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जब वैज्ञानिकों ने आत्मा का वजन तोला तो क्या पता चला?

कहानी उस वैज्ञानिक एक्सपेरिमेंट की जिसमें आत्मा का भार तोला गया. फिर क्या नतीजा निकला? कैसे हुआ ये एक्सपेरिमेंट?

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डंकन मैकडॉगल ने एक्सपेरिमेंट करके आत्मा का वजन मापा था.

पाइथागोरस याद है आपको. वही a स्क्वायर + बी स्क्वायर = c स्क्वायर बताने वाले. गणितज्ञ तो थे ही. लेकिन दार्शनिक भी थे. तो हुआ यूं कि एक रोज़ पायथागोरस ने देखा कि एक कुत्ते के पिल्ले को कोई मार रहा है. पाइथागोरस ने विरोध किया. लोगों ने कहा - ये काटता है सबको. तब पाइथागोरस ने कहा. ये आम कुत्ता नहीं है. इसकी चीख सुनकर मुझे अहसास हुआ कि इसमें मेरे दोस्त की आत्मा है.

आत्मा या सोल या रूह. कोई चीज होती है इंसान के अंदर जो मरने के बाद निकल जाती है. ये विश्वास दुनियाभर में रहा है. तमाम सभ्यताओं में. हजारों सालों से. हिन्दू धर्म में माना जाता है कि आत्मा बार बार पुनर्जन्म लेती है. जबकि अब्राहमिक धर्म मानते हैं कि आत्मा मरने के बाद सीधे स्वर्ग या नरक में जाती है. आत्मा हालांकि है क्या, ये सवाल मुश्किल है? मुश्किल है इसलिए अलग-अलग तरीके से इसके बारे में जवाब देने की कोशिश की गई है. आज पढ़िए कहानी उस वैज्ञानिक एक्सपेरिमेंट की जिसमें आत्मा का भार तोला गया.

कैसे हुआ था ये एक्सपेरिमेंट?

कहानी शुरू होती है 20 वीं सदी की शुरुआत से. अमेरिका का बॉस्टन शहर. यहां डोर्चेस्टर इलाके में एक डॉक्टर रहते थे. नाम था डंकन मैकडॉगल. स्कॉटलैंड में पैदा हुए डंकन ने अमेरिका की ह्यूस्टन यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ़ मेडिसिन से पढ़ाई की थी. जिसके बाद वो डॉक्टरी की प्रैक्टिस करने लगे थे. जिस अस्पताल में डंकन काम करते थे. उसका मालिक अक्सर चीन जाता रहता था. एक बार वो चीन से एक तराजू लेकर आए. जो काफी सटीक था. और उसमें बड़ी-बड़ी चीजों को तोला जा सकता था. डंकन ने जैसे ही ये तराजू देखा. उनके दिमाग में एक ख्याल आया. क्या ये तराजू आत्मा का भार भी नाप सकता है?

डंकन का तर्क कुछ इस प्रकार था.

"इंसान जिंदा होता है. और मर जाता है. यानी कोई न कोई ऐसी चीज होती है जो इंसान को जिंदा रखती है. और मौत के बाद वो शरीर से ख़त्म हो जाती होगी. अगर ये चीज शरीर में होती है. तो ये स्थान घेरती होगी. और इसका भार भी होता होगा. यानी अगर कोशिश की जाए, तो ये 'चीज' जो इंसान को जिंदा रखती है, उसका भार भी जरूर मापा जा सकता है"

यही सोचकर डंकन ने फैसला कर लिया कि वो एक एक्सपेरिमेंट करेंगे.

कैसा रहा एक्सपेरिमेंट?

डंकन जिस अस्पताल में काम करते थे. वहां आए दिन लोगों की मौत होती थी. इसलिए उन्होंने सोचा कि अगर वो मरने से पहले और मौत के बाद लोगों का वजन नापें. और फिर दोनों का अंतर निकालें तो कुछ अंतर आना चाहिए. जो अंतर आएगा. वही आत्मा का वजन होगा.

डंकन ने इस एक्सपेरिमेंट के लिए ट्यूबरक्लोसिस के मरीज चुने. अपने रिसर्च पेपर में डंकन लिखते हैं कि TB के मरीज का शरीर, बीमारी के आख़िरी दिनों में, इतना कमजोर हो चुका होता है कि वो हिल डुल तक नहीं सकता. ऐसे में अगर उसे तराजू पर चढ़ाया जाए. तो वजन में कम से कम गलती आएगी.

गलती की बात बहुत महत्वपूर्ण थी. क्योंकि डंकन मानकर चल रहे थे कि भार में जो भी अंतर आएगा. वो बहुत कम होगा. क्योंकि आत्मा जैसी चीज काफी सूक्ष्म होगी.

इस परीक्षण के लिए डंकन ने एक खास तराजू भी तैयार करवाया. जिसके एक पाले में एक बिस्तर लगा था. ताकि मरीज को उसमें लिटाया जा सके. इसके बाद उन्होंने तराजू को कैलिब्रेट किया. ताकि वजन में एक आउंस अंतर भी आए. तो पता चल जाए. एक आउंस यानी 28 ग्राम. यानी अगर वजन में 28 ग्राम का अंतर आता. तो तराजू उसे नाप सकता था. जब सारी तैयारी पूरी हो गई. एक्सपेरिमेंट्स की शुरुआत हुई.

पहला परीक्षण हुआ- 10 अप्रैल, 1901 की तारीख. एक मरीज की मौत हुई. मौत के पहले ही उसे तराजू पर लिटाया जा चुका था. इस पूरे दौरान डंकन वजन में आ रहे बदलावों को नोट करते रहे. उन्होंने आकंड़े नोट करते हुए, इस बात का भी ध्यान रखा कि मौत के बाद शरीर में पानी, ख़ून, पसीने, मल-मूत्र और ऑक्सीजन की कमी से वजन में अंतर आ सकता है. इन बातों को ध्यान में रखने के बाद भी डंकन ने पाया कि मरीज की मौत के साथ ही तराजू का वजन अचानक 21.2 ग्राम कम हो गया. बस फिर क्या था. हो हल्ला मच गया. आत्मा का वजन- 21 ग्राम. ये बात इतनी हिट हुई कि आज भी शायद आपने सुना होगा. कि एक एक्सपेरिमेंट में आत्मा का वजन 21 ग्राम निकला था.

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डंकन ने एक नहीं 6 परीक्षण किए थे.

दूसरा मरीज जब मरा, तराजू का वजन 15 ग्राम कम हुआ.

जबकि तीसरे केस में पहले 15 ग्राम वजन कम हुआ. और फिर कुछ देर बाद 28 ग्राम और कम हो गया.

डंकन ने इसके बाद तीन और लोगों का वजन किया. लेकिन इन तीनों के आंकड़े रिजल्ट के लिए कंसीडर नहीं किए गए.

चौथी एक महिला थी. जो डायबटीज़ के कारण मरी थी. डंकन ने इस केस के बारे में लिखा, ‘धार्मिक लोग हमारा विरोध कर रहे थे. जिसके कारण उस महिला का वजन सही से नहीं लिया जा सका.’

पांचवे केस में तराजू फेल हो गया. और छठा केस इसलिए नहीं लिया गया क्योंकि डंकन जब स्केल एडजस्ट कर रहे थे. उसी बीच महिला की मौत हो गई.

इंसानों पर हुए परीक्षण से डंकन को कुछ रिजल्ट्स मिले थे. लेकिन इतने से वो संतुष्ट नहीं हुए.

उन्होंने 15 कुत्तों पर भी यही परीक्षण दोहराया. और पाया कि उनके वजन में कोई अंतर नहीं आया. जिसका निष्कर्ष ये निकला कि कुत्तों में आत्मा नहीं होती है.

डंकन ने कुल 6 साल तक ऐसे परीक्षण किए. और लास्ट में अपने निष्कर्ष एक रिसर्च पेपर में छापा. साल 1907 में 'जर्नल ऑफ़ द अमरीकन सोसायटी फ़ॉर साइकिक रीसर्च' नाम की पत्रिका में ये पेपर छपा. जिसमें डॉक्टर डंकन ने दावा किया,

"इंसान जब आख़िरी सांस लेता है, उसका वजन आधे से सवा आउंस कम हो जाता है. ऐसा लगता है मानो उसके शरीर से कोई चीज बाहर आ गई हो"

चूंकि, उनका ये एक्सपेरिमेंट पहले ही प्रसिद्धि पा चुका था. इसलिए बात अखबार में भी छप गई. धार्मिक टिल्ट लिए अखबारों ने लिखा.

"इस एक्सपेरिमेंट से प्रूव होता है कि आत्मा होती है"

हालांकि एक दूसरा खेमा भी था. जो डंकन के एक्सपेरिमेंट पर सवाल उठा रहा था. खुद डंकन का कहना था कि इससे आत्मा का अस्तित्व प्रूव नहीं होता. वो चाहते थे कि इस पर शोध और आगे बढ़े. जहां तक वैज्ञानिकों की बात थी, उन्होंने डंकन के एक्सपेरिमेंट को सिरे से नकार दिया. क्योंकि रिसर्च के हिसाब से इस एक्सपेरिमेंट के पैरामीटर एकदम बेसिर पैर थे.

पहली बात तो ये कि आत्मा का वजन कभी 15 ग्राम तो कभी 48 ग्राम निकल रहा था. इसका मतलब था आत्मा का वजन अलग-अलग होता है.

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दूसरा बड़ा सवाल ये कि इस एक्सपेरिंमेंट से ये नहीं साबित होता कि आत्मा का वजन होता है. बल्कि सिर्फ ये बात साबित होती थी कि आदमी के वजन में अंतर आता है. इसकी वजह क्या थी. डंकन का एक्सपेरिमेंट इस बारे में कुछ नहीं कहता था. उसने पहले ही मान लिया था कि ये आत्मा का वजन है. जबकि विज्ञान इस तरह काम नहीं करता. डंकन इस मामले में और परीक्षण करना चाहते थे. लेकिन ये मामला इतना विवादास्पद था कि उन्हें इंसानों के शरीर से परीक्षण करने की इजाजत मिली ही नहीं. आगे क्या किसी ने ऐसा परीक्षण किया?

डंकन ने कुल 6 साल तक परीक्षण किए
भेड़ों पर भी एक्सपेरिमेंट हुए

मैरी रोच नामक लेखिका की किताब - Spook: Science Tackles the Afterlife - के अनुसार 21वीं सदी की शुरुआत में ऑरेगोन में कुछ भेड़ों पर ये एक्सपेरिमेंट किया गया था. जिसमें पता चला कि अधिकतर भेड़ों का वजन मौत के बाद 30 से 200 ग्राम तक बढ़ गया था. ये भी महज कुछ सेकेण्ड के लिए हुआ. बाद में वजन पहले जैसा हो गया.

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रोच अपनी किताब में डॉक्टर गैरी नहूम का जिक्र करती हैं. जो ये दावा करते हैं कि आत्मा किसी न किसी प्रकार की ऊर्जा है. और E= MC स्क्वायर के अनुसार उसका कुछ वजन भी होना चाहिए. नहूम इस बाबत एक्सपेरिमेंट करना चाहते थे. लेकिन उन्हें इसकी इजाजत नहीं मिली.

बॉटम लाइन की बात करें तो आत्मा को लेकर आज भी अलग-अलग मान्यताएं हैं. दर्शन और अध्यात्म में भी ऐसे लोगों की कमी नहीं, जो आत्मा के वजन के सवाल को बेतुका मानते हैं. उनके अनुसार आत्मा मटेरियल नहीं जो उसका वजन हो. वहीं कई लोग न सिर्फ आत्मा के फिजिकल एक्सिस्टेंस में विश्वास करते हैं. बल्कि मानते हैं कि इसको शांति ना मिले तो ये भटकने लगती है. और कभी-कभी तो दोबारा इंसानी शरीर में घुस जाती है.

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