इजरायल और ईरान (Israel-Iran Conflict) के बीच तनाव लगातार बढ़ता जा रहा है. दोनों देश लगातार एक दूसरे के ऊपर मिसाइल्स और ड्रोन्स से हमले कर रहे हैं. इजरायल ने ईरान पर हमला करने के लिए फाइटर जेट्स का भी इस्तेमाल किया है. बात इतनी बढ़ चुकी है कि दोनों देश एक दूसरे की सरकारी इमारतों को निशाना बना रहे हैं. बावजूद इसके इस संघर्ष ने अब तक पूरी तरह युद्ध का रूप नहीं लिया है. लेकिन सवाल उठने शुरू हो गए हैं कि अगर पूर्ण युद्ध हुआ तो किसका पलड़ा भारी होगा? जाहिर है नुकसान दोनों देशों को होगा. लेकिन जिसकी मिलिट्री पावर अधिक होगी, नुकसान झेलने की क्षमता भी उसकी अधिक होगी. एक ऐसी वेबसाइट है जो देशों की मिलिट्री पावर को उनकी ताकत के आधार पर रैंकिंग देती है. इस वेबसाइट का नाम है ग्लोबल फायरपावर इंडेक्स (Global Firepower Index).
ईरान के नंबर ज़्यादा, इजरायल की टेक्नोलॉजी तेज़, जंग हुआ तो किसका पलड़ा भारी?
Israel ने Iran पर हमला करने के लिए Fighter Jets का भी इस्तेमाल किया है. बात इतनी बढ़ चुकी है कि दोनों देश एक दूसरे के Military Infrastructures को निशाना बना रहे हैं. बावजूद इसके इस संघर्ष ने अब तक पूरी तरह युद्ध का रूप नहीं लिया है.

इस लिस्ट को तैयार करने के लिए देशों की मिलिट्री पावर, लॉजिस्टिकल क्षमता, जियोग्रॉफी यानी भूगोल, आर्थिक क्षमता, पैरामिलिट्री क्षमता, देश पर कर्ज और डिफेंस बजट जैसे मानकों को आधार बनाया जाता है. ग्लोबल फायरपावर की रैंकिंग में 0.0000 के पावर इंडेक्स स्कोर को परफेक्ट माना जाता है. भारत का स्कोर 0.1184 है. वहीं, टॉप पर बैठे अमेरिका का स्कोर 0.0744 है, जबकि रूस का स्कोर 0.0788 और चीन का स्कोर भी 0.0788 है. अलग-अलग पैमानों को मिलाकर जो स्कोर किसी देश को मिलता है, वो ज़ीरो के जितना करीब होगा, उतनी ही बेहतर रैंक होगी.

ग्लोबल फायरपावर 2025 की रैंकिंग देखें तो इजरायल और ईरान के बीच सिर्फ एक स्थान का अंतर है. लिस्ट में 0.2661 पॉइंट्स के साथ इजरायल 15वें स्थान पर है. वहीं ईरान 0.3048 के स्कोर के साथ 16वें नंबर पर खड़ा है. यानी मुकाबला टक्कर का है. साइज और संख्या के लिहाज से देखें तो ईरान इजरायल से काफी आगे है. लेकिन एक चीज जिसमें वो काफी पीछे खड़ा दिखता है, वो है मिलिट्री में आधुनिकीकरण. इजरायल अपनी तकनीक के लिए दुनियाभर में जाना जाता है. वहीं ईरान की ड्रोन तकनीक भी शानदार है. तो समझते हैं कि संख्या के लिहाज से दोनों देश एक-दूसरे के आगे कहां ठहरते हैं?
- इजरायल के पास 1 लाख 70 हजार ऐक्टिव सैनिक हैं. वहीं ईरान के पास 6 लाख 10 हजार ऐक्टिव सैनिक हैं.
- इजरायल के रिजर्व सैनिकों की संख्या 4 लाख 65 हजार है जबकि ईरान के पास 3 लाख 50 हजार रिजर्व सैनिक हैं.
- पैरामिलिट्री फोर्स को देखें तो इजरायल के पास जहां 35 हजार सैनिकों की क्षमता है वहीं ईरान के पास 2 लाख, 20 हजार की पैरामिलिट्री फोर्स है.

नक्शे पर देखें तो दोनों देश एक दूसरे से काफी दूर हैं. माने एरियल डिस्टेंस या हवाई दूरी जो एक सीध में होती है वो भी कम से कम 1500 किलोमीटर है. ऐसे में सीधे युद्ध में इसकी संभावना काफी कम है कि दोनों देशों के सैनिक आमने-सामने मैदान में लड़ें. ऐसे में यहां एयरफोर्स का रोल काफी अहम हो जाता है. तो समझते हैं, दोनों देशों की एयरपावर में कितना अंतर है.

यहां गौर करने वाली बात ये है कि इजरायली एयरफोर्स के विमान, ईरानी एयरफोर्स से कहीं उन्नत हैं. इजरायल के पास दुनिया का सबसे एडवांस माना जाने वाला F-35 फाइटर जेट भी है. F-35 एक स्टेल्थ विमान है जो रडार को चकमा देकर डीप स्ट्राइक माने दुश्मन के इलाके के काफी अंदर जाकर हमला करने में सक्षम है. जबकि बरसों से लगे अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण ईरान अपने जेट्स को बेड़े को उस हद तक आधुनिक नहीं बना पाया है. ईरान के पास Su-35 जैसे कुछ उन्नत रूसी जेट्स हैं लेकिन उनकी कम संख्या और डीप स्ट्राइक क्षमता न होना उसके लिए एक बड़ा नुकसान है.
नेवल पावरएयरफोर्स के अलावा एक और सेना जो काफी दूरी तक मिशंस को अंजाम दे सकती है, वो है नेवी. दुनिया भर में होने वाला अधिकतर व्यापार समंदर से होता है. ऐसे में अगर दोनों देशों की नेवी आमने-सामने न भी आए तो कम से कम एक-दूसरे को आर्थिक चोट तो पहुंचा ही सकती है.

ईरान के पास से गुजरने वाले हुर्मूज़ स्ट्रेट से दुनिया के कम से कम 5 प्रतिशत तेल का ट्रांसपोर्टेशन होता है. ऐसे में अगर इजरायल-ईरान संघर्ष बढ़ता है तो UAE और सऊदी अरब से पूरी दुनिया को जाने वाले तेल की सप्लाई पर असर पड़ेगा. इस लिहाज से ईरानी नेवी का रोल काफी अहम हो जाता है. संख्या और रैंकिंग के लिहाज से देखें तो ईरानी नेवी, इजरायली नौसेना से 45 पायदान ऊपर है. जहां तक बात है आधुनिकीकरण की तो, इसमें इजरायल को अपर हैंड है. उसके पास अमेरिकन सपोर्ट के साथ-साथ अपनी उन्नत स्वदेशी टेक्नोलॉजी है. तो समझते हैं कि दोनों देश, नेवल पावर के मामले में कहां टिकते हैं?
- दोनों देशों में से किसी के पास एक भी एयरक्राफ्ट कैरियर नहीं है.
- अंडरवाटर वॉरफेयर के लिहाज से महत्वपूर्ण सबमरीन्स की संख्या को देखें तो इजरायल के पास महज 5 सबमरीन्स हैं, वहीं ईरान के बेड़े में इनकी संख्या 25 है.
- दोनों देशों के पास एक भी बड़े साइज के जंगी जहाज माने डिस्ट्रॉयर्स नहीं हैं.
- कॉर्वेट्स की संख्या देखें तो इजरायल के पास 7 कॉर्वेट्स है. वहीं ईरान के पास 3 हैं.
- फ्रिगेट्स की बात करें तो इजरायल के पास एक भी फ्रिगेट नहीं है, वहीं ईरान के पास 7 फ्रिगेट्स हैं.
- पेट्रोलिंग वेसल्स माने गश्त लगाने वाले वेसल्स को देखें तो इजरायल के पास 46 पेट्रोल वेसल्स हैं, वहीं ईरान के पास 21 पेट्रोल वेसल्स हैं. वेसल्स शब्द का इस्तेमाल बड़ी नावों या जहाजों के लिए किया जाता है.
- समंदर में बिछी बारूदी सुरंगों से निपटने में इस्तेमाल की जाने वाली माइन वॉरफेयर्स को देखें तो इजरायल के बेड़े में एक भी माइन वॉरफेयर नहीं है. वहीं ईरान के बेड़े में 1 माइन वॉरफेयर है.

दोनों देशों की मिलिट्री पावर को समझने के बाद अब जानते हैं कि इनके पास मिसाइल क्षमता कितनी है. क्योंकि इस संघर्ष में हमने देखा कि दोनों देश एक-दूसरे पर सबसे अधिक मिसाइल्स से हमला कर रहे हैं. जिन मिसाइल्स का ये दोनों देश इस्तेमाल कर रहे हैं,जाहिर तौर पर उनकी रेंज 1200 किलोमीटर से अधिक है. तो बारी-बारी से जानते हैं दोनों के मिसाइल्स के बारे में.
ईरान
- Qadr 380: इस मिसाइल को ग़दर-380 के नाम से भी जाना जाता है. ये एक सबसॉनिक मिसाइल है जो जमीन से लॉन्च की जाती है. ये सटीक ढंग से टारगेट पर वार करने के साथ दुश्मन के जैमिंग सिस्टम्स को भी चकमा दे सकता है. रेंज लगभग 1 हजार किलोमीटर है.
- Shahab 3: हथियारों पर रिपोर्ट्स पब्लिश करने वाली वेबसाइट Missile Threat के मुताबिक ये एक 16.58 मीटर लंबी बैलिस्टिक मिसाइल है जिसकी रेंज 800-1300 किलोमीटर है. खास बात यह है कि ये मिसाइल न्यूक्लियर वॉरहेड तक ले जाने में सक्षम है.
- Kheibar Shekan: इजरायली मीडिया के मुताबिक संभवत: ये वही मिसाइल है जिससे ईरान ने Bat Yam पर स्ट्राइक की है. ये एक बैलिस्टिक मिसाइल है जिसकी रेंज 1500 किलोमीटर है. इसकी खासियत है कि नीचे आने के साथ ये मिसाइल स्पीड कम कर के, अपने फिन (पंख) खोल देती है. इससे इजरायली सिस्टम्स जैसे आयरन डोम और डेविड स्लिंग का रडार कन्फ्यूज हो जाता है.
- Emad: Emad की रेंज लगभग 1,700 किलोमीटर है. एमाद के विश्लेषण से पता चलता है कि यह एक पूरी तरह से नई मिसाइल नहीं है, बल्कि यह शाहब-3 या ग़दर रॉकेट के ऊपर रखने के लिए फिट किया गया एक री-एंट्री व्हीकल (आर.वी.) है.
- Khorramshahr: ईरान को इस मिसाइल की टेक्नोलॉजी नॉर्थ कोरिया से मिली है. ये एक MRBM यानी मीडियम रेंज बैलिस्टिक मिसाइल है जिसकी रेंज लगभग 2 हजार किलोमीटर है. ये मिसाइल लगभग 1800 किलोग्राम का पेलोड ले जा सकती है.
- Ghadr: ये शहाब-3 वेरिएंट की मिसाइल है जिसकी रेंज लगभग 2 हजार किलोमीटर है. 2007 से ही ये सीरीज़ ईरान के बेड़े में शामिल है. ये मिसाइल 800 किलोग्राम तक का पेलोड ले जाने में सक्षम है.
- Sejjil: ये एक मीडियम रेंज बैलिस्टिक मिसाइल है जो 2000 किलोमीटर तक अपने टारगेट पर सटीक हमला कर सकती है. Missile Threat के अनुसार ये हथियार न्यूक्लियर वॉरहेड तक ले जाने में सक्षम है. रिपोर्ट्स के अनुसार ये काफी उन्नत मिसाइल है जिसके डेवलपमेंट में चीन ने मदद की है.
- Soumar: रिपोर्ट्स की मानें तो ये मिसाइल रूस की न्यूक्लियर वॉरहेड ले जाने में सक्षम Kh-55 मिसाइल का ही ईरानी वेरिएंट है. रिपोर्ट के मुताबिक रूस ने 2001 में चोरी-छिपे ईरान को ब्लैक मार्केट के जरिए ऐसी 12 मिसाइल्स बेची थी. इसे जमीन से लॉन्च किया जाता है. आशंका है कि लगभग 3000 किलोमीटर की रेंज वाली ये मिसाइल भी पारंपरिक के अलावा न्यूक्लियर वॉरहेड ले जाने में सक्षम है.

इजरायल
इजरायल घोषित तौर पर एक न्यूक्लियर पावर है. उसके पास कई ऐसी मिसाइल्स हैं जो न्यूक्लियर हमला करने, यानी न्यूक्लियर वॉरहेड ले जाने में सक्षम हैं. यूं तो उसके पास Popeye, Gabriel और Lora जैसी कई मिसाइल्स हैं जो 300 किलोमीटर की दूरी तक सटीक मार करती हैं. लेकिन अल-जज़ीरा की रिपोर्ट कहती है कि इजरायल के पास दो ऐसी मिसाइल्स हैं जिनकी रेंज 1500 से 6500 किलोमीटर के बीच है. ये Jericho सीरीज़ की मिसाइल्स हैं. इनके बारे में भी समझ लेते हैं.
- Jericho 2: जेरिको 2 एक मीडियम रेंज बैलिस्टिक मिसाइल है जिसकी रेंज लगभग 1500 से 3500 किलोमीटर है. इजरायल में इसे YA-3 नाम से जाना जाता है. ये मिसाइल पारंपरिक तौर पर इस्तेमाल होने वाले विस्फोटकों के साथ न्यूक्लियर वॉरहेड ले जाने में भी सक्षम है.
- Jericho 3: इजरायल में YA-4 नाम से विख्यात इस मिसाइल को जेरिको-2 की जगह लेने के लिए बनाया गया है. इसीलिए इसका आधिकारिक नाम जेरिको-3 रखा गया है. रिपोर्ट्स की मानें तो इसकी रेंज 4800-6500 किलोमीटर है. 16 मीटर तक लंबी इस मिसाइल को इंटरमीडिएट रेंज बैलिस्टिक मिसाइल (IRBM) की श्रेणी में रखा गया है. इसे जमीन से दागा जाता है. साल 2011 से ये मिसाइल इजरायल के बेड़े का हिस्सा है.
कुल मिलाकर देखें तो ईरान संख्या में भारी है, वहीं इंटेलिजेंस और सटीकता के मामले में इजरायल आगे है. साथ ही इजरायल को कई बड़े देशों जैसे अमेरिका, ब्रिटेन आदि का समर्थन हासिल है. इससे पावर बैलेंस काफी हद तक उसके पक्ष में झुकता दिखाई देता है. अगर दोनों देशों के बीच जल्द से जल्द कोई वार्ता न हुई तो ये संघर्ष जल्द ही युद्ध में बदल सकता है.
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