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राजनीति के बीच पलते प्रेम पर लिखी गई किताब की कहानी, जिसे 2024 का बुकर प्राइज मिला है

बुकर पुरस्कार देने वाली समिति के अध्यक्ष और एलेनियर वाटेल ने कहा, “ये उपन्यास पीड़ा से भरे प्रेम संबंध, निजी और राष्ट्रीय परिवर्तनों के उलझाव से गुंथा हुआ एक समृद्ध टेक्स्ट है.”

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2024 में बुकर पुरस्कार पाने वाली किताब, कैरोस

21 मई की रात लंदन में 2024 के अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार की घोषणा हुई. इस बार यह पुरस्कार ‘कैरोस’ (Kairos) किताब की लेखिका जेनी एर्पन्बैक और अनुवादक माइकल हॉफमैन को मिला है. जेनी एर्पन्बैक पहली जर्मन लेखिका हैं, जिन्हें बुकर मिला है. वहीं माइकल हॉफमैन ये पुरस्कार पाने वाले पहले पुरुष हैं.  

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इंटरनेशनल बुकर प्राइज की स्थापना साल 2005 में हुई थी. पहले इस पुरस्कार को मैन बुकर इंटरनेशनल प्राइज कहा जाता था. ये पुरस्कार हर साल अंग्रेजी में अनुवादित किसी किताब (फिक्शन) को दिया जाता है. शर्त बस इतनी सी है कि किताब यूके या आयरलैंड में छपी हो. बुकर पुरस्कार के साथ 50 हजार पाउंड (लगभग 52 लाख रुपये) की राशि का इनाम भी मिलता है. जेनी और माइकल के बीच ये राशि बराबर-बराबर बांटी जाएगी. वहीं, बुकर प्राइज मूलत: अंग्रेजी में लिखी गई किताबों को दिया जाता है. 

जेनी एर्पन्बैक 57 साल की हैं. जर्मनी के बर्लिन में पैदा हुईं. लेखक बनने से पहले ओपेरा की निर्देशक थीं. उन्होंने ‘The End of Days’ और ‘Go, Went, Gone’ जैसी किताबें लिखी हैं. वहीं, माइकल हॉफमैन की उम्र 66 साल है. उन्हें “जर्मन से अंग्रेजी में अनुवाद करने वाला दुनिया का सबसे प्रभावशाली अनुवादक" कहा गया है. कविता और साहित्यिक आलोचना लिखने के साथ-साथ, वे फ्लोरिडा विश्वविद्यालय में पार्ट-टाइम पढ़ाते हैं.

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जेनी एर्पन्बैक और अनुवादक माइकल हूफ्मैन (बाएं से दाएं)


कैरोस की कहानी बड़ी दिलचस्प है. ये 1986 की बात है. एक 50 साल का शादीशुदा व्यक्ति, 19 बरस की एक स्टूडेंट से ईस्ट बर्लिन में एक बस के सफ़र के दौरान मिलता है. दोनों में प्रेम पनपता है. एक ओर प्रेम पनप रहा था, तो दूसरी ओर जर्मनी के इतिहास में ये दशक राजनैतिक रूप से बहुत उथल-पुथल से भरा रहा था. 1989 में बर्लिन की दीवार गिरने से लेकर, जीडीआर (जर्मन डेमोक्रेटिक रिपब्लिक) के पतन तक, दोनों का प्रेम कैसे उतार-चढाव देखता है. अनुभवों की पगडंडियों के आसरे करुणा से लेकर क्रूरता तक कैसे ये प्रेम अपनी यात्रा करता है, ये इस किताब का हासिल है. किताब के वाक्य वर्तमान काल में लिखे गए हैं, जो अपने किस्म का एक नया प्रयोग है.

बुकर पुरस्कार देने वाली समिति के अध्यक्ष और एलेनियर वाटेल ने कहा, 

“ये उपन्यास पीड़ा से भरे प्रेम संबंध, निजी और राष्ट्रीय परिवर्तनों के उलझाव से गुंथा हुआ एक समृद्ध टेक्स्ट है.”

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भारत के कई लेखकों को भी बुकर पुरस्कार मिल चुका है. जैसे 1971 में वी. एस. नायपॉल को उनकी किताब, ‘In a Free State’ के लिए. 1997 में अरुंधती रॉय को उनकी पुस्तक, ‘The God of Small Things’ के लिए. और 2022 में गीतांजली श्री को उनकी किताब, ‘Tomb of Sand’ के लिए.

ये भी पढ़ें: 'हिंदी में अभी भी गलतियां करती हूं', बुकर वाली गीतांजलि के उपन्यास की अनुवादक डेजी रॉकवेल को जानिए

अंत में पढ़िए, कैरोस उपन्यास का एक छोटा सा अंश

“वह उसे, इस बच्चे को, कैसे दूर कर सकता है? अगर किसी ने उन्हें एक साथ देख लिया तो क्या होगा? वैसे भी उसकी उम्र कितनी थी? मैं अपनी ब्लैक कॉफ़ी बिना चीनी के पीऊंगा, इस तरह वह मुझे गंभीरता से लेगी. वो सोचता है, कुछ देर बातचीत करूंगा और चला जाऊंगा. उसका नाम क्या है? कैथरीना. और मेरा? हान्स.”

"दोनों गली में साथ चलते हैं, बातों के दौरान वो उसकी हां में हां मिलाता है. मुड़ता है और चला जाता है. दोनों के रास्ते अलग हो गए. कैथरीना जा रहीं हैं, लेकिन उसे केवल वहां तक देखा जा सकता है, जहां तक रोशनी है. अब वो हान्स का सरनेम जानती है. उसका पता ढूंढना कठिन नहीं होगा. वो उसके मेलबॉक्स में एक खत भेज सकती है या उसके घर के बाहर इंतजार कर सकती है. ट्राम की घंटियां बज रहीं हैं, गाड़ियों के पहिए, कीचड़ के छींटे उड़ाते हुए गुजर रही है.

पैदल चलने वालों के लिए ट्रैफिक सिग्नल की लाइट बदल जाती हैं, उसे अपनी उंगलियों के पोरों तक दर्द महसूस होता है. वो अभी भी वहीं खड़ी है. सिग्नल फिर से बदलते हैं. हान्स सोचता है, क्या हमें इसी तरह साथ में शाम बितानी चाहिए? तब जब मेरी पत्नी और बेटा इसी देश में हैं."

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