मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूं. बतौर पार्टी अध्यक्ष आपको और बतौर प्रधानमंत्री मोदी जी को वाजपेयी जी का सिखाया राज धर्म याद आ जाए.अरुणाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री गेगांग अपांग ने बीजेपी छोड़ दी है. उन्हें बीजेपी से मोहभंग हो गया. क्यों हुआ और पार्टी छोड़ने की वजह क्या है, ये बताने के लिए उन्होंने पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष को चिट्ठी भेजी. इसी में उन्होंने अमित शाह और नरेंद्र मोदी को वो ऊपर लिखी सलाह दी है. चिट्ठी में ये भी कहा है कि अरुणाचल में बीजेपी ने गंदा खेल खेलकर सत्ता हथिया ली. गेगांग कुल 23 साल तक अरुणाचल के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. पहले कांग्रेस में थे. फिर बीजेपी जॉइन कर ली थी.
दो पन्नों की इस चिट्ठी में जेगॉन्ग ने क्या कुछ लिखा है, ये पॉइंट्स में जान लीजिए-
1. लोगों ने बड़ा प्यार दिया मुझे. सात बार विधायक बनाया. 23 बरस तक अरुणाचल का मुख्यमंत्री रहा मैं. मैंने इंदिरा, राजीव, वी पी सिंह, इंद्रकुमार गुजराल, एच डी देवगौड़ा, चंद्रशेखर, अटल बिहारी वाजपेयी, मनमोहन सिंह, इन सारे प्रधानमंत्रियों का दौर देखा. सबके साथ काम किया. वो लोग विविधता में एकता पर यकीन करते थे. देश के संघीय ढांचे पर भरोसा था उन्हें.
2. वाजपेयी को लोकतंत्र में बहुत आस्था थी. वो अक्सर मुझे राज धर्म समझाते थे. मगर आज के दौर की जो बीजेपी है, उससे बहुत निराश हूं मैं. आज की बीजेपी वाजपेयी की बताई राह पर नहीं चल रही. अब ये पार्टी बस सत्ता पाने, उसे हड़पने का मंच बन गई है. इसकी कमान ऐसे लोगों के हाथ में है, जो सारी ताकत अपने हाथ में रखना पसंद करते हैं. लोकतांत्रिक फैसले करने में औरों को शामिल नहीं करते. आज की बीजेपी को याद भी नहीं कि ये पार्टी कार्यकर्ताओं का, कार्यकर्ताओं के लिए और कार्यकर्ताओं के द्वारा खड़ी की गई.

ये है गेगांग अपांग के इस्तीफ़े का पहला पन्ना.

और ये रहा चिट्ठी का दूसरा पन्ना.
3. 2014 में अरुणाचल की जनता ने बीजेपी को नहीं चुना. मगर बीजेपी नेतृत्व ने सारी गंदगी दिखाकर, हथकंडे अपनाकर कलिखो पुल को मुख्यमंत्री बनाया. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बावजूद बीजेपी ने दोबारा सरकार बना ली. कलिखो पुल की आत्महत्या पर ठीक से जांच भी नहीं हुई. नॉर्थ ईस्ट में बाकी कई जगहों पर भी सरकार बनाने में भी बीजेपी ने नैतिकता और सही-ग़लत का खयाल नहीं रखा.
4. 10 और 11 नवंबर, 2018 को पासीघाट में बीजेपी ने मीटिंग की. यहां राम माधव ने पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं को कुछ कहने नहीं दिया. चुनाव के पहले पेमा खांडू का नाम CM के लिए तय हो गया. ये तो परंपरा नहीं है बीजेपी की. पहले तो बीजेपी अपने सदस्यों की, नेताओं की राय लेती थी. नेतृत्व से जुड़े फैसलों में शामिल करती थी. आडवाणी, वाजपेयी, भैरो सिंह शेखावत, कुशाभाऊ ठाकरे, मदनलाल खुराना, राजमाता सिंधिया और सिकंदर बख्त के नेतृत्व में जो पार्टी आगे बढ़ी, वहां ऐसी अलोकतांत्रिक चीजें नहीं होनी चाहिए.
5. वाजपेयी ने कहा था कि आदर्शों से समझौता करके सत्ता हासिल करने से बेहतर है अलग-थलग हो जाना. एकांतवास में रहना. उत्तरपूर्वी राज्यों में बीजेपी के जो नेता-कार्यकर्ता हैं, उनकी राज्य के अंदर भी कोई पूछ नहीं. कोई रोल नहीं. वो बस नमो ऐप पर आई खबरें अपलोड-डाउनलोड करते रहते हैं. पार्टी नेतृत्व जमीन पर काम करके जीतने से ज्यादा सोशल मीडिया का इस्तेमाल करके सीटें बढ़ाने में दिलचस्पी लेती है.
6. चाहे सरकारी योजनाओं के जमीन पर पहुंचने, उनका फायदा लोगों तक पहुंचाने की बात हो, या फिर नागा शांति वार्ता, चकमा-हाजोंग मसला, या सिटिज़नशिप बिल में संशोधन और बांग्लादेश, म्यांमार, चीन जैसे पड़ोसियों के साथ रिश्ते बेहतर करने की बात, न तो बीजेपी और न ही मोदी सरकार, दोनों में से कोई भी असली मुद्दों पर काम नहीं कर रहा.
इतनी कहकर अपांग ने मोदी-शाह के लिए ईश्वर से प्रार्थना कर ली. कि उनको वाजपेयी का सिखाया राज धर्म याद आ जाए. और ये उम्मीद जताई कि शायद इतिहास इन दोनों को याद करते समय, उनका ज़िक्र करते समय रहमदिली दिखाएगा.
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