''अब 98.1 फीसदी बैंक खाते इंश्योर्ड हैं. अगर कोई बैंक डूबा तो 3 महीने के भीतर आपके पैसे मिल जाएंगे."
बैंकों में जमा 49% रकम की गारंटी नहीं, जानिए कितना सेफ है आपका पैसा?
बैंक में PPF और सुकन्या योजना की रकम कितनी सेफ?
Advertisement

बैंक में भुगतान की सांकेतिक तस्वीर- साभार :आजतक
Advertisement
यह बात जब देश के प्रधानमंत्री कह रहे हों तो किसी शक-ओ-शुबह की गुंजाइश नहीं रह जाती. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार 12 दिसंबर को ‘डिपॉजिटर्स फर्स्ट: गारंटीड टाइम-बाउंड डिपॉजिट इंश्योरेंस पेमेंट अप-टु ₹5 लाख’ कार्यक्रम में यह बात कही थी. यानी बैंक डूबने पर पहले आपको 1 लाख रुपये मिलते थे, अब 5 लाख रुपये तक की सरकारी गारंटी मिलेगी. सरकार इस बारे में पहले ही कानून बना चुकी है. लेकिन जो बात इस ख़ुशनुमा ख़बर की सुर्खियों में दब गई, वह यह कि 98 फीसदी बैंक खाते तो गारंटी के दायरे में हैं, पर बैंकों में जमा करीब आधी रकम अब भी इंश्योर्ड नहीं है.
यहीं से आपको टेंशन मिलनी शुरू होती है. एक साथ कई सवाल दिमाग के बहीखाते में एंट्री मारने लगते हैं. मसलन, बैंक डूबा तो पांच लाख से ऊपर की रकम का क्या होगा? कैसे पता करेंगे कि कौन-सा बैंक सेफ या अनसेफ है ? दो बैंकों में 5-5 लाख से ज्यादा हैं और दोनों डूब गए तो क्या होगा? किसी बैंक के जरिए अगर पब्लिक प्रॉविडेंट फंड (PPF) या सुकन्या समृद्धि योजना (SSY) जैसी स्कीमों में पैसा लगा रहे हैं, तो क्या बैंक डूबने पर वह रकम भी संकट में फंसेगी ? ऐसे ही कुछ सवाल पीएम के भाषण के बाद से सोशल मीडिया में भी वायरल हैं. यहां हमने बैंक डिपॉडिट इंश्योरेंस से जुड़े इन्हीं सवालों और शंकाओं का समाधान ढूंढने की कोशिश की है. साथ ही वो जानकारियां भी दे रहे हैं, जो एक आम जमाकर्ता के काम आ सकती हैं. 50.9 फीसदी रकम ही सिक्योर्ड बैंक आंकड़ों पर रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) की सालाना रिपोर्ट बताती है कि देश के सभी बैंकों में कुल 149.6 लाख करोड़ रुपये जमा हैं. डिपॉजिट इंश्योरेंस की सीमा 1 लाख से 5 लाख रुपये होने के बावजूद 76.21 लाख करोड़ रुपये की रकम ही सिक्योर हो पाई है, जो कुल जमा का 50.9 फीसदी है. यानी बैंकों में जमा 73.4 लाख करोड़ रुपये या कह लें कि 49.1 फीसदी रकम अब भी इस इंश्योरेंस के दायरे से बाहर है. यह स्थिति तब है, जब एक लाख की इंश्योर्ड सीमा बढ़ाकर 5 लाख रुपये की जा चुकी है. एक लाख का इंश्योरेंस 1993 से चला आ रहा था. उससे पहले 50 हजार और 30 हजार की रकम इंश्योर्ड हुआ करती थी.
इस लिमिट को बढ़ाने के लिए कानूनी संशोधन इसी साल अगस्त में हुआ. इसकी नौबत तब आई जब हाल ही में एक के बाद एक कई बैंकों के खस्ताहाल होने की खबरें आने लगीं. आरबीआई को तुरंत दखल देना पड़ा. पंजाब एंड महाराष्ट्र को-ऑपरेटिव बैंक (PMC), यस बैंक, लक्ष्मी विलास बैंक जैसे बड़े बैंकों से निकासी पर अचानक रोक लग जाने से देशभर में सनसनी भी फैली. हर जमाकर्ता बैंक में अपनी रकम को लेकर चिंतित होने लगा था. कुल 98.1 फीसदी बैंक खातों का कवरेज सुनने में अच्छा लग रहा है, लेकिन आंकड़ों को थोड़ा गहराई से देखें. देश में कुल 252.6 करोड़ बैंक खाते हैं. 247.8 करोड़ सिक्योर्ड हो गए हैं. यानी अब भी करीब 4.8 करोड़ खाते और उनमें रखे पैसे सिक्योर्ड नहीं हैं.

पीएमसी बैंक में संकट के दौरान की फाइल फोटो (साभार: बिजनेस टुडे)
रकम दिलाने का जिम्मा किस पर? बैंकों में जमा पांच लाख रुपये तक की रकम को इंश्योर करने का जिम्मा डिपॉजिट इंश्योरेंस एंड क्रेडिट गारंटी कॉरपोरेशन (DICGC) का है. यह RBI की सब्सिडियरी है यानी इस पर मालिकाना हक और कंट्रोल RBI का है. देश के हर बैंक का इसके तहत रजिस्टर्ड होना अनिवार्य है. 31 मार्च 2021 तक कुल इंश्योर्ड बैंकों की संख्या 2058 थी. इनमें 139 कमर्शियल बैंक और 1,919 कोऑपरेटिव बैंक थे. वे विदेशी बैंक जिनकी शाखाएं भारत में हैं, उनका डिपॉजिट भी इसके दायरे में है. इसके तहत सेविंग, करंट, फिक्स्ड डिपॉजिट सहित सभी तरह के खाते कवर होते हैं. रकम इंश्योर करने का खर्च यानी बीमा का प्रीमियम ग्राहकों को नहीं बल्कि बैंकों को ही भरना होता है. जो बैंक लगातार तीन अवधि में DICGC के पास प्रीमियम जमा नहीं करते, उनका रजिस्ट्रेशन कैंसल कर दिया जाता है. कुछ खास तरह के डिपॉजिट इंश्योर्ड नहीं होते, मसलन विदेशी सरकारों की ओर से जमा कराई गई रकम, केंद्र और राज्य सरकारों की रकम या दो बैंकों के बीच होने वाले आपसी डिपॉजिट को भी इस गारंटी से बाहर रखा गया है. क्या पता मेरा बैंक इंश्योर्ड है या नहीं? अगर आपने किसी सरकारी या बड़े प्राइवेट बैंक में पैसा जमा किया है, तो इस चिंता से मुक्त हो जाइए कि वह बैंक इंश्योर्ड है या नहीं. जिस भी वित्तीय संस्थान के नाम के साथ बैंक लगा है, उसका इंश्योर्ड होना अनिवार्य है. लेकिन फिर भी अगर 4 करोड़ से ज्यादा खाते इसके दायरे से बाहर हैं, तो इसका मतलब है कि कुछ बैंक दबे-छुपे काम कर रहे हैं. इनमें ज्यादातर कोऑपरेटिव या लोकल बैंक ही होंगे. ग्रामीण या कस्बाई स्तर पर चलने वाली 'प्राइमरी कोऑपरेटिव सोसायटीज' को DICGC रजिस्टर नहीं करता, हालांकि इन्हें पैसे जमा करने का लाइसेंस मिलता है. वैसे तो DICGC का निर्देश है कि हर बैंक अपनी ब्रांच में यह जानकारी डिस्प्ले करे कि वह इंश्योर्ड है. लेकिन फिर भी किसी ग्राहक को शक है तो वह DICGC की वेबसाइट पर जाकर बैंकों की लिस्ट सर्च कर सकता है. 5 लाख से ऊपर की गारंटी कौन लेगा? पांच लाख रुपये तक की रकम इंश्योर्ड होने की खबर जितनी राहत नहीं देती, उससे ज्यादा टेंशन देती है. यानी इससे ऊपर की रकम राम भरोसे है. नेशनल ऑर्गनाइजेशन ऑफ बैंक वर्कर्स के पूर्व सेक्रेट्री जनरल अश्वनी राणा ने 'दी लल्लन टॉप' को बताया, दो बैंकों में जमा, दोनों डूबे तो?
अगर एक ही व्यक्ति के दो बैंकों में पैसे जमा हैं और दोनों ही बैंकों पर वित्तीय संकट या डूबने की स्थिति आ जाती है, तो दोनों खातों पर अलग-अलग गारंटी मिलेगी. यानी दोनों बैंकों में 5-5 लाख रुपये सिक्योर्ड होंगे. ऐसे में यह चलन भी बढ़ेगा कि लोग बड़ी रकम एक बैंक में न रखकर कई बैंकों में रखेंगे. यह भी जान लें कि सिक्योरिटी कवरेज केवल आपके जमा को ही नहीं, उस पर मिले ब्याज को भी मिलता है. यानी आपने 4 लाख रुपये जमा किए थे और ब्याज के साथ वह रकम बढ़कर 5 लाख हो गई है तो पूरे पांच लाख आपको मिलेंगे. लेकिन एक व्यक्ति का एक ही बैंक में अलग-अलग खातों में अधिक पैसे जमा हों, तब कुल कवरेज पांच लाख का ही होगा.
बैंक में PPF खाता कितना सेफ?
5 लाख तक बैंक डिपॉजिट सिक्योर होने की खबर ने कई सरकारी स्कीमों के निवेशकों को भी टेंशन में ला दिया है. इनमें कई डाक योजनाएं हैं, जिनके खाते बैंक में भी खुलते हैं. कुछ बीमा और निवेश स्कीमें भी हैं, जिनमें बैंकों के जरिए ही पैसे जमा होते हैं. मसलन पीपीफ और सुकन्या समृद्धि योजना के निवेशक भी पूछने लगे हैं कि बैंक डूबने के साथ ही उनका पैसा तो नहीं डूबेगा ? जानकारों का कहना है कि पीपीएफ या सुकन्या योजना केंद्र सरकार की स्कीम है, न कि बैंक की अपनी जमा योजना. बैंक के डूबने का उस जमा योजना या उसकी रकम पर कोई असर नहीं होगा. उस रकम की पूरी गारंटी भारत सरकार की है. उन पर ब्याज दरें घट-बढ़ सकती हैं, रिटर्न कम हो सकता है, लेकिन जो भी रकम बैलेंस में है, वह पूरी तरह सुरक्षित है.

नई दिल्ली में 'डिपॉजिटर्स फर्स्ट' कार्यक्रम के दौरान एक जमाकर्ता को चेक देते प्रधानमंत्री मोदी (साभार: आजतक)
कितने दिन में मिलेगा पैसा? सरकार का दावा है कि अब किसी भी बैंक के डूबने की स्थिति में ग्राहक यानी जमाकर्ता को 90 दिन के भीतर पैसा मिल जाएगा. पहले इसमें 8-10 साल तक लग जाते थे. क्योंकि सरकार तब तक पैसा नहीं देती थी, जब तक उस बैंक के ऐसेट बेचकर फंड न जमा कर लिया जाए. लेकिन अब कानूनी संशोधन के बाद व्यवस्था की गई है कि बैंक की जमा-निकासी पर आरबीआई की रोक लगने के बाद 45 दिन के भीतर DICGC बैंक से अकाउंट्स डिटेल्स लेगा. अगले 45 दिनों में आंकड़ों की जांच करेगा और जमाकर्ताओं को भुगतान कराएगा. यानी जमाकर्ता को बैंक के मर्जर, रिस्ट्रक्चरिंग या दूसरी औपचारिकताओं के पूरा होने तक का इंतजार नहीं करना होगा. अब तक कितने क्लेम हुए सेटल? आजाद भारत के इतिहास में कोई भी सरकारी या शेड्यूल्ड बैंक डूबा नहीं है. जिनकी हालत खस्ता हुई, उन्हें किसी न किसी जरिए उबार लिया गया या किसी दूसरे बैंक में उनका मर्जर हो गया. लेकिन को-ऑपरेटिव या लोकल बैंकों के स्तर पर खस्ताहाली, गड़बड़ी और बंदी के मामले आते रहते हैं. अब तक DICGC ने जितने क्लेम सेटल किए हैं, उनमें अधिकांश इन्हीं छोटे बैंकों के हैं. आरबीआई की सालाना रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2020-21 में 5 को-ऑपरेटिव बैंकों और एक लोकल एरिया बैंक (LAB) की संपत्तियां जब्त कर रकम दावेदारों में बांटी गई. 2020-21 के पहले छह महीनों में 993 करोड़ रुपये के क्लेम प्रोसेस किए गए थे. इनमें 330 करोड़ एक ही को-ऑपरेटिव बैंक से जुड़े थे.
यहीं से आपको टेंशन मिलनी शुरू होती है. एक साथ कई सवाल दिमाग के बहीखाते में एंट्री मारने लगते हैं. मसलन, बैंक डूबा तो पांच लाख से ऊपर की रकम का क्या होगा? कैसे पता करेंगे कि कौन-सा बैंक सेफ या अनसेफ है ? दो बैंकों में 5-5 लाख से ज्यादा हैं और दोनों डूब गए तो क्या होगा? किसी बैंक के जरिए अगर पब्लिक प्रॉविडेंट फंड (PPF) या सुकन्या समृद्धि योजना (SSY) जैसी स्कीमों में पैसा लगा रहे हैं, तो क्या बैंक डूबने पर वह रकम भी संकट में फंसेगी ? ऐसे ही कुछ सवाल पीएम के भाषण के बाद से सोशल मीडिया में भी वायरल हैं. यहां हमने बैंक डिपॉडिट इंश्योरेंस से जुड़े इन्हीं सवालों और शंकाओं का समाधान ढूंढने की कोशिश की है. साथ ही वो जानकारियां भी दे रहे हैं, जो एक आम जमाकर्ता के काम आ सकती हैं. 50.9 फीसदी रकम ही सिक्योर्ड बैंक आंकड़ों पर रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) की सालाना रिपोर्ट बताती है कि देश के सभी बैंकों में कुल 149.6 लाख करोड़ रुपये जमा हैं. डिपॉजिट इंश्योरेंस की सीमा 1 लाख से 5 लाख रुपये होने के बावजूद 76.21 लाख करोड़ रुपये की रकम ही सिक्योर हो पाई है, जो कुल जमा का 50.9 फीसदी है. यानी बैंकों में जमा 73.4 लाख करोड़ रुपये या कह लें कि 49.1 फीसदी रकम अब भी इस इंश्योरेंस के दायरे से बाहर है. यह स्थिति तब है, जब एक लाख की इंश्योर्ड सीमा बढ़ाकर 5 लाख रुपये की जा चुकी है. एक लाख का इंश्योरेंस 1993 से चला आ रहा था. उससे पहले 50 हजार और 30 हजार की रकम इंश्योर्ड हुआ करती थी.
इस लिमिट को बढ़ाने के लिए कानूनी संशोधन इसी साल अगस्त में हुआ. इसकी नौबत तब आई जब हाल ही में एक के बाद एक कई बैंकों के खस्ताहाल होने की खबरें आने लगीं. आरबीआई को तुरंत दखल देना पड़ा. पंजाब एंड महाराष्ट्र को-ऑपरेटिव बैंक (PMC), यस बैंक, लक्ष्मी विलास बैंक जैसे बड़े बैंकों से निकासी पर अचानक रोक लग जाने से देशभर में सनसनी भी फैली. हर जमाकर्ता बैंक में अपनी रकम को लेकर चिंतित होने लगा था. कुल 98.1 फीसदी बैंक खातों का कवरेज सुनने में अच्छा लग रहा है, लेकिन आंकड़ों को थोड़ा गहराई से देखें. देश में कुल 252.6 करोड़ बैंक खाते हैं. 247.8 करोड़ सिक्योर्ड हो गए हैं. यानी अब भी करीब 4.8 करोड़ खाते और उनमें रखे पैसे सिक्योर्ड नहीं हैं.

पीएमसी बैंक में संकट के दौरान की फाइल फोटो (साभार: बिजनेस टुडे)
रकम दिलाने का जिम्मा किस पर? बैंकों में जमा पांच लाख रुपये तक की रकम को इंश्योर करने का जिम्मा डिपॉजिट इंश्योरेंस एंड क्रेडिट गारंटी कॉरपोरेशन (DICGC) का है. यह RBI की सब्सिडियरी है यानी इस पर मालिकाना हक और कंट्रोल RBI का है. देश के हर बैंक का इसके तहत रजिस्टर्ड होना अनिवार्य है. 31 मार्च 2021 तक कुल इंश्योर्ड बैंकों की संख्या 2058 थी. इनमें 139 कमर्शियल बैंक और 1,919 कोऑपरेटिव बैंक थे. वे विदेशी बैंक जिनकी शाखाएं भारत में हैं, उनका डिपॉजिट भी इसके दायरे में है. इसके तहत सेविंग, करंट, फिक्स्ड डिपॉजिट सहित सभी तरह के खाते कवर होते हैं. रकम इंश्योर करने का खर्च यानी बीमा का प्रीमियम ग्राहकों को नहीं बल्कि बैंकों को ही भरना होता है. जो बैंक लगातार तीन अवधि में DICGC के पास प्रीमियम जमा नहीं करते, उनका रजिस्ट्रेशन कैंसल कर दिया जाता है. कुछ खास तरह के डिपॉजिट इंश्योर्ड नहीं होते, मसलन विदेशी सरकारों की ओर से जमा कराई गई रकम, केंद्र और राज्य सरकारों की रकम या दो बैंकों के बीच होने वाले आपसी डिपॉजिट को भी इस गारंटी से बाहर रखा गया है. क्या पता मेरा बैंक इंश्योर्ड है या नहीं? अगर आपने किसी सरकारी या बड़े प्राइवेट बैंक में पैसा जमा किया है, तो इस चिंता से मुक्त हो जाइए कि वह बैंक इंश्योर्ड है या नहीं. जिस भी वित्तीय संस्थान के नाम के साथ बैंक लगा है, उसका इंश्योर्ड होना अनिवार्य है. लेकिन फिर भी अगर 4 करोड़ से ज्यादा खाते इसके दायरे से बाहर हैं, तो इसका मतलब है कि कुछ बैंक दबे-छुपे काम कर रहे हैं. इनमें ज्यादातर कोऑपरेटिव या लोकल बैंक ही होंगे. ग्रामीण या कस्बाई स्तर पर चलने वाली 'प्राइमरी कोऑपरेटिव सोसायटीज' को DICGC रजिस्टर नहीं करता, हालांकि इन्हें पैसे जमा करने का लाइसेंस मिलता है. वैसे तो DICGC का निर्देश है कि हर बैंक अपनी ब्रांच में यह जानकारी डिस्प्ले करे कि वह इंश्योर्ड है. लेकिन फिर भी किसी ग्राहक को शक है तो वह DICGC की वेबसाइट पर जाकर बैंकों की लिस्ट सर्च कर सकता है. 5 लाख से ऊपर की गारंटी कौन लेगा? पांच लाख रुपये तक की रकम इंश्योर्ड होने की खबर जितनी राहत नहीं देती, उससे ज्यादा टेंशन देती है. यानी इससे ऊपर की रकम राम भरोसे है. नेशनल ऑर्गनाइजेशन ऑफ बैंक वर्कर्स के पूर्व सेक्रेट्री जनरल अश्वनी राणा ने 'दी लल्लन टॉप' को बताया,
"यह काफी चिंताजनक है. आखिर 5 लाख से ऊपर की रकम अनसेफ क्यों छोड़ी जाए. सरकार से बहुत पहले से मांग होती रही है कि वह एक नॉमिनल प्रीमियम लेकर 5 लाख से ऊपर की रकम को भी इंश्योर करे. उसे एक स्पेशल बैंक इंश्योरेंस पॉलिसी जारी करनी चाहिए. इससे बैंकिग सिस्टम में लोगों का भरोसा बढ़ेगा. बड़ी रकम के लिए कोई भी जमाकर्ता स्वेच्छा से मामूली प्रीमियम देने को तैयार होगा."राकेश गुप्ता आगे बताते हैं, "5 लाख की गारंटी अपने आप में डरावनी है. यानी बैंक में आपके 30 लाख रुपये जमा हैं और बैंक डूबने पर आपको 25 लाख गंवाने होंगे. इससे आम आदमी के मन में एक तरह की इनसिक्योरिटी पैदा होती है."
वहीं, दिल्ली के टैक्स कंसल्टेंट सीए राकेश गुप्ता कहते हैं,
"डिपॉजिटर्स प्रोग्राम में प्रधानमंत्री के ऐलान के बाद से लगातार क्लाइंट्स के फोन आ रहे हैं. मेरे एक क्लाइंट के दो करोड़ रुपये बैंकों में जमा हैं. वह जानना चाहते हैं कि क्या वह इसे सेफ करने के लिए कोई पॉलिसी खरीद सकते हैं? लोग पेमेंट बैंक में जमा रकम को लेकर भी चिंतित हैं. इसके अलावा पीपीएफ, डीमैट अकाउंट और अन्य इंस्ट्रूमेंट में पड़ी रकम की सिक्योरिटी को लेकर भी सवाल उठाए जा रहे हैं.'

नई दिल्ली में 'डिपॉजिटर्स फर्स्ट' कार्यक्रम के दौरान एक जमाकर्ता को चेक देते प्रधानमंत्री मोदी (साभार: आजतक)
कितने दिन में मिलेगा पैसा? सरकार का दावा है कि अब किसी भी बैंक के डूबने की स्थिति में ग्राहक यानी जमाकर्ता को 90 दिन के भीतर पैसा मिल जाएगा. पहले इसमें 8-10 साल तक लग जाते थे. क्योंकि सरकार तब तक पैसा नहीं देती थी, जब तक उस बैंक के ऐसेट बेचकर फंड न जमा कर लिया जाए. लेकिन अब कानूनी संशोधन के बाद व्यवस्था की गई है कि बैंक की जमा-निकासी पर आरबीआई की रोक लगने के बाद 45 दिन के भीतर DICGC बैंक से अकाउंट्स डिटेल्स लेगा. अगले 45 दिनों में आंकड़ों की जांच करेगा और जमाकर्ताओं को भुगतान कराएगा. यानी जमाकर्ता को बैंक के मर्जर, रिस्ट्रक्चरिंग या दूसरी औपचारिकताओं के पूरा होने तक का इंतजार नहीं करना होगा. अब तक कितने क्लेम हुए सेटल? आजाद भारत के इतिहास में कोई भी सरकारी या शेड्यूल्ड बैंक डूबा नहीं है. जिनकी हालत खस्ता हुई, उन्हें किसी न किसी जरिए उबार लिया गया या किसी दूसरे बैंक में उनका मर्जर हो गया. लेकिन को-ऑपरेटिव या लोकल बैंकों के स्तर पर खस्ताहाली, गड़बड़ी और बंदी के मामले आते रहते हैं. अब तक DICGC ने जितने क्लेम सेटल किए हैं, उनमें अधिकांश इन्हीं छोटे बैंकों के हैं. आरबीआई की सालाना रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2020-21 में 5 को-ऑपरेटिव बैंकों और एक लोकल एरिया बैंक (LAB) की संपत्तियां जब्त कर रकम दावेदारों में बांटी गई. 2020-21 के पहले छह महीनों में 993 करोड़ रुपये के क्लेम प्रोसेस किए गए थे. इनमें 330 करोड़ एक ही को-ऑपरेटिव बैंक से जुड़े थे.
Advertisement
Advertisement