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60 साल तक भारत सरकार से लड़ने वाला नागा इसाक कौन था?

कौन हैं ये इसाक-मुइवा? क्यों प्रधानमंत्री मोदी अपनी विदेश यात्रा से टाइम निकालकर इनसे बात करते हैं?

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फोटो - thelallantop
एक खबर आई है. नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ़ नागालैंड(इसाक-मुइवा) के चेयरमैन इसाक चिसी स्वू की डेथ हुई है. दिल्ली में. 87 साल के इसाक पिछले एक साल से दिल्ली के ही एक अस्पताल में भर्ती थे. पिछले साल ही प्रधानमंत्री मोदी ने नागालैंड के इसी नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ़ नागालैंड (इसाक-मुइवा) से बात की थी और इस बातचीत को ऐतिहासिक बताया था.
हमेशा लगता था कि नागालैंड के इस ग्रुप का मुखिया कोई इसाक मुइवा है. पर अब पता चलता है कि ये दो लोग थे. एक इसाक और दूसरे मुइवा. इसाक चेयरमैन थे और मुइवा जनरल सेक्रेटरी. शंकालुओं का कहना है कि इसाक की मौत से नागालैंड से बातचीत पीछे  भी खिसक सकती है. पर आशावादियों के अनुसार इसाक की लीगेसी बातचीत को बहुत आगे ले जाएगी.
पर क्या है ये नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ़ नागालैंड(इसाक-मुइवा)? क्यों मोदी जी अपनी विदेश यात्रा से टाइम निकालकर इनसे बात करते हैं? अभी हाल में ही सोशल मीडिया पर बड़ा बवाल कटा था कि मोदी जी नागालैंड के लिए अलग पासपोर्ट और झंडे के लिए तैयार हो गए हैं. खबर झूठी थी. पर इसी से पता चलता है कि हम लोग नागालैंड के बारे में कितना जानते हैं. और कितना जानना चाहते हैं.
आइये पढ़ते हैं नागालैंड का इतिहास:
भारत का इतिहास पढ़ने पर नार्थ-ईस्ट के बारे में बहुत कम जानने को मिलता है. तुर्कों के आने के बाद एक-दो जगह 'अहोम' वंश का जिक्र आता है. एक समय अहोम लोग बहुत ताकतवर थे. मुगलों को उधर बढ़ने से रोका था. जो भी हो पर ये तो है कि भारत के पूर्वी बॉर्डर पर चीन और बर्मा के बीच नागा लोग बहुत पहले से रहते थे.
फिर देश में अंग्रेज आये. जैसा कि अंग्रेज करते थे, बिजनेस के लिए लड़ाई लड़ने बर्मा चले गए. वहां पर उन्होंने बर्मा के लोकल लोगों से पूछा कि भईया, ये बॉर्डर एरिया पर रहने वाले लोग कौन हैं? बर्मा वालों ने कहा: नाका. उनके हिसाब से जो नाक में गहने पहनते थे वो 'नाका' थे. अंग्रेजों ने 'नागा' नोट कर लिया. तब से वो लोग 'नागा' कहे जाने लगे. भारत का इतिहास वैसे तो विचित्र है. पता करने पर तीन-चार सौ और व्याख्याएं मिल जाएंगी.
अंग्रेजों ने नागा हिल्स में बसाया कोहिमा
तो जहां 'नागा' रहते थे उसको 'नागा हिल्स' कहा जाने लगा. लगभग पूरे नार्थ-ईस्ट एरिया को उस समय 'असाम' कहा जाता था. अंग्रेजों का मुख्य उद्देश्य वहां चाय के बागान लगाने थे. इसके लिए वो किसी से झंझट नहीं करना चाहते थे. पर नागा समाज को बाहरी लोगों पर भरोसा नहीं था. इसके अलावा नागा हिल्स में नागा लोगों के कई सारे ग्रुप्स थे. कई ग्रुप्स जमीन और जंगल को लेकर आपस में लड़ते-भिड़ते रहते. ब्रिटिश एडमिनिस्ट्रेशन ने वहां काबू पाने के लिए कई तरीके अपनाये. 1835 से 1850 के बीच ब्रिटिश आर्मी 10 बार वहां लड़ने गई. पर नागा लड़ाके थे. मामला सेटल नहीं हुआ. तब ब्रिटिश लोगों ने तरकीब निकाली. तय किया कि नागा लोगों से शांति-समझौता कर लेते हैं. कोई लड़ाई-झगड़ा नहीं करना है. क्योंकि 1857 का विद्रोह हो चुका था. ब्रिटिश अपनी और फजीहत नहीं कराना चाहते थे. 1866 में ब्रिटिश एडमिनिस्ट्रेशन ने वहां अपना एक स्थायी पोस्ट लगा लिया. बस बात करने और झगड़ा सुलझाने के लिए. 1878 में ब्रिटिश एडमिनिस्ट्रेशन ने अपना हेडक्वार्टर बनाने के लिए 'कोहिमा' नाम का शहर बसाया. आज भी कोहिमा ही नागालैंड का सबसे महत्वपूर्ण शहर है.
नागा लोगों ने उजाड़ा कोहिमा
पर 1879 में नागा लोगों ने एक ब्रिटिश ऑफिसर की उसके 35 लोगों सहित हत्या कर दी. कोहिमा में लूट-पाट की गई. उजाड़ दिया गया कोहिमा. उसके बाद बौखलाई ब्रिटिश आर्मी ने कहर बरपाना शुरू किया. मार-काट हुई. एकदम शांति हो गई. लड़ाई-झगड़ा बंद. फिर ब्रिटिश सरकार ने अपने हिसाब से वहां रुपया चलाया और अपने एडमिनिस्ट्रेशन की पूरी व्यवस्था ले आये. 1880 से 1922 तक ब्रिटिश एडमिनिस्ट्रेशन वहां सुचारू रूप से चलता रहा. मिशनरीज वहां काम करती रहीं. आज नागालैंड में सबसे ज्यादा क्रिश्चियन लोग हैं. वहां की राज्यभाषा इंग्लिश है.
जब साइमन कमीशन से मिला नागा क्लब
1929 में जब साइमन कमीशन इंडिया आया 'इंडिया' के बारे में बात करने के लिए तब नागालैंड के लोगों ने 'नागा क्लब' बनाकर उनको एक मेमोरेंडम दिया कि हमको इस चीज से बाहर ही रखा जाये. हम लोग मणिपुरी, असामी, बर्मीज़ लोगों से अलग ही रहे हैं. किसी के अंडर में नहीं रहे. हमारी जमीन ब्रिटिश टेरिटरी में आती है पर हमारी अपनी व्यवस्था है. हमें डर है कि हम किसी सिस्टम में आये तो हमें अपनी जमीन से हाथ धोना पड़ जायेगा.
मतलब साफ़ था. नागा लोग अलग रहना चाहते थे. अपनी कम्युनिटी में. उनके हिसाब से अपने परंपरागत नियमों से चलना ही महत्त्वपूर्ण था. 1936 तक ब्रिटिश सरकार ने ये बात मानी. पर 1937 में जब गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया एक्ट आया तब नागालैंड को असम स्टेट के अंडर ला दिया गया.
तब तक दूसरा विश्व-युद्ध छिड़ गया. 1944 में कोहिमा की जबरदस्त लड़ाई हुई थी. नागा समाज स्थिर रहा. उस समय कुछ किया नहीं जा सकता था.
नागा नेशनल काउंसिल ने सरकार से मांगा अलग देश
फ़रवरी 1946 में नागा क्लब ने नया ऑफिशियल लगने वाला नाम धारण किया: नागा नेशनल काउंसिल. जून 1946 में काउंसिल ने बाकायदा मांग की कि नागा हिल्स को पूरी ऑटोनोमी के साथ इंडिया में रखा जाये. नेहरु जी के साथ विचार-विमर्श हुआ और नेहरु जी मान गए. काउंसिल ने एक और बात कही थी: हम किसी के डिसीजन को यूं ही नहीं मान लेंगे. बिना हमसे पूछे कोई डिसीजन नहीं होना चाहिए. असम और बंगाल के साथ तो बिल्कुल ही नहीं रखना.
1946 के बाद नागा लोगों का रुख बदल गया. नागा नेशनल काउंसिल ने 'सेपरेट नेशन' की मांग की.इस मांग को हवा मिली 1947 के बाद.
आज़ादी के बाद शुरू हुआ नागा उत्पात
आज़ादी के बाद नागालैंड को असम के साथ ही रखा गया. 'नागा नेशन' की मांग जोर पकड़ने लगी. नागा नेशनल काउंसिल के नेता फिजो बने. उन्होंने सारे ग्रुप्स को इकठ्ठा करना शुरू किया. लड़ाई-झगड़े, तोड़-फोड़ होने लगी. सरकारी चीजों को ध्वस्त किया जाने लगा. 1955 में भारत सरकार ने आर्मी भेजी व्यवस्था दुरुस्त करने के लिए. लिए. 1957 में भारत सरकार और नागा लोगों के बीच सहमति बनी: नागा हिल्स का एक अलग रीजन बनाया जायेगा. फिर इस एरिया को यूनियन टेरिटरी घोषित कर दिया गया. पर नागा लोगों को ये पसंद नहीं आया. फिर से मार-काट शुरू हो गई. आर्मी, बैंक, मार्किट हर जगह घमासान. 1960 में नेहरु और नागा लोगों के एक ग्रुप नागा पीपल कन्वेंशन के बीच समझौता हुआ. भारत सरकार ने नागालैंड को एक अलग राज्य बनाने की बात कही. 1963 में नागालैंड एक अलग राज्य बना और 1964 में नागालैंड की पहली चुनी हुई सरकार भी आ गई.
पर कुछ ऐसा हुआ जिसका अंदाजा नहीं था. नागालैंड में बहुत पहले से नागा लोगों के बहुत सारे ग्रुप्स थे. ये सारे एक बात पर राजी नहीं थे. उनमें से बहुत सारे ऐसा मानते थे कि सिर्फ कुछ लोगों को ही सत्ता मिली है. उन ग्रुप्स ने फिर से हिंसा शुरू कर दी. आपस में.
इंदिरा गांधी का शिलांग एकॉर्ड
1972 में एक नागालैंड पीस काउंसिल भी बना. थोड़ी-बहुत शांति आई पर पूरी नहीं. 1975 में इंदिरा गांधी की सरकार ने नागालैंड में राष्ट्रपति शासन लगा दिया. एक डील हुई सरकार और नागा ग्रुप्स के बीच: शिलांग एकॉर्ड. इसके मुताबिक नागा समाज ने भारत के संविधान को स्वीकार कर लिया. 'शस्त्र-त्याग' करने की बात हुई. और कायदे से रहने की बात भी तय हो गई. लगा सब कुछ ठीक हो गया.
शिलांग एकॉर्ड का झोल
पर एक जगह झोल था. शिलांग एकॉर्ड का क्लॉज़ 3. इसमें नागा विद्रोह के अंडरग्राउंड लोगों को वक़्त दिया गया फाइनल सेटलमेंट के लिए. पर बहुत सारे नागा नेता विदेशों में थे. कुछ चीन के संपर्क में भी थे. उन लोगों ने इस एकॉर्ड को मानने से इनकार कर दिया.
नागा नेता फिजो ने इस मामले पर कुछ नहीं कहा. उनकी चुप्पी को भारत सरकार ने स्वीकृति समझा और नागा नेताओं ने धोखा.
इसाक, मुइवा और खापलांग की कसम
इसाक, मुइवा और खापलांग तीन बड़े नागा नेता थे. नागा नेशनल काउंसिल में शुरू से काम कर रहे थे. शिलांग एकॉर्ड के बाद वो फिजो से उखड़ गए. कसम खाई कि नागा हक़ ले के रहेंगे. फिजो बिक गया तो क्या. हम आखिरी सांस तक लड़ेंगे. पांच साल बाद 1980 में तीनों ने अपने 150 साथियों के साथ एक नया ग्रुप बनाया: नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ़ नागालैंड. ये नागा समाज का सबसे आक्रामक ग्रुप था. उद्देश्य था: माओ की आइडियोलॉजी पर 'ग्रेटर नागालैंड' की स्थापना. पर इस ग्रुप को नागा नेशनल काउंसिल वाली लोकप्रियता नहीं मिली.
इरादा बदला, हैसियत बदली
1988 में ये ग्रुप भी टूट गया: एक खापलांग की नेतागिरी में नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ़ नागालैंड(खापलांग) और दूसरा इसाक-मुइवा वाला नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ़ नागालैंड(इसाक-मुइवा). 1990 में फिजो मर गए. उसके बाद यही दोनों ग्रुप मुख्य रहे. खापलांग ग्रुप बर्मा से ऑपरेट करने लगा. अभी पिछले साल भारतीय सेना ने इसी ग्रुप के साथ मार-काट मचाई थी. इसाक-मुइवा ग्रुप नागालैंड में ही जमा रहा.
भारत सरकार ने खापलांग ग्रुप को 'आतंकवादी संगठन' घोषित कर रखा है. इसाक-मुइवा ग्रुप 1997 से ही भारत सरकार से बातचीत करने में लगा है. 

मन की बात: 20 साल में दो बार
1997 में पहली बार गंभीर बात हुई. उसके बाद सीधा पिछले साल 2015 में मोदी सरकार के साथ. प्रधानमंत्री मोदी के आवास पर गृहमंत्री राजनाथ सिंह और सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवाल की मौजूदगी में मुइवा ने फ्रेमवर्क एग्रीमेंट पर साइन किया. सुनने में लगता है कि साइन ही तो हुआ है. पर 19 सालों में 80 राउंड वार्ता के बाद यहां तक पहुंचे हैं. 2012 में एक इमोशनल मोमेंट भी आया था. जब नागालैंड के सारे विधायकों ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से कहा कि इस समस्या का जल्दी से हल निकला जाये. जरूरत पड़ी तो हम लोग रिजाइन भी कर देंगे. फिर से चुनाव करवाएंगे. लोग लड़ाई-झगड़े से उब चुके हैं. लोगों को मरने-मारने से बचाना कितना मुश्किल काम होता है. वो भी तब जब सब अपने हों.
मुइवा
मुइवा

इसाक की कहानी
इसाक का जन्म 1929 में हुआ था. ठीक उसी साल जिस साल नागा क्लब ने साइमन कमीशन के सामने अपने अलग राज्य के लिए मांग रखी थी. अपने गांव चिसिलिमी के 'अमेरिकन मिशन स्कूल' में पढ़ाई किए. शिलांग के सेंट एन्थोनी कॉलेज से पोलिटिकल साइंस में ग्रेजुएशन किए. 1950 में नागा आन्दोलन जॉइन कर लिया. फिजो की नेतागिरी में नागा नेशनल काउंसिल के फॉरेन सेक्रेटरी भी रहे. बाद में अपने ग्रुप नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ़ नागालैंड(इसाक-मुइवा) में चेयरमैन रहे. इसाक मुइवा की तुलना में थोड़े अंतर्मुखी थे. पर संगठन का काम उनको बखूबी आता था.
इसाक की विश्वसनीयता
इसाक नागालैंड के सबसे धाकड़ ट्राइब में से एक 'सुमी' से आते हैं. मुइवा 'थांगकुल' से आते हैं. ग्रुप में ज्यादा नेता थांगकुल ट्राइब से ही हैं पर इसाक की इज्जत सबसे ज्यादा थी. एक और झोल है. ज्यादातर नागा थांगकुल ट्राइब को 'कच्चा नागा' मानते हैं. ऐसे में इसाक की मौजूदगी ग्रुप को जनता में विश्वसनीयता दिलाती है. इसाक ने एक संगठन के तौर पर ग्रुप को काफी मजबूत बनाया है. ये भारत सरकार के लिए फायदेमंद रहा. क्योंकि बहुत सारे ग्रुप्स से बात न कर सिर्फ एक ग्रुप के नेताओं से बात करना आसान हो गया.
इसाक अपनी बातचीत में बाइबिल से कोट करने के लिए मशहूर थे. प्रेस कांफ्रेंस में बात करते-करते भावनाओं में बह जाते और तब मुइवा को आ के मामला सम्भालना पड़ता.
नागा लोगों को पीस एकॉर्ड के लिए तैयार करने के लिए इसाक ने चीन, वियतनाम, पाकिस्तान हर जगह यात्रायें कीं. जब दिल्ली के हॉस्पिटल में भर्ती रहे तब उनकी इच्छा यही थी कि नागा समाज को उसका हक़ मिले और शांति कायम रहे.
कुछ साल पहले अपने एक भाषण में इसाक ने कहा था: 'आज के युग में एकदम अलग रहना संभव नहीं है'. अपने लोगों को भारत सरकार से बात करने के लिए तैयार करने का ये बहुत शानदार तरीका था. धीरे-धीरे चीजें समझाना.
एक समाज को इकठ्ठा करने वाला नेता हमेशा उस समाज की पहचान रहता है. एक आन्दोलन खड़ा करना और उसके लिए 60 सालों तक लड़ना किसी भी समाज में अमरता देता है. ये जरूर है कि राजनीतिक और सामरिक गलतियां हो जाती हैं. पर इस चीज पर निर्णय देने के लिए सबके हक़ से और सबके नजरिये से सोचना पड़ता है. सिर्फ अपने चश्मे से देखने पर पक्षपाती होने की गुंजाइश रहती है. जो भी हो इसाक का नाम नागा समाज में हमेशा बना रहेगा.
उनकी मौत पर प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट किया:
"Mr. Isak Chisi Swu wished the best for the Naga people and aspired for peace. Mr. Swu will be remembered for his historical role in bringing out the Framework Agreement for Naga peace. My heartfelt condolences to the family and supporters of Mr. Isak Chisi Swu on his demise. May his soul rest in peace."
इसाक चिसी स्वू ने हमेशा नागा लोगों की भलाई के बारे में सोचा और शांति की कामना की. स्वू को नागा शांति प्रक्रिया के फ्रेमवर्क एग्रीमेंट में ऐतिहासिक रोल निभाने के लिए हमेशा याद किया जायेगा. उनके निधन पर मेरी तरफ से उनके परिवार और समर्थकों को दिल से संवेदनाएं. भगवान उनकी आत्मा को शांति दे.