कुछ नहीं पता.