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पति पत्नी और वो कैमरा - कहानी बनारस की ज़रीना भाभी की

आराधना और आशीष पहुंचे बनारस के गंगा घाट पर. कर रहे हैं बयान कि बनारस के मुसलमान आखिर वहां पहुंच कर करते क्या हैं

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फोटो - thelallantop
पति पत्नी और वो कैमरा की चौथी किस्त आ गयी है. ये कहानी है स्टीरियोटाइप कर दी गयी 'पावन' गंगा के बारे में. एक नदी जो किसी ज़मीन के टुकड़े के लिए लाइफलाइन कही जाती है, किसी एक ग्रुप के लोगों के लिए रिज़र्व मान ली जाती है. और लोग इस भ्रान्ति के साथ ही जी रहे हैं कि यही सच है. ashish and aradhana singhइस सच को झूठा बतलाने के लिए  आराधना और आशीष ने हमें ये टुकड़ा भेजा है. नैरेटर- आराधना सिंह. फोटो- आशीष सिंह    
एक शाम ज़रीन भाभी ने बनारस, गंगा और घाटों से जुड़ा अनुभव साझा किया. उन्होंने बताया कि निक़ाह के बाद सैय्यद भाई सबसे पहले गंगा आरती दिखाने लाए थे. और उसके बाद ज़रीन भाभी अपने मायके की लखनऊ की शाम-ए-अवध भूल सुबह-ए-बनारस के प्यार में पड़ गईं. उन्होंने किस्सा सुनाया, तो हमने ये शेर पढ़ा. जिसे सुन वह भावुक हो गईं.
जाने कितने ही हाथों ने तेरे पानी से वज़ू कर के अपनी इबादत पूरी की है और लोग कहते हैं कि तू हमारी नहीं है
BENARAS PEOPLE SITTING ON GHAT फिर अगली बार मैं और आशीष जब घाटों पर गए, तो यही सब बातें दिमाग में थीं. टहलते हुए सोशल मीडिया और टीवी पर चल रही बहसें याद आ रही थीं.
"उफ्फ! ज़िन्दगी को हमने इतना आभासी क्यूं बना रखा है कि उसका वास्तविक रूप देखने से पहले ख़ुद को इतने सारे कूड़े-करकट से आज़ाद करने की ज़रूरत आ पड़ी."
BENARAS GHAT MUSLIM ख़ैर घाट पर आज हम मुसलमान खोज रहे थे. जहां दिख रहे थे, वहां उन्हें निहार रहे थे. सीढ़ियों, चबूतरों पर पैर लटकाए मछलियों को आटे की गोलियाँ खिलाते, गप्पें लड़ाते मुसलमान. हमारी तरह गंगा से अपना सुख-दुख बतियाते मियां-बीवी. और वो रहा एक छोटा सा बच्चा जो गंगा को नापने की तैयारी में है. BENARAS MNG KID एक साहब मछलियों को दाना देते दिखे. मैं उनके बगल में बैठ गई. पूछा, आप मछलियों को आटे की गोलियां क्यूं खिलाते हैं?" वो कहते हैं
ऐसा करने का इस्लाम में कोई नियम नहीं है. पर लोग कहते हैं कि बलाएं (नज़रें) उतर जाती हैं. लेकिन मुझे इसकी क्या ज़रूरत? मुझे ऐसा करना सुकून देता है. उतना ही सुकून जितना इबादत करने में मिलता है.
मैंने उनसे आटे की थोड़ी सी लोई मांग ली. अब मैं भी गोलियां बनाकर उनके साथ मछलियों को खिलाने लगती हूं. ये शायद जादू ही है कि 'फ़िश फ़ूड' 'सोल फ़ूड' में तब्दील होता हुआ महसूस होने लगता है. मछलियों की भूख का तो पता नहीं पर मैं ज़रूर तृप्त हो रही हूं. तभी आशीष अपनी ताजा क्लिक्स दिखाने लगते हैं. मैं उनसे पूछती हूं
"किसी पंडित जी और मौलाना साहब की सीढ़ियों पर गप्पें मारते हुई तस्वीर नहीं मिली?"
आशीष अफ़सोस करते हुए बोलते हैं "अगली बार ज़रूर." BENARAS HINDU MUSLIM UNITY   मैं 'आम़ीन' बोल अमृता प्रीतम की एक कविता दोहराने लगती हूं.
गंगाजल से लेकर, वोडका तक, यह सफरनामा है मेरी प्यास का सादा पवित्र जन्म के सादा अपवित्र कर्म का, सादा इलाज और किसी महबूब के चेहरे को एक छलकते हुए गिलास में देखने का यत्न और अपने बदन से एक बिल्कुल बेगाना ज़ख्म को भूलने की ज़रूरत   यह कितने तिकोन पत्थर हैं जो किसी पानी की घूंट-से मैंने गले से उतारे हैं कितने भविष्य हैं जो वर्तमान से बचाए हैं और शायद वर्तमान भी मैंने वर्तमान से बचाया है
BENARAS GHAT BOAT PRIEST   और अमृता की ही एक और कविता, ऐश ट्रे का ये टुकड़ा
इलहाम के धुएं से लेकर, सिगरेट की राख तक हर मज़हब बौराए हर फलसफा लंगड़ाए हर नज़्म तुतलाए और कहना-सा चाहे कि हर सल्तनत के सिक्के की होती है, बारूदी की होती है और हर जन्मपत्र आदम के जन्म की एक झूठी गवाही देती है