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पत्रकार की गिरफ्तारी पर भिड़ी दो राज्यों की पुलिस, सही कौन?

'काली पोस्टर' मामले में दिल्ली और यूपी में दर्ज हुई FIR.

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यूपी पुलिस और छत्तीसगढ़ पुलिस के बीच हुई नोक-झोंक का दृश्य (फोटो: ट्विटटर्)

इन दिनों भारत में जो हो रहा है, उसने पुलिस और उसके काम करने के तरीके को लेकर हमारी समझ को गड्ड-मड्ड कर दिया है. पुलिस किसी आरोप में फलां व्यक्ति को गिरफ्तार करेगी या नहीं, इसमें आरोपी के रसूख की भूमिका हमेशा से थी, और इसे लेकर एक मौन स्वीकार्यता भी. लेकिन अब एक नया सवाल खड़ा हो गया है - कौनसे राज्य की पुलिस किसे, कहां से गिरफ्तार कर सकती है, या नहीं कर सकती है? इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि FIR या वॉरंट है या नहीं. आरोपी की गिरफ्तारी तभी हो सकती है, जब उसे गिरफ्तार होने दिया जाएगा. दो राज्यों की पुलिस के बीच सहयोग और असहयोग के इस खेल को हमने कई बार कैमरों पर देख लिया है. आज भी ऐसा ही हुआ. इसीलिए दी लल्लनटॉप शो में हम कुछ उदाहरणों से ये समझने की कोशिश करेंगे कि क्या भारत में राजनैतिक दल अपने हितों के लिए पुलिस-पुलिस खेल रहे हैं. सवाल प्रक्रिया को लेकर भी होंगे और परंपरा को लेकर भी. और सबसे बड़ा सवाल - नैसर्गिक न्याय का.   

1978 की सूपरहिट फिल्म ''डॉन'' का एक डायलॉग बड़ा मशहूर हुआ था. जब डॉन चारों तरफ से पुलिस से घिरा होता है, तब वो सोनिया से कहता है,  

''डॉन का इंतज़ार तो 11 मुल्कों की पुलिस कर रही है. लेकिन सोनिया, एक बात समझ लो. डॉन को पकड़ना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है.''   

सिनेमा पर अपराध और अपराधियों के महिमामंडन के जितने आरोप लगाए जाएं, लेकिन ''डॉन'' एक बात को लेकर बड़ी स्पष्ट थी. कानून तोड़ने वाले आरोपी एक तरफ और पुलिस दूसरी तरफ. और सिर्फ एक नहीं, सलीम-जावेद के लिखे के मुताबिक, 11-11 मुल्कों की.

लेकिन 1978 से लेकर 2022 तक गंगा जी में बहुत पानी बह गया है. और अब 11 मुल्कों की पुलिस तो क्या, दो राज्यों की पुलिस भी साथ काम नहीं कर पाती. खासकर तब, जब दोनों राज्यों में अलग-अलग पार्टी की सरकारें हों. कौन गिरफ्तार होगा और कौन नहीं, ये अब इस बात पर निर्भर नहीं करता कि आरोप क्या है. ये अब इस बात पर निर्भर करता है कि आरोपी कौन है और उसे गिरफ्तार कौन करना चाहता है. पुलिस और पार्टी वाला परम्यूटेशन-कॉम्बिनेशन इतना स्पष्ट और सरल है कि आप वारंट आने से पहले बता सकते हैं कि फलां आरोपी की गिरफ्तारी फलां मामले में आसान है, मुश्किल है या फिर डॉन की तरह नामुमकिन. और मज़े की बात ये कि इन सब में गिरफ्तार करने वाली भी पुलिस होती है, और गिरफ्तार में अड़ंगा लगाने वाली भी पुलिस होती है. एक लंबी सूची है - मुहम्मद ज़ुबैर, जिग्नेश मेवाणी, तेजिंदर बग्गा, रिया चक्रवर्ती और अब रोहित रंजन. किरदार के साथ कार्रवाई ही बदल जाती है. शुरुआत करते हैं रोहित के मामले से.

रोहित रंजन एक निजी समाचार चैनल में एंकर हैं. उन्हें गिरफ्तार करने को लेकर आज छत्तीसगढ़ पुलिस और उत्तर प्रदेश के दो-दो ज़िलों की पुलिस के बीच जो खींचतान हुई, वो वायरल वीडियो के शक्ल में दिन भर आपके सामने आती रही. लेकिन इस खींचतान पर आने से पहले आपको इसकी भूमिका समझनी होगी. 

24 जून के रोज़ दोपहर 4 बजे के करीब केरल के वायनाड ज़िले में सांसद राहुल गांधी के दफ्तर पर बलवाइयों ने हमला कर दिया. कांग्रेस ने आरोप लगाया कि दफ्तर में तोड़फोड़ करने वाले बलवाइयों के हाथ में स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया SFI के झंडे थे. इस घटना ने पूरे देश में खबर इसलिए भी बनाई कि जब नुकसान का जायज़ा लिया गया, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की तस्वीर फर्श पर पड़ी मिली.

दर्शक जानते ही हैं कि SFI, भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) माने CPM का छात्र संगठन है. अब केरल में पिनरई विजयन जो लेफ्ट डेमोक्रैटिक फ्रंट सरकार चला रहे हैं, CPM उसका सबसे बड़ा घटक दल है. तो इस हमले को सत्ताधारी दल द्वारा विपक्षी पार्टी के नेता पर हमले की तरह लिया गया. 1 जुलाई को जब राहुल गांधी वायनाड पहुंचे, तब उनसे दफ्तर पर हमले के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने अपने बयान में कहा, 

'' they are kids, I dont think that they understand the consequences of these type of things.''

मतलब - ये बच्चे हैं. मुझे नहीं लगता कि वो ऐसी चीज़ों के परिणाम को समझते हैं. इसीलिए इन्हें माफ कर देना चाहिए.

लेकिन 1 जुलाई के ही रोज़ रोहित रंजन ने अपने बुलेटिन में इन वाक्यों को उदयपुर में कन्हैया लाल की हत्या से जोड़कर दिखा दिया. और सवाल किया कि उदयपुर के हत्यारे बच्चे हैं या फिर आतंकवादी. इस खबर को भाजपा सांसद राज्यवर्धन सिंह राठौड़, सुब्रत पाठक तथा अन्य कई लोगों ने ट्वीट भी कर दिया था.

कांग्रेस 1 जुलाई की रात को ही इसे लेकर एक्टिव हो गई. कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को एक खत लिखकर शिकायत की, कि भाजपा नेता फेक न्यूज़ फैला रहे हैं. इसके अलावा कांग्रेस के मीडिया और प्रचार विभाग के अध्यक्ष पवन खेड़ा और सोशल मीडिया सेल की अध्यक्षा सुप्रिया श्रीनेत जैसे नेताओं ने ट्विटर पर एक फैक्ट चेक वीडियो पोस्ट किया. और लिखा कि कानूनी कार्यवाही की जाएगी.

2 जुलाई को रोहित के चैनल ने अपनी खबर को वापिस ले लिया. और ऑन एयर खेद प्रकट कर लिया. अब तक जिन लोगों ने इस खबर को ट्वीट किए थे, उन्होंने भी धड़ाधड़ अपनी टाइमलाइन की सफाई शूरू कर दी. लेकिन कांग्रेस इतनी जल्दी इस बात को शांत होने देने के मूड में थी नहीं. तो पार्टी ने देश के अलग-अलग हिस्सों में FIR दर्ज करवानी शुरू की, जिसकी चपेट में भाजपा नेता भी आए. ऐसी ही एक FIR कांग्रेस विधायक देवेंद्र यादव ने भी दर्ज कराई थी. इसी के संबंध में छत्तीसगढ़ पुलिस आज सुबह रोहित रंजन को गिरफ्तार करने पहुंच गई.

आपने भूमिका समझ ली, अब आते हैं ड्रामे पर. सुबह सवा छह बजे रोहित ने ट्वीट करके बताया कि छत्तीसगढ़ पुलिस बिना स्थानीय पुलिस को जानकारी दिए उन्हें गिरफ्तार करने आ गई. इस ट्वीट में रोहित ने योगी आदित्यनाथ, एसएसपी गाज़ियाबाद और लखनऊ ज़ोन के एडीजी को भी टैग किया. सुबह 8 बजे इसका जवाब देते हुए रायपुर पुलिस ने लिखा कि जानकारी देने का नियम नहीं है. फिर भी जानकारी दी गई है. आपको वॉरंट दिखा दिया गया. आप सहयोग करें और न्यायालय में अपना बचाव करें.

साढ़े 8 बजे के करीब गाज़ियाबाद पुलिस ने भी रोहित के ट्वीट पर जवाब दिया. कहा कि प्रकरण स्थानीय थाने के संज्ञान में है और इंदिरापुरम पुलिस मौके पर भी है. विधिसम्मत कार्यवाही की जाएगी.

इसके बाद जो कुछ हुआ, वो हम आपको मीडिया रिपोर्ट्स के हवाले से ही बताएंगे. दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के मुताबिक रोहित की गिरफ्तारी को लेकर गाज़ियाबाद पुलिस और रायपुर पुलिस के बीच खींचतान हुई. प्रक्रिया को लेकर बहस चलती रही. इस बीच नोएडा पुलिस वहां पहुंची और कहा कि उनके इलाके में रोहित के खिलाफ केस दर्ज है. इसके बाद नोएडा पुलिस रोहित को हिरासत में लेकर चली गई. भास्कर ने ये भी लिखा कि रोहित के खिलाफ नोएडा पुलिस के यहां केस कब दर्ज हुआ, ये अफसरों ने नहीं बताया.

दैनिक भास्कर ने एक खबर रायपुर से भी प्रकाशित की है. इसमें रायपुर के एसएसपी प्रशांत अग्रवाल के हवाले से लिखा गया कि रोहित की गिरफ्तारी के वक्त स्थानीय पुलिस ने बाधा उत्पन्न की. 
सोशल मीडिया पर कुछ वीडियो भी मौजूद हैं, जिनमें नज़र आता है कि छत्तीसगढ़ पुलिस के अफसरों की आईडी पर भी सवाल उठाया गया. अखबार ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि दोनों सूबों की पुलिस के बीच धक्का मुक्की में रायपुर के CSP उदयन बेहार की कॉलर भी पकड़ी गई.

अब इंडियन एक्सप्रेस की इस खबर पर गौर कीजिए. इसमें एक पुलिस सूत्र के हवाले से नोएडा पुलिस का पक्ष लिखा गया है. खबर के मुताबिक रोहित के चैनल ने राहुल गांधी के वीडियो के संबंध में अपने कर्मचारियों के खिलाफ तहरीर दी है. चूंकि रोहित एंकर थे, इसीलिए उन्हें पूछताछ के लिए हिरासत में लिया गया है. तो आपने देखा कि इस पूरे प्रकरण ने कितनी बार गुलाटी खाई है. ये दो राज्यों की पुलिस के बीच असहयोग का उदाहरण है. अब आपको कुछ और उदाहरण देते हैं, जिनमें आप सहयोग-असहयोग का पैटर्न समझ पाएंगे -

> अगस्त 2020. सुशांत सिंह राजपूत की मृत्यु के बाद अलग अलग एंगल पर जांच शुरू हुई. कभी हत्या, तो कभी आत्महत्या तो कभी ड्रग्स. उन दिनों बिहार चुनाव के लिए माहौल गर्म था. तो मामले में बिहार पुलिस की एंट्री हुई. बिहार में एक एफाईआर दर्ज हुई और इस संबंध में जांच के लिए बिहार पुलिस की टीम पटना एसपी विनय तिवारी के नेतृत्व में मुंबई पहुंची. लेकिन यहां बृहन्नमुंबई महानगर पालिका ने कोरोना गाइडलाइन के नाम पर उन्हें क्वारिंटीन कर दिया. ये असहयोग का उदाहरण है.

> 20-21 अप्रैल की दरम्यानी रात असम पुलिस गुजरात पहुंची और वडगाम से विधायक जिग्नेश मेवाणी को प्रधानमंत्री मोदी को लेकर किए एक ट्वीट के संबंध में गिरफ्तार कर लिया. और पुलिस आसानी से जिग्नेश को अपने साथ असम ले भी गई. ये सहयोग का उदाहरण है.
अगले उदाहरण पर चलते हैं.

> 6 मई 2022. पंजाब पुलिस की एक टीम भाजपा नेता तेजिंदर बग्गा को गिरफ्तार करने के लिए दिल्ली आई. बग्गा को लेकर  रवाना हुई. इतने में दिल्ली पुलिस को तेजिंदर के पिता की तहरीर मिल गई कि उनके बेटे को अगवा किया गया. दिल्ली पुलिस ने भी कहा कि उन्हें गिरफ्तारी की जानकारी नहीं दी गई थी और किडनैपिंग का केस दर्ज कर लिया. और इस बिनाह पर हरियाणा पुलिस से मदद मांगी गई. हरियाणा पुलिस ने पंजाब पुलिस के काफिले को रोक लिया. और कथित अपहृत बग्गा को छुड़ाकर दिल्ली पुलिस के हवाले कर दिया. लेकिन आश्चर्यजनक रूप से कथित अपहरणकर्ताओं को छोड़ दिया. ये सहयोग और असहयोग दोनों का उदाहरण है. दिल्ली पुलिस और हरियाणा पुलिस के बीच सहयोग. और पंजाब की पुलिस के साथ दोनों सूबों की पुलिस का असहयोग.

> 28 जून को दिल्ली पुलिस ने ऑल्ट न्यूज़ के सहसंस्थापक मुहम्मद ज़ुबैर को गिरफ्तार किया. आरोप लगाया धार्मिक भावनाओं को भड़काने का. 4 जुलाई को ज़ुबैर यूपी के सीतापुर में नज़र आए. क्योंकि यहां भी एक मामला दर्ज किया गया है. आरोप है कि ज़ुबैर ने बजरंग मुनि को हेटमॉन्गर कहा. या मामला संज्ञेय है या नहीं, इसपर कानूनी जानकारों के अपने अपने मत हैं. लेकिन ज़ुबैर को लेकर दिल्ली पुलिस और यूपी पुलिस के बीच जो नज़र आया, वो सहयोग ही था.

तो आपने देखा कि सहयोग असहयोग का ये खेल कैसे चलता है. अब नियमों की जानकारी ले लीजिए.

- पुलिस अधिकारी को मामला सौंपे जाने के बाद, जांच करने के लिए राज्य क्षेत्र से बाहर जाने के लिए लिखित में या फोन पर उच्च अधिकारियों की अनुमति लेनी होगी.
- ऐसे मामले में जब पुलिस अधिकारी गिरफ्तारी करने का फैसला करता है, तो उसे तथ्यों को और कारणों को लिखित रूप में दर्ज करना होगा. संतोषजनक रूप से ये स्थापित करना होगा कि गिरफ्तारी जांच के उद्देश्य के लिए जरूरी है.
- पुलिस को CrPC की धारा 78 और 79 के तहत गिरफ्तारी और तलाशी वारंट की मांग करने के लिए क्षेत्राधिकारी मजिस्ट्रेट से संपर्क करना होगा. सिवाय ऐसे मामलों को छोड़कर, जब आरोपी के भाग जाने या सबूत के गायब होने की संभावना हो. 
- राज्य से बाहर जाने से पहले, पुलिस अधिकारी को अपने पुलिस स्टेशन की दैनिक डायरी में एक विस्तृत डिपार्चर एंट्री बनानी होगी. इसमें उनके साथ जाने वाले पुलिस अधिकारियों और निजी व्यक्तियों के नाम होने चाहिए. वाहन संख्या, जाने का उद्देश्य, प्रस्थान का समय और तारीख भी दर्ज करनी होगी.
- यदि संभावित गिरफ्तारी महिला की है, तो एक महिला पुलिस अधिकारी को टीम का हिस्सा बनाना होगा.
- पुलिस अधिकारी अपने साथ पहचान पत्र अवश्य ले जाने होंगे. टीम में सभी पुलिस अधिकारी वर्दी में होने चाहिए, वर्दी पर उनका नाम होना चाहिए.
- दूसरे राज्य का दौरा करने से पहले, पुलिस अधिकारी को उस स्थानीय पुलिस स्टेशन से संपर्क स्थापित करने का प्रयास करना होगा, जिसके अधिकार क्षेत्र में वह जांच या गिरफ्तारी करने जा रहा है. उसे अपने साथ FIR और बाकी दस्तावेजों की प्रतियां संबंधित राज्य की भाषा में ले जानी होगी. 
- दूसरे राज्य में गिरफ्तारी वाली जगह पर पहुंचने के बाद सबसे पहले पुलिस टीम को संबंधित इलाके के पुलिस थाने को सहायता और सहयोग के लिए सूचित करना होगा. स्थानीय SHO को सभी कानूनी सहायता देनी होगी. ये काम फोन या मैसेज पर नहीं होगा, बल्कि इसके लिए सशरीर उस थाने में जाना होगा.
- गिरफ्तार व्यक्ति को राज्य से बाहर ले जाने से पहले अपने वकील से परामर्श करने का अवसर देना होगा.
- गिरफ्तार आरोपी को नजदीकी मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश करने के बाद ट्रांजिट रिमांड लेने की कोशिश होनी चाहिए. अन्यथा CRPC की धारा 56 और 57 का उल्लंघन किए बिना क्षेत्राधिकार वाले मजिस्ट्रेट के सामने 24 घंटों के भीतर पेश करना होगा.
- वापस लौटते समय, पुलिस अधिकारी को स्थानीय पुलिस स्टेशन का दौरा करना चाहिए. गिरफ्तार आरोपी को राज्य से बाहर ले जाने से पहले उसके नाम और पते को रोजनामचे में दर्ज करना होगा. पीड़ित का भी नाम बताना होगा. 
- वापस अपने राज्य के पुलिस थाने में पहुंचने पर, पुलिस अधिकारी को डेली डायरी में उसके द्वारा की गई जांच, गिरफ्तार व्यक्ति और बरामद वस्तुओं को इंगित करना होगा. वो अपने वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों/संबंधित SHO को भी तुरंत इसकी सूचना देंगे. वरिष्ठ पुलिस अधिकारी व्यक्तिगत रूप से ऐसी जांच की निगरानी करेंगे.

भारत के संविधान की सातवीं अनुसूची में उन विषयों का बंटवारा है, जो केंद्र और राज्यों के अधिकार क्षेत्र में आते हैं. सातवीं अनुसूची में दूसरे नंबर पर राज्य सूची है. इसमें पहले और दूसरे विषय पर गौर कीजिए -
> पब्लिक ऑर्डर
> पुलिस
ज़रूरी है कि पूरे देश के पब्लिक ऑर्डर के लिए सभी सूबों की पुलिस साथ में काम करे. और नियमों के तहत काम करे. ताकि किसी को ये कहने का मौका न मिले कि पुलिसिया कार्रवाई की आड़ में राजनैतिक दुश्मनी निभाई जा रही है.

अब जानते हैं आज की सुर्खियां.

पहली सुर्खी नूपुर शर्मा विवाद से जुड़ी हुई है.  बीते दिनों में सुप्रीम कोर्ट की वेकेशन बेंच ने उनको लेकर तल्ख टिप्पणियां की थी, जिसके बाद सोशल मीडिया पर काफी विरोध हुआ.  आज जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जेबी पारदीवाला की उन टिप्पणियों के खिलाफ देश की कई गणमान्य हस्तियों ने चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया को चिट्ठी लिखी.  हाईकोर्ट्स के पूर्व जस्टिस, नौकरशाह, सैन्य अधिकारी और बुद्धिजीवियों ने मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एनवी रमणा के नाम खुला पत्र लिखा है.  पत्र में इन लोगों ने 11 बिंदुओं पर कोर्ट की टिप्पणियों की आलोचना की है.  पत्र पर दस्तखत करने वालों ने कोर्ट की टिप्पणियों को दुर्भाग्यपूर्ण और न्यायिक नैतिकता और सिद्धांतों के खिलाफ बताया है.  चिट्ठी में कहा गया कि नूपुर शर्मा न्यायिक प्रक्रिया और अपने अधिकारों के तहत संरक्षण और राहत के लिए सुप्रीम कोर्ट के सामने आई थीं.  उन्होंने कानूनी राहत के लिए सबसे ऊंची अदालत का दरवाजा खटखटाया जो सिर्फ यही कोर्ट दे सकता था.  लेकिन याचिका के आधार और प्रार्थनाओं से पीठ की टिप्पणियां कहीं मेल खाती नहीं दिखीं.  अगर वो टिप्पणियां न्यायिक प्रक्रिया और सिद्धांतों के मुताबिक थीं तो आदेश में उनका जिक्र क्यों नहीं था? आदेश के मुताबिक तो लगता है कि नूपुर शर्मा को न्यायिक राहत पाने के अधिकार से इंकार ही किया  गया है.  ये संविधान के मूलभूत सिद्धांतों के खिलाफ है. 

खुली चिट्ठी में कहा गया है कि कोर्ट की टिप्पणियों से ये छवि बनी कि देश में जो कुछ हुआ इसके लिए नूपुर ही जिम्मेदार हैं.  कोर्ट के सामने दायर याचिका में ये मुद्दा ही नहीं था कि वो दोषी है या नहीं. . लेकिन कोर्ट ने टिप्पणियों के जरिए बिना ट्रायल पूरा हुए फैसला ही सुना दिया कि वही दोषी हैं.  ये भी कहा गया कि न्यायिक प्रक्रिया से जुड़े लोग कोर्ट की टिप्पणियों से सदमे में हैं क्योंकि पीठ की टिप्पणियों के मुताबिक तो FIR दर्ज होने के बाद गिरफ्तारी जरूरी है.  सुप्रीम कोर्ट ने नूपुर को हाईकोर्ट में अर्जी लगाने की कहा. जबकि ये किसी हाईकोर्ट के न्यायिक अधिकार क्षेत्र में नहीं है. ये भी कहा गया कि ये लोकतांत्रिक मूल्यों को भी नुकसान पहुंचाने वाला है.  इसे अनदेखा नहीं किया जा सकता. ऐसी टिप्पणियां वापस ली जानी चाहिए. इतना सबकुछ हो जाने के बावजूद नूपुर शर्मा विवाद शांत होने के नाम नहीं ले रहा है.  आज नूपुर शर्म को धमकी देता हुआ एक और बयान वायरल हुआ.

वीडियो में सलमान चिश्ती नाम का व्यक्ति नूपुर शर्मा की गर्दन लाने वाले को अपना मकान देने की बात करते नजर आया.  सलमान चिश्ती दरगाह पुलिस थाने का एक हिस्ट्रीशीटर है.  लगभग दो मिनिट पचास सेकंड के इस विडियो में अपनी धार्मिक भावनाओं का हवाला देते हुए सलमान चिश्ती खुले आम नूपुर शर्मा को कत्ल किये जाने की धमकी दे रहा है.  बीच में रोता भी है और अंग्रेजी में बोलने लगता है.  बताया गया कि सलमान चिश्ती का नाता दरगाह से भी है.  वो दरगाह का खादिम है, खादिम मतबल एक तरह का सेवादार.  इस पर दरगाह की तरफ से प्रतिक्रिया आई.  दरगाह की अंजुमन कमेटी के सचिव सरवर चिश्ती ने कहा कि अंजुमन कमेटी खादिमों की ठेकेदारी नहीं कर सकती.  सलमान चिश्ती ने वीडियो अपने घर से बनाया और दरगाह का पूरे मामले में कोई लेना देना नहीं है. खबर है कि सलमान चिश्ती के खिलाफ FIR दर्ज हो गई है.  इससे पहले भी अजमेर स्थित सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती के निजाम गेट से 17 जून के रोज़ नफरत भरे नारे लगाए गए थे.  जिसके बाद पुलिस ने कार्यवाही करते हुए करीब 25 आरोपियों को चिन्हित कर मुकदमा लिखा था. 

दूसरी सुर्खी कर्नाटक हाईकोर्ट से जुड़ी है.  जस्टिस एचपी संदेश ने सोमवार को एक खुलासा किया.  उन्होंने कहा Anti Corruption Bureau पर की गई उनकी टिप्पणी की वजह से ट्रांसफर की धमकी दी जा रही है.  उनका वो बयान अब सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है.  कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी इसे ट्वीट किया है. कहा कि एक जज को कर्नाटक बीजेपी के भ्रष्टाचार को उजागर करने पर धमकी दी जा रही है.  एक के बाद एक संस्थानों को बीजेपी बुल्डोज कर रही है.  उन सभी को इसके खिलाफ खड़ा होना चाहिए जो अपना काम बिना डर के कर रहे हैं.  दरअसल जस्टिस संदेश ने मामले में एक आरोपी की जमानत याचिका पर सुनावाई करते हुए कहा- मैं किसी ने डरता नहीं, किसी राजनीतिक दल से संबंधित नहीं हूं, मैं किसी की राजनीतिक विचारधारा का पालन नहीं कर सकता, किसान का बेटा हूं खेती भी कर लूंगा.  मगर लोगों की भलाई के वास्ते तबादले के लिए.  

कोर्ट में बोलते हुए जस्टिस संदेश ने राज्य सरकार को भी फटकार लगाई.  उन्होंने कहा- संविधान और संवैधानिक संस्थाओं की बचाने की जिम्मेदारी आपकी है.  ये पूरा मामला रिश्वत के एक केस से जुड़ा हुआ है.  बेंगलुरू शहरी जिला आयुक्त कार्यालय में डिप्टी तहसीलदार को रंगे हाथ रिश्वत लेते हुए पकड़ा गया था.  डिप्टी तहसीलदार ने रिश्वत के लिए जिला आयुक्त मंजूनाथ को कोर्ट में जिम्मेदार ठहराया था.  हालांकि उनका FIR में नाम नहीं है.  इसी केस पर टिप्पणी करते हुए जस्टिस संदेश ने कहा था कि ACB एक दागी ADGP के नेतृत्व में काम कर रही है. 

तीसरी सुर्खी - केंद्र सरकार के कुछ आदेशों के खिलाफ ट्विटर ने कर्नाटक हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है.  कंपनी ने कॉन्टेंट को लेकर सरकार के कुछ आदेशों को वापस लेने की मांग उठाई है.  न्यूज एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक, सूत्रों ने कहा कि ट्विटर inc अधिकारियों द्वारा सत्‍ता के दुरुपयोग को कानूनी तौर पर चुनौती देने का मन बना रही है.  अमेरिकी सोशल मीडिया कंपनी द्वारा न्‍यायिक समीक्षा की यह कोशिश सरकार  के साथ content regulation को लेकर जारी टकराव का एक हिस्‍सा है.  बीते दिनों भारत सरकार के आईटी मंत्रालय ने कुछ आदेशों का पालन नहीं करने की स्थिति में ट्विटर को आपराधिक कार्यवाही की चेतावनी दी थी.  दावा है कि सरकार ने ट्विटर से पिछले साल स्‍वतंत्र सिख राष्‍ट्र के समर्थन वाले अकाउंट्स और ऐसे दर्जनों ट्वीट्स पर कार्रवाई करने को कहा था जिसमें कोविड-19 महामारी से निपटने के मामले में सरकार की आलोचना की गई थी.  इस बीच सरकार की ओर से कहा गया है कि कानून से ऊपर कोई भी नहीं है. भारत के कानून का पालन समान रूप से सभी को करना होगा.

अगली सुर्खी - लॉकडाउन पीरियड को छोड़ दिया जाये तो देश में जून का महीना रोजगार बाजार के लिए सबसे खराब रहा है. सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) की तरफ से जुटाए गए आंकड़ों के मुताबिक जून महीने में देश में बेरोजगारी दर में इजाफा देखने को मिला है. जून में बेरोजगारी बढ़कर 7.8 फीसदी पर पहुंच गई जबकि मई में बेरोजगारी दर  7.12 फीसदी थी. रोजगार के मामले बुरा हाल गावों में देखने को मिला है. देश में बेरोजगारी बढ़ने का मुख्य कारण गांवों में लोगों को काम नहीं मिल पाना बताया गया. जून में रूरल एंप्लायमेंट रेट यानी ग्रामीण रोजगार दर 6.62 फीसदी से उछलकर 8 फीसदी के पार पहुंच गई है.  गांवों में बेरोजगारी बढ़ने की मुख्य वजह मौसम में गड़बड़ के चलते लोगों को खेती किसानी का काम नहीं मिल पाना है. हालांकि जानकारों का मानना है कि जैसे-जैसे फसलों की बुवाई बढ़ेगी, ग्रामीण इलाकों में बेरोजगारी दर में गिरावट देखने को मिल सकती है. 

आखिरी सुर्खी - मां काली के विवादित पोस्टर मामले में दिल्ली और यूपी में FIR दर्ज की गई है.  दिल्ली पुलिस की IFSO यूनिट ने मां काली पोस्टर मामले में सेक्शन 153A और 295A के तहत एफआईआर दर्ज की है.  असल में दिल्ली पुलिस को काली मां के पोस्टर विवाद में दो शिकायत मिली थीं.  एक शिकायत नई दिल्ली डिस्ट्रिक्ट और एक शिकायत IFSO को दी गई थी.  फिलहाल IFSO यूनिट ने ये तस्वीर लगाने वाली डायरेक्टर लीना मनिमेकलाई के खिलाफ धार्मिक भावनाएं आहत करने का मुकदमा दर्ज किया है.  लीना मनिमेकलाई के खिलाफ एक FIR यूपी में भी दर्ज की गई है.  दरअसल कनाडा में मां काली का एक ऐसा पोस्टर जारी किया गया, जिसमें मां काली को सिगरेट पीते हुए दिखाया गया है और पोस्टर में मां काली के हाथ में LGBTQ का प्राइड फ्लैग भी है.  ये पोस्टर 2 जुलाई को रिलीज हुआ था और इसे कनाडा में आयोजित एक प्रोजेक्ट 'अंडर द टेंट' के तहत प्रदर्शित किया गया था.  ये प्रोजेक्ट टोरंटो के आगा खान म्यूजियम में प्रदर्शित किया गया.  इस मामले में कनाडा में भारतीय उच्चायोग ने आपत्ति जताई है.  उच्चायोग ने कहा कि उन्हें हिंदु समुदाय की तरफ से शिकायतें मिली हैं कि कनाडा में अंडर द टेंट प्रोजेक्ट के तहत एक पोस्टर प्रदर्शित किया गया है, जिसमें हिंदू देवी-देवताओं की बेअदबी की गई है.  हमने कार्यक्रम के आयोजकों से अपनी चिंता जताई है और इसके जिम्मेदार लोगों पर कार्रवाई करने के लिए कहा है. 
इस पोस्टर पर TMC सांसद महुआ मोइत्रा ने भी मां काली के बारे में विवादित बयान दिया.  उन्होंने कहा है कि वह मां काली को मांस खाने और शराब पीने वाली देवी के रूप में देखती हैं. 
सोशल मीडिया पर उनके बयान की खूब आलोचना हुआ तो TMC ने महुआ माइत्रा के बयान से किनारा कर लिया.