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लाइन खींचने से क्यों सम्मोहित हो जाती हैं मुर्गियां?

ज्यादा खुराफात सूझे तो E = mc² लिखकर भी मुर्गी को सन्न किया जा सकता है! ऐसा भी क्रेग का कहना है. मुर्गियों के सामने लाइन बनाकर या गोला बनाकर भी Hypnotize किया जा सकता है. आखिर ये ऐसा क्यों करती हैं?

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ओशो भी मुर्गी को सम्मोहित करने के बारे में बताते हैं. (Image: सोशल मीडिया)

करीब एक दशक पहले की बात है. जब कीपैड वाले मोबाइल दिख जाया करते थे. हिमालय (Himalaya) पार बने कुछ मोबाइल फोन्स में चार से लेकर ‘अनगिनत’ स्पीकर की सुविधा दी जाने की बात कही जाती थी. लाजमी है, उस दौर में गाहे-बगाहे कानों में फूट पड़ता था - ‘मुर्गा मोबाइल बोले, कु कु कु कु…’. मुर्गा मोबाइल बोले तो ठीक, लेकिन मुर्गा हिप्नोटाइज़ होले? माने सम्मोहित? यकीन ना हो, तो पहले नीचे लगा वीडियो देखिए. फिर बात करते हैं.

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ओशो ने एक बार एक अनोखी बात बताई थी. कहते हैं कि किसी मुर्गी के आगे अगर एक सीधी लकीर खींची जाए, तो वो उसी जगह पर सम्मोहित होकर रह जाती है. खोजने पर पता चलता है कि इस बारे में 19वीं सदी के जर्मन फिलॉस्फर फ्रीडरिख नीत्चा ने भी कभी लिखा था. वो अपनी किताब ‘दस स्पोक जराथुस्त्रा’ में इसे एक रूपक के तौर पर इस्तेमाल करते हैं. लिखते हैं कि एक लकीर खींचने से मुर्गी की ‘कमजोर बुद्धि’ को सम्मोहित किया जा सकता है.

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अमेरिका के पूर्व उप-राष्ट्रपति और शांति के नोबेल पुरस्कार विजेता एल गोर भी इस बारे में बताते हैं कि वो जिस जगह से आते हैं, वहां लोग मुर्गी की आंखों के सामने एक गोला बनाकर, उसे सम्मोहित-सा कर देते हैं. इस बारे में तमाम किस्से, वीडियो सब मिलते हैं. बताया जाता है कि लोगों को इस टेक्नीक के बारे में 400 साल पहले से पता है. माने इस बात के पर्याप्त सबूत हैं कि मुर्गी सम्मोहित हो जाती है. फिर सवाल ये कि सामने एक लाइन भर खींच देने से मुर्गी सम्मोहित हो कैसे जाती है?

कैसे सम्मोहित होती है मुर्गी?

फिल्मों में आपने देखा होगा, सामने लट्टू झुला कर इंसान को सम्मोहित किया जाता है. सम्मोहित करके जाने क्या-क्या करवा लिया जाता है. पता चले, सम्मोहित हुआ इंसान सोता बनारस में है और जागता बॉल्टिमोर में. ये सब फिल्मी मामला है. इंसानों के सम्मोहित होने का मामला जानवरों या चर्चा में शामिल मुर्गी से थोड़ा अलग है. 

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दरअसल, एक्सपर्ट्स मुर्गी के ऐसे सम्मोहित होने को ‘टॉनिक इम्मोबलिटी’ कहते हैं. जीव विज्ञान की किताबों वाले डार्विन भी इसमें रुचि रखते थे. कांसस स्टेट यूनिवर्सिटी से जानवरों के जानकार थॉमस वी क्रेग तो मुर्गियों को सम्मोहित करने के लिए खासे प्रचलित भी थे. वो अपनी क्लास में अक्सर ऐसा करते थे, कई बार दो-दो मुर्गियों को एक साथ सम्मोहित कर देते थे.

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क्रेग ने ये भी बताया कि मुर्गियों की आंखों में घूरने से वो ज्यादा देर सम्मोहित रहती हैं. इसके लिए आंखों की भी जरूरत नहीं. दो सफेद गेंदों पर काली बिंदी लगा दो, तो भी काम चल जाता है. ऐसा उनका कहना था. माने लाइन खींचकर, गोला बनाकर या घूरकर मुर्गियों को सम्मोहित किया जा सकता है.

ज्यादा खुराफात सूझे, तो E = mc² लिख दो. मुर्गी सन्न हो जाएगी. ऐसा भी क्रेग का कहना था. वो बताते हैं कि एक बार उन्होंने अपने एक दोस्त पीटर डून को एक मुर्गी गिफ्ट दी थी. ताकि उनको ये सम्मोहन सिखा सकें. लेकिन पीटर भाई और बड़े सूरमा निकले. उन्होंने आइंस्टाइन का फार्मूला लिखकर ही मुर्गी को ‘उपला’ कर दिया (माने सम्मोहित कर डाला).

ऐसा होता क्यों है?

एक्सपर्ट्स का मानना है कि मुर्गियों का ये सम्मोहन डर की वजह से होता है. यानी टॉनिक इम्मोबिलिटी, जिसमें ये मरने की नकल करती हैं. रिसर्चर्स इसे ‘फियर पोटेंट रिस्पॉन्स’ कहते हैं.

यानी खतरे की स्थिति में बचने का एक तरीका. इसमें ये एक तरह के क्रानिक स्टेट में चले जाते हैं. ऐसा दूसरे जानवरों में भी देखने मिलता है. इसे ‘अपैरेंट डेथ’ भी कहा जाता है. बॉर्ड ग्रास स्नेक जो एक तरह के सांप हैं, वो भी खतरे को देखकर मरने की नकल करते हैं. ऐसी एक्टिंग कि इनको जानवरों की दुनिया का ‘बनाना अवार्ड’ दे देना चाहिए. अंग्रेजी वाला बनाना. वैसे ऐसा करके शिकारियों को ये बनाते ही हैं.

दरअसल, माना जाता है कि कुछ शिकारी जानवर मरे हुए जानवरों के नहीं खाते. इसलिए इनसे बचने के लिए कुदरत ने ये टेक्नीक इजात की है. 

इस बारे में क्रेग भी यही बताते हैं, कि ये सम्मोहन से ज्यादा मरने की नकल करने का मामला है. जैसा किसी खतरे के सामने ये करती हैं. इसके अलावा कुछ कहते हैं कि ये लकीर को सांप या शिकारी जानवर समझकर देखती हैं, और टॉनिक इम्मोबलिटी की स्थिति में चली जाती हैं. 

क्या बात है न, कि कुदरत ने कुछ जानवरों को मरने से बचाने के लिए मरने का नाटक करना सिखा दिया!

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