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क्या सरकार के इस कदम से बुंदेलखंड का सूखा खत्म हो जाएगा?

केन-बेतवा लिंक प्रोजेक्ट शुरू होने से पहले से ही विवादों में क्यों रहा है?

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ओरछा में बहती बेतवा नदी. (तस्वीर: आदित्य)
केंद्र सरकार, मध्य प्रदेश सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार ने 22 मार्च को केन-बेतवा लिंक परियोजना के एमओयू पर साइन किए. एमओयू यानी मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टेंडिंग मतलब सहमति पत्र. सरकार का दावा है कि इन दोनों नदियों को जोड़ने से सालाना 10.62 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि की सिंचाई हो सकेगी. 62 लाख लोगों को पीने लायक पानी मिलेगा. 103 मेगावॉट जलविद्युत का उत्पादन हो सकेगा. सरकार का कहना है कि इस परियोजना से बुंदेलखंड क्षेत्र को बहुत फायदा होने वाला है. केन-बेतवा लिंक परियोजना है क्या? इससे क्या फायदा होने वाला है? इसको लेकर क्या विवाद है? इस प्रोजेक्ट से पर्यावरण को नुकसान है या फायदा? इस सबके बारे में आइए विस्तार से समझने की कोशिश करते हैं. शुरू से शुरू करते हैं केन-बेतवा लिंक प्रोजेक्ट पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी के शासनकाल में तैयार की गई ‘नदी जोड़ो योजना’ का हिस्सा है. इस योजना के तहत देश की तीस प्रमुख नदियों को जोड़े जाने की योजना है. 2005 में आधिकारिक तौर पर केंद्र सरकार, उत्तर प्रदेश सरकार और मध्य प्रदेश सरकार ने प्रोजेक्ट पर साइन किए थे.
25 अगस्त 2005 की बीबीसी की एक रिपोर्ट बताती है कि तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह की उपस्थिति में उत्तर प्रदेश के सीएम मुलायम सिंह और मध्य प्रदेश के सीएम बाबूलाल गौर ने केन-बेतवा नदी को लेकर एक समझौता किया था. समझौते के तहत उत्तर प्रदेश के झांसी में बहने वाली केन नदी को मध्य प्रदेश के भोजपुर में बहने वाली बेतवा नदी से जोड़ा जाना था.
Ken Betwa Linking Project
2005 में पीएम रहे मनमोहन सिंह के साथ उत्तर प्रदेश के तब के सीएम मुलायम सिंह और मध्य प्रदेश के तत्कालीन सीएम बाबूलाल गौर. (तस्वीर:archivepmo.nic.in)


रिपोर्ट के मुताबिक़ इस समझौते के तहत केन नदी का 85 फीसद कैचमेंट एरिया मध्य प्रदेश में बताया गया. योजना के मुताबिक केन नदी का पानी बेतवा नदी को भेजा जाना था. उस वक्त इस त्रिपक्षीय समझौते को लेकर सरकार ने कहा था कि 4000 करोड़ के इस प्रोजेक्ट के बारे में बाद में विस्तार से जानकारी दी जाएगी. माने, डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट (DPR) बाद में साझा की जाएगी. लेकिन DPR कई महीनों तक साझा नहीं की गई. पर्यावरणविद आए विरोध में साइन होते ही इस प्रोजक्ट पर सवाल उठने शुरू हो गए. कहा गया कि इससे पानी की दिक्कतें कम होने के बजाए बढ़ेगी. राज्यों के बीच पानी को लेकर रार और बढ़ेगी. पर्यावरणविदों ने कहा कि नदियों को जोड़ने का काम प्रकृति का है, हमारा नहीं. कई पर्यावरणविदों ने इसे अवैज्ञानिक कदम बताया. कइयों ने कोसी नदी का उदाहरण दिया कि कैसे कोसी कई किलोमीटर का रास्ता बदल चुकी है. कई एक्सपर्ट्स ने सरकार को सुझाव दिया कि नदियों को जोड़ने पर जितना खर्च करने की योजना है. उसी खर्च से नदी और तालाब को बचाया जाए तो पानी की दिक्कतें खत्म हो सकती हैं.
आख़िर 2008 तक प्रोजेक्ट का खाका तैयार किया गया, लेकिन पर्यावरण के दृष्टिकोण से प्रोजेक्ट को मंजूरी नहीं मिल पा रही थी. 2012 में मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि प्रोजेक्ट पर काम किया जाए. फिर से बात शुरू हुई और फिर से बात पर्यावरण पर जा अटकी.
Ken Betwa Project Map
लाल लाइन के जरिए केन और बेतवा नदी को जोड़ने की तैयारी है. (तस्वीर: NWDA)

प्रमुख दिक्कतें क्या थीं? सबसे प्रमुख दिक्कत पन्ना टाइगर रिजर्व की रही. डर है कि इससे इस टाइगर रिजर्व का इकोसिस्टम बर्बाद हो सकता है. खैर 2016 तक राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड (NBWL) और विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति (EAC) ने 2016 में केन-बेतवा लिंक परियोजना (KBLP) को मंजूरी दे दी.
लेकिन सेंट्रल ऐम्पावर्ड कमेटी (CEC) ने प्रोजेक्ट पर सवाल उठाए. पन्ना टाइगर रिजर्व के साथ ही घड़ियाल अभ्यारण्य को नुकसान की संभावना जताई गई. बताया गया कि पानी के बहाव में मुड़ाव से और भी नुकसान संभव है. CEC ने पानी की उपलब्धता पर भी सवाल उठाए, क्योंकि रिपोर्ट्स बताती हैं कि दोनों ही बेसिन में अनुमान से कम का पानी मौजूद होता है. CEC ने यह भी कहा था कि इस प्रोजेक्ट में 28 हजार करोड़ रुपए का पब्लिक फंड शामिल है, जो इस तरह के काम से बर्बाद हो सकता है.
डाउनटूअर्थ की एक रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में पानी का बंटवारा भी अभी तक साफ़ नहीं हो सका है. उत्तरप्रदेश 50 फीसद पानी की मांग कर रहा है, ऐसे में ऊपरी बेतवा यानी की मध्य प्रदेश वाले क्षेत्र में सिंचाई करने के लिए पानी नहीं रह पाएगा.
2017 में वन सलाहकार समिति (FAC) ने सिफारिश की थी कि प्रस्तावित पावर हाउस का निर्माण वन क्षेत्र में न किया जाए. रिपोर्ट्स के मुताबिक़ प्रोजेक्ट की लागत भी लगातार बढ़ती जा रही है. शुरुआत में 1994-95 के मूल्य स्तर पर इसकी लागत 1,998 करोड़ रुपए रखी गई थी. साल 2015 में यह 10,000 करोड़ रुपए तक पहुंच चुकी थी. अभी प्रोजेक्ट की अनुमानित लागत 28,000 करोड़ रुपए बताई जा रही थी, लेकिन सरकार ने कहा है कि 37,611 रुपए की लागत आएगी. प्रोजेक्ट में अब क्या? सरकार ने कहा है कि परियोजना के तहत 10.62 लाख हेक्टेयर सालाना सिंचाई हो सकेगी. क्षेत्र में करीब 62 लाख की आबादी को पीने के पानी की आपूर्ति होगी.  इसके अलावा 4843 मिलियन लीटर पानी का इस्तेमाल करते हुए 103 मेगावाट पनबिजली और 27 मेगावाट सौर ऊर्जा का उत्‍पादन किए जाने का दावा किया गया है.
केंद्रीय जलशक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने ट्वीट कर कहा है कि इस प्रोजेक्ट पर 37,611 रुपए की लागत आएगी और इस पोजेक्ट से करीब 5 हज़ार लोगों को रोजगार मिलेगा.
मध्य प्रदेश के सीएम शिवराज सिंह चौहान ने ट्वीट कर कहा है कि केन-बेतवा लिंक प्रोजेक्ट से अकेले मध्यप्रदेश के बुंदेलखण्ड में 8.11 लाख हेक्टेयर में सिंचाई की सुविधा बढ़ेगी और सिंचाई सुविधा बढ़ने के साथ बुंदेलखण्ड के 41 लाख लोगों को पीने का शुद्ध पेयजल मिलेगा. फिर से विरोध शुरू? मामले को लेकर मध्य प्रदेश के पूर्व सीएम और कांग्रेस नेता कमलनाथ ने प्रोजेक्ट पर सवाल उठाए हैं. कहा है कि मोदी सरकार के दबाव में शिवराज सरकार ने अनुबंध की शर्तों के विपरीत कई मुद्दों पर झुककर प्रदेश के हितों के साथ समझौता किया है. कमलनाथ ने शिवराज से तय शर्तों की जानकारी सार्वजनिक करने की मांग की है. कहा है कि प्रदेश की जनता को वास्तविकता बताई जानी चाहिए.
पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस नेता ने जयराम रमेश ने भी प्रोजेक्ट पर सवाल उठाए हैं. उन्होंने ट्वीट करके लिखा है कि उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के सीएम केन और बेतवा नदी को जोड़ने को लेकर पैक्ट पर साइन करेंगे. इससे मध्य प्रदेश का पन्ना टाइगर रिजर्व बर्बाद हो जाएगा. मैंने दस साल पहले विकल्प बताए थे लेकिन अफ़सोस...

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