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वो ईरान को हाफ पैंट से बुर्के तक लाया और फिर न्यूक्लियर बम पर बैठाकर चला गया

82 साल के अकबर हाशमी रफसंजानी ईरान को भारत की तरह बना रहे थे.

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अकबर हाशमी राफसंजानी
आर्य थ्योरी के मुताबिक सेंट्रल एशिया से चलकर आर्यों का एक ग्रुप इंडिया की तरफ मुड़ गया. दूसरा ईरान की तरफ. दोनों देशों की धार्मिक किताबों और रीति-रिवाजों में अक्सर समानता खोजी जाती है. दोनों देश अभी की दुनिया में बेहद महत्वपूर्ण हैं. पर ईरान में अभी कुछ ऐसा हुआ है, जिसने चिंता बढ़ा दी है.


 
1. ईरान के पूर्व प्रेसिडेंट अकबर हाशमी रफसंजानी की मौत 8 जनवरी 2017 को हुई. वो 82 साल के थे. ये कट्टरपंथी ईरान के मॉडरेट लीडर थे, जिनसे वहां की पब्लिक को बड़ी अपेक्षाएं थीं. 1989 से 1997 तक प्रेसिडेंट रहे थे. ईरान के सबसे धनी लोगों में से एक थे.
2. 1979 में ईरान में एक क्रांति हुई थी. इस क्रांति ने ईरान को 5 सौ साल पीछे धकेल दिया. इसके ठीक पहले यहां की औरतें हाफ-पैंट पहनती थीं और कार चलाती थीं. इस क्रांति ने औरतों को हजार साल पहले धकेल दिया. मांओं ने ज्यादा जिंदगी जी थी. बेटियों ने जीते जी मौत को देखना शुरू किया. हाशमी इस क्रांति के बड़े नायकों में से थे. पर बाद में इस क्रांति की क्रूरता के खिलाफ हो गये.
3. इनकी मौत के बाद ईरान के प्रेसिडेंट हसन रुहानी रो पड़े. मई 2017 में चुनाव हैं. रुहानी को हाशमी की बहुत जरूरत थी इस चुनाव में.
4. ईरान की संसद को भी हाशमी की जरूरत थी. क्योंकि यहां पार्लियामेंट 'मजलिस' के ऊपर एक बॉडी होती है, गार्जियन काउंसिल. ये संसद के फैसलों को भी काट देती है. ये चुने हुए लोग नहीं होते हैं. धर्म के आधार पर आते हैं. संसद में बैठे सारे लोग बुरे और पिछड़े नहीं होते. पर काउंसिल उन्हें औकात बताने में लगी रहती है. आर्मी लगाने की भी धमकी देती है. हाशमी मजलिस और काउंसिल के बीच बात कराते थे. सहमति कराते थे.
5. हाशमी ने ही ईरान में हर शुक्रवार होने वाली प्रार्थना में एक तब्दीली कराई थी. वहां प्रार्थना में एक लाइन कही जाती थी- डेथ टू अमेरिका. हाशमी ने इसे हटवा दिया था.



अकबर हाशमी की ये जिंदगी कैसी रही होगी? खुद ही आग लगाये और बाद में पानी डालने चले. क्या होगा ईरान का इसके बाद? अभी तो अमेरिका के साथ न्यूक्लियर डील हुई थी. क्या इसके बाद ईरान अपने रास्ते चल पड़ेगा, दुनिया को अपने रास्ते छोड़कर?

जब 4 साल के थे तब औरतों को हाफ-पैंट में देखा, बड़े होने पर खुद बुर्के में कैद कराया

23 अगस्त 1934 को रफसंजान शहर के पास बहरमन गांव में हाशमी का जन्म हुआ था. उन्हें 4 साल की उम्र में मुसलमानों के पाक माने जाने वाले शहर भेजा गया. अयातुल्ला खोमैनी का चेला बनने के लिये. अयातुल्ला को बाद में ईरान छोड़कर भागना पड़ा था. 1964 से 1979 तक बाहर ही रहे. क्योंकि ईरान के शाह मोहम्मद रजा पहलवी ने मुस्लिम कट्टरपंथियों पर कहर ढा रखा था. पहलवी मॉडर्निटी चाहता था. पर इसके चक्कर में वो कट्टरपंथियों से क्रूरता से पेश आता था. जिसके चलते कट्टरपंथियों को ईरान की जनता का एक बड़ा हिस्सा सपोर्ट करने लगा था. 1963 से 1978 तक रफसंजानी को 5 बार जेल हुई. अयातुल्ला उस वक्त इराक में छिपे हुए थे.
अयातुल्ला खोमैनी के साथ, 1979 की क्रांति के बाद अयातुल्ला खोमैनी के साथ, 1979 की क्रांति के बाद

1979 में ईरान में क्रांति हुई. अयातुल्ला खोमैनी वहां के सर्वेसर्वा बन गये. रफसंजानी को ईरान की संसद मजलिस में चुन लिया गया. उनको संसद का स्पीकर बनाया गया. 1989 तक वो इस पोस्ट पर बने रहे. उसी साल खोमैनी की मौत हो गई. इसके बाद रफसंजानी ने अयातुल्ला अली खमेनी को आगे बढ़ाना शुरू किया. कहते हैं कि हाशमी की नजर में खमेनी सीधे लग रहे थे. पर ऐसा था नहीं. वो अपनी चलाने लगे. खोमैनी के बाद खमेनी सुप्रीम लीडर बन ही गये. अभी तक हैं. सुप्रीम मतलब कोई इनकी आलोचना नहीं कर सकता. अक्सर ईरान में कोई ना कोई पुलिस के हाथ धर लिया जाता है इसी बात के लिये. जब इराक में वीपन्स ऑफ मास डिस्ट्रक्शन के नाम पर अमेरिका ने हमला कर दिया था तब खमेनी ने अपने यहां फतवा जारी कर ऐसे हथियारों को बनाना बंद करवा दिया था.

दस साल बाद प्रेसिडेंट बने, तो लोगों के अधिकारों की याद आई 

तो 1989 के बाद रफसंजानी प्रेसिडेंट बन गये. उसी वक्त खाड़ी युद्ध हुआ था. इराक के साथ-साथ ईरान ने भी बहुत झेला था. रफसंजानी के सामने ईरान की अर्थव्यवस्था को फिर से बनाने की चुनौती थी. उसी वक्त इंडिया में भी अर्थव्यवस्था बदल रही थी. ठीक इसी तरह ईरान में भी बदलाव हुए. बिजनेस को फायदा हुआ, पर गरीबों को कोई खास फायदा नहीं हुआ. रफसंजानी ने सारे मॉडरेट काम करते हुए दो विवादास्पद काम कर दिये. एक तो ईरान में न्यूक्लियर बम बनाने की आग पैदा कर दी. दूसरा सलमान रुश्दी पर कुरान के खिलाफ लिखने के चलते जारी फतवे को नहीं हटाया.
प्रेसिडेंट अकबर हाशमी
प्रेसिडेंट अकबर हाशमी

इसी दौरान रफसंजानी पर करप्शन के भी चार्जेज लगे. कहा जाने लगा कि बहुत पैसा बनाया है. 2003 में फोर्ब्स मैगजीन ने रफसंजानी की दौलत को 60 अरब रुपये से ज्यादा बताया था. अभी इनके परिवार के बिजनेस में ईरान की दूसरी सबसे बड़ी एयरलाइन शामिल है. पिस्ता के बिजनेस पर परिवार को मोनॉपली है. ईरान की सबसे बड़ी प्राइवेट यूनिवर्सिटी आजाद पर परिवार का ही कब्जा है. रियल एस्टेट, कंस्ट्रक्शन और तेल की डील्स में भी परिवार ही घुसा हुआ है. 1997 के बाद के चुनाव में रफसंजानी हार गये. मॉडरेट विचारधारा के थे, पर करप्शन के चार्जेज गंभीर थे.

करप्शन के चार्जेज के बाद मामला हाथ से निकल गया

2005 में रफसंजानी ने फिर प्रेसिडेंट बनने की कोशिश की. पर अहमदीनेजाद के हाथों हारना पड़ा. अहमदीनेजाद 2013 तक ईरान के प्रेसिडेंट बने रहे. इसी दौरान ईरान ने न्यूक्लियर प्रोग्राम को बहुत आगे बढ़ा लिया. कहते हैं कि बम बनाने के बहुत करीब है ये देश. पर इसके साथ ही वेस्ट यूरोप और अमेरिका से ईरान के रिश्ते खराब होते चले गये. मिडिल ईस्ट में वेस्ट ऐसे ही फंसा हुआ था. ईरान से भी बखेड़ा बढ़ने लगा. बड़ी कॉन्सपिरेसी थ्योरीज आती थीं कि इराक के साथ ईरान पर भी हमला करना चाहता था अमेरिका. पर इसके बदले इकॉनमिक सैंक्शन लगा दिये. इससे ईरान की इकॉनमी गड़बड़ा गई.
प्रेयर पढ़ते हुए
प्रेयर पढ़ते हुए

इसी दौरान रफसंजानी  एकदम बदल गये. थोड़े ज्यादा मॉडरेट हो गये. बाकी मॉडरेट नेताओं को सपोर्ट करने लगे. पर अहमदीनेजाद ने इनके सपोर्ट से खड़े हुए मौसावी को हरा दिया. 2009 में फिर अहमदीनेजाद प्रेसिडेंट बन गये. पर इसके खिलाफ ईरान में खूब प्रोटेस्ट होने लगे. कहा जाने लगा कि चुनाव में गड़बड़ियां हुई हैं. इसी प्रोटेस्ट में रफसंजानी की सबसे छोटी बेटी फजेह ने औरतों के अधिकारों को लेकर खूब हंगामा किया. और फिर पहली बार रफसंजानी को ईरान में दरकिनार किया गया. 25 सालों से वो तेहरान में कुद्स डे पर स्पीच देते थे. इस बार नहीं देने दिया गया. फिर अहमदीनेजाद ने अमेरिका और इजराइल के खिलाफ एकदम मौखिक जंग छेड़ दी. टेंशन बढ़ते जा रहा था. मिडिल ईस्ट में अरब स्प्रिंग हुआ. ट्यूनीशिया से शुरू हुआ. सीरिया तक पहुंचा. सीरिया में ईरान असद का साथ देने लगा. कई तरह की जंग होने लगी.

2013 में फिर तैयारी शुरू की ईरान को बदलने की, पर वक्त ने साथ नहीं दिया

अकबर हाशमी हसन रुहानी के साथ
अकबर हाशमी हसन रुहानी के साथ

2013 में रफसंजानी ने फिर से खुद को प्रेसिडेंट के लिए तैयार करना शुरू किया. पर गार्जियन काउंसिल ने इनको डिस्क्वालिफाई कर दिया. हालांकि रफसंजानी एक कमिटी में बने थे. ये कमिटी अगला सुप्रीम लीडर चुनेगी. खमेनी के बीमार पड़ने के बाद रफसंजानी का प्रभाव यहां बढ़ने लगा था. गार्जियन काउंसिल ने इस कमिटी का अध्यक्ष एक और कट्टरपंथी अयातुल्ला अहमद जन्नाती को चुन लिया. पर उसी वक्त रफसंजानी के मित्र रहे हसन रुहानी को प्रेसिडेंट का पद मिल गया. अब ईरान कट्टरपंथ, मॉडर्निटी और करप्शन से मिला-जुला बड़े रोचक दौर में पहुंच गया था. हर ग्रुप के पास बराबर ताकत हो गई थी. पर रफसंजानी का मॉडरेट ग्रुप थोड़ा भारी पड़ता नजर आया. इसकी बानगी दिखी अमेरिका के साथ हुए ऐतिहासिक न्यूक्लियर डील में. ईरान ने बम बनाने से खुद को रोक लिया. अमेरिका ने इकॉनमिक सैंक्शन कम कर दिये. बराक ओबामा इसके लिए बहुत उतावले रहे थे इन दिनों.
अभी सब कुछ ठीक नहीं हुआ है. इसी बीच रफसंजानी मर गये. तो ईरान एक ऐसे मोड़ पर है, जहां से ये कहीं भी जा सकता है. रफसंजानी की कमी अभी इनको सबसे ज्यादा खलेगी.
ये स्टोरी ऋषभ ने की थी.

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