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जब बैन लगने के बाद 500 की नोट लेकर दुकान पहुंचे लोग

उन्हें लग रहा था कि दुकानदार को तो पता नहीं होगा नोट बंद होने के बारे में, लेकिन उसे पता था.

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फोटो - thelallantop
अंकित त्रिपाठी
अंकित त्रिपाठी

लल्लनटॉप को एक और फायरब्रांड लौंडा मिला है. बकैती के तीर्थस्थल कानपुर से. कहिता है कि RSS के स्कूल से पढ़ा है, जिसके हिसाब से उम्र 24 है, लेकिन असल में 25 है. IIT से बीटेक किया है. मार्क्स धर्म को अफीम कह गए थे, अंकितवा गांजा कहता है. जब मूड भन्नाता है तो वेबसाइटों के पेज पर जाकर कमेंट दाग देता है.

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रेज्यूम जीवन में सिर्फ एक बार बनाया, क्योंकि ये बनावटी काम लगता है. वनलाइनर ऐसे मारता है कि बड़के मठाधीश भी जल-भुन जाएं. इस बार वीसम दुकानदार की आपबीती बता रहा है, जब नोट बैन होने की खबर सुनते ही लोग उसकी दुकान पर पहुंच गए. 500 के नोट लेकर. उन्हें लग रहा था राजा को पता नहीं होगा इस बारे में, लेकिन पता था उसे. पढ़ो फिर क्या हुआ.



8 नवंबर, 2016 का दिन याद रखा जाएगा इतिहास में. समझ ही गए होगे क्यों. अब ज्यादा बताने की जरूरत तो है नहीं. शायद ही कोई ऐसा हो, जिसे पता न चला हो. कल जैसे ही 8 बजे पांच सौ और हजार के नोट बंद हुए, भसड़ मच गई. ऐसा लगा कि किसी ने एक गोली चला दी हो और दाना चुग रहा कबूतरों का झुंड पंख फड़फड़ाकर भागने लगा हो.

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सबकी जिंदगी सामान्य सी चल रही थी, लेकिन तभी अचानक रोमांच ने एंट्री मार दी. बमचक कट गई एकदम से. इत्ती बमचक पहले कब देखी थी, याद नहीं. बमचक केवल इंटरनेट पर ही नहीं, भौतिक जिंदगी में भी मच गई थी. कोई खाना-वाना छोड़कर ATM की ओर भागा और हिसाब लगाने लगा कि कितनी बार चार-चार सौ करके नोट निकालूं. कोई गाड़ी लेकर टंकी फुल कराने दौड़ पड़ा. कुछ लोग वॉट्सऐप, फेसबुक और ट्विटर पर चुटकुलेबाजी में मशगूल हो गए और तरह-तरह का नवाचार लेकर आए, जिसकी खुराक आपको मिल ही चुकी होगी.


कुछ ने टीवी पर ही आंखें गड़ाए रखकर अर्थशास्त्र का ज्ञान बढ़ाना बेहतर समझा. हमाये घर पे भी हल्ला हुआ. टीवी खोली गई. देखा तो समझ में ही नहीं आया कि रिऐक्ट कैसे करें! हां, थोड़ा मजा जरूर आ रहा था. शायद सभी को लाइफ में मिर्च-मसाला पसंद होता है. इस न्यूज ने उदासीन और एकरस बह रही जिंदगियों में मिर्च-मसाले का तड़का लगा दिया था. कुछ नोट थे घर पर सौ-पचास के, जिससे अगले कुछ दिनों का खर्च चल जाना था, तो ATM में लाइन लगाने का प्लान कैंसल कर दिया. ऐसे माहौल में घर पर बैठकर जोक्स पढ़ने का मन भी नहीं था, तो हम निकल गए परचून की दुकान पर. माहौल लेने कि देखें भइया, आम आदमी का सोच रहा है?


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रात के सवा-साढ़े नौ के आसपास का सीन. दुकान का नाम मोटू की दुकान. दो भाई मिलकर चलाते हैं. एक राजा और वीसम. वीसम थोड़ा अटपटा लग रहा होगा. दरअसल ये वीसम भीष्म का घिसा हुआ रूप है. वैसे ही जैसे 'श्रुति' का 'सुरती' हो जाता है.

दुकान पर पहुंचे आठ दस लोग पहले से ही खड़े थे.

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वीसम ने हमसे कहा, 'क्या भाईजी, 500-1000 के नोट बंद करवा दिए.' हमने जानबूझकर अनजान बनने वाले एक्सप्रेशन देते हुए कहा, 'क्यों भाई? क्या हो गया?'

'यहां दुनियाभर को खबर लग गई और तुम्हीं को नहीं पता चला.' 'अरे वो वॉट्सऐप पर चल रहा था कुछ-कुछ. उस पर तो यार झूठ भी बहुत उड़ता रहिता है. भूकंप के टाइम देखे थे कइसे नौटंकी हुई थी.' 'अरे न्यूज में आ रहा है सबमें. क्या तुम भी. आज से पनसउए और हजार आले नोट बंद. सौ तक के नोट और सिक्के चलेंगे खाली. ATM वगैरह भी बंद रहेंगे दो दिन.' 'तो अब का होएगा?' 'होएगा का? भसड़ मचेगी अउर का?' 'भसड़ की फिकर है तुम लोग को, काले धन का कुछ नहीं?', वहीं खड़ा एक आदमी बोल पड़ा.

'हां तो हम कउन सा काला धन बोरी में भरे बइठे हैं? वीसम से कहि के हमारा पनसउआ चलवा दो. बाकी काला धन जाए भाड़ में.', कोई दूसरा बोला. राजा बोला, 'साला जबसे खबर फइली है, जिसको देखो, पनसउआ लिए चला आ रहा है. वइसे साले उधार मांगने चले आएंगे. आज ज्यादा पइसा बढ़ गया है सबके पास.'

'वो चीमड़ बबलू तो पांच पुड़िया केसर लेने के लिए पनसउआ लेके चला आया. हम लोग को का चू*या समझ रखा है?', वीसम ने कहा.
'लेकिन भाईजी, नियम कहिता है कि आज रात तक तो चलेंगे नोट.', एक आदमी ने अपना पनसउआ चलवा लेने की आस में तर्क पेश किया.
'नियम-धियम गए तेल लेने. पेट्रोल पंप वाले तो ले नहीं रहे हैं और हम ले लें? हमको जब पुलिस पकड़ ले जाएगी तो छुड़ाने कोई नहीं आएगा.'
एक ने बेचारगी में कहा, 'हमाई मउसी की लड़की की बरिच्छा है परसों. सब हजार-पांच सौ की गड्डी मंगा ली गई थीं. इत्ती ढुंढ़ाई के बाद रिश्ता तय हुआ था. अब कहीं कुछ गड़बड़ न हो जाए.'

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'अबे लड़के आलों से कहि देना कि थोड़े दिन रुक जाओ, तुमको दो हजार की जामुनी गड्डी देंगे.', एक ने मौज में कहा. 'दो हज़ार की गड्डी का का करेंगे? दो लाख थोड़े न दे रहे होगे बरिच्छा में?', एक अन्य ने अपना मत रखा. 'नहीं भाई, ढाई लाख की बात फिक्स हुई है बरिच्छा में' 'और तिलक में?' 'तिलक में पांच. सब कुछ कैश में लिए ले रहे हैं. हम लोग ने कहा था कि कोई चार-पांच लाख की गाड़ी ले लेओ बढ़िया सी, क्विड टाइप की. हमाये लिए भी दिखाने को हो जाता, लेकिन सब साले चालाक हैं आजकल.'

'यहां मोदी ने बम फोड़ दिया है दिवाली के बाद और तुम लोग शादी-बरात में उलझे हो.', एक भाईसाहब ने खुश होते हुए बात रखी. 'कुछ भी कहो यार, मोदी अपना है दिमागी. बारीक काम करता है एकदम. केजरी को देख ल्यो. लोकपाल पे मिनमिन करता रहि गया केवल. यहां मोदी ने धांय से फायर कर दिया.', राजनीति में रूचि रखने वाले एक दूसरे प्रौढ़ ने कहा. 'केजरी-एजरी सब नए लउंडे-लपाड़ी हैं. मोदी दमील है. वो प्लानिंग किए बइठा है तगड़ी आली. लॉन्ग-टर्म में सोच रहा है.' 'मोदी जी कहि देओगे तो का कुछ घिस जाएगा? प्रधानमंत्री है अगला. थोड़ा इज्जत दे दिया करो.', एक ने चिढ़कर कहा. 'काहे, तुम्हाये काहे चुन्ना काट रहे हैं बे? हमारा मुंह, हम चाहे जो कहें.'


'तो का भइया अब हम लोगन का पन्दा-पन्दा लाख मिल जहिहैं का?'', आंखों में चमक लिए एक ने पूछा. 'भक्क, बिलकुल टोपा हो तुम. ये तो अंदर के काले धन पर सर्जिकल स्ट्राइक है. बाहर आले पे बाद में किया जाएगा. बहुत दांव-पेंच रहिते हैं. स्विस-उइस बैंक का लफड़ा भी है उसमें. अमेरिका-चाइना सब पिले पड़े हैं खेल में. तुम न समझे पहिहौ.' एक आदमी दौड़ते हुए आया और बोला, 'वीसम भाई, पांच सौ का नोट तोड़ देओ. कल ऑफिस जाना है. एक भी नोट नहीं है सौ का घर में. आस-पास के सभी ATM में भीषण लाइन लगी है. जब तक नंबर आएगा, सौ के नोट झड़ चुके होंगे सारे.' 'नहीं है भाई.' 'अरे यार पांच सौ का न तोड़ो, तो एक-दो सौ के उधार ही दे दो.' 'भाई सब खतम हैं. जो एक-दो हैं भी, उससे हम खुदी काम चलाएंगे. सब लोग खड़े हैं, किस-किस को दे दें? अइसे थोड़े न हो पाएगा यार.' 'हम दिला सकते हैं, लेकिन पनसउआ के बदले चार नोट मिलेंगे.', भीड़ में से ही एक बोला. 'चार थोड़े कम हैं भाईजी. चलो न तुम्हाई न हमाई. एक पचास का अउर रख देना.'

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इतना सब देखने-सुनने के बाद हमें समझ में आ चुका था कि एक-आध लोग ही वहां सच में सामान लेने आए थे. बाकी सब पनसउआ चलाने या चिरैंदी करने आए थे. राजा भी बहुत देर से ये सब देख रहा था कि सामान तो कोई नहीं ले रहा. बकैती काट रहे थे सब के सब. उसने झुंझलाकर कहा, 'तुम लोग काहे आगी मूत रहे हो इधर. सउदा लेना हो और जेम्मे सौ का नोट होय, तो बात करो. नहीं तो फूटो यहां से. अपना ये परपंच कहीं अउर करो जाके.' सब लोग महफ़िल छोड़-छोड़कर जाने लगे. सभी को रस आ रहा था, इसीलिए टिके हुए थे वहां, लेकिन अब लौटना पड़ रहा था. तभी एक आवाज आई.

'अरे अंकित भाई, तुम कहां जा रहे हो? बताओ क्या चाहिए था?', वीसम बोला. 'कड़ू आली दालमोट लेने आए थे एक पैकिट.' 'हां तो ले ल्यो.' 'अरे नहीं. बाद में लेंगे. क्या है न कि हम भी पनसउआ ही लेके आए थे.'




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