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सबसे सेफ बैंक को लूटने वाला शख्स, जज को उल्लू बनाकर सामने से फरार हुआ और कभी हाथ नहीं आया

वो लुटेरा कौन था? इसका जवाब किसी के पास नहीं था. हां, चोर एक सन्देश ज़रूर छोड़कर गया. वॉल्ट की दीवार पर स्प्रे पेंट से लिखा था- 'बिना हथियार के', 'बिना नफरत के' और 'बिना किसी हिंसा के'.

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जब बैंक लुटेरे ने जज को दिखाया लूट का सीक्रेट कोड.

एक बैंक, जिसके बारे में कहा जाता था कि उसे लूटना असंभव है. एक तहखाना, जिसमें लगा था 20 टन स्टील का दरवाजा. दीवारें भी लोहे की बनी हुई थीं. इनके पार रखा था - खजाना. एक दिन खजाना लूट लिया गया. दीवारें ज्यों की त्यों थीं. 20 टन का दरवाजा भी खोला नहीं गया था. इसके बावजूद लुटेरे 27 घंटों तक अंदर चोरी करते रहे. और फिर फरार हो गए. कैसे हुआ ये सब, इसी पर होगी बात.

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दरवाजे खोल दो

तारीख थी 19 जुलाई 1976. सुबह के 9 बजे का वक़्त. जगह थी फ़्रांस के नीस शहर का सोसिएटे जनराल बैंक. रोज़ की तरह बैंक खुला, मैनेजर ने चाबी पकड़ी और सीधा बैंक के वॉल्ट की तरफ गया. ताकि वॉल्ट से कैश निकाल सके. वॉल्ट खोलने में दिक्कत आई. ये अक्सर होता था. इसलिए मैनेजर ने बाकी लोगों से मदद मांगी. इसके बावजूद वॉल्ट का दरवाजा नहीं खुला. अंत में मैनेजर ने वॉल्ट बनाने वाली कम्पनी को इस बारे में बताया. कम्पनी के लोग पहुंचे. लेकिन उनसे भी दरवाजा नहीं खुला. बैंक के वॉल्ट में न सिर्फ करोड़ों का कैश था, बल्कि लगभग चार हजार लॉक बॉक्स भी थे. कोई और बैंक होता तो मैनेजर सकपका जाता. क्या पता किसी ने वॉल्ट लूट लिया हो?

लेकिन इस बैंक में ये ख़्याल मैनेजर तो क्या, किसी के मन में नहीं था. क्योंकि सोसिएटे जनराल का वो वॉल्ट दुनिया का सबसे सुरक्षित वॉल्ट माना जाता था. उसका दरवाजा 20 टन भारी स्टील से बना था, जिसे खोलना नामुमकिन था. दरवाज़ा जब उस रोज़ नहीं खुला, तो उन लोगों ने दीवार में छेद करने की ठानी. कई फ़ीट मोटी दीवार के बीच में लोहा लगा था, जिसे काटने में कई घंटों का समय लगा. अंत में जब मैनेजर और बाक़ी लोग अंदर पहुंचे, तो उन्होंने एक हैरान करने वाला नजारा देखा.

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वॉल्ट लूटा जा चुका था. वॉल्ट का 20 टन वाला दरवाजा इसलिए नहीं खुल रहा था, क्योंकि उसे अंदर से वेल्ड कर बंद कर दिया गया था. इसके बाद चोरों ने कैश और लगभग 400 लॉकर बॉक्स खोलकर उनके अंदर भरा क़ीमती सामान भी गायब कर दिया था. ये हरकत किसने की? इसका जवाब किसी के पास नहीं था. हां, चोर एक सन्देश ज़रूर छोड़कर गए थे. वॉल्ट की दीवार पर स्प्रे पेंट से लिखा था- Without Arms, Without Hate, and Without Violence. यानी 'बिना हथियार के', 'बिना नफरत के' और 'बिना किसी हिंसा के'. इसके अलावा वॉल्ट के फर्श पर एक छेद बना हुआ था. चोर अंदर ही अंदर सुरंग बनाकर सारा माल उड़ा ले गए थे. अब बारी पुलिस की थी. तहकीकात में पता चला कि बैंक के वॉल्ट से अंडरग्राउंड सीवर तक एक सुरंग बनाई गई थी.

सीवर तक पहुंचकर पुलिस को बहुत से सुराग मिले. कुछ औजार, जिनमें शामिल थे 27 गैस सिलेंडर, वेंटिलेशन के उपकरण, और 1 किलोमीटर लम्बी इलेक्ट्रिकल केबल. ये सारे उपकरण सुरंग खोदने के लिए इस्तेमाल हुए थे और सुरंग के रास्ते, चोर 20 मिलियन डॉलर लूट के ले गए. आज के हिसाब से कुल 900 करोड़ रूपये. ये न केवल फ़्रांस के इतिहास की सबसे बड़ी लूट थी. बल्कि इसने  फ्रेंच पुलिस और सोसिएटे जनराल बैंक की साख पर भी सवाल खड़े कर दिए थे. सबके सामने एक ही सवाल था. ये चोरी किसने की. और चोरी की पूरी प्लानिंग कैसे हुई?

नॉवेल से आया Idea

लगभग तीन महीने की मेहनत के बाद पुलिस के हाथ पहला बड़ा सुराग लगा. एक लड़की की टिप पर पुलिस ने एक शख्स को गिरफ्तार किया. जो बैंक लूटने वाले गिरोह का मेंबर था. खातिरदारी के बाद उसने गिरोह के सारे मेम्बर्स का नाम बता दिया. यहीं से पुलिस को इस लूट के मास्टरमाइंड का भी पता चला. जिसका नाम था- एल्बर्ट स्पाजियारी. पुलिस इस नाम से वाकिफ थी. ये कोई आम शख्स नहीं था. शहर का नामी फोटोग्राफर था. जो उस वक्त शहर के मेयर के साथ उनके आधिकारिक फोटोग्राफर के नाते जापान गया हुआ था. उसका नाम सामने आते ही पुलिस ने उसके बैकग्राउंड के बारे में पता लगाया. 

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स्पाजियारी की कहानी अपने आप में काफी दिलचस्प थी. वो 17 की उम्र में वियतनाम युद्ध में लड़ने जाने वाला अच्छा सैनिक था. लेकिन वियतनाम में ही उसे चोरी की आदत लगी. वियतनाम में एक ब्रोथल में चोरी करने के मामले में उसे वापस फ़्रांस भेजा गया और उसे जेल भी हो गई. बाहर आकर वो एक चरमपंथी संगठन से जुड़ा और आतंकी गतिविधियों में लिप्त होने के चलते उसे तीन साल की जेल और हुई. बाहर निकलकर उसने शादी की और अपनी पत्नी के साथ साल 1968 में फ़्रांस के नीस शहर में आकर बस गया. उसने फोटोग्राफ़ी का काम सीखा और जल्द ही अपना एक फोटो स्टूडियो खोल लिया. एल्बर्ट स्पाजियारी की जिंदगी बढ़िया चल रही थी. लेकिन सिर्फ बढ़िया से वो संतुष्ट नहीं था.

साल 1972 में एक रोज़ उसके हाथ एक नॉवेल लगा. लूपहोल नाम की ये किताब एक ऐसी लूट की कहानी थी, जिसमें चोर शहर के सीवर सिस्टम का इस्तेमाल कर लूट को अंजाम देते हैं. एल्बर्ट को ये कहानी पढ़ते-पढ़ते अचानक एक आईडिया सूझा कि नीस के एक बड़े बैंक सोसिएटे जनराल के ठीक नीचे शहर का सीवर सिस्टम होकर गुजरता है. उसने जल्द ही अपना स्टूडियो छोड़ दिया और वहां दूसरे आदमी को रखकर मुर्गियां पालने चला गया. बाद में इसी मुर्गियों के बाड़े से पुलिस को बंदूकें और बारूद बरामद हुए. इसके अलावा एक और बात जो जानना जरूरी है, वो ये कि एल्बर्ट पहले एक ऐसी कम्पनी में भी काम कर चुका था, जो बैंकों के वॉल्ट बनाती थी. इसी तैयारी की बदौलत वो बैंक लूटने का प्लान बना पाया.

प्लान के तहत उसने सबसे पहले टाउनहॉल जाकर शहर के सीवर नेटवर्क का नक्शा हासिल किया. इसके बाद अगले कई हफ़्तों तक वो सीवरों में घूमता रहा. ताकि सीवर सिस्टम को अच्छे से समझ सके. फिर उसने सोसिएटे जनराल बैंक में एक सेफ्टी बॉक्स खोला. नियम के अनुसार सेफ्टी बॉक्स में क्या है, ये बैंक के लोग नहीं देख सकते. इसी बात का फायदा उठाते हुए स्पाजियारी ने सेफ्टी बॉक्स में एक अलार्म घड़ी रख दी, जिसमें आधी रात का अलार्म लगा हुआ था. उसे सेफ्टी बॉक्स वॉल्ट के अंदर रखा गया. अगले कई दिनों तक आधी रात उसमें तेज़ अलार्म बजा. बाहर उसकी कोई आवाज़ नहीं आई. लेकिन स्पाजियारी को ये पता चल गया कि वॉल्ट के अंदर साउंड से एक्टिवेट होने वाला कोई सिक्योरिटी सिस्टम नहीं है.

अब अगला कदम था लूट को अंजाम देने का. इसके लिए स्पाजियारी ने इलाके के कुछ छठे बदमाशों को अपने साथ मिलाया. 2 महीनों तक 20 लोगों ने सीवर से लेकर बैंक के वॉल्ट तक सुरंग खोदी. इस काम के लिए उन्होंने औजारों के बजाय हाथों का इस्तेमाल किया, क्योंकि औजारों को ट्रेस किया जा सकता था. दो महीने बाद जो सुरंग बनकर तैयार हुई. वो आठ मीटर लम्बी, 2 फ़ीट चौड़ी, और 20 इंच ऊंची थी. सुरंग गिरे नहीं इसके लिए उसमें कंक्रीट लगाकर बिजली के तारों से रौशनी का इंतज़ाम किया गया था. इसके बाद आई घटना की तारीख. 

रविवार के रोज़ को वे लोग सुरंग के रास्ते वॉल्ट के अंदर घुसे. और अगले 27 घंटों तक एक वॉल्ट के अंदर ही रहे. सारा माल इकठ्ठा कर वो चलते बने. फ़्रांस के इतिहास की सबसे बड़ी लूट को अंजाम देने के बाद एल्बर्ट स्पाजियारी दोबारा अपने फोटोग्राफी के धंधे में लग गया. उसे पूरा भरोसा था कि पुलिस उस तक नहीं पहुंच सकती. हालांकि हुआ कुछ और. पुलिस ने जल्द ही उसके मास्टरमाइंड होने का पता लगा लिया.

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जज को दिया चकमा

पुलिस को एल्बर्ट स्पाजियारी की पूरी कहानी पता चल चुकी थी. पुलिस उसके जापान से लौटने का इंतज़ार कर रही थी. लौटते ही पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया. शुरुआती पूछताछ में वो मुंह खोलने को तैयार नहीं था. लेकिन जब पुलिस ने उसकी पत्नी को इन्वॉल्व करने की धमकी दी तो वो कॉपरेट करने के लिए तैयार हो गया. हालांकि इसके बाद भी उसने पुलिस को गिरोह के सारे मेम्बर्स के नाम नहीं बताए. न ही उसने पुलिस को ऐसा सुराग दिया, जिसकी बदौलत केस में उसे सज़ा मिल पाती. लगभग 5 महीने जेल में रहने के बाद एक रोज़ उसने केस देख रहे जज से मिलने की मंशा जाहिर की. उसने कहा कि वो जज को अपने साथियों के नाम बताना चाहता है. साथ ही एक पुख्ता सबूत देना चाहता है. स्पाजियारी की ये ख्वाहिश पूरी की गई.

जज के सामने उसने एक कागज़ पेश किया. इस कागज़ में कुछ कोडेड सिम्बल बने हुए थे. जज ने जब पूछा कि इन सिम्बल का मतलब क्या है तो उसने कहा कि ये कोड तोड़कर ही असली सबूत सामने आएगा. जज उस कागज़ को देखने लगे और तभी मौक़ा पाकर स्पाजियारी कमरे में बनी खिड़की से नीचे कूद गया. नीचे एक कार में गिरा. कार से निकलकर एक मोटरसाइकिल में बैठा और फरार हो गया. हमेशा हमेशा के लिए. स्पाजियारी को उसकी गैरमौजूदगी में ही, उम्रकैद की सजा दी गई. लेकिन वो पुलिस के हाथ कभी नहीं आया.

समय-समय पर उसकी कुछ तस्वीरें फ्रेंच अखबारों में छपती रहीं. लेकिन वो खुद पकड़ा नहीं गया. बाकायदा एक साल बाद उसने एक किताब भी लिखी. नाम था- The Sewers of Paradise. इस किताब में बैंक लूट की पूरी कहानी लिखी हुई थी. इसके बाद उसका क्या हुआ, किसी को नहीं पता. रिपोर्ट्स के मुताबिक़, उसने अपनी बाक़ी की जिंदगी साउथ अमेरिका में रहकर गुजारी थी. बाद में वो इटली चला गया था. जहां फेफड़ों के कैंसर से उसकी मौत हो गई. उसने जो पैसा लूटा था, वो कभी बरामद नहीं हो पाया.

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एक आख़िरी ट्विस्ट

इस मामले में एक आख़िरी ट्विस्ट आया साल 2010 में. उस साल 'द ट्रुथ अबाउट द नीस केस' नाम की एक किताब छपी. किताब में दावा किया गया था कि 36 साल पहले हुई लूट का मास्टरमाइंड एल्बर्ट स्पाजियारी नहीं, कोई और था. इस किताब को लिखने वाले ने अपना नाम अमीगो बताया था और उसके अनुसार लूट उसके इशारे पर हुई थी. जैसे ही किताब छपी, पुलिस ने अमीगो को ढूंढ निकाला. उसका असली नाम - जैक्स कसांडरी था, जो फ़्रांस के अंडरवर्ड माफिया में एक बड़ा नाम था. हेरोइन के कारोबार के चक्कर में उसे जेल हो चुकी थी. लेकिन अब वो एक लीगल कारोबार करता था. किताब बाहर आते ही पुलिस ने कसांडरी को एक बार फिर गिरफ्तार कर लिया. बड़ा सवाल ये था कि उसने अपनी ही पोल क्यों खोली?

दरअसल लूट के बाद एल्बर्ट स्पाजियारी फ़्रांस के लोगों के बीच एक हीरो बन गया था. कसांडरी के अनुसार वो इस बात से खार खाया हुआ था कि उसके कारनामे का क्रेडिट किसी और को मिल रहा है, इसलिए उसने किताब लिखी, ताकि असली कहानी सामने आ सके. कसांडरी जेल गया. उस पर मुक़दमा चला. लेकिन सच ये है कि अधिकतर लोग आज भी एल्बर्ट स्पाजियारी को इस लूट का चेहरा मानते हैं. एक ऐसा शख्स जिसने उस बैंक को लूटा, जिसे लूटना नामुमकिन था. और फिर दिन दहाड़े ऐसे गायब हो गया जैसे गधे के सिर से सींग.

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