The Lallantop
लल्लनटॉप का चैनलJOINकरें

मां 'काली' पोस्टर विवाद का पूरा सच ये है!

डॉक्यूमेंट्री फिल्म के पोस्टर पर भड़के विवाद पर टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा ने क्या कहा?

post-main-image
डॉक्यूमेंट्री फिल्म 'काली' के पोस्टर' पर उठा विवाद (फोटो: इंडिया टुडे)

आहत, नफरत और अपराध. इन तीन कीवर्ड्स को डालकर आप खबरों की गागर खंगालेंगे तो आपको सारी खबरों में एक बात कॉमन मिलेगी - धर्म. धर्म, जिसमें लोग अपनी समस्याओं का समाधान खोजते हैं, शांती तलाशते हैं, उसी के नाम पर नई नई समस्याएं पैदा की जा रही हैं और शांति भंग करने की कोशिश हो रही है. कुछ मिसालें हम आपके सामने पेश कर रहे हैं -

पहला मामला है अजमेर का. 5 जुलाई के बुलेटिन में दी लल्लनटॉप ने आपको बताया था कि सलमान चिश्ती नाम के एक हिस्ट्रीशीटर ने भाजपा से निलंबित प्रवक्ता नुपूर शर्मा की हत्या पर ईनाम का ऐलान किया था. सलमान चिश्ती को अजमेर शरीफ दरगाह का खादिम है, अंजुमन कमेटी में वोट डालता है. लेकिन दरगाह अंजुमन कमेटी ने तुरंत उससे किनारा कर लिया था. कल आपने नफरत उगलते सलमान चिश्ती को देखा था, अब उस सलमान चिश्ती को देखिए, जो पुलिस के हत्थे चढ़ गया है. पुलिस 5 जुलाई की रात ही चिश्ती को उसके घर से उठाकर ले गई थी. धमकी देते हुए जो हेकड़ी चिश्ती वीडियो में दिखा रहा था, वो वर्दी के सामने नज़र नहीं आई.

अजमेर में दरगाह पुलिस थाने से प्राप्त जानकारी के मुताबिक चिश्ती का जो वीडियो वायरल हुआ है, वो संभवतः तीन हफ्ते पुराना है. माने नुपुर शर्मा के बयान के एक या दो दिन बाद का. पुलिस ये आशंका भी जताई है कि वीडियो बनाते वक्त चिश्ती नशे में था. इसे लेकर भाजपा की तरफ से आईटी सेल के मुखिया अमित मालवीय ने सवाल उठाया है कि क्या पुलिस ने ही चिश्ती को नशे वाली बात करने को कहा था?

जैसा कि हमने आपको बताया, सलमान चिश्ती एक हिस्ट्रीशीटर है. इसके खिलाफ दर्ज मुकदमों की संख्या 14 है. इनमें हत्या, हत्या का प्रयास भी शामिल है. कुछ मामलों में सलमान बरी हो चुका है, लेकिन सभी में नहीं. अगर सलमान को कानून ने एक सख्त सबक दे दिया होता, तो किसी की हत्या का आह्वान करने का विचार उसके दिमाग में आता ही नहीं. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. और नतीजा आपके सामने है. सलमान सलाखों के पीछे है, लेकिन उसके वीडियो का संदेश जहां पहुंचना था, पहुंच चुका.

अजमेर से अब चलते हैं महाराष्ट्र के अमरावती. यहां 21 जून को उमेश प्रह्लादराव कोल्हे की हत्या कर दी गई थी. उमेश का दोष - उन्होंने नुपूर शर्मा के समर्थन में वॉट्सएप स्टेटस लगा लिया था. 19 जून को आतिब, शोएब और इरफान शेख नाम के आरोपियों के बीच उमेश की हत्या को लेकर एक मीटिंग हुई. इसमें तय हुआ कि उमेश को 20 जून को मारा जाएगा. 20 तारीख को आरोपी उमेश की दुकान से घर तक के रास्ते में घात लगाकर बैठ गए. लेकिन उस रोज़ उमेश एक दूसरे रास्ते से चले गए. लेकिन अगले दिन उमेश हत्यारों के शिकार बन ही गए.

जब पुलिस ने मामले की जांच शुरू की, तो उमेश की हत्या का सीधा कारण मालूम नहीं चला. क्योंकि उमेश के कोई दुश्मन नहीं थे. वो तो जब सीसीटीवी फुटेज के आधार पर 7 आरोपियों को पुलिस ने गिरफ्तार किया, तब मालूम चला कि उमेश भी ठीक कन्हैया लाल की तरह निशाना बने थे. अब इस मामले की जांच NIA कर रही है. आज खबर आई कि इस हत्याकांड के कथित मास्टर माइंड इरफान खान के खिलाफ मध्यप्रदेश के इंदौर में भी एक रेप का मामला चल रहा है. इस मामले में इरफान 19 दिन जेल में भी रह चुका है.

उमेश कोल्हे और कन्हैया लाल की हत्या में 7 दिन का फर्क था. अगर उमेश कोल्हे के हत्यारों को जल्द पकड़कर देशभर में एजेंसियों को अलर्ट कर दिया जाता कि एक सोशल मीडिया पोस्ट को लेकर धर्मांध लोग इस तरह की बर्बरता कर सकते हैं, तो संभवतः कन्हैया लाल की जान बच सकती थी. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. उमेश के बाद लगभग उसी तरह कन्हैया की हत्या भी हुई और अब जैसे पूरा देश बारूद के ढेर पर बैठ गया है. एक छोटी सी चिंगारी से माहौल खराब हो सकता है. बावजूद इसके, धर्म के नाम पर हिंसा का आह्वान बंद नहीं हुआ है. हम ऐसा क्यों कह रहे हैं, ये समझने के लिए आपको चलना होगा उत्तर प्रदेश के अयोध्या.

अयोध्या में प्राचीन हनुमानगढ़ी मंदिर है. यहां के महंत राजू दास ने 5 जुलाई की शाम ये बयान दिया -

महंत ने जो कहा, क्या उसे हिंसा का आह्वान नहीं माना जाएगा? महंत चाहते हैं कि गृहमंत्री उनकी बात पर ध्यान दें. लेकिन क्या गृहमंत्री इस बात पर ध्यान दे पाएंगे कि महंत ऐसी स्थिति उत्पन्न करने की बात कर रहे हैं जो संभाली नहीं जा सकेगी? क्या इस मामले का संज्ञान लेकर कार्रवाई हो पाएगी?

"एक फिल्म निर्माता है लीना, जिनके द्वारा बनाई गई फिल्म में सनातन धर्म संस्कृति और हिंदू देवी-देवताओं का मज़ाक उड़ाना निंदनीय है. इसके नाते मैं देश के गृह मंत्री से मांग करता हूं कि इनके खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई की जाए. और इस फिल्म पर बैन लगाया जाए. ट्रेलर में उन्होंने शक्ति स्वरुपा मां काली को मुख में सिगरेट सुलगाते हुए दिखाया गया है. हाल ही में नूपुर शर्मा ने सही बात कह दी तो पूरे देश में भूचाल आ गया और ये सनातन धर्म का मज़ाक उड़ाते हैं. क्या चाहते हो तुम्हारे भी सिर तन से जुदा हो जाएं, क्या ये इच्छा है आपकी? ऐसा नहीं चलेगा, इसलिए मैं गृह मंत्री से कार्रवाई की मांग करता हूं, अगर आप कार्रवाई नहीं करेंगे तो हम ऐसी स्थिति पैदा कर देंगे की संभालनी मुश्किल हो जाएगी. अभी तो इस दुस्साहस को क्षमा भी किया जा सकता है, लेकिन अगर ये रिलीज हो गई तो ऐसी स्थिति पैदा हो जाएगी जो आप संभाल भी नहीं पाएंगे."  

महंत जी जिस बात को लेकर नाराज़ हैं, उसे लेकर आपको थोड़ी जानकारी और दे देते हैं.  2 जुलाई को 'काली' नाम की एक डॉक्यूमेंट्री एक पोस्टर लॉन्च हुआ. इस पोस्टर में देवी काली के वेश में एक महिला है. एक हाथ में त्रिशूल. दूसरे हाथ में प्राइड फ़्लैग. और, तीसरे हाथ में सिरगेट. बवाल सिगरेट के धुएं पर हुआ.

इस डॉक्यूमेंट्री फिल्म की डायरेक्टर लीना मणिमेकलाई के खिलाफ देश के अलग-अलग राज्यों जैसे दिल्ली और उत्तर प्रदेश में FIR दर्ज हो गई हैं. 5 जुलाई को तृणमूल सांसद महुआ मोइत्रा से इंडिया टुडे कॉनक्लेव ईस्ट में इस विवाद पर सवाल किया गया. तब महुआ ने कहा,

"ये इस बात पर निर्भर करता है कि आप अपने ईष्ट या आराध्य की कल्पना कैसे करते हैं. मिसाल के लिए भूटान या सिक्किम जाएं तो वहां आप देखेंगे कि सुबह पूजा के वक्त भगवान को विस्की चढ़ाई जाती है. अब अगर आप यही बात उत्तर प्रदेश में किसी को बताएंगे, तो हो सकता है कि लोग इसे ईशनिंद मान लें. ऐसे ही हर कोई काली की कल्पना भी करता है. मेरे लिए काली एक ऐसी देवी हैं, जो मांस खाती हैं, शराब को भी स्वीकार करती हैं. अगर आप तारापीठ जाएं, तो आप साधुओं को धूम्रपान करते हुए देख सकते हैं. तो काली का एक ये स्वरूप भी है, जिसकी पूजा होती है. हिंदू धर्म के भीतर, मुझे एक काली उपासक के रूप में ये हक है कि मैं काली की अपनी अलहदा कल्पना तैयार करूं. इससे किसी की भावनाओं को आहत नहीं होना चाहिए. मुझे ये करने का उतना ही हक है, जितना आपको ये सोचने का कि आपके ईष्ट सफेद कपड़े पहनते हैं, शाकाहार करते हैं. इसीलिए मुझे इस मसले से कोई समस्या नहीं है. मेरा मानना है कि धर्म निजी मसला है. जब तक किसी के निजी मामले में दखल पैदा नहीं होता, तब तक अपनी राय रखने का हक होना चाहिए.''

महुआ का बयान आपने सुन लिया. अपनी राय भी कायम कर ली होगी. नेताओं ने भी अपनी राय कायम कर ली है. महुआ के खिलाफ मध्यप्रदेश में भावनाएं भड़काने का मामला दर्ज कर लिया गया है. सीएम शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि हिंदू देवी देवताओं का अपमान बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. महुआ के संसदीय क्षेत्र कृष्णानगर में भी उनके खिलाफ तहरीर दी गई है.

चूंकि तृणमूल कांग्रेस ने महुआ के बयान से किनारा कर लिया था, तो महुआ ने भी पार्टी के आधिकारिक हैंडल को अनफॉलो कर दिया है. भाजपा शासित राज्य में FIR पर प्रतिक्रिया देते हुए महुआ ने ट्वीट किया कि मैं काली की उपासक हूं, किसी से नहीं डरती. न ही गुंडों से, न पुलिस से और न ही ट्रोल्स से.

एक तरफ कोलकाता में भाजपा महुआ के खिलाफ प्रदर्शन कर रही है. और दूसरी तरफ भाजपा नेता राम कदम ने ''काली'' डॉक्यूमेंट्री फिल्म पर रोक लगाने की मांग कर दी है. अब कांग्रेस से आई प्रतिक्रियाओं की बात करते हैं. कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने ट्विटर पर लिखा कि महुआ मोइत्रा पर वही कहने के लिए हमले हो रहे हैं, जो सभी हिंदू पहले से जानते हैं - कि देश के अलग-अलग हिस्सों में पूजन का तरीका अलग है. अनुयायी भोग में जो चढ़ाते हैं, वो ईष्ट से ज़्यादा अनुयायी के बारे में बताता है. आगे थरूर ने ये लिखा कि अब बिना किसी को ऑफेंड किया, धर्म के बारे में कुछ भी कहना संभव नहीं रह गया है. फिर इस टिप्पणी को लेकर कांग्रेस से सवाल किया जाने लगा कि क्या ये कांग्रेस का आधिकारिक स्टैंड है?

तो आपने देखा, 6 जुलाई के दिन भारत किन चीज़ों में उलझा रहा. और इस उलझन ने किन महत्वपूर्ण मुद्दों से आपका ध्यान भटका दिया. सोचिएगा कि इन विवादों ने हमारे देश की उर्जा और समय का कितना नुकसान किया है. और इसका आपके जीवन पर क्या असर पड़ जाएगा. इस पूरे विवाद पर फिल्मकार लीना मणिमेकलाई का कहना क्या है, ये हमें अवश्य जानना चाहिए. द वायर के लिए प्रियंका तिरुमूर्ति ने मणिमेकलाई से बात की है, जो फिलहाल टोरंटो में हैं. मणिमेकलाई कहती हैं,

''काली को महज़ हिंदू देवी कहना गलत है. आदिवासी लोक कला और परंपरा में काली की ज़बरदस्त मौजूदगी है. ब्राह्मणवादी हिंदू धर्म से परे, दक्षिण एशिया में अलग-अलग आदिवासी आस्था परंपराएं काली के अलग-अलग रूप गढ़ती हैं. तमिल और तेलुगू ग्राम परंपराओं में काली आम लोगों में प्रवेश करती हैं. मांस का भोग करती हैं, गांजा पीती हैं, देसी शराब पीती हैं और नृत्य करती हैं. मेरी फिल्म में भी यही होता है. बस फर्क इतना है कि काली इस बार टोरंटो के उस इलाके में आई हैं, जहां प्रवासी बसते हैं.''

फिल्म में काली एक फिल्मकार में प्रवेश करती हैं. ये फिल्मकार क्वीयर है. सादी भाषा में कहें, तो स्ट्रेट नहीं है. उसकी लैंगिंक पसंद समाज की सोच से बंधी नहीं है. ये फिल्मकार टोरंटो के डाउनटाउन इलाके में रहती हैं. ऐसे परिवेश में जब काली आती हैं, तो क्या करती हैं, ये फिल्म में दिखाया गया है. और फिल्म में दर्शाई गई फिल्मकार स्वयं मणिमेकलाई हैं. मणिमेकलाई अपनी फिल्म और उसके विषय पर अब भी कायम हैं.

दी लल्लनटॉप शो: जानिए क्या है ‘काली’ पोस्टर से जुड़ा विवाद?