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चुपके से वाट्सऐप चैट हासिल की और बीवी पर अफेयर का आरोप लगाया, पता है कोर्ट ने क्या कहा?

मध्य प्रदेश में एक वैवाहिक विवाद में एक व्यक्ति ने अपनी पत्नी पर विवाह के बाहर अफेयर होने के आरोप लगाए हैं. मामला फैमिली कोर्ट में चल रहा है. निचली अदालत में पति ने महिला के खिलाफ कुछ सबूत पेश किए थे.

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कोर्ट ने वैवाहिक विवाद के एक मामले में फैसला सुनाया. (फाइल फोटो: इंडिया टुडे)

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर बेंच ने बिना सहमति के प्राप्त किए गए वाट्सऐप चैट को सबूत (WhatsApp Chat Evidence) के तौर पर स्वीकार करने की अनुमति दी है. दरअसल, एक वैवाहिक विवाद में एक व्यक्ति ने अपनी पत्नी पर विवाह के बाहर अफेयर होने के आरोप लगाए हैं. मामला फैमिली कोर्ट में चल रहा है. निचली अदालत में पति ने महिला के खिलाफ कुछ सबूत पेश किए थे.

सबूत पत्नी का वाट्सऐप चैट था जो पति ने चुपके से हासिल किया था. उसने महिला के मोबाइल पर एक थर्ड पार्टी ऐप इंस्टॉल कर दिया था जिससे उसकी पत्नी का वाट्सऐप चैट अपने आप ही उसके पास पहुंच जाता था. दावा किया गया कि इस चैट से ये साबित होता है कि विवाह के बाहर महिला का किसी तीसरे व्यक्ति से अफेयर था. निचली अदालत में इस सबूत के पेश किए जाने पर महिला ने इसका विरोध किया और वो हाईकोर्ट पहुंच गईं.

उनके वकील ने ये दलील दी कि इस चैट को हासिल करने के लिए महिला की अनुमति नहीं ली गई. उन्होंने कहा कि ये निजता का उल्लंघन है और साक्ष्य प्राप्त करने का अवैध तरीका है. हाईकोर्ट के जस्टिस आशीष श्रोती ने कहा,

पारिवारिक न्यायालय अधिनियम की धारा 14 के तहत निजी वाट्सऐप चैट को साक्ष्य के रूप में स्वीकार किया जा सकता है. भले ही वो सहमति के बिना प्राप्त किया गया हो या भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 के तहत स्वीकार्य न हो.

हालांकि, उन्होंने ये भी कहा कि सबूत स्वीकार होने का मतलब ये नहीं है कि इसे हासिल करने का अवैध तरीका सिविल या आपराधिक कानून या दोनों के तहत नहीं आता. 

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निजता का अधिकार बनाम फेयर ट्रायल का अधिकार

महिला की ओर से ये दलील दी गई कि निजता का अधिकार उनके मौलिक अधिकारों के तहत आता है. लाइव एंड लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक जस्टिस श्रोती ने अपने फैसले में कहा,

हमारे संविधान के तहत कोई भी मौलिक अधिकार निरपेक्ष नहीं है. (हर अधिकार पर कुछ सीमाएं या शर्तें होती हैं). इस केस में दो मौलिक अधिकारों के बीच टकराव है, निजता के अधिकार और निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार के बीच. दोनों संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत आते हैं. इस स्थिति में निजता के अधिकार को निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार के आगे झुकना पड़ सकता है. 

हाईकोर्ट ने स्पष्ट कहा कि फैमिली कोर्ट के पास इस सबूत को स्वीकार करने का अधिकार है. कोर्ट ने कहा,

वैवाहिक विवाद पर अंतिम फैसला देते समय किसी विशेष साक्ष्य को स्वीकार करने या खारिज करने का पूरा अधिकार पारिवारिक न्यायालय के पास है.

अदालत ने ये भी कहा कि इस तरह के मामलों में साक्ष्य तब तक स्वीकार्य हैं, जब तक वो प्रासंगिक हैं. 

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