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'मकबूल, अफजल के दीवानों, तुम कितने रविंद्र म्हात्रे मारोगे'

मकूबल की रिहाई के लिए इंडियन डिप्लोमैट रविंद्र म्हात्रे की हत्या कर दी गई. लेकिन आज कुछ लोगों को अफजल, मकबूल भट्ट याद हैं, पर म्हात्रे नहीं.

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फोटो - thelallantop
'तुम कितने अफजल मारोगे हर घर से अफजल निकलेगा
तुम कितने मकबूल मारोगे हर घर से मकबूल निकलेगा'
JNU में 9 फरवरी की शाम कुछ लोगों ने ये नारे लगाए. आजाद कश्मीर और अफजल, मकबूल को अपना 'हीरो' बताने वालों के लिए भी ये फेवरेट नारे हैं.
JNU में 9 फरवरी को कल्चरल इवेंट के लिए लगाए गए पोस्टर
JNU में 9 फरवरी को कल्चरल इवेंट के लिए लगाए गए पोस्टर

संसद हमले का दोषी अफजल गुरु फांसी पर लटकाया जा चुका है. मकबूल भट्ट को भी साल 1984 में फांसी पर लटकाया गया. क्या आप जानते हैं मकबूल भट्ट की रिहाई को लेकर एक इंडियन डिप्लोमैट की सात समंदर पार हत्या कर दी गई थी.
रविंद्र महात्रे
रविंद्र म्हात्रे

कौन था मकबूल भट्ट? जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (JKLF) को बनाने का आइडिया मकबूल का था.  कश्मीर में पैदा हुआ,  पढ़ाई के लिए पाकिस्तान चला गया. कुछ वक्त रहा. इंडिया लौटा तो आजाद कश्मीर की बात करने लगा. साल था 1966. फिर एक रोज JKLF के आतंकियों और पुलिस के बीच मुठभेड़ हुई.
फोटो क्रेडिट: REUTERS. JKLF कार्यकर्ताओं का मकबूल के लिए प्रोटेस्ट
फोटो क्रेडिट: REUTERS. JKLF कार्यकर्ताओं का मकबूल के लिए प्रोटेस्ट

मुठभेड़ में क्राइम ब्रांच ऑफिसर अमरचंद मारे गए. पुलिस ने अरेस्ट किया. लेकिन मकबूल जेल से भाग निकला. फिर पाकिस्तान चला गया. इंडिया के खिलाफ बातें करने लगा. इंडिया जब लौटा तो इंटैलिजेंस वालों ने धर लिया. केस चला.
पुणे में रविंद्र म्हात्रे के नाम पर एक पुल भी बनाया गया. म्हात्रे ब्रिज. हजारों लोग रोज गुजरते हैं.
जेल से रिहाई के लिए किडनैपिंग मकबूल भट्ट जब जेल में था. इंग्लैंड के बर्मिंघम में कश्मीरी अलगाववादियों का एक ग्रुप रहता था. इसी ग्रुप के कुछ आतंकियों ने 1984 में बर्मिंघम में पोस्टेड इंडियन डिप्लोमैट रविंद्र हारेश्वर म्हात्रे को किडनैप कर लिया.
रविंद्र महात्रे की किडनैंपिंग के बाद लगाए गए पोस्टर
म्हात्रे की किडनैंपिंग के बाद का पोस्टर

किडनैपिंग की जिम्मेदारी ली JKLF की दूजी यूनिट जम्मू कश्मीर लिबरेशन आर्मी ने. जम्मू कश्मीर लिबरेशन आर्मी ने इंडिया के सामने रखी दो डिमांड:
1. मकबूल भट्ट को फौरन जेल से रिहा किया जाए 2. अब के हिसाब से 18 करोड़ 40 लाख रुपये मांगे गए
जाहिर है कि डिमांड पूरी नहीं की गईं. 3 फरवरी 1984 को बर्मिंघम में जब रविंद्र म्हात्रे की किडनैपिंग की गई, तब उनकी बिटिया आशा का 14वां बर्थडे था. वो केक लेकर बेकरी से घर के लिए निकले ही थे. धमकी मिली कि मकबूल भट्ट को रिहा करो, वरना रविंद्र को मार दिया जाएगा. इंदिरा गांधी ने झुकने और आतंकियों के साथ ऐसे किसी समझौते से साफ इंकार कर दिया. तीन रोज बाद रविंद्र की लाश हाईवे किनारे मिली.
रविंद्र की मौत के बाद इंदिरा गांधी मुंबई में रविंद्र म्हात्रे की घर गईं. बताते हैं कि इंदिरा गांधी ने रविंद्र के परिवार से मुलाकात कर कहा, 'आपका बेटा आपसे दूर है, इसलिए मैं माफी चाहती हूं. पर हमारा हाथ बंधे हुए थे.'
रविंद्र की जब हत्या की गई, तब प्रेसिडेंट थे ज्ञानी जैल सिंह. मकबूल ने अनफेयर ट्रायल कहते हुए प्रेसिडेंट के पास दया याचिका दायर की. पर तब तक रविंद्र म्हात्रे की हत्या कश्मीरी आतंकियों ने कर दी थी.
फोटो क्रेडिट: REUTERS
फोटो क्रेडिट: REUTERS

इंडिया में मकबूल के लिए गुस्से का माहौल था. ज्ञानी जैल सिंह ने मकबूल भट्ट की दायिका याचिका नामंजूर कर दी. अपने बर्थडे से एक हफ्ते पहले 11 फरवरी 1984 को मकबूल भट को दिल्ली की तिहाड़ जेल में फांसी पर लटका दिया गया. लाश भी तिहाड़ के अंदर ही दफना दी गई.
फोटो क्रेडिट: REUTERS
फोटो क्रेडिट: REUTERS
मकबूल भट्ट को फांसी की सजा सुनाई थी हाईकोर्ट जज नीलकंठ गंजू ने. गंजू के कोर्ट की सुनाई सजा को सुप्रीम कोर्ट ने भी बरकरार रखा. गंजू कश्मीरी पंडित थे. प्लस मकबूल भट्ट को फांसी की सजा भी पहली मर्तबा गंजू ने ही दी थी. कश्मीरी अलगाववादी इस बात से भड़क लिए. मकबूल भट्ट को फांसी देने से गुस्साए आतंकियों ने श्रीनगर हाईकोर्ट के पास 4 नवंबर 1989 को गंजू को जान से मार दिया. पर आज बहुत ज्यादा लोगों को रविंद्र म्हात्रे या गंजू के बारे में नहीं पता है. हां, अफजल गुरु और मकबूल भट्ट के बारे में पता है. तभी तो वो कहते हैं कि वो शर्मिंदा हैं. सेलेक्टिव शर्मिंदिगी.
मकबूल भट्ट क्यों इंडिया से गया था पाकिस्तान?

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