
बम फ़टने के कुछ ही घन्टे के अन्दर घटनास्थल पर पहुंचे तमिलनाडु फ़ॉरेंसिक साइंस डिपार्टमेंट के डायरेक्टर पी. चन्द्रशेखर. दो दिन चुपचाप अपनी जांच जारी रखी. दो दिनों बाद उन्होंने बताया,
बम को बेल्ट की तरह से एक औरत ने पहन रखा था. उस औरत ने हरे रंग का सलवार-कुर्ता पहना हुआ था. जब बम फटा, उस वक़्त वो राजीव गाँधी के पैर छूने के लिए झुक रही थी.आइए पढ़ते हैं पी. चंद्रशेखर की जांच के बारे में. और जानते हैं कि जो बातें मालूम चलीं, वो किस आधार पर सामने आईं.

ये घटना पूरी दुनिया और मीडिया के सामने हुई थी. बम फटने के ठीक पहले कई फोटुएं खींचीं गयी थीं. कई फोटुएं बम फटने के बाद भी खींचीं गयीं, लेकिन उस वक़्त क्या हुआ, कोई भी साफ़-साफ़ नहीं बतला सकता था. इसीलिए फ़ॉरेंसिक डिपार्टमेंट की टीम की जांच ज़रूरी होती है.
बम फटने के बाद चार थ्योरियां सामने आ रही थीं. 1. बम रेड कारपेट के नीचे था. 2. बम एक फूलों से भरी डलिया में रखा हुआ था. 3. बम फेंका गया था. 4. बम राजीव गांधी को पहनाई गयी किसी माला में था.

फूलों की डलिया
चंद्रशेखर ने डलिया में बम होने की थ्योरी को तुरंत नकार दिया. क्यूंकि अगर ऐसा सचमुच होता तो डलिया कई जगहों से टूटी होती. उस डलिया का जो भी कुछ बचा था, बचा न होता.
दूसरी थ्योरी, रेड कारपेट. वो भी ग़लत. क्यूंकि वो भी उस कदर डैमेज नहीं हुई थी. जब बम फटता है तो 360 डिग्री में फ़ोर्स जाता है. इसलिए ये भी पॉसिबल नहीं था कि बम को किसी जगह से राजीव गांधी के ऊपर फेंका गया था.
जहां तक माला की बात है. माला बहुत ही पतली थी. इतना शक्तिशाली बम इतनी छोटी माला में छुपा होना संभव ही नहीं था.
चंद्रशेखर ने हमले में मारे गए 18 शवों का परीक्षण किया. इनमें एक शव राजीव गांधी का भी था. तो एक शव ऐसा दिखा, जिसमें मात्र अवशेष ही बचे थे. नाज़ुक त्वचा, बालों और त्वचा पर बालों की गैरमौजूदगी से पता चला कि बम से उड़ने वाली कोई महिला थी. चंद्रशेखर ने छोटी-छोटी चीज़ों का भी ध्यान रखा. जैसे उंगलियों पर नेल-पॉलिश का लगा होना. उस शव का सिर्फ सिर, लेफ़्ट बाजू और कमर के नीचे का कुछ हिस्सा ही बचा था. पूरा दाहिना हाथ और पेट का हिस्सा गायब था. इन सभी सुरागों से मालूम चला कि मानव बम एक औरत थी.

जब चंद्रशेखर ने और जांच की तो उन्हें डेनिम के कपड़े की बनियान मिली, जिसमें वेल्क्रो लगा हुआ था. इससे उन्होंने ये अंदाज़ा लगाया कि बम को पेट और कमर के आसपास एक बेल्ट में लगाया गया होगा. किसी केस के चक्कर में कुछ महीने पहले चंद्रशेखर ने इंग्लैण्ड में ऐसी ही एक वेल्क्रो लगी बनियान को देखा था. यहां ये साफ़ हुआ कि बम को एक बेल्ट में लगाकर शरीर के चारों ओर लपेटा गया था.
इस बात की और भी ज़्यादा पुष्टि हुई धमाके के बाद ली गयी तस्वीरों से. सभी शव कमल के फूल की पंखुड़ियों के आकार में पड़े हुए थे. सारे शवों के पैर किसी गोले के केंद्र की जैसे केंद्र की ओर पॉइंट कर रहे थे. नॉर्मल तौर पर जब इंसानों को एक झटका लगता है और वो बैलेंस लड़खड़ाकर गिरते हैं तो फ़्लैट होकर गिरते हैं. राजीव गांधी के चारों ओर खड़े लोग एक गोल घेरे में गिरे थे. इससे ये पता लगा कि ब्लास्ट ज़मीन के तीन-साढ़े तीन फ़ीट ऊपर हुआ था.
आगे की तफ्तीश में कुछ इंट्रेस्टिंग मिला. बम लपेटकर आने वाली औरत का चेहरा बच गया था. लेकिन उसके सिर के पीछे का मांस वाला हिस्सा फट गया था. इससे ये मालूम चला कि बम बेल्ट के पिछले हिस्से में लगा हुआ था. अगर कमर के चारों ओर लगा होता तो ब्लास्ट से उसका चेहरा भी नहीं बचता. जब उसके कपड़े देखे गये तो मालूम चला कि उसकी सलवार एकदम ठीक थी. जबकि कमीज़, दुपट्टा और ब्रा के चीथड़े उड़ गए थे. ब्रा, डेनिम बनियान से चिपक गयी थी. इसका मतलब था कि बम वाली डेनिम की बनियान, ब्रा और कमीज़ के बीच में पहनी गयी थी.

राजीव गांधी के बचे हुए जूते
अब बारी आई कि बम फटने के दौरान सब किस पोज़ीशन में थे? अगर सभी सीधे खड़े होते तो सलवार के भी चीथड़े उड़ गए होते. खासकर पीछे के हिस्से में. क्यूंकि बम पीछे लगा हुआ था. लेकिन वो सलवार ठीक थी. इससे ये अंदाज़ा लगाया गया कि वो हल्का सा झुकी हुई होगी. झुकी हुई क्यूं होगी? पैर छूने के लिए. अब यहां पर इंसानी बिहेवियर की थ्योरी लगायी गयी. मान लीजिये आपके कोई पैर छूने आता है तो आप क्या करते हैं? उसे उठाने के लिए झुकते हैं और उसे कंधे से पकड़ कर उठा लेते हैं. ठीक यही वहां भी हुआ था. बम लपेटे हुई औरत पैर छूने के लिए नीचे झुकी, राजीव गांधी उसे उठाने के लिए नीचे झुके, और उसने ट्रिगर दबा दिया. इसी कारण से राजीव गांधी का चेहरा पूरी तरह से उड़ गया था. उनके चेहरे की हड्डियां 100 मीटर से भी ज़्यादा दूर तक फैल गयी थीं. लेकिन उनकी पीठ अपनी जगह पर थी और साबुत थी. इससे पक्का हो गया था कि वो उसे उठाने के लिए झुके और उसी वक़्त बम फट गया.
चंद्रशेखर को इस क्राइम की पूरी रिपोर्ट और डॉक्यूमेंट तैयार करने में छह महीने का समय लगा. उन्होनें कई तस्वीरों का सहारा लिया जो ब्लास्ट के पहले और बाद में खींचीं गयी थीं.