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तेलंगाना में 'सीक्रेट लेटर' से फोन टैपिंग का खुलासा, अफसर-नेता-जज सबकी सुन ली गई!

BRS Phone Tapping Case: 1990 में SIB की स्थापना हुई. इसका काम है, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) की गतिविधियों पर नजर रखना और उन्हें रोकना. लेकिन सूत्रों का कहना है, ‘जिन नंबरों को सर्विलांस पर रखा गया था, उनमें से कम से कम 600 नंबर वामपंथी उग्रवाद या सीपीआई (माओवादी) से संबंधित नहीं थे.'

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कथित तौर पर चुनाव से पहले कई लोगों की जासूसी कराई गई थी. (फाइल फोटो: इंडिया टुडे)

तेलंगाना में साल 2023 में कथित तौर पर कई लोगों के फोन टैप (Telangana Phone Tapping) किए गए थे. इस मामले को लेकर एक नई चिट्ठी का खुलासा हुआ है. इंडियन एक्सप्रेस ने रिपोर्ट किया है कि 6 दिसंबर 2023 को, हैदराबाद स्थित स्पेशल इंटेलिजेंस ब्रांच (SIB) के ऑफिस में एक टेलिकॉम सर्विस प्रोवाइडर की ओर से एक पत्र आया था. इस चिट्ठी पर ‘टॉप सीक्रेट’ लिखा था और ये SIB के तत्कालीन DIG के नाम था. 

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महज तीन दिन पहले ही राज्य में एक नई सरकार सत्ता में आई थी और कांग्रेस के रेवंत रेड्डी मुख्यमंत्री बने थे. इससे पहले राज्य में BRS की सरकार थी और के चंद्रशेखर राव मुख्यमंत्री थे.

सीक्रेट लेटर में लिखा क्या था?

चिट्ठी में पूछा गया था कि क्या रिलायंस जियो इन्फोकॉम लिमिटेड को कुछ फोन नंबर्स का ‘लीगल इंटरसेप्शन’ जारी रखना चाहिए. लेटर के मुताबिक, जिन फोन नंबर्स की बात हो रही थी, उन्हें 16 नवंबर 2023 से 30 नवंबर 2023 तक यानी कि विधानसभा चुनाव से ठीक पहले ‘लीगल इंटरसेप्शन’ के अधीन रखा गया था. 

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लेटर तब भेजा गया था जब ‘लीगल सर्विलांस’ के लिए 15 दिनों की अवधि खत्म हो गई थी. इसके बाद सर्विलांस को जारी रखने के लिए फिर से आदेश लेने की जरूरत पड़ती है.

इस चिट्ठी की जानकारी सामने आने से उस मामले को बल मिला है, जिसमें पांच बड़े पुलिस और इंटेलिजेंस अफसरों और एक टीवी चैनल ऑपरेटर पर आरोप है कि उन्होंने 600 लोगों की गैरकानूनी निगरानी की. ये सर्विलांस राज्य की नक्सल विरोधी तकनीक का गलत इस्तेमाल करके की गई, ताकि BRS पार्टी को फायदा पहुंचाया जा सके.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, जिन लोगों की कथित तौर पर जासूसी की गई, उनमें राजनेता, पार्टी कार्यकर्ता, नौकरशाह, व्यवसायी, उच्च न्यायालय के एक वर्तमान न्यायाधीश, साथ ही उनके जीवनसाथी, ड्राइवर और यहां तक कि उनके बचपन के दोस्त भी शामिल थे. मामले की जानकारी रखने वाले अधिकारियों के हवाले से बताया गया है कि विधानसभा चुनाव में BRS की जीत सुनिश्चित करने के लिए विरोधी दलों के राजनेताओं के साथ-साथ BRS के बागियों पर भी नजर रखी गई थी.

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1990 में SIB की स्थापना हुई. इसका काम है, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) की गतिविधियों पर नजर रखना और उन्हें रोकना. लेकिन उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है, ‘जिन नंबरों को सर्विलांस पर रखा गया था, उनमें से कम से कम 600 नंबर वामपंथी उग्रवाद या सीपीआई (माओवादी) से संबंधित नहीं थे. जांच एजेंसियों ने आगे जांच की, तो पता चला कि ये नंबर राजनेताओं, नौकरशाहों, राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं, व्यापारियों और विभिन्न क्षेत्रों के अन्य लोगों के थे.’

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अवैध सर्विलांस के मामले के आरोपी कौन हैं?

इस मामले में SIB के पूर्व प्रमुख और IPS अधिकारी टी प्रभाकर राव, पुलिस उपाधीक्षक डी प्रणीत राव, अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक एम थिरुपथन्ना और एन भुजंगा राव, पूर्व पुलिस अधीक्षक पी राधाकिशन राव और एक टीवी चैनल के मालिक ए श्रवण कुमार राव को आरोपी बनाया गया है.

सुप्रीम कोर्ट ने प्रभाकर राव को 5 अगस्त तक गिरफ्तारी से छूट दी थी. लेकिन प्रणीत राव, थिरुपथन्ना, भुजंगा राव और राधाकिशन राव को गिरफ्तार कर लिया गया था. फिलहाल वो जमानत पर बाहर हैं. श्रवण कुमार राव एक अन्य मामले में हैदराबाद की एक केंद्रीय जेल में बंद हैं.

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