दिल्ली हाई कोर्ट ने आयकर विभाग द्वारा एक परिवार के निजी लॉकर पर की गई अचानक तलाशी को सही ठहराया. दक्षिण दिल्ली वॉल्ट्स में एक परिवार के निजी लॉकर की अचानक तलाशी और सामान ज़ब्ती (search and seizure) की कार्रवाई की गई थी. यह कार्रवाई बिना पहले से नोटिस या समन दिए की गई थी. LiveLaw की रिपोर्ट के मुताबिक कोर्ट ने इसे सही ठहराया है.
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दिल्ली हाई कोर्ट ने आयकर अधिनियम, 1961 की उन धाराओं की व्याख्या की जिनमें बिना पूर्व नोटिस जारी किए आयकर विभाग तलाशी ले सकता है.
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वादी परिवार का कहना था कि उन्हें पहले से सूचना न देना आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 132 का उल्लंघन है. इस धारा के तहत तलाशी और ज़ब्ती की प्रक्रिया तय है. परिवार ने दलील दी कि उप-धारा 132(1)(a) के अनुसार विभाग को पहले नोटिस या समन जारी कर उनसे खाते-बही या अन्य स्पष्टीकरण मांगा जाना चाहिए था. परिवार ने अदालत में कहा कि बिना ऐसा किए तलाशी लेना अवैध है और विभाग के पास कोई ठोस आधार (reason to believe) भी नहीं था.
लेकिन हाई कोर्ट ने पाया कि आयकर विभाग ने गुप्त जांच की थी और इस दौरान कई संदिग्ध 'बेनाम लॉकर' सामने आए. जांच में पता चला कि याचिकाकर्ताओं के पास भी लॉकर थे, जिनका उनकी आय और उनकी प्रोफ़ाइल से मेल नहीं दिखा. अदालत ने कहा कि इससे यह उचित संदेह बना कि उनके पास अघोषित या बेनामी संपत्ति हो सकती है और यही धारा 132(1)(c) के तहत 'reason to believe' माना जाएगा.
जहां तक नोटिस जारी करने की बात है, अदालत ने कहा कि धारा 132(1) की तीनों उप-शर्तें अलग-अलग हैं और हर उप-धारा के बाद ‘या (or)’ शब्द आता है. इसका मतलब यह है कि तलाशी किसी भी एक उप-धारा की शर्त पूरी होने पर की जा सकती है. इस मामले में चूंकि उप-धारा (c) लागू होती थी, इसलिए तलाशी वैध मानी जाएगी.
इसी आधार पर हाई कोर्ट ने विभाग की कार्रवाई में दखल देने से इनकार कर दिया और याचिका को खारिज कर दिया.
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