
ऑस्ट्रेलिया के शहर होबार्ट ने शोएब को बनाया दोस्त
उस शाम मैं, मेरे डैड, और मेरे ट्रेनर लेन ओल्ड वूलस्टोर होटल से थोड़ी ही दूर एक जाने-पहचाने इंडियन रेस्टोरेंट में गये. हम ओल्ड वूलस्टोर में रह रहे थे. साल का पहला ग्रैंड स्लैम थोड़ी ही दूर था. 2 दिन में पाकिस्तान ऑस्ट्रेलिया के साथ एक टेस्ट मैच खेलने वाला था. और इसलिए हमें उस रेस्टोरेंट में पाकिस्तानी प्लेयर्स को डिनर करते देखने का मौका मिला. थोड़ी देर में पाकिस्तान के कैप्टन रह चुके शोएब मलिक रेस्टोरेंट में घुसे. टेबल ढूंढ़ते हुए वो हमारी तरफ आए. हमारी हाय-हेलो हुई और उन्होंनेपापा को आदाब किया. मैं थोड़ी सी देर के लिए शोएब से पहले मिल चुकी थी. दरअसल कुछ साल पहले एक जर्नलिस्ट ने हमें एक होटल के जिम में इंट्रोड्यूस करवाया था. जब पाकिस्तान इंडिया में सीरीज़ खेलने आया हुआ था. एक और बार जब मैं इंडिया-पाकिस्तान का एक मैच देखने गयी हुई थी. मैंने उन्हें मोहाली में एक होटल के ब्रेकफास्ट एरिया में देखा था. जब शोएब ने अगले दिन मेरा मैच देखने की इच्छा जताई, मैंने उनके लिए कुछ टिकेट्स अरेंज करवाईं. वो अपने 2 साथियों के साथ मैच देखने आए भी. मैच के बाद पापा ने उन लोगों को डिनर के लिए अगले दिन उसी इंडियन रेस्टोरेंट में बुलाया, जहां हम पहले मिले थे. शोएब ने कहा, वो आएंगे.
ऊपरवाले ने की बार-बार मिलवाने की साजिश और फिर शादी
1 महीने बाद मैं दुबई ओपन खेलने जा रही थी. और शोएब इंग्लैंड के साथ दुबई में ही हो रही सीरीज़ में पाकिस्तान की कप्तानी कर रहे थे. उन्हें दोबारा कैप्टन बना दिया गया था. शायद ऊपरवाला हमें मिलाने की साज़िश पे साज़िश कर रहा था. शोएब मेरी मां से भी मिले और उनसे भी उनकी खूब पटी. 2 महीने बाद शोएब ने मुझे शादी के लिए प्रपोज़ किया. वो बिल्कुल भी ड्रामेबाज़ नहीं हैं और उनका प्रपोज़ल बहुत सिंपल था. उन्होंने कहा कि उन्हें मुझसे ही शादी करनी थी, चाहे कितना भी वक़्त लगता. और वो अपनी मां को अपना फ़ैसला बताने जा रहे थे. मैं खुद भी बहुत स्ट्रेटफॉर्वर्ड हूं, और मुझे उनकी ये साइड बहुत भायी.शादी के कुछ महीनों बाद जब हम एक हसीन शाम एंजॉय कर रहे थे. मैंने शोएब को छेड़ा कि क्या होता अगर वो उस रात उस रेस्टोरेंट में आए ही न होते. 'हम कभी मिले भी ना होते!' और तब उन्होंनेमुझे बताया कि ये बस चांस की बात नहीं थी. दरअसल उनका एक टीममेट उस होटल में पहले से ही था, और मुझे वहां देखकर उन्होंनेतुरंत शोएब को इत्तिला कर दी. शोएब ने बताया कि पहले वो बाहर नहीं खाने वाले थे, लेकिन फिर वो भाग कर रेस्टोरेंट पहुंचे. इस बार उन्हेंमेरा नंबर चाहिए था. हम आज भी इस बात को ले के खूब हंसते हैं.
शादी का फैसला मुश्किल नहीं था
शादी का फ़ैसला लेना ज़्यादा मुश्किल नहीं था. मैं इसे ले के काफ़ी कन्ज़र्वेटिव थी और मुझे शादी के पहले डेट करने की ज़रूरत महसूस नहीं हुई. वैसे भी, हम दोनों पब्लिक की नज़र में रहते थे और अपनी रिलेशनशिप को बहुत टाइम तक छुपा के रखना मुनासिब नहीं था. हालांकि हमने कुछ वक़्त उसे ज़रूर छुपाया और शायद इसलिए जब हम खुलकर सामने आए तो सबको इतना बड़ा शॉक लगा. हम दोनों ने अपनी मांओं से बात की. मार्च में शोएब की पूरी फैमिली उनके साथ इंडिया आए और हमारे मेहमान बने. 3 दिन बाद उन्होंने शोएब के लिए मेरा रिश्ता मांगा. मेरे पेरेंट्स ने हां तो कह दी, लेकिन शोएब की नेशनैलिटी को ले के वो थोड़े-से चिंतित थे. मैं भी इस बात से पूरी वाक़िफ़ थी कि हमारे देशों के बीच सीरियस पॉलिटिकल मसला था. लेकिन मैं तो टेनिस कोर्ट पर बड़ी हुई थी. जहां मेरी दोस्ती अलग-अलग धर्म, रेस और बैकग्राउंड के लोगों से हुई थी. इसलिए मेरा नज़रिया इतना बड़ा हो गया था कि मैं आसानी से इन सीमाओं के पार पर्सनल रिलेशनशिप्स बना सकती थी.टेनिस से शोएब और उनके घरवालों को कोई दिक्कत नहीं थी
मगर शोएब की मेरे करियर को ले के क्या सोच थी, मेरे लिए जानना ज़रूरी था. उन्हेंशादी के बाद मेरे खेलने से कोई ऐतराज़ नहीं था, लेकिन मैंने उनसे उनकी फैमिली से पक्का करने के लिए कहा. उनकी मां इस बारे में बहुत ओपन-माइंडेड थीं, और आज तक उन्हें मुझ पर और मेरे करियर पर उतना ही नाज़ है जितना मेरी अपनी फैमिली को है. शोएब एथलीट्स की फैमिली से है और वो लोग मुझसे जुड़ी हर प्राब्लम को समझ सकते थे.
रिस्ट सर्जरी ने दोनों की वेडिंग प्लानिंग कराई
सानिया बताती हैं कि साल 2009 में उनकी रिस्ट सर्जरी हुई. उन्हें घंटों तक पेनकिलर्स के साथ खेलना पड़ता था. ये इंजरी खौफ़नाक़ साबित हो रही थी और उन्हें डर था कि ये उनका करियर ख़तम कर देगी. करियर के तौर पर भी वो स्ट्रगल कर रही थीं. लगातार 4 टूर्नामेंट्स में वो शुरुआती दौर में ही बाहर हो गईं. दर्द इतना बढ़ गया कि उन्हें एक इंडेफिनिट ब्रेक भी लेना पड़ा. उन्हें पता नहीं था कि इसके बाद वो लौटेंगी भी या नहीं. ऊपर से कॉमनवेल्थ गेम्स और एशियन गेम्स भी लगभग सर पर थे. और दूसरी तरफ शोएब भी खेल नहीं रहे थे. शादी करने का सबसे अच्छा मौका यही था. ब्रेक का सबसे अच्छा इस्तेमाल यही था.
मीडिया का जमावड़ा
शोएब के इंडिया आने तक शादी की न्यूज़ छिपा कर रखना पॉसिबल नहीं हो पाया. मीडिया में हवा पहले ही दौड़ गयी. शोएब हैदराबाद पहुंचे 4 अप्रैल को. वो अपने आप को छुपाने की पूरी कोशिश कर रहे थे और डैड और मैं बाहर कार में उनका इंतज़ार कर रहे थे. हम सोच ही रहे थे कि होने वाला ड्रामा कैसे अवॉइड किया जाए. मगर शोएब तो यही भूल गए थे कि उनके बैग पर 'पाकिस्तान क्रिकेट टीम - शोएब मलिक' साफ़-साफ़ छपा था. जैसे ही मेरे अंकल ने ये देखा, वो उस हिस्से को छिपाने के लिए बैग पर झपट पड़े. आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि हालात को ले के हम लोग कितने नर्वस और टेंस थे.सिचुएशन और भी बिगड़ गई, जब एक औरत ने मेरे होने वाले पति पर इलज़ाम लगाए. दोनों ही तरफ़ की मीडिया ने मुद्दे को शर्मनाक तरीके से उछाला और हमारे रिश्ते को खोलना शुरू कर दिया. इंडिया में तो मीडिया ट्रायल ही शुरू हो गया. हर न्यूज़ चैनल ने 'परदेसी दूल्हे' को पकड़-पकड़ के उधेड़ना शुरू कर दिया. टीआरपी की होड़ में मीडिया ये तो भूल ही गया था कि ये मेरा निजी मामला था. मेरे और शोएब के रिश्ते को तोड़ने की भरसक कोशिश होने लगी. 2 हफ्ते तक मीडिया ऐसे ही पगलाता रहा. लगभग 200 रिपोर्टरों ने कैमरे, माइक, फ़ाइलें और पेन समेत हमारे घर के बाहर डेरा जमा लिया. वो घर में आते और बाहर जाते हर मेंबर से ताबड़तोड़ सवाल-जवाब करने लगे. बाहर रोड पर सैटलाइट वैन पार्क कर दी गईं. घर के बाहर बिल्डिंग्स पर कैमरे ऐसे लगा दिए गये थे कि चौबीसों घंटों की हरकतें रिकॉर्ड हो सकती थीं. अगर परदे ज़रा भी हिलते, तो घर के अंदर की हरकतों को ऐसे दिखाया जाता, जैसे पता नहीं क्या कुछ हो रहा था. एक दिन जब एक रिश्तेदार ने मेरे डैड को फ़ोन करके मेरी टी-शर्ट का रंग बताया, तब पता चला कि साथ ही की बिल्डिंग पर लगा कैमरा सीधा हमारे घर के अंदर का हाल बयां कर रहा था. 10 दिन तक मैं बाहर नहीं निकल पाई. 1 हफ्ते बाद हमें लगा कि बहुत हुआ. देर रात में हमने आइसक्रीम खाने जाने का रिस्क उठा लिया. मगर हमारा ये वहम, कि रिपोर्टर और मीडिया इस समय कम सक्रिय होगा, जल्द ही ग़लत साबित हो गया. उस समय भी हमारा पीछा किया गया. कार के अंदर तक हमारी प्राइवेसी में दखल दी गई. मीडिया मेरे डैड को तब भी न बख्शती, जब वो जुम्मे की नमाज़ पढ़ने मस्जिद जाते. उनके मना करने के बावजूद 2 फिर भी अंदर गए और माइक्रोफोन ऑन करके उनसे अजीबोगरीब सवाल करने लगे. चारों तरफ़ गंदगी उछाली जा रही थी. कुछ लोगों को तो ये तक लगा कि उनके हाथ कोई असल बड़ी खबर लग गई है. और फ़ायदा उठाने के लिए भरसक कोशिश करने लगे. मगर मुझे हैरानी तब हुई जब शहर के कुछ छोटे सोशलाइट्स भी लाइमलाइट में आने के लिए इस सब में शामिल हो गए. बहुत ही भद्दे तरीके से मसालेदार खिचड़ियां पकाई गईं, सिर्फ इसलिए ताकि मेरे होने वाले पति की एक बहुत ही ख़राब इमेज बनाई जा सके.
मीडिया और मौलवियों के तमाशे के बाद शोएब को होटल ले जाया गया
मीडिया के एक सेक्शन ने इस बात पर बवाल उठाने कि कोशिश भी की कि शोएब शादी से पहले से ही हमारे घर में रह रहे थे. ये भी पूछा गया कि क्या इस्लाम में इसकी इजाज़त थी. सवाल बिना किसी सेंसिटिविटी के पूछे जाते थे. फिर एक बार मौलवियों को टीवी पर बैठा कर हमारे साथ रहने पर कमेंट करने को कहा गया. हमारा घर चारमंजिला था, या हम दोनों के परिवार अलग मंजिलों पर रह रहे थे, इसके बारे में सोचना किसी ने ज़रूरी नहीं समझा. कलम की ताक़त वाला उसे विवेक से इस्तेमाल करना भूल गया था. लेकिन अब इतनी छीछालेदर मच चुकी थी कि घर के बड़ों ने शोएब का होटल में जा के रहना ज़्यादा ठीक समझा. मगर उन्हेंघर के बाहर ले जाना भी बहुत मुसीबत वाला काम था. लेकिन फिर मेरे अंकल ने हिम्मत दिखाई. वो बाहर गए, और फ़ोन पर चिल्ला-चिल्ला कर एक दिखावटी लड़ाई करने लगे. इस पर जर्नलिस्ट्स उनके आस-पास इकठ्ठा होने लगे और शोएब को चुपचाप कार में बिठाकर होटल पहुंचा दिया गया.
और आखिर में दोनों एक हुए
आख़िरकार, 12 अप्रैल 2010 को पाकिस्तान के एक लड़के ने इंडिया की एक लड़की से प्यार की खातिर शादी की. जब मैं अपनी जिंदगी के सबसे बड़े दिन के लिए तैयार होकर होटल ताज कृष्णा की तरफ़ अपनी पर्सनल कार में बढ़ी, मीडिया की पूरी फ़ौज ने मेरा पीछा किया. ये एक बहुत ही इंटिमेट फंक्शन था. खुदा-ना-खास्ता कोई ग़लत बात हो जाती, इसलिए मुझे पीछे के दरवाज़े से लाया गया. ये भी शायद हिस्ट्री में पहली बार हुआ होगा. मगर एक बार हम सब अंदर थे, तो सब कुछ अच्छे से हो गया. अगले दिन संगीत और फिर रिसेप्शन हुआ.
ये स्टोरी प्रणय ने की है.