केंद्र सरकार के कुछ आदेशों पर बहस हो रही है. और इस बहस में कांग्रेस आरोप लगा रही कि केंद्र फौज का और तमाम ब्यूरोक्रेट्स का अपने प्रचार के लिए इस्तेमाल करने पर आमादा है. और सरकार ने विपक्ष के इन आरोपों पर कहा है कि सरकार की योजना लोगों तक पहुंचे, इसमें गलत क्या है.
कांग्रेस का आरोप, 'आर्मी के जवानों से बीजेपी अपना प्रचार करवा रही', बीजेपी ने क्या कहा?
डेढ़ महीने के भीतर सरकारी विभागों और आर्मी ट्रेनिंग सेंटर से ऐसे लेटर जारी किये गए, जिनको पढ़ें तो लगता है कि ब्यूरोक्रेट्स और सैनिकों से सरकारी स्कीमों का प्रचार करवाया जाएगा. और इस पर राजनीति हो रही है. कांग्रेस ने इसे लेकर हमला किया है और भाजपा की तरफ से आया है जवाब.


इस मुद्दे को समझने के लिए सरकार के उन बहसतलब आदेशों को जान लेते हैं -
पहले आदेश की तारीख - 17 अक्टूबर, 2023. ये आदेश DoPT यानी डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनल एंड ट्रेनिंग की तरफ से जारी किया गया था.
किनसे संबंधित था - ज्वाइंट सेक्रेटरी, डिप्टी सेक्रेटरी, डायरेक्टर की रैंक तक के सिविल सेवा के अधिकारियों से.
इस आदेश में कहा गया कि उक्त रैंक के अधिकारियों को जिला रथ प्रभारी बनाया जाएगा. और इनकी तैनाती देश के 765 जनपदों में होगी, जिसमें आएंगी 2.69 लाख ग्राम पंचायतें. ये सभी जिला रथ प्रभारी भारत सरकार द्वारा आयोजित विकसित भारत संकल्प यात्रा में हिस्सा लेंगे. ये यात्रा 20 नवंबर 2023 से 25 जनवरी 2024 तक चलेगी.
इस यात्रा में अधिकारी क्या करेंगे? प्लानिंग करेंगे, तैयारी करेंगे, इसको अंजाम तक पहुंचाने में मदद करेंगे. साथ ही वो सरकार की 9 साल की उपलब्धियों का प्रदर्शन करेंगे और उनका जश्न मनाएंगे. आदेश में Showcasing और Celebration जैसे शब्दों का उपयोग किया गया है. अब ये आदेश आने के बाद सरकार के सभी मंत्रालयों में चिट्ठियां दौड़ने लगी हैं और फोन घनघनाने लगे हैं कि सभी विभाग अपने यहां से अधिकारियों की लिस्ट तैयार करें, जिन्हें रथ प्रभारी बनाया जाएगा.
अब बारी आती है दूसरे आदेश की.
तारीख - 2 सितंबर 2023
इस दिन एक चिट्ठी आर्मी के Ceremonials and Welfare Directorate of the Adjutant General’s Branch से जारी हुई.
इस चिट्ठी में सैनिकों से सलाह दी गई थी कि अगर वो छुट्टी ले रहे हैं तो वो छुट्टी में समाजसेवा करें. और आर्मी के "राष्ट्रनिर्माण के प्रयासों" में शामिल हो.
अब जानिए कि कैसे राष्ट्र निर्माण और कैसी समाजसेवा की बात हो रही है. हिंदुस्तान टाइम्स की खबर के मुताबिक, सैनिक जब छुट्टी पर अपने घर-गांव जाएं तो वो स्थानीय लोगों के साथ समय बिताऐं, और उन्हें सरकार की स्कीमों के बारे में बताएं.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक विभाग ने अपने स्तर पर तर्क भी दिया है. कहा कि सैनिकों को छुट्टी इसलिए दी जाती है ताकि वो अपने परिवार के साथ वक्त बिता सकें. और अपने व्यक्तिगत कामों को अंजाम दे सकें. लेकिन सैनिकों के पास इसकी गुंजाइश भी है कि अपनी छुट्टी के दरम्यान सैनिक अपनी लोकल कम्यूनिटी से एक रचनात्मक संवाद भी कर सकते हैं. इस संवाद के प्वाइंट होंगी सरकार की स्कीमें. मसलन,
स्वच्छ भारत अभियान
सर्व शिक्षा अभियान
राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान
आयुष्मान भारत योजना
जन औषधि केंद्र
सैनिक अपनी छुट्टी में इन स्कीमों पर बात कर सकें, इसके लिए शिमला में मौजूद आर्मी ट्रेनिंग कमांड स्क्रिप्ट लिख रहा है. ये स्क्रिप्ट्स सैनिकों को सौंप दी जाएंगी. इन्हें लेकर वो अपने देस-गांव की यात्रा करेंगे. लेटर में ये भी कहा गया है कि सैनिक गांव के प्राइमरी स्कूल में भी भाषण दे सकते हैं. वृद्धाश्रम में काम कर सकते हैं. रक्तदान कैंप में भी हिस्सा ले सकते हैं. स्कीमों का प्रचार करने वाले इन लोगों को "सोल्जर-एम्बेसडर" कहा जाएगा. सैनिकों के इस काम की तिमाही समीक्षा होगी. सभी दावों के फ़ोटो-वीडियो प्रमाण होने चाहिए.
आपने जाना कि सरकारी चिट्ठियों में लिखा क्या है. अब जानते हैं कि विवाद क्या हो रहा है. कांग्रेस अध्यक्ष मलिकार्जुन खड़गे ने एक्स पर एक 22 अक्टूबर को एक लेटर पोस्ट किया. प्रधानमंत्री मोदी के नाम लिखे गए इस लेटर में उन्होंने कहा कि ये आदेश अधिकारियों और सैनिकों को पार्टी वर्कर बना देंगे. उनकी बातों को प्वाइंट में जानिए -
1- ज्वाइंट सेक्रेटरी-डिप्टी सेक्रेटरी स्तर तक के अधिकारियों को रथ प्रभारी बनाया जा रहा है, उन्हें सरकार की 9 साल की उपलब्धियों का प्रचार करने को कहा जा रहा है. ये बात भी साफ है कि ये 9 साल आपके (यानी पीएम मोदी के) कार्यकाल हैं.
2 - ये 1964 के सेंट्रल सर्विस कन्डक्ट रूल का उल्लंघन है, जिसमें कहा गया है कि कोई भी सरकारी अधिकारी किसी राजनीतिक गतिविधि में शामिल नहीं होगा. सरकारी अधिकारी सूचना तो दे सकते हैं. लेकिन अगर वो उपलब्धियों की प्रदर्शनी लगा रहे हैं, उसका जश्न मना रहे हैं, तो ये उन्हें सत्ताधारी पार्टी का वर्कर बना देती है.
3 - अधिकारियों को 9 साल की उपलब्धियों का जश्न मनाने देने का मतलब ये है कि ये आदेश लोकसभा चुनाव और पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखकर जारी किया गया आदेश है.
4 - अगर ब्यूरोक्रेट्स सरकार की मार्केटिंग करेंगे तो हमारे देश का गवर्नन्स अगले 6 महीने के लिए पूरी तरह से ठप पड़ जाएगा.
5 - सरकार सैनिकों को सोल्जर-एम्बेसडर बनाना चाह रही है, ताकि सैनिक अपनी छुट्टी में सरकार की स्कीमों को प्रोमोट करें. जबकि सरकारों का फोकस सैनिकों की ट्रेनिंग पर होना चाहिए.
6 - सैनिकों को पॉलिटिक्स से दूर रखना चाहिए.
इसका जवाब दिया भाजपा अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने. उन्होंने एक्स पर लिखा,
"पब्लिक सर्विस डिलीवरी सरकार की ड्यूटी है, लेकिन हो सकता है कि ये कांग्रेस पार्टी के लिए किसी दूसरे ग्रह की बात हो. अगर मोदी सरकार ये चाह रही है कि सरकार की स्कीमों का प्रचार हो और ज्यादा से ज्यादा लोगों को इसका लाभ मिले, तो शायद ही कोई गरीबों का हितैषी होगा, जिसे सरकार के इस कदम से दिक्कत होगी. लेकिन कांग्रेस पार्टी गरीबों को गरीब रहने देना चाहती है. इसलिए वो सरकार के इस कदम के खिलाफ है."
इसके बाद उन्होंने एक्स पर एक और पोस्ट लिखा
"ये बात मुझे विचलित करती है कि कांग्रेस पार्टी को इस बात से भी दिक्कत है कि पब्लिक सर्वेन्ट ग्रासरूट तक जा रहे हैं, और ये बात सुनिश्चित कर रहे हैं कि स्कीम हर जगह तक पहुंचे. अगर ये गवर्नन्स का बेसिक पार्ट नहीं है तो और क्या है?"
अब सैनिकों वाली बात. क्या बहस्तलब आदेश से सैनिक राजनीति में उतर रहे हैं? क्या उनकी छुट्टी में सरकार उनसे प्रचार करवाना चाह रही है? इसमें दिक्कतें क्या हैं? और सैनिकों को ये काम करना चाहिए?
लेफ्टिनेंट जनरल HS पनाग (रिटायर्ड) एक आर्टिकल में इन सवालों का जवाब देते हैं. दी प्रिंट में प्रकाशित अपने 7 सितंबर के आर्टिकल में कहते हैं कि सैनिकों को जो चिट्ठी लिखी गई है, वो भले ही सलाह-सुझाव की भाषा में है, लेकिन आर्मी के व्याकरण में इसे 'अनिवार्य" माना जाएगा. सैनिक इसका पालन करने के लिए बाध्य होंगे . HS पनाग ने ये भी लिखा है कि वरिष्ठ अधिकारियों ने इस बात को मान रखा है कि सेना के जवानों के पास उनकी छुट्टी में भी बहुत सारा समय होता है. और उस छुट्टी में वो अपने गांवगिरात के स्थानीय लोगों से आराम से बातचीत कर सकते हैं. लेकिन गांवों-पंचायतों का माहौल बहुत ज्यादा राजनीतिक होता है. अगर सैनिक अपने गांव वगैरह में बहस में उतरते हैं, तो ज्यादा संभावना है कि वो कान्फ्लिक्ट वाली स्थिति में आ जाएंगे. कुछ राजनीतिक संगठन सैनिकों का फायदा भी उठा सकते हैं. उन्होंने ये भी लिखा कि ये सेना के राजनीतिकरण की दिशा में एक और कदम है.
आशा है कि सैनिक अपनी पूरी चेतना और अपनी पूरी शिद्दत के साथ अपनी ड्यूटी पर रहें. कोई आदेश या सुझाव ऐसा न हो, जो उन्हें रोके. जो उन्हें और उनके एक्शन को किसी खांचे में बिठाए. इस उम्मीद के साथ चलते हैं अगली खबर पर.
अगली बड़ी खबर में बात कुत्तों से जुड़ी हुई
संदर्भ है वाघ बकरी चाय के कार्यकारी निदेशक पराग देसाई की मौत. वो अहमदाबाद में रहते थे. 15 अक्टूबर के दिन घर से वॉक पर निकले थे, सड़क के कुत्तों ने दौड़ाया. बचने के लिए भागे. गिर पड़े. सिर पर चोट आई. भर्ती करने पर ब्रेन हेमरेज का पता चला. उन्हें शहर के जाइडस अस्पताल में भर्ती कराया गया. लगभग 7 दिनों तक उन्हें बचाने की कोशिश की गई. लेकिन 22 अक्टूबर को देर रात उनकी मौत हो गई.
23 अक्टूबर को दिन भर खबरें चलीं कि पराग देसाई को कुत्तों ने काट खाया था. लेकिन जैसे ही दिन ढलना शुरू हुआ, उनके मौत के कारण साफ हुए. लेकिन पराग देसाई की मौत में कुत्ते विलेन बन गए थे. लिहाजा "आवारा कुत्तों का बढ़ता आतंक" टाइप के कीवर्ड फिर से मजबूत हो गए. लेकिन कीवर्ड की आंधी में मुद्दा समझने की जरूरत है. आवारा कुत्तों का स्केल कितना बड़ा है? क्या ये सचमुच आतंक की परिभाषा गढ़ते हैं? अगर हां तो इनसे कैसे बचें? काटे तो क्या करें? न काटे उसके लिए क्या करें? इनके साथ जियें कैसे?
पहले समस्या का स्केल जानिए.
अक्सर छिटपुट और रोचक घटनाओं को आतंक और उसका स्केल मान लिया जाता है. लेकिन आंकड़े एक अलग सीन पेश करते हैं. साल 2021 में पेट होमलेसनेस इंडेक्स ने अनुमान लगाया था कि भारत में कितने आवारा कुत्ते हो सकते हैं. तब ये संख्या लगभग 6.2 करोड़ के आसपास आई थी. देश की जनसंख्या के सापेक्ष देखें तो यह 100 लोगों पर लगभग पांच कुत्तों का अनुपात है. WHO ने मानक दिया है कि किसी देश में 100 लोगों पर तीन कुत्ते होने चाहिए. ऐसे में अपने यहां के आंकड़े उस मानक से दो कुत्ते ऊपर है.
लेकिन भारत में कुत्तों की आबादी में गिरावट भी दर्ज की जा रही है. साल 2022 में लोकसभा में पेश आंकड़ों के मुताबिक, 2012 से 2019 तक उनकी आबादी में देश भर में इनकी संख्या में 10 फीसद की गिरावट दर्ज की गई थी. ऐसा कैसे संभव हो रहा है? क्योंकि देश के कई इलाकों में आवारा कुत्तों की नसबंदी की जा रही है. नसबंदी के बाद कुत्ते प्रजनन नहीं कर सकते, वंश नहीं बढ़ा सकते. लिहाजा उनकी आबादी गिरने लगती है.
इस नसबंदी के और भी फायदे हैं. इनसे हमला रोकने में मदद मिलती है. पेटा के अधिकारी मीत अशर इंडिया टुडे मैगजीन से बातचीत में कहते है कि कुत्तों की नसबंदी करने से उनके सेक्स हार्मोन में कमी आती है, जिससे उनकी आक्रामकता भी कम होती है. और इससे उनके हमले और झगड़े कम होते हैं. लेकिन गली के कुत्तों नसबंदी में मुसीबत भी है. उन्हें पकड़ना आसान काम नहीं होता. लोग विरोध भी करते हैं. भोपाल में कुत्तों की नसबंदी करने वाली एजेंसी नवोदय के पशु चिकित्सक डॉ. उमेश भास्कर कहते हैं,
''कभी-कभी कुत्ता प्रेमी जानवरों को नसबंदी के लिए ले जाने का विरोध करते हैं. वे जानना चाहते हैं कि कुत्तों को कहां ले जाया जा रहा है और वे कब वापस आएंगे. लोगों को यह बताने के लिए अधिक जागरूकता चाहिए कि आवारा कुत्तों के बेहतर भविष्य के लिए उनकी नसबंदी सबसे अच्छा उपाय है.''
अब बात करते हैं कुत्तों के हमले की. वो हमला करते क्यों हैं? विशेषज्ञ कहते हैं कि कुत्तों को अगर लगता है कि उन पर खतरा है, या कोई हमला होने वाला है, तो वो हमला करते हैं. या अपने शिकार को दौड़ा लेते हैं. विशेषज्ञ बताते हैं कि खतरों को लेकर कुत्तों की समझ अक्सर उनके ऊपर या उनके साथियों पर हुए पास्ट में हमलों की याद से विकसित होती है. कोई खास कपड़ा पहने या गाड़ी लिए कुछ लोग अगर किसी कुत्ते को कुचलते या मार देते हैं, तो कुत्ते अक्सर उसी कपड़े-गाड़ी वाले लोगों को दौड़ा लेते हैं. उन पर हमला करने की कोशिश करते हैं. कई बार कुत्ते ऐसे लोगों को बस डराकर अपनी टेरिटरी से भगा देना चाहते हैं. उन पर हमला करने की उनकी कोई ख्वाहिश नहीं होती है.
आवारा कुत्तों से कैसे बचें?उन पर न तो कुछ फेंकें, न उन्हें दौड़ाएं. चिल्लाकर, आवाज तेज करके, हाथ ऊपर उठाकर उन्हें डराने की कोशिश न करें. इससे वे चौंक जाएंगे और घबरा करके आक्रामक हो सकते हैं. बच्चों को भी यह बात अच्छी तरह से समझाएं कि वो आवारा कुत्तों से दूरी बनाकर चलें. कुत्ते बिना उकसाए हमला नहीं करते. पहले तो उन्हें उकसाए नहीं. फालतू में छेड़ें न. फिर भी अगर आप गुर्राते कुत्ते के सामने पड़ जाएं तो भागें नहीं. तनकर खड़े रहें, उसे महसूस कराएं कि आप डर नहीं रहे और फिर धीरे-धीरे वहां से हटें. जरूरत पड़े तो किसी को मदद के लिए बुलाएं. ज्यादा लोगों के दिखने पर कुत्ते अमूमन खिसक लेते हैं.
पालतू कुत्ते घरों में रहते हैं. आवारा कुत्ते सड़कों पर रहते हैं और उनका जीवन और प्राथमिकताऐं अलग होती हैं. उनसे दोस्ती बेहद सावधानी के साथ करें. आप उन्हें पुचकारें. अगर वो नजदीक आते हैं तो उनके किसी अंग को न छेड़ें, खासकर पूंछ को. अगर कुत्ता पूंछ हिलाते हुए आपके पास आता है तो सबसे पहले घबराना बंद कर दें. आप सहज महसूस कर रहे हैं तो बेहद धीमे से प्यार करें. बेहद सावधानी से ही उसे हाथ लगाएं. आप अगर सहज महसूस नहीं करते तो उसे डराने या धमकाने की बजाए बस धीरे-धीरे चलते जाएं. कुत्ते अपने इलाके के बाहर पीछा नहीं करेंगे.
कुछ लोग कुत्तों से डरते हैं, लेकिन कुछ लोग कुत्तों से बहुत प्यार करते हैं. उनके साथ खेलते हैं, उन्हें रोटी खिलाते हैं. इन लोगों से मदद मांगें, इनसे बातें करें. ये लोग कुत्तों के पास से गुजरने में आपकी मदद करेंगे. आपका डर भी कम करेंगे. अगर इतनी सावधानी के बाद भी आवारा कुत्तों ने आपको दांत या नाखून लगा दिए हैं. तो बिना देर के नजदीकी अस्पताल जाएं, इमरजेंसी में विज़िट करें. डॉक्टरी सलाह पर ही आगे बढ़ें. और हां. कुत्तों या आवारा जानवरों पर बेवजह अटैक न करें. उन्हें मारें या डराए नहीं. देश में पशु क्रूरता कानून है. आपको इस कानून के तहत सजा भी हो सकती है. साथ जीना सीखें.












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