क़रीब-क़रीब आधा अमेरिका अपने नेता ट्रम्प के अलावा किसी और की बात को नहीं सुनता
“आइ डोंट ट्रस्ट माई फ़ेलो अमेरिकन्स”यह वाक्य मैंने पहली बार 30 सितम्बर, 2020 को अपने मित्र और अमेरिकन सिविल लिबर्टीज यूनियन के निदेशक बेन वाइजनर से सुना. मैंने बेन के इस वाक्य को बहुत ज़्यादा गम्भीरता से नहीं लिया. बेन, अमेरिकी व्हिसल ब्लोअर एडवर्ड स्नोडेन के वकील हैं और मानवाधिकारों की पैरवी करते हैं. वे उन अनगिनत लोगों में से एक हैं जिन्हें राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने ट्विटर पर ब्लॉक कर रखा है. मेरी 42 दिन चली अमेरिकी चुनाव यात्रा के शुरुआती दिनों में ही ब्रुकलिन में हमारी बातचीत के दौरान उन्होंने यह वाक्य कहा था. उनका कहना था,
“जब से 2016 में अमेरिका ने ट्रम्प को राष्ट्रपति चुना, तब से मेरा अपने देशवासियों से भरोसा उठ गया. अगर आप थोड़ा भी सोच सकते हैं, अच्छे और बुरे की आपमें समझ है तो आप ट्रम्प को नहीं चुन सकते. मैंने अनेक अमेरिकियों से बात की थी और उनमें से कोई ट्रम्प समर्थक नहीं था लेकिन जब नतीजा सामने आया तो मैं हैरान हुआ था! मुझे समझ नहीं आया कि जब सभी उनके ख़िलाफ़ थे, तो कौन हैं वे लोग, जिन्होंने ट्रम्प को राष्ट्रपति चुना.”6 जनवरी, 2021 को जब अमेरिकी कांग्रेस, कैपिटल हिल पर आधिकारिक तौर से जो बाइडन को राष्ट्रपति चुनने के लिए इकट्ठा हुई, तो थोड़ा-थोड़ा करते-करते, हज़ारों की संख्या में ट्रम्प समर्थकों ने कैपिटल बिल्डिंग पर धावा बोलकर सभी को चौंका दिया. इस तरह अमेरिकी नागरिक अपनी ही संसद पर हमला कर देंगे, इसकी कल्पना शायद ही किसी ने की थी. इससे पहले, 1814 में भी कैपिटल बिल्डिंग पर हमला हुआ था. लेकिन वह हमला ब्रिटिश सेना ने उस पर यार्क पोर्ट पर हुए हमले की प्रतिक्रिया में किया था. उस दौरान वाॅशिंगटन डीसी में पहली बार कैपिटल, व्हाइट हाउस और ट्रेजरी बिल्डिंग को जला दिया गया था. यह दृश्य देखते वक़्त मुझे बेन का कहा वह वाक्य याद आ गया. और साथ ही कुछ इसी तरह की और बातें याद आईं जो लोगों में छिपे अविश्वास को दर्शा रही थीं और जिन्हें मैंने अपनी यात्रा के दौरान लोगों से सुना था. जब 7 नवम्बर को नतीजे घोषित हुए थे तो डर का स्थान जश्न ने ले लिया था और मैंने वॉशिंगटन में लोगों के हजूम को झूमते देखा था. चारों ओर ख़ुशी का माहौल था, इससे लगा था कि अनहोनी का डर ग़लत था, और अमेरिका ने दिखा दिया है कि वह अलगाव की राजनीति को ख़ारिज कर चुका है. लेकिन इसका एक दूसरा पहलू भी था. ट्रम्प ने इसे आधिकारिक तौर पर स्वीकार नहीं किया. 244 सालों के इतिहास में वे पहले राष्ट्रपति बने जिन्होंने जनादेश को नहीं स्वीकारा. अपने ट्वीट में वे कहते रहे कि उन्हें साज़िश के तहत हराया गया है. जैसे-जैसे सत्ता पर क़ाबिज़ रहने के उनके क़ानूनी दावे ख़ारिज होते गए, ट्विटर पर उनके दावों की झड़ी लग गई कि उन्हें ग़लत तरीक़े से हराया गया है. हममें से ज़्यादातर लोगों की नज़र में राष्ट्रपति ट्रम्प के ट्वीट सहानुभूति इकट्ठा करने का ज़रिया भर थे. पर उनके समर्थकों के लिए ऐसा नहीं था, उनके लिए तो राष्ट्रपति का हर बयान, हर ट्वीट उनके नेता के प्रति हुई नाइंसाफ़ी का उदाहरण था. इस कथित नाइंसाफ़ी के ख़िलाफ़ ट्रम्प समर्थकों के मन में लगातार गहरा रहे उन्माद को ख़ुद राष्ट्रपति ट्रम्प ने 6 जनवरी के ‘सेव अमेरिका’ नाम से आयोजित सभा में अपने भाषण से अराजकता के चरम पर पहुँचा दिया. इसका परिणाम हुआ, कैपिटल बिल्डिंग में आगजनी. नतीजे आने के ठीक दो महीने बाद जिस भीड़ ने वॉशिंगटन डीसी की गलियों से होते हुए कैपिटल पर हमला किया, वह 7 नवम्बर के जश्न में शरीक हुए अमेरिकियों से कई गुना बड़ी थी. इतनी बड़ी कि जिसकी कल्पना किसी ने नहीं की थी. निस्सन्देह वह विभाजित अमेरिका का डरावना चेहरा थी. बाइडन से 70, 59, 741 मतों से पराजित हुए ट्रम्प ने अपने चार सालों के कार्यकाल में अमेरिका जनमानस को इतना बाँट दिया है कि क़रीब-क़रीब आधा अमेरिका अपने नेता ट्रम्प के अलावा किसी और की बात को नहीं सुनता. वह रंग के आधार पर लोगों में भेदभाव करता है, आर्थिक असमानता पर बँटा हुआ है, वह शहरी और ग्रामीण के बीच भी भेदभाव करता है. वह यह मानता है कि वॉशिंगटन में सिर्फ़ बिचौलिये राज करते हैं और एक योजनाबद्ध तरीक़े से उन्हें वे सिस्टम से बाहर रखते हैं. ऐसा सोच रखने वालों को ट्रम्प ने पहचाना, उनके इस ख़ौफ़ को भुनाया कि अगले कुछ सालों में अश्वेत लोगों का अमेरिका में बहुमत हो जाएगा और फिर उन्हें पूछने वाला कोई नहीं रहेगा. उन्होंने ऐसी मानसिकता वाले लोगों में अपने भाषणों से, अपने ट्वीट से, डार्क वेब पर चल रहे क्यू लिंक्स के जरिये अराजकता पैदा की जिस पर वे असत्यापित खबरें लीक करते थे. ट्रम्प की इन कोशिशों के नतीजे दुनिया के सामने हैं. कैपिटल में आगजनी की घटना के बाद ‘हाउस ऑफ़ रिप्रेजेंटेटिव्स’ ने एक विशेष सत्र बुलाकर राष्ट्रपति ट्रम्प के ख़िलाफ़ महाभियोग प्रस्ताव पेश किया. प्रस्ताव के पक्ष में 232 और विरोध में 197 मत पड़े. इसके साथ ही सदन में ट्रम्प के ख़िलाफ़ दूसरी बार महाभियोग पारित हो गया. इस बार दस रिपब्लिकन सासदों ने भी उनके ख़िलाफ़ वोट दिया. ऐसा अमेरिका में अब तक सिर्फ़ चार बार हुआ है. जिनमें से दो बार प्रस्ताव ट्रम्प के ख़िलाफ़ रहा. सीनेट में ऐसा प्रस्ताव फ़िलहाल नहीं लाया गया है. इसमें रिपब्लिकन और डेमोक्रेट दोनों के 50-50 सीनेटर हैं. अगर ट्रम्प के ख़िलाफ़ यहाँ महाभियोग प्रस्ताव लाया जाता है तो यह तभी पारित होगा जब सत्रह रिपब्लिकन सीनेटर भी इसके पक्ष में वोट दें. अगर ऐसा होता है तो सीनेट एक बिल पास कर सकती है जिससे ट्रम्प भविष्य में शायद कभी चुनाव न लड़ पाएँ. इसकी सम्भावनाएँ बहुत कम हैं क्योंकि 2022 में बीस रिपब्लिकन सीनेटर फिर से चुनाव में जाएँगे. वे ट्रम्प के ख़िलाफ़ जाकर अपने वोट गँवाना नहीं चाहेंगे. ट्रम्प व्हाइट हाउस से बाहर जा रहे हैं लेकिन सियासत पर उनकी पकड़ ढीली नहीं समझी जा सकती.
पुस्तक – अमेरिका 2020: एक बंटा हुआ देश लेखक अविनाश कल्ला प्रकाशक – सार्थक – राजकमल प्रकाशन उपक्रम भाषा – हिंदी पृष्ठ – 244 मूल्य – 250/ पेपरबैक