यूनानी दार्शनिक और शिक्षक प्लेटो के बड़े प्यारे शिष्य थे अरस्तू. दोनों ही गजब के विद्वान थे. दोनों का रिश्ता भी ऐसा था कि सबको लगता था, प्लेटो की विरासत को अगर कोई आगे ले जाएगा तो वह अरस्तू ही हैं. लेकिन एथेंस में जैतून के पेड़ों के बगीचे में अरस्तू ने दुनिया का जो पहला स्कूल बनाया था और जिसे ‘हेकाडेमस’ नाम के एक स्थानीय नायक के नाम पर बाद में ‘अकादमी’ कहा जाने लगा, उसके उत्तराधिकार की बात आई तो खुद प्लेटो ने ही इस जनधारणा को ठुकरा दिया.
आखिर कहां से आया ये 'नेपोटिज्म' जिससे पैदा हुए गुस्से ने नेपाल में सत्ता उखाड़ दी?
नेपोटिजम सैकड़ों साल पुरानी अवधारणा है. 15वीं सदी से यह अपने इसी नाम से जाना-पहचाना जाता है.
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उन्होंने अपने बाद इस स्कूल को चलाने की जिम्मेदारी जिसे दी वह अरस्तू नहीं थे. स्प्यूसिप्पस (Speusippus) थे. स्प्यूसिप्पस की और भी योग्यता रही होगी, लेकिन उनकी एक खास पहचान और थी जिसकी वजह से प्लेटो का ये फैसला थोड़ा सा विवादित हो गया था. स्प्यूसिप्पस रिश्ते में प्लेटो के भतीजे लगते थे. प्लेटो के इस फैसले को ‘नेपोटिज्म’ यानी भाई-भतीजावाद के एकदम शुरुआती मामलों में से एक कहा जा सकता है. और ये भी कहा जा सकता है कि अरस्तू भाई-भतीजावाद के सबसे पहले शिकारों में से एक थे.
बीते दिनों युवाओं के ‘जेन-जी आंदोलन’ ने नेपाल का सिंहासन हिला दिया तो नेपोटिज्म की बहस एक बार फिर छिड़ गई. इस आंदोलन की वजह से प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली समेत उनके मंत्रिमंडल को इस्तीफा देना पड़ गया. कहा गया कि सोशल मीडिया बैन और भ्रष्टाचार के खिलाफ भड़के इस आंदोलन की जड़ में ‘नेपो किड्स’ और ‘नेपो बेबीज’ को लेकर लोगों के मन में पनप रहा गुस्सा भी था. उनकी लग्जरी लाइफस्टाइल एक आम नेपाली गरीब नागरिक की जीवनशैली से जमीन-आसमान का अंतर रखती थी.
आंदोलन से पहले नेपाल की सोशल मीडिया पर कुछ हैशटैग तैर रहे थे- #NepoBabies, #NepoKids, #PoliticiansNepoBabyNepal, जिसके बाद लोगों की इस शब्द को लेकर जिज्ञासा बढ़ी कि ये क्या है? इसका अर्थ क्या है? किस आशय से ये सबसे पहली बार प्रयोग किया गया होगा और कहां किया गया होगा. क्योंकि नेपाल ही नहीं, भारत और अमेरिका में भी ये शब्द सोशल मीडिया की सनसनी बन चुके हैं.
इंडियन एक्सप्रेस ने गूगल ट्रेंड्स की रिपोर्ट के आधार पर बताया कि दिसंबर 2022 में ‘नेपो बेबी’ शब्द को लेकर पूरी दुनिया में लोगों की जिज्ञासा चरम पर थी और इसके बारे में सर्च लगातार बढ़ रहा था. भारत में बड़े पैमाने पर नेपोटिज्म यानी भाई-भतीजावाद के बारे में गूगल करने का पहला मामला 2017 की शुरुआत में सामने आया, जब कंगना रनौत ने फिल्म इंडस्ट्री पर नेपोटिज्म के आरोप लगाए थे. यह मई 2020 में अपने चरम पर था.
लेकिन, नेपोटिज्म सैकड़ों साल पुरानी अवधारणा है. 15वीं सदी से यह अपने इसी नाम से जाना-पहचाना जाता है.
ब्रिटानिका के मुताबिक, नेपोटिज्म शब्द लैटिन भाषा के शब्द ‘nepos’ से आया है, जिसका मतलब होता है- भतीजा या पोता. यह शब्द सबसे पहले रोमन कैथोलिक चर्च में इस्तेमाल हुआ. उस समय पोप अपने रिश्तेदारों, खासकर भतीजों को बड़े पद देते थे और उन्हें कार्डिनल भी बना देते थे. पोप एलेक्ज़ेंडर-VI के बारे में तो कहा जाता है कि उन्होंने अपने नाजायज बेटे सीजरे बोरजिया (Cesare Borgia) को कार्डिनल बना दिया था और राज छिपाने के लिए उसे भतीजा कहकर बुलाया था.
ओपन मैगजीन के एक लेख के अनुसार, कैथोलिक चर्च में पादरी और पोप शादी नहीं कर सकते थे. ताकि उनके बच्चे न हों और नेपोटिज्म न फैले. लेकिन तब परिवारवाद का असर दूसरे रूप में सामने आया. कहते हैं कि कई पोप ऐसे थे, जिन्होंने ब्रह्मचर्य की शपथ लेने के बाद भी बच्चे पैदा किए और दुनिया के सामने उन बच्चों को भतीजे के रूप में पेश किया. ऐसे कई Nephews को चर्च में अहम पद दिए गए. उन्हें कार्डिनल बनाया गया और प्रशासन का काम उनके हाथों में सौंप दिया गया.
लगभग 500 साल तक चर्चों में ‘कार्डिनल-Nephew’ की परंपरा चली. इनमें से कई नाकाबिल और भ्रष्ट निकले, लेकिन कुछ ने नाम भी कमाया. जैसे- स्किपियोन बोरघेजे ने मशहूर कलाकार बर्निनी को आगे बढ़ाया और रोम में शानदार विला बोरघेजे बनवाया. सबसे प्रसिद्ध थे- सेंट चार्ल्स बोर्रोमियो, जो चर्च के बड़े सुधारक बने.
इस प्रथा पर चर्च की काफी आलोचना हुई. साल 1667 में इटालियन लेखक ग्रेगोरियो लेटी (Gregorio Leti) ने ‘Il Nipotismo di Roma’ नाम की एक व्यंग्य रचना लिखी, जिसे अंग्रेजी में ‘The History of the Popes’ Nephews’ कहा गया. बाद में ‘नेपोटिज्म’ शब्द का मतलब ही हो गया, ताकतवर इंसान का अपने रिश्तेदारों या दोस्तों को फायदा पहुंचाना.
आज के समय में नेपोटिज्म की परिभाषा तय करें तो कह सकते हैं,
जब ताकतवर या प्रभावशाली लोग अपने रिश्तेदारों या दोस्तों को ही लाभ के पदों पर तरजीह देने लगते हैं तो यह व्यवस्था नेपोटिजम यानी भाई-भतीजावाद कही जाती है.
हालांकि, एक बड़े कालखंड में राजनीतिक व्यवस्था में लंबे समय तक राजाओं के ‘आनुवंशिक शासन’ ने इस कॉन्सेप्ट को खूब सींचा. राजा का बेटा ही राजा बनता रहा, जब तक कि लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था का दौर नहीं आ गया.
लोकतंत्र में वंश के आधार पर नहीं बल्कि वोट के आधार पर सत्ता मिलने लगी. लेकिन यहां भी नेपोटिज्म का ‘निर्मूलन’ नहीं हो पाया. अमेरिका और भारत समेत दुनिया के कई देशों की राजनीतिक व्यवस्था में भाई-भतीजावाद आज भी चर्चा का विषय बने हैं.
भारत में नेताओं पर आरोप लगते हैं कि वह अपने उत्तराधिकार के तौर पर बेटों को लॉन्च करते हैं. ज्यादातर बड़े नेताओं के बच्चे पॉलिटिक्स में हैं और चुनाव लड़ने के अवसर उन्हें आम नागरिक से ज्यादा आसानी से उपलब्ध हैं.
सिर्फ राजनीति में ही नहीं बल्कि प्राइवेट इंडस्ट्रीज, बॉलीवुड और हॉलीवुड में भी नेपोटिज्म के आरोपों ने खूब शोर मचाया है. हिंदी फिल्म इंडस्ट्री तो इसीलिए ही बदनाम है कि यहां ‘नेपोटिज्म’ से प्रभावित सरमायेदार बाहरी कलाकारों को प्रमोट करने से कतराते हैं. फिल्म अभिनेत्री और फिलहाल, बीते सालों में भाजपा सांसद कंगना रनौत ने इस मुद्दे को काफी जोर-शोर से उठाया है. फिल्म एक्टर सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या के बाद भी इस मुद्दे ने खूब जोर पकड़ा था.
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