तुम्हें याद है. नई मिलेनियम शुरू होने को थी. पापा बैडमिंटन के करियर के दूसरे फेज में आ गए थे. अब वो ट्रेनिंग देते थे. सबको लगता था कि प्रकाश का नाम बिटिया आगे बढ़ाएगी. तुम स्कूल करतीं. बाकी टाइम शटल और रैकेट के साथ बीतता. मुश्किल ट्रेनिंग. फिर कभी स्टेट्स, कभी नेशनल, तो कभी स्कूल वाले कंपटीशन.
एक दिन तगड़ा मैच हुआ. तुम जीत गईं. लौटीं, तो सबने फूलों के साथ उम्मीदें भी लादीं. देखना, हमारी दीपू भी एक दिन ऑल इंग्लैंड जीतेगी. पापा की तरह. तुम मुस्कुरा दीं. कोरी आंखों के साथ.
जब बेड पर लेटीं तो तुम्हें ट्रॉफी नहीं दिख रही थी. कोई स्मैश, कोई रैली, कोई नेट प्वाइंट भी नहीं. पता नहीं क्यों, तुम्हें सालों पुरानी वो छु्टटी याद आ रही थी. जब तुम्हारी फोटो खींची जा रही थी. मम्मा बोल रही थीं कि ये लाइंस याद कर लो. जब कैमरे वाले अंकल बोलें, एक्शन, तो ऐसे वॉक करते हुए बोलना. तुम्हें मजा आया था उस दिन.
कुछ हफ्तों तक दिमाग में बार बार ये सीन आता रहा. और फिर एक दिन तुम पापा के सामने खड़ी थीं. उन्हें लगा कि मैच के पहले कुछ डिस्कस करना होगा. उनका अंदाजा आधा सही था. तुम डिस्कस करने ही आई थी. पर मैच नहीं. पूरी जिंदगी का प्वाइंट था. तुमने आंसू रोक लिए. और बोलीं. पापा, मैं बैडमिंटन नहीं खेलना चाहती.
घर की धरती घूमना रुक गई उस वक्त. इतने सालों का हार्ड वर्क. और फिर एक दम से ये बात. पर प्रकाश तुम पर गुस्सा नहीं हुए. बरामदे में पड़े तखत पर बैठ गए. तुम्हें बैठा लिया. और सुनते रहे. तुमने बताया. मुझे स्कूल एंजॉय करना है. और फिर आगे कुछ क्रिएटिव करना है. पापा मान गए. और ऐसा हुआ, क्योंकि तुमने हिम्मत की. ये कहने की. कि मुझे वो नहीं करना, जो आप सब चाहते हैं.
सो पहला थैंक्यू. उस उम्र में भी इतने प्रेशर और उम्मीदों के बीच, ये बात कहने के लिए.

अभी वो शाम याद आ रही है. तुम स्टार बन चुकी थीं. तीन चार फिल्में आ गई थीं. कार के शीशे काले होते. साथ में बॉडीगार्ड भी रखना पड़ता. मॉडलिंग वाले दिन कभी कभी याद आते. पर अब तुम्हें इस नई लाइफ में भी किक मिलने लगी थीं. शूटिंग, डिजाइनर के साथ सेशन, डायलॉग, पार्टी, ट्रिप्स और एक पहचान. पर इन सबसे बढ़कर भी कुछ था. एक लड़के से प्यार. वो भी तुम्हारी तरह फिल्मों में काम करता था. उसका उलझापन तुम्हें क्यूट लगता. इश्श की आवाज जब तब दिमाग में आती. क्या कर दूं मैं इसके लिए. ऐसा चलता रहता दिमाग में.
और फिर फितूर आया. तुम टैटू वाले के पास पहुंच गई शूटिंग निपटाकर. गर्दन पर वो जो जगह होती है न. कि कोई हलकी सी फूंक मार दे तो रीढ़ की हड्डी के आखिरी सिरे तक गुदगुदी दौड़ जाती है. वहीं, तुमने उसका नाम लिखवा लिया. RK. ओह गॉड. तुम कितना ब्लश कर रही थीं उस दिन. कोई और होता तो पेन किलर लेकर पड़ा रहता. या वोडका के तीन शॉट्स के साथ बिस्तर में घुस जाता.

तुम्हें लगा कि हर्फ हरारत साथ रहेगी. प्यार करने वालों को ऐसा ही लगता है. पर सोचा हमेशा कहां होता है. अभी याद आ रहा है तो मेरी आंखें गीली होने लगी हैं. झगड़े, बहस, सिली बातों पर. और फिर ये बातें. स्टार फैमिलीज में ऐसा नहीं होता, वैसा नहीं होता. दम घुटने लगा था. एक जिद सी थी. सब बचा लूंगी. जब तक 21 नहीं हो जाता, मैच बचा रहता है न.
पर हो नहीं पा रहा था. फिर एक दिन जी कड़ा किया. फिर जीतने के लिए कभी ये भी तो मानना होता है कि आज हार गए. कोई बात नहीं. कहना आसान है. उस दिन सुबह सुबह तुम फिर स्टूडियो में थीं. फिर गाढ़ी स्याही भरी सुई गर्दन पर घूम रही थी. RK में और कुछ जोड़ने के लिए, ताकि नाम बदनाम सबसे पार चली जाओ तुम. 17 मिनट लगे. पर फिर तुम अगले 17 घंटों तक आंखें सुजाए रहीं.
पर कभी भी. कभी भी तुमने अपने इस काम के लिए शर्मिंदगी नहीं दिखाई. प्यार किया था. तो जो दिल में आया किया. और इसके लिए किसी से परमिशन नहीं चाहिए मुझे.
सो दूसरा थैंक्यू, लड़कियों को. लड़कों को ये बताने के लिए. कि ब्रेकअप के बाद भी जिंदगी है. कि अगर सब सोचे मुताबिक नहीं हुआ, तो खुद को बुरा बोलने से, स्टूपिड फील करने से कुछ नहीं होगा. हो गया. अब आगे बढ़ो. अटके मत रहो. और हां. जैसे 'क्वीन' वाली रानी कहती है न. माफ कर दो.

तुम भूल गई थीं. मुझे तो यही लगा. पर अंदर से लड़ाई चल रही थी. ऊपर से दिखता. दीपिका ये फिल्म कर रही है. वो गाना कर रही है. इस शो की स्टॉपर है, उस ब्रैंड की एबेंसडर है. पर उसके बीच का वक्त. उफ्फ. जैसे धुंआ पीते पीते भूल गए हों कि साफ सांस कैसी होती है. हवा कहां से आती है. कितने लोग आते. पर कुछ ही वक्त में सबके मुखौटे उतर जाते. किसको बोलूं. किसी पर कुछ यकीन जमता. पर जब तक जबान खुलती, मेकअप उतरने लगता. घिन सी होने लगी थी कुछ कुछ. मगर किससे.
और तब तुमने बहादुर लड़की वाला काम किया. डॉक्टर के पास गईं. खुद को उघाड़ दिया. सब उतारकर फेंक दिया. कोरी हो गईं. फिर से. तुम्हें याद है. क्लीनिक से बाहर आने के बाद कैसे तुम झुकी थीं. गोया धरती के पास जाकर सांस जमा कर रही हो. जैसे मैच के ब्रेक में करती थी. या फिर कभी लंच के बाद क्लास में नींद आने पर. एनर्जी जुटाने का अपना तरीका.
और फिर चीजों पर चढ़े साये हलके होने लगे. उधर किनारे सूरज सा कुछ चमक रहा था. तुम्हारा अपना यकीं. हंसी फिर आने लगी थी. बेबात पर. बेसाख्ता. या अल्लाह. कैसी खिलखिलाहट. लगे कि हर चीज घंटी बन गई. और इन सबके बीच भी तुम भूली नहीं थीं. ये याद रखना अपने सम ताल को बचाए रखना था. तभी तो तुमने बाकियों को भी बताया. कि हां. होता है डिप्रेशन. पर फाइट मारनी पड़ती है. ऐसे ही बीच में नहीं छोड़ना होता.
तीसरा थैंक्यू, इस हिम्मत के लिए. हम सबमें कमियां हैं. हम सब हारते हैं. मगर कबूलते कितनी बार हैं. जमकर काम करो. ब्रेक लो. और जैसा कि मेरी वाइफ कहती है. डिप्रेशन का तो सवाल ही नहीं. इतना चिलबिल्ला लड़का जो आ गया है उस लाइफ में. मैं भी सोचता हूं. कैसे हैंडल करती होगी उसे. एनर्जी बम है पूरा. पर फिर याद आता है. अभी तो रिदम आ गई है. प्यार सौरभ
साथी बोल रहे हैं. इतना लिखा. एक गाना भी सुना दो दीपू का. इश्श. थोड़ा टफ च्वाइस है. ये वाला देखो. हर फ्रेम में कितनी ताजी लग रही थीं तुम. कुर्ता. और आखिरी में भोपाल झील के किनारे जब साड़ी में आतीं. दिल भोंदू हो जाता. भप्प.
झटककर जुल्फ जब तुम तौलिए से बारिशें आजाद करती हो अच्छा लगता है हिलाकर होंठ जब भी हौले हौले गुफ्तगू को साज करती हो अच्छा लगता हैhttps://www.youtube.com/watch?v=T6d97ninMaE
खुशबू से बहलाओ न सीधे प्वाइंट पर आओ न आंख में आंखें डालके कह दो ख्वाबों में टहलाओ न जरा शॉर्ट में बतलाओ न सीधे प्वाइंट पे आओ न
अलग एहसास होता है तुम्हारे पास होने का सरकती सरसराहट की नदी में रेशमी लमहे भिगोने का
जरा सा मोड़ कर गर्दन जब अपनी ही अदा पे नाज करती हो अच्छा लगता है
लब्जों से बहलाओ न झूठी मूठी बहकाओ न हाथों को हाथों में लेकर वो तीन शोख टपकाओ न बतलाओ न
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