कहां से आया साम, दाम, दंड और भेद का कॉन्सेप्ट?
पुराण उराण पढ़ते हो तो पता होगा. नहीं पढ़ा तो यहां पढ़ लो.
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फोटो - thelallantop
प्रहलाद के डैडी हिरण्यकश्यप गुस्से वाले थे. उन्हें प्रहलाद का विष्णु भगवान की पूजा करना बिल्कुल बर्दाश्त नहीं था. मल्टीपल टाइम्स हिरण्यकश्यप बेटे को मरवाने के लिए गुंडे भेज चुका था. पर फाइनल गेम नहीं हो पा रहा था. तो हुआ यूं कि प्रहलाद गुरु शुक्राचार्य के यहां से ट्रेनिंग करके घर लौट चुके थे. डैडी हिरण्यकश्यप ने बुलाया और पूछा, 'स्कूल में टीचर से क्या सीखा बेटा, बताओ.' प्रहलाह बोले, जी पापा. अभी लीजिए. पर मेरा एक सवाल है. गुरु ने मुझे साम, दान, दंड और भेद की शिक्षा दी है. पर मुझे ये ठीक नहीं लगता. क्योंकि न तो मेरा कोई शत्रु है और न ही कोई दोस्त. जब कोई साध्य ही नहीं है तो इन साधनों की क्या जरूरत. भगवान विष्णु हर जगह हैं. फिर ये मेरा दोस्त और ये मेरा दुश्मन का कॉन्सेप्ट कहां से आया. इत्ता सुनना था कि हिरण्यकश्यप बौखला गया. यहां से उसका अंत ज्यादा दूर नहीं था. खैर, विष्णु पुराण में साम, दान, दंड और भेद का कॉन्सेप्ट इन्हीं बाप-बेटे के बीच सुनाई पड़ा था. स्रोत: उन्नीसवां अध्याय. विष्णु पुराण
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