फिल्म में एक सीन है. सीन में ईशान की मम्मी एक ड्रॉइंग बुक पलट रही हैं. उस ड्रॉइंग बुक में पहले से आखिरी पेज तक लगभग एक जैसी ड्रॉइंग ही बनी हुई है. और जैसे ही ईशान की मम्मी परपराते हुए उस बुक के पन्ने पलटती हैं, उनकी आंख से आंसू टपक आते हैं.
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चकरी घूमेगी तो माहोल अलग ही होगा. (सोर्स - विकिमीडिया)

(सोर्स - विकिमीडिया)
फेनाकिस्टी-स्कोप के बड़े भिया - ज़ूपराक्सी-स्कोप
फेनाकिस्टी-स्कोप की चकरी की किसी एक लोकेशन पर आंख टिका कर देखना होता है. देखने वाले मामले में थोड़े सहूलियत तब हुई जब फेनाकिस्टी-स्कोप का बड़ा भाई मार्केट में आया. ज़ूपराक्सी-स्कोप(Zoopraxiscope). बड़े भाई का नाम भी छोटे जितना ही बुरा था.ज़ूपराक्सी-स्कोप दिखने में लगभग अपने छोटे भाई फेनाकिस्टी-स्कोप के जैसा ही था. बस इसमें चकरी के एक हिस्से पर लाइट मार कर एक स्क्रीन पर प्रोजेक्ट कर देते हैं. ज़ूपराक्सी-स्कोप को आज कल के प्रोजेक्टर का छोटा भाई भी कह सकते हैं.
बड़े परदे की फिल्म यहीं से निकली है. (सोर्स - विकिपीडिया)

(सोर्स-विकिपीडिया) ज़ूपराक्सी-स्कोप के पीछे फेमस फोटोग्राफर एडवर्ड मॉयब्रिज का दिमाग था. मॉयब्रिज का सबसे चर्चित काम 'द हॉर्स इन मोशन' है. इसमें एक घोड़े की 12 सीक्वेंशियल तस्वीरें हैं. ये स्टैनफर्ड यूनिवर्सिटी वाले लीलेंड स्टैनफर्ड का घोड़ा था. इसके पीछे की कहानी बड़ी दिलचस्प है.
दरअसल स्टैनफर्ड के सामने एक यक्ष-प्रश्न आ गया था. वो ये कि क्या दौड़ते समय किसी मूमेंट पर घोड़े के चारों पैर ऊपर होते हैं? अब घोड़ा तो फरफरा के दौड़ता है. इसलिए आंखों से देख कर ये बता पाना मुश्किल हो रहा था. तो पहेली सुलझाने के लिए स्टैनफर्ड ने एक फोटोग्राफर को हायर किया. ये फोटोग्राफर थे अपने एडवर्ड मॉयब्रिज. स्टैनफर्ड ने मॉयब्रिज से कहा कि भैया ये रहा हमारा घोड़ा. अपने कैमरे से खिचिक-खिचिक करके बताओ कि इसकी चारों टांग हवा में हैं कि नहीं? मॉयब्रिज ने अपने 12 कैमरे फिट किए. दौड़ते हुए घोड़े की 12 तस्वीरें खींची और इन्हीं 12 तस्वीरों से बनी दी हॉर्स इन मोशन.क्यूरियोसिटी के कीड़े पाल रहे सज्जनों को सूचित हो कि घोड़े की चारों टांग हवा में थीं. ये दावा भी किया जाता है कि 'दी हॉर्स इन मोशन' कैमरे की मदद से बनी सबसे पहली फिल्म थी. दरअसल 'दी हॉर्स इन मोशन' पहले एक फोटो सीक्वेंस भर था. इसे फिल्म की तरह दिखाने का तरीका बाद में निकला.
स्टैनफर्ड ने यही अंदाज़ा लगाया था कि चारों टांग ऊपर ही होएंगी. (सोर्स - विकिमीडिया)

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फिल्म से याद आया तारे ज़मीन पर के एक सीन में तो फ्लिप-बुक दिखती ही है लेकिन तारे ज़मीन पर अपने आप में एक डिजिटल फ्लिप-बुक है. कोई भी वीडियो जो हम देखते है, वो दरअसल बहुत सारी पिक्चर्स का एक सीक्वेंशियल कलेक्शन होती है. बहुत सारी तस्वीरें आपकी आंखों के सामने से गुज़रती हैं और हमको ये भरम होता है कि हमारे सामने कुछ घट रहा है.
प्लैटो और मॉयब्रिज के इन इन्वेंशन्स का ही नतीजा है कि आपकी आंखे धोखा पाल कर बेहतरीन से बेहतरीन सिनेमा और undefined
नसीब होती हैं.
वीडियो - कहानी निकोला टेस्ला की, जिनसे एडिसन खार खाते थे