जिनके पास गाड़ी नहीं है या एक्सप्रेसवे या हाइवे से जिनका नाता नहीं है, वो टोल बूथ के बारे में सिर्फ खबरों में पढ़ते हैं. फलां टोल बूथ पर फलां व्यक्ति ने टोलकर्मियों से मारपीट कर ली. या टोल बूथ पर इतने किलोमीटर लंबा जाम लग गया. या टोल बूथ पर फलां नेता की दबंगई देखने को मिली. आदि-आदि. कुछ वीडियो तो ऐसे भी आए, जिसमें गाड़ियां टोल बूथ का बैरियर तोड़कर निकल गईं. अब ये सब नहीं होगा. भारत सरकार ऐसा इंतजाम कर रही है कि ये सब टंटा ही खत्म हो जाएगा. न टोल बूथ होगा. न टोलकर्मी होंगे. न रहेगा बांस. न बजेगी बांसुरी.
हाई वे पर टोल बूथ ही नहीं होगा! गडकरी अब क्या करने वाले हैं?
नितिन गडकरी ने कहा है कि एक साल में हाइवे और एक्सप्रेसवे से टोल प्लाजा पूरी तरह से हट जाएंगे और सैटेलाइट वाले सिस्टम से टोल टैक्स वसूले जाएंगे. इसके लिए इलेक्ट्रॉनिक टोल सिस्टम लाया जा रहा है.


लेकिन टोल बूथ नहीं होगा, तो क्या टोल भी नहीं वसूला जाएगा?
ज्यादा खुश होने की जरूरत नहीं है. नितिन गडकरी का सड़क विभाग टोल तो वसूलेगा ही लेकिन नई व्यवस्था से. याद कीजिए, पहले टोल टैक्स कैसे कैश में दिया जाता था. फिर टोलकर्मी आपको इसकी पर्ची देता था. या नहीं भी देता था लेकिन कैश के लेनदेन में टोल पर काफी समय लग ही जाता था. फिर आया फास्टैग. एक स्टिकर गाड़ी पर लगाया. कैमरे ने अपना काम किया और टोल वॉलेट से कट गया. यानी डिजिटल पेमेंट ने काम आसान बना दिया. फिर भी, फास्टैग से पेमेंट में थोड़ा समय तो लगता ही है. लिहाजा टोल बूथ पर बैरियर लगा रहता है. गाड़ियां रुकती हैं और पेमेंट कन्फर्म हो जाने के बाद ही बैरियल हटता है.
इस प्रोसेस में भी कई बार हाईवे पर जाम की आशंका बनी रहती है. लेकिन, अब ऐसी व्यवस्था आ रही है कि इस झंझट से पूरी तरह निजात मिल जाएगी. क्योंकि एक्सप्रेसवे पर या हाईवे पर टोल बूथ ही नहीं होगा. माने टोल पर रुकना ही नहीं होगा. जिस स्पीड से चल रहे हैं, उसी स्पीड से निकल जाइए. न बैरियर है. न लाइन लगाना है. बिना रुके सड़क पर फर्राटा भरिए. कोई रोकने वाला नहीं लेकिन सेटेलाइट की मदद से आपका टोल टैक्स कट जाएगा.
सड़क मंत्री नितिन गडकरी ने कहा है कि एक साल में देश भर में इस बैरियरलेस टोल की व्यवस्था लागू हो जाएगी. हालांकि, शुरुआत में फास्टैग का भी सिस्टम रहेगा लेकिन धीरे-धीरे सैटेलाइट बेस्ड टोल सिस्टम इसकी जगह ले लेगा. और एक वक्त आएगा कि एक्सप्रेसवे और हाइवे से टोल बूथ पूरी तरह गायब हो जाएंगे.
अब सवाल है कि सैटेलाइट से टोल कैसे कटेगा?
सेटेलाइट से नहीं कटेगा. सेटेलाइट की मदद से ऐसा सिस्टम बनेगा, जिसमें टोल बूथ या टोलकर्मी की जरूरत नहीं रहेगी. अभी तक पेमेंट टोल प्लाजा पर किया जाता था, जिसके लिए लोगों की जरूरत पड़ती थी. चाहे FASTag ही क्यों न लगा हो लेकिन गाड़ियों की कतारें जाम लगा ही देती थीं. लेकिन GPS आधारित टोल सिस्टम में सैटेलाइट और कारों में लगे ट्रैकिंग सिस्टम से पेमेंट वसूला जाता है और ये काम इतनी तेजी से होता है कि आपको अपनी गाड़ी रोकना छोड़िए, स्पीड भी कम करने की जरूरत नहीं होगी.
यह सिस्टम काम कैसे काम करता है?सैटेलाइट वाला GPS टोल सिस्टम Global Navigation Satellite System (GNSS) पर काम करता है, जो गाड़ियों की सटीक लोकेशन बताने की क्षमता देता है. इस सिस्टम में GPS और भारत की GAGAN तकनीक (GPS Aided GEO Augmented Navigation) का इस्तेमाल किया जाता है ताकि तय की गई दूरी को बिल्कुल सही मापा जा सके और इसी के आधार पर टोल टैक्स की गिनती की जा सके.
इसके लिए गाड़ियों में ऑन-बोर्ड यूनिट (OBU) या ट्रैकिंग डिवाइस लगाए जाएंगे. हो सकता है आने वाले समय में ये ट्रैकिंग सिस्टम में गाड़ियों में लगा हुआ आए लेकिन अभी जो गाड़ियां सड़क पर हैं, उनमें ये ट्रैकर अलग से लगाना होगा. ये सरकार की वेबसाइटों पर मिलेंगे, जैसे आज FASTag मिलते हैं.
ट्रैकर डिजिटल इमेज प्रोसेसिंग के जरिए राष्ट्रीय राजमार्गों पर अलग-अलग पॉइंट्स के कोऑर्डिनेट रिकॉर्ड करता है. इससे सॉफ्टवेयर यह तय कर लेता है कि वाहन ने कितनी दूरी तय की. फिर दूरी के हिसाब से टोल का पेमेंट OBU से जुड़े डिजिटल वॉलेट से अपने-आप कट जाता है.
यानी गाड़ी जितना सफर करेगी, टोल उतना ही कटेगा.
ये व्यवस्था अभी कुछ ही नेशनल हाईवे पर पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर चलाई जा रही है, ताकि GNSS वाले इलेक्ट्रॉनिक टोल कलेक्शन (ETC) सिस्टम की टेस्टिंग हो सके.
इस समय NHAI हर साल लगभग 40 हजार करोड़ रुपये का टोल रेवेन्यू जुटाती है. अनुमान है कि नया सिस्टम अपनाने के बाद अगले 2–3 साल में यह बढ़कर लगभग 1.40 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच जाएगा.
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