धूत कहो, अवधूत कही, रजपूत कहो, जोलहा कहौ कोऊ।हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में अंग्रेजी के प्रोफेसर और मशहूर साहित्यिक आलोचक इवोर आर्मस्ट्रांग रिचर्ड्स तुलसीदास के बारे में लिखते हैं कि -
काहू की बेटी सों बेटा न ब्यांहब, काहू की जाति बिगारौं न सोऊ।
'तुलसी' सरनाम गुलाम है राम को, जाको मचै सो कहौ कछुओंऊ।
मांगि कै खैबो मसीत को सोइबो, लैबे को एक न दैबे को दोऊ|
तुलसी सरनाम, गुलाम है रामको, जाको चाहे सो कहे वोहू|
मांग के खायिबो, मसीत में रहिबो, लेबै को एक न देबै को दोउ|
(तुलसीदास, कवितावली में उत्तरकांड से)
कोई मुझे धूर्त कहे, चाहे भिखमंगा कहे, चाहे क्षत्रिय कहे, चाहे जोलहा कहे, मुझे कुछ परवाह नहीं. न मुझे किसी की लड़की से अपने लड़के का ब्याह ही करना है (जो मैं पतित होने का डर करूं), न तो किसी जाति के साथ संपर्क रख के उसे बिगाड़ेगा, जिसको जो अच्छा लगे ,कहे. मेरा नाम तुलसी है, मैं राम का गुलाम हूं, जिसको जो मन में आए कहे. मैं तो मांग के खाता हूं, मस्जिद में रहता हूं, न किसी से लेना, न किसी को कुछ देना है.
तुलसी कभी किसी वाद के चौखटे में बंध कर नहीं रहे, क्योंकि वे सत्यग्रहणलक्षी साधक थे.ये वही तुलसीदास हैं, जो रामचरितमानस के जरिए अच्छे राम भक्त होने के गुण बताते हैं. साथ ही भेदभाव से बचने की बात भी करते हैं. कहा जाता है कि जब कुछ कुलीन ब्राह्मणों ने उनके काशी के मंदिर में रहने पर सवाल खड़े किए, तो वह एक मस्जिद में रहने चले गए. तुलसीदास का जीवन ऐसे तमाम किस्सों से भरा पड़ा है. पेश हैं उनके जीवन के पांच अनसुने किस्से.
भोजपत्र पर नहीं, कागज पर लिखा था रामचरितमानस
कई लोगों को लगता है कि गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस को भोजपत्र या ताड़पत्र पर लिखा था, लेकिन ऐसा नहीं है. उन्होंने रामचरितमानस की रचना कागजों पर की थी. इस बात के प्रमाण तुलसीदास धाम यानी चित्रकूट के राजापुर में मिलते हैं. इस जगह पर गोस्वामी तुलसीदार का मंदिर है, जिसमें उनके हाथ से लिखा रामचरितमानस का अयोध्या कांड रखा है. बाकी पांडुलिपि तब पानी में बह गई, जब उसे चुराकर एक पुजारी भाग रहा था और वह पानी में गिर गई. लोग पांडुलिपि को तकरीबन 450 साल पुराना बताते हैं.कागजों पर लिखी ऐसी ही पांडुलिप बनारस में भी देखने को मिलती हैं, जिनके बारे में कहा जाता है कि स्वयं तुलसीदास ने उन्हें अकबर के नवरत्नों में से एक टोडरमल को सौंपा था. हालांकि आधुनिक कागज उद्योग 19वीं शताब्दी में भारत में आया, लेकिन चीन में कागज का इस्तेमाल 202 ईसा पूर्व से होता आया है.

चित्रकूट के राजापुर में अब भी अयोध्या कांड की पांडुलिपि देखी जा सकती हैं. (फोटो-ट्विटर)
अकबर की दी हुई जमीन, अंग्रेजों ने हड़प ली
मुगल बादशाह अकबर और तुलसीदास को समकालीन माना जाता है. अकबर ने तुलसीदास को यमुना नदी के किनारे 96 बीघा जमीन दे दी. लेकिन तुलसीदास स्वीकर करने को राजी नहीं हुए. ऐसे में जमीन उनके शिष्य गणपतराय के नाम कर दी गई. जब अंग्रेज आए, तो उन्होंने यह जमीन अपने कब्जे में लेकर 684 रुपए हर साल देना शुरू किया. आजादी के बाद 1972 तक जिला कलेक्टर से भी इस जमीन के 684 रुपए ही मिलते रहे. फिर वो मिलने भी बंद हो गए.दो बोली, 12 ग्रंथ
गोस्वामी तुलसीदास को लोग रामचरितमानस की वजह से ही ज्यादा जानते हैं. उन्होंने इसके अलावा भी 11 ग्रंथ लिखे थे. उन्होंने अपना लेखन अवधी और ब्रज की बोली में किया.अवधी में उन्होंने रामचरितमानस, रामलीला नहछा, बरवै रामायण, पार्वती मंगल, जानकी मंगल और रामाज्ञा प्रश्न लिखीं. उन्होंने ब्रज में कृष्ण गीतावली, साहित्य रत्नावली, दोहावली, वैराग्य संदीपनी और विनय पत्रिका लिखी. इन 12 रचनाओं के अलावा चार दूसरी बहुत जानी-मानी रचनाएं हैं, जिन्हें तुलसीदास रचित माना जाता है. इनमें शामिल हैं- हनुमान चालीसा, हनुमान अष्टक, हनुमान बाहुक, तुलसी सतसाईं.
मीराबाई ने मांगी थी गोस्वामी तुलसीदास से सलाह
गोस्वामी तुलसीदास की जीवनी लिखने वाले वेणी माधव दास ने मूल गोसाईं चरित में मीराबाई के तुलसीदास को पत्र लिखने का उल्लेख किया है. उन्होंने लिखा कि पत्र लिखने के पीछे की मंशा अपने माता-पिता द्वारा उनकी भक्ति को न समझा जाना था. मीराबाई के पत्र के उत्तर में ही तुलसीदास ने विनय पत्रिका के इस पद को लिखा -जाके प्रिय न राम वैदेही, तजिए ताहि कोटि बैरी सम, जद्यपि परम सनेही.तुलसीदास ने मीराबाई को भक्ति के रास्ते में आने वाली हर बाधा को छोड़ने की बात लिखी है.
एक नहीं, तुलसीदास के थे पांच गुरु
तुलसीदास ने कभी अपने गुरु के बारे में साफ उल्लेख नहीं किया. उनके जन्म की तरह उनके गुरु को लेकर भी अलग-अलग चर्चाएं होती हैं. उनके पांच गुरु बताए जाते हैं. इनके नाम हैं - राघवानंद, जगन्नाथदास, शेषसनातन, नरसिंह और नरहरि. अलग-अलग विद्वान अलग-अलग वक्त पर इन गुरुओं की चर्चा करते हैं.वीडियो - क्या 'रामचरितमानस' में कोरोना फैलने की बात पहले से लिखी है?