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UP में अब FIR में नहीं लिखी जाएगी आरोपी की जाति, कास्ट के नाम पर होने वाली रैलियां भी बैन

उत्तर प्रदेश में पुलिस द्वारा आरोपियों की जाति लिखने पर रोक लगा दी गई है. साथ ही जाति आधारित रैलियां भी अब राज्य में नहीं की जा सकेंगी. क्यों लिया गया यह फैसला?

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इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के बाद सरकार ने नए नियम जारी किए हैं. (Photo: File/ITG)
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संतोष शर्मा

उत्तर प्रदेश में अब FIR से लेकर गिरफ्तारी और सर्च वारंट समेत पुलिस के किसी भी डॉक्यूमेंट्स में आरोपी की जाति नहीं लिखी जाएगी. इसके अलावा प्रदेश में अब जाति आधारित रैलियां आयोजित करने पर भी पूरी तरह रोक रहेगी. इस संबंध में इलाहाबाद हाईकोर्ट की ओर से आदेश दिया गया था. आदेश का पालन करते हुए राज्य के मुख्य सचिव ने नए नियमों को लेकर निर्देश जारी किए हैं.

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रिकॉर्ड से डिलीट किया जाएगा जाति का कॉलम

आदेश के अनुसार अपराधियों को ट्रैक करने के लिए बनाए गए CCTNS (Crime and Criminal Tracking Network and Systems) पोर्टल से भी जाति वाले कॉलम को डिलीट किया जाएगा. साथ ही आरोपी की पहचान के लिए उसके पिता के साथ माता का भी नाम लिखा जाएगा. इस संबंध में NCRB (National Crime Records Bureau) से भी रिकॉर्ड्स अपडेट करने का अनुरोध किया जाएगा. पोर्टल में जाति कॉलम डिलीट न होने तक इसे खाली छोड़ा जाएगा.

इसके अलावा थानों के नोटिस बोर्ड्स, पुलिस की बरामद करने की रिपोर्ट, गिरफ्तारी या तलाशी मेमो, FIR और चार्जशीट में भी आरोपी की जाति नहीं लिखी जाएगी. हालांकि अगर किसी मामले में कानूनी रूप से जाति बताना जरूरी है तो वहां इस नियम पर छूट रहेगी.

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up caste based order
Photo: ITG
पोस्टर और स्लोगन पर भी हो सकती है कार्रवाई 

पुलिस के डॉक्यूमेंट्स के अलावा वाहन या पब्लिक प्लेसेस में जाति लिखने या जाति को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाने वाले स्लोगन/पोस्टर लगाने पर भी रोक रहेगी. ऐसा करते पाए जाने पर कार्रवाई की जाएगी. इसके अलावा सोशल मीडिया पर भी जाति का गुणगान करने वाली या किसी जाति को नीचा दिखाने वाली पोस्ट्स पर नजर रखी जाएगी.

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आजतक की रिपोर्ट के अनुसार इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 19 सितंबर 2025 को प्रवीण छेत्री बनाम राज्य के एक शराब तस्करी से जुड़े मामले में यह फैसला सुनाया था. याचिकाकर्ता ने FIR और जब्ती मेमो में अपनी जाति लिखी होने पर आपत्ति जताई थी. इस पर कोर्ट ने सहमति जताते हुए इसे संविधान की नैतिकता के खिलाफ बताया था. कोर्ट ने कहा था कि जाति का महिमामंडन राष्ट्र-विरोधी काम है. कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को आदेश दिया था कि पुलिस के डॉक्यूमेंटेशन की प्रोसेस में बदलाव किया जाए. सभी आरोपियों, मुखबिरों और गवाहों की जाति से संबंधित कॉलम हटा दिए जाएं.

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