2100 पन्नों की चार्जशीट.
कहानी जासूस कूमर नारायण की, जिसकी जासूसी ने राजीव गांधी सरकार को हिला दिया था
ब्लैक लेबल शराब की बोतल देकर देश के सीक्रेट्स खरीदे गए थे.

वो मामला जो आज़ाद भारत के सबसे बड़े जासूसी कांडों में से एक माना गया. (तस्वीर: इंडिया टुडे)
188 गवाह.
तत्कालीन प्रधानमंत्री के सेक्रेटरी से जुड़े कर्मचारी.
भारत के डिफेन्स सीक्रेट्स.
एक जासूस.
बीस सालों तक चला मामला.
कहानी है कूमर नारायण की. वो जासूस, जिसने सरकारी अफसरों के आस-पास इतना गहरा जाल बुना कि उन्हें पता तक न चल सका. और जब भांडा फूटा, तो सरकार की चूलें हिल गईं.
कौन था कूमर नारायण?
चित्तर वेंकट नारायण. कूमर नारायण के नाम से जाना गया. बॉम्बे की एक इंजीनियरिंग और ट्रेडिंग कंपनी का अधिकारी. केरल के वडक्कनचेरी में पैदा हुआ. 18 साल की उम्र में आर्मी की पोस्टल सर्विस में हवलदार बना. छह साल बाद उस सर्विस से निकला तो S L M Maneklal इंडस्ट्रीज में रीजनल मैनेजर बन गया. रिपोर्ट्स बताती हैं कि वो वाणिज्य मंत्रालय के साथ ऊंचे पद पर मौजूद एक सिविल सर्वेंट रहा. इस वजह से उसकी जान-पहचान सरकारी महकमे में बढ़ गई. जब मानेकलाल इंडस्ट्री के रीजनल पद पर उसने काम करना शुरू किया, तब से लेकर तकरीबन 20 साल तक, उसने अलग-अलग देशों के अधिकारियों को भारत के डिफेन्स सीक्रेट बेचे.
इस मामले ने कूमर को रातों-रात लाइमलाईट में ला दिया. (तस्वीर: इंडिया टुडे)
उसकी कंपनी का ऑफिस दिल्ली में हेली रोड पर था. वहीं पर अक्सर सरकारी अधिकारियों का जमावड़ा लगता था, जहां से जानकारी धीरे-धीरे फिसल कर कूमर के हाथों में आती थी. फिर इसका इस्तेमाल वो अपने बिजनेस को बढ़ाने में करता था. कंपनी पहले टेक्सटाइल के बिजनेस में थी, उसके बाद इंजीनियरिंग के उपकरण भी बनाने लगी और इंडस्ट्रियल रबर का उत्पादन शुरू किया. ये विदेशी कम्पनियों के लिए एजेंट का भी काम करती थी और मरीन उपकरण में डील करती थी. योगेश मानेकलाल इसका मैनेजिंग डायरेक्टर था. रिपोर्ट्स की मानें तो नारायण इस कंपनी में 7000 रुपए की तनख्वाह पाने वाला इम्प्लोयी था. लेकिन उसने अपने कॉन्टेक्ट इतने बढ़ा लिए थे कि कंपनी का हेली रोड ऑफिस एक बहुत बड़े कॉर्पोरेट एस्पियोनाज का केंद्र बन गया था.
हेली रे हेली, क्या था वहां सहेली? ऐसा वैसा कुछ क्या, होता था सहेली?
शाम को लगने वाले जमावड़े में सिविल सर्वेंट आते, महफ़िल जमती. इसी महफ़िल में शराब भी चलती, और बातों का सिलसिला भी. इन सबके दरमियान दोस्तों के बीच बातचीत में कई ऐसी जानकारियां भी शेयर होतीं, जिनका टॉप सीक्रेट होना बेहद ज़रूरी था. समय के साथ नारायण की गाढ़ी दोस्ती जड़ें जमाती गई और भारत के राष्ट्रपति के ऑफिस से लेकर डिफेंस, इकॉनोमिक अफेयर्स, स्पेस इत्यादि महकमों तक फ़ैल गई. अक्सर उसके ऑफिस में आने वाले सिविल सर्वेंट महत्वपूर्ण जानकारियों वाले दस्तावेज अपने साथ लाते थे. नारायण के ऑफिस से एक लड़का वो दस्तावेज लेकर जाता और उन्हें फोटोस्टेट करवा कर ओरिजिनल पेपर वापस कर देता. बाद में नारायण ने अपनी खुद की फोटोकॉपी मशीन खरीद ली थी ताकि लड़के को बाहर भेजने का जोखिम न उठाना पड़े. इसके बदले में वो उन्हें इम्पोर्टेड स्कॉच की बोतल पकड़ा दिया करता.
यही वो दूकान थी जहां से कूमर लड़के को भेजकर फोटोस्टेट करवाया करता था. (तस्वीर: इंडिया टुडे)
70 के दशक में मानेकलाल इंडस्ट्रीज का बिजनेस सोवियत संघ में फैला. वहां कंपनी के बिजनेस के लिए फेवर जुटाने की सोची नारायण ने. वहां और दूसरे देशों जैसे फ्रांस में अपना बिजनेस बढ़ाने के लिए उसने वहां के लोगों को भारत की टॉप सीक्रेट जानकारियां देनी शुरू कीं. इस हाथ ले उस हाथ दे की तर्ज़ पर. 80 के दशक तक आते-आते सोवियत संघ के ईस्टर्न ब्लॉक और फ्रांस में कूमर नारायण कई महत्त्वपूर्ण जानकारियां बेच चुका था. इनमें भारत के न्यूक्लियर प्रोग्राम्स, स्पेस प्रोग्राम्स, इंटेलिजेंस में चल रहे अपडेट्स वगैरह की जानकारी शामिल थी.
Quis Custodiet Ipsos Custodes? (Who will guard the guards?)
रोमन में कहावत है. Quis Custodiet Ipsos Custodes? जिसका मतलब हुआ, रखवालों की रखवाली कौन करेगा? जिन ब्यूरोक्रेट्स के जिम्मे देश के महत्त्वपूर्ण राज दिए गए थे, उन्हीं के हाथों जब उन्हें बेचा जाने लगा, तो कौन रोकता उन्हें? 1982 आते-आते इसकी खबर इंटेलिजेंस ब्यूरो को लग चुकी थी. उस वक़्त इंदिरा गांधी सत्ता में थीं. उन्होंने ख़ास तौर पर निर्देश दिए थे कि प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के सेक्रेटरीज पर ख़ास नज़र रखी जाए. सितंबर 1984 में इंदिरा गांधी को इस स्पाई रिंग के बारे में पूरी जानकारी दे दी गई थी. इस पर और जल्दी कदम उठाए जाते, लेकिन अक्टूबर, 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या ने इस पर चल रहे काम को धीमा कर दिया.इंदिरा के बाद राजीव गांधी सत्ता में आए, नए प्रधानमंत्री के पद पर. उन्हें भी इसकी ब्रीफिंग दी गई. मामले पर और ज्यादा गहरी पकड़ बनाई गई. जिन लोगों के इसमें इन्वोल्व होने की आशंका थी, उन पर कड़ी नज़र रखी जाने लगी. फंदा धीरे-धीरे कसा जा रहा था, ताकि किसी को भनक न लग पाए. विकास खत्री की किताब वर्ल्ड फेमस स्पाई स्कैंडल्स में उन्होंने केस की पूरी जानकारी दी है कि किस तरह कदम-दर-कदम इस पूरे प्लैन को अंजाम दिया गया.

कंपनी का हेली रोड ऑफिस (तस्वीर: इंडिया टुडे)
16 जनवरी, 1985
पूकट गोपालन. प्रधानमंत्री के प्रिंसिपल सेक्रेटरी पीसी एलेक्जेंडर के सीनियर पर्सनल असिस्टेंट. ऑफिस से निकले अपना ब्रीफकेस लेकर. पहुंचे हेली रोड, मानेकलाल इंडस्ट्रीज के ऑफिस. शाम का समय. वहां मौजूद था कूमर नारायण. दोनों बैठे. व्हिस्की का दौर शुरू हुआ.तभी अचानक ऑफिस में पुलिस घुस आई. गोपालन और नारायण को अरेस्ट कर लिया गया. ठीक उसी समय इस मामले में इन्वोल्व बाकी लोगों पर भी दबिश दी जा रही थी. ताबड़तोड़ लोग गिरफ्तार हो रहे थे. गोपालन के ब्रीफकेस की जांच करने पर पता चला कि उनके पास प्रधानमंत्री के ऑफिस से जुड़े तीन बेहद महत्त्वपूर्ण कागज़ात थे.
लेकिन ये तो बस शुरुआत थी.
जांचकर्ताओं की टीम ने जगदीश चन्द्र अरोड़ा को नींद से उठाकर गिरफ्तार किया. जगदीश चन्द्र अरोड़ा उस समय डिफेन्स प्रोडक्शन डिपार्टमेंट के सेक्रेटरी के पर्सनल असिस्टेंट थे. डॉक्टर पीसी एलेक्जेंडर के पर्सनल सेक्रेटरी टीएन खेर को भी गिरफ्तार किया गया. इनके अलावा जिनको उस समय गिरफ्तार किया गया वो थे-
# एस शंकरन- राष्ट्रपति जैल सिंह के प्रेस सेक्रेटरी के असिस्टेंट
# उदय चंद और एके मल्होत्रा- प्रधानमंत्री के सचिवालय के दो असिस्टेंट
# जगदीश तिवारी- इकॉनोमिक अफेयर्स डिपार्टमेंट में सीनियर असिस्टेंट

बायीं तरफ पूकट गोपालन और दायीं तरफ टी एन खेर. (तस्वीर: इंडिया टुडे)
जो कागज़ात बरामद हुए, उन्होंने इंटेलिजेंस ब्यूरो को चौंका कर रख दिया. गोपालन के ब्रीफकेस जो कागज़ात निकले थे, उन पर सीक्रेट लिखा हुआ था. और भी जो कागज़ात बरामद हुए उनमें से कुछ थे:
# रीसर्च एंड एनालिसिस विंग (RAW) की एक रिपोर्ट जो कैबिनेट सचिवालय के डिप्टी डायरेक्टर ने भेजी थी.
# इंटेलिजेंस विभाग के डिप्टी डायरेक्टर द्वारा पीसी एलेक्जेंडर को भेजी गई अत्यंत गोपनीय रिपोर्ट. ये आतंकियों की एक्टिविटीज पर नज़र रखने से जुड़ी जानकारी के बारे में थी.
# डिपार्टमेंट ऑफ स्पेस के सेक्रेटरी यूआर राव द्वारा भेजी गई एक रिपोर्ट जिसमें INSAT सैटेलाईट के बारे में जानकारी थी. ये भी पीसी एलेक्जेंडर को भेजी गई थी.
कुल मिलाकर इस मामले में 13 लोगों को दोषी करार दिया गया. वी के अग्रवाल और अशोक जैदका नाम के दो भारतीय एक्सपोर्टर्स को भी नारायण ने इस मामले में लपेटे में ले लिया. लेकिन बाद में ये छूट गए.
ये मामला इंदिरा गांधी के समय में ही सुलझ जाता, अगर उनकी हत्या न हुई होती तो. (तस्वीर: इंडिया टुडे)
हंगामा बरपा तो क्या हुआ?
माइकल स्मिथ ब्रिटिश लेखक हैं. उन्होंने एक किताब लिखी- The Anatomy of a Traitor: A history of espionage and betrayal. इसमें उन्होंने बताया कि जब 18 जनवरी, 1985 को राजीव गांधी ने इस स्पाई रैकेट के बारे में जानकारी पब्लिक की, उसके बाद पूरे देश में इसको लेकर हड़कंप मच गया. फ्रेंच एम्बेसी के मिलिट्री अटैशे लेफ्टिनेंट कर्नल एलेन बॉली को देश से निकल जाने के लिए कहा गया. प्रधानमंत्री के ऑफिस के हेड पीसी एलेक्जेंडर को उसी वक़्त रिजाइन करने को कहा गया. हालांकि उन्होंने इस बात की जानकारी होने से पूरी तरह इनकार किया. उन पर कोई आरोप नहीं लगाए गए. एलेन बॉली को उनके परिवार सहित एयरपोर्ट छोड़ा गया, जहां से एयर फ्रांस की एक फ्लाईट उन्हें पेरिस ले गई. फ्रांस के राजदूत Serge Boidevaix से ये कहा गया कि उनका देश में स्वागत नहीं है. और भले ही उन्हें निकाला नहीं जाएगा, लेकिन वो अपने जाने की तैयारी कर लें.पोलिश इंटेलिजेंस सर्विस Służba Bezpieczeństwa, के भारतीय प्रतिनिधि जान हाबेरका और उनके साथी ओटो विकर को भी चले जाने को कहा गया. केजीबी (सोवियत संघ की ख़ुफ़िया एजेंसी) के एक अफसर के भेजे जाने की भी अफवाहें थीं, लेकिन जांचकर्ताओं ने कहा कि मॉस्को की तरफ से प्रेशर काफी था. इस मामले में सोवियत संघ से जुड़ी जानकारी दबा लेने का. 1992 में रशियन सरकार ने इस बात की तस्दीक की. कहा कि ये सोवियत संघ की विचारधारा के हक़ में था.
मामले में इंटेलिजेंस ब्यूरो ने दिल्ली के तिलक मार्ग पुलिस स्टेशन में ऑफिशियल सीक्रेट्स एक्ट के तहत FIR दर्ज कराई. पूरे मामले में इंटेलिजेंस ब्यूरो के डिप्टी डायरेक्टर कुमार रूद्र की अहम भूमिका रही.
फरवरी 1986 में इस मामले में चल रही सुनवाई में कूमर नारायण ने अपना अपराध स्वीकार किया. ये भी बताया कि उसने अपनी जासूसी से लगभग एक मिलियन डॉलर कमाए थे. लेकिन उन पैसों का क्या किया, इसका कोई हिसाब नहीं दिया गया. 2002 में कोर्ट का फैसला आया और 13 लोग दोषी करार दिए गए. योगेश मानेकलाल को सबसे लम्बी सज़ा दी गई. 14 साल का सश्रम कारावास. बाकी के 12 लोगों को 10 साल की सज़ा. स्पेशल जज आर के गाबा ने 18 जुलाई 2002 को ये सज़ा सुनाई. जिन लोगों को दोषी करार दिया गया उनमें शामिल थे योगेश मानेकलाल, पी गोपालन, एस शंकरन, जगदीश तिवारी, के के मल्होत्रा, एस एल चांदना, एच एन चतुर्वेदी, जगदीश चन्द्र अरोड़ा, टी एन खेर, अमरीक लाल, स्वामी नाथ राम, किशन चंद शर्मा और वी के पलानिस्वामी. SLM मानेकलाल इंडस्ट्रीज लिमिटेड पर भी एक लाख का फाइन लगाया गया. कोर्ट ने कहा कि योगेश मानेकलाल को अलग से सज़ा इसलिए दी गई है, क्योंकि उसी ने कंपनी के रीजनल ऑफिस को संसाधन उपलब्ध कराए, जिस वजह से ये कंपनी ऐसे षड्यंत्र में शामिल हो सकी.

कूमर को कंपनी की तरफ से सात हजार रुपए माहवार मिलते थे, लेकिन इतने काफी नहीं थे उसके लिए. (तस्वीर: इंडिया टुडे)
इनमें कूमर नारायण का नाम शामिल नहीं था. क्योंकि 2000 में ही कूमर की मौत हो चुकी थी. केस में गिरफ्तारी के कुछ समय बाद बेल मिलने पर उसने सैनिक फ़ार्म, दिल्ली में घर खरीदा था. नारायण की मौत के बाद उसका सैनिक फ़ार्म का घर कई दिनों तक बंद पड़ा रहा, क्योंकि कूमर और उसकी पत्नी गीता नारायण की कोई ज्ञात संतान या उनका वारिस सामने नहीं आया था. 1995 में खरीदे इस घर में गीता नारायण अकेली रहती थी, नारायण की मृत्यु के बाद. लेकिन 2002 में किसी ने उन्हें गला घोंटकर मार डाला था. अंतिम संस्कार में भी उनकी जान-पहचान का या कोई वारिस नहीं आया था.

अपने गार्डन में बैठीं गर्टी (तस्वीर: इंडिया टुडे)
किस्सा गर्टी वाल्डर उर्फ़ गीता नारायण और उनके वारिस का
कूमर नारायण के इस केस का अंत उसकी पत्नी की मौत के साथ नहीं हुआ. इसका पटाक्षेप होना था तकरीबन 15 साल बाद. इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि किस तरह गीता की मौत के कई साल बाद पुलिस ये पता लगाने में कामयाब रही कि गीता नारायण अपनी शादी से पहले गर्टी वाल्डर के नाम से जानी जाती थी. मैंगलोर की रहने वाली थी. गिल्बर्ट वाल्डर नाम के एक इंसान के साथ उसका एक बेटा हुआ, जिसका नाम एडविन डिसूजा रखा गया. दो महीने के अपने बच्चे को अपनी मां जूलियाना के पास छोड़कर गर्टी बॉम्बे चली गई. अपने बेटे के लिए पैसे भेजती रही. काफी समय तक एडविन को यही पता था कि जूलियाना उसकी मां है और गर्टी उसकी बड़ी बहन. उसने ये कुबूल किया कि वो अपनी मां के साथ कभी वो रिश्ता महसूस नहीं कर पाया. जब कुछ समय के लिए गर्टी ने उसे अपने पास दिल्ली बुला लिया, तब भी वो वहां रह नहीं पाया और वापस भाग आया. इधर-उधर छोटे-मोटे क्राइम किए. उसके बाद रियल एस्टेट डीलर बना और उसी से अपनी कमाई चलाई.दिल्ली से भाग आने के बाद एडविन अपनी मां से कभी नहीं मिला. आई तो सालों बाद बस ये खबर कि वो दस करोड़ की प्रॉपर्टी का मालिक बन गया है. गर्टी वाल्डर, उर्फ़ ग्रेट वाल्डर, उर्फ़ गीता नारायण का इकलौता वारिस होने के नाते.वीडियो:ग्रेटा थुन्बैरी, वो लड़की जिसने एक सवाल से पूरी दुनिया में धूम मचा दी है