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केरल निकाय चुनाव में कांग्रेस गठबंधन को इतनी बड़ी जीत क्यों मिली? ये 5 कारण पूरी कहानी बता रहे

Kerala local body election Result: लगातार तीसरी बार सरकार बनाने की तैयारी कर रहे लेफ्ट के LDF गठबंधन के लिए ये नतीजे चिंता बढ़ाने वाले हैं. उन पांच कारणों पर नजर डालते हैं, जिनकी वजह से LDF की स्थिति कमजोर हुई और कांग्रेस के नेतृत्व वाले UDF गठबंधन को एकतरफा जीत मिली.

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(बाएं से दाएं) कांग्रेस नेता वीडी सतीसन, CM विजयन और BJP प्रदेश अध्यक्ष चंद्रशेखर. (फाइल फोटो: ITG)

केरल के स्थानीय निकाय चुनावों के नतीजे बता रहे हैं कि 2026 के विधानसभा चुनाव से पहले माहौल बदल रहा है. इन नतीजों से पता चलता है कि सत्तारूढ़ CPI (M) के नेतृत्व वाले लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (LDF) का समर्थन घटा है. यहां तक कि उसके मजबूत इलाकों में भी. वहीं कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (UDF) ने जोरदार वापसी की है और उसे सबसे ज्यादा फायदा हुआ है.

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लगातार तीसरी बार सरकार बनाने की तैयारी कर रही LDF के लिए ये नतीजे चिंता बढ़ाने वाले हैं. उनका पुराना वोट बैंक पहले जैसा मजबूत नहीं रहा और वे नए समर्थक भी नहीं जुटा पाए. कांग्रेस और भाजपा द्वारा लगाए गए घोटालों के आरोपों का वे ठीक से जवाब भी नहीं दे सके. इसी तरह की कई गलतियों और चुनौतियों की वजह से लेफ्ट फ्रंट बैकफुट पर आ गया. ऐसे ही पांच कारणों पर नजर डालते हैं, जिनकी वजह से LDF की स्थिति कमजोर हुई.

1. सबरीमाला गोल्ड चोरी केस

इंडियन एक्सप्रेस से जुड़े शाजू फिलिप की रिपोर्ट के मुताबिक, मिडिल और साउथ केरल में CPI (M) का मजबूत हिंदू वोट बैंक रहा है, लेकिन सबरीमाला से जुड़े कथित गोल्ड चोरी मामले ने पार्टी को नुकसान पहुंचाया. एक सीनियर नेता की गिरफ्तारी के बाद कांग्रेस और बीजेपी ने इस मुद्दे को जमकर उठाया.

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CPI (M) ने पलटवार में कांग्रेस पर जमात-ए-इस्लामी का समर्थन लेने का आरोप लगाया, लेकिन कांग्रेस ने इसे खारिज कर दिया और कहा कि खुद CPI (M) को कई दशकों तक जमात-ए-इस्लामी का समर्थन मिलता रहा है. कुल मिलाकर, यह मुद्दा लेफ्ट फ्रंट के लिए उल्टा पड़ता दिखा.

2. फीका चुनाव प्रचार अभियान

CPI (M) ने चुनाव में अपनी विकास और कल्याण योजनाओं को ही मुद्दा बनाया. उन्होंने पेंशन बढ़ाने और गरीब महिलाओं को मासिक मदद जैसी योजनाओं का प्रचार किया. कोविड के वक्त ये योजनाएं काम आई थीं और तब LDF जीती भी थी, लेकिन इस बार वोटर्स पर इनका असर नहीं पड़ा. गरीबी हटाने, कचरा प्रबंधन और गरीबों के लिए घर जैसी योजनाएं, इस चुनाव में लेफ्ट के काम नहीं आ सकीं.

3. मुस्लिम मतदाताओं का अलगाव

मुस्लिम बहुल इलाकों में CPI (M) को नुकसान हुआ. लोगों को लगा कि पार्टी ने हिंदुत्व के खिलाफ अपना सख्त रुख कमजोर कर दिया है. केंद्र की योजना पीएम-श्री में केरल सरकार की भागीदारी ने भी इस शक को मजबूत किया. इसके अलावा, जब SNDP महासचिव और हिंदू नेता वेल्लापल्ली नटेसन ने मलप्पुरम में मुसलमानों के खिलाफ बयान दिया, तो विजयन सरकार और CPI (M) की चुप्पी मुस्लिम वोटरों को पसंद नहीं आई.

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4. ईसाई वोट का बदला 

सेंट्रल केरल में ईसाई वोट इस बार कांग्रेस के साथ गया. पहले यह वोट कांग्रेस, CPI (M) और बीजेपी में बंटा हुआ था. 2020–21 में UDF यहां कमजोर हुई थी, लेकिन इस बार बिना बड़े ईसाई चेहरों के भी कांग्रेस ने समुदाय का भरोसा वापस जीत लिया. वहीं, 15 फीसदी ईसाई उम्मीदवार उतारने के बावजूद बीजेपी को खास फायदा नहीं मिला.

5. सरकार के खिलाफ नाराज़गी

करीब 10 साल सत्ता में रहने के बाद विजयन सरकार से लोगों की नाराज़गी बढ़ी है. लगातार तीसरी बार सरकार बनने के दावे वाला CPI (M) का प्रचार भी उल्टा पड़ गया. महंगाई बढ़ने से जरूरी चीजें महंगी हुईं, जिससे आम लोग परेशान हैं. 

एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक सरकार का बड़े प्रोजेक्ट्स पर ध्यान रहा, लेकिन काजू और नारियल जैसे पारंपरिक कामों से जुड़े गरीब परिवारों की मुश्किलें नजरअंदाज हुईं. इसके अलावा केरल के कई गांवों में जंगली जानवरों के हमले बढ़े हैं, जिन पर सरकार कंट्रोल नहीं कर पाई. इससे भी पार्टी को नुकसान हुआ.

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किसे कितनी सीटें मिलीं?

स्थानीय निकाय चुनावों में UDF को साफ बढ़त मिली. छह नगर निगमों में से चार पर UDF ने कब्जा किया, जबकि LDF और NDA ने एक-एक सीट जीती. नगरपालिकाओं में भी UDF आगे रहा और 86 में से 54 निकाय जीत लिए. LDF 28 पर सिमट गया और NDA को सिर्फ दो सीटें मिलीं.

Kerala local body election Result
(फोटो: ITG)

ग्राम पंचायतों में भी UDF ने सबसे अच्छा प्रदर्शन किया और 941 में से 504 सीटें जीतीं. LDF को 341 और NDA को 26 सीटें मिलीं. ब्लॉक पंचायत में LDF ने 63 सीटें जीतीं, जबकि कांग्रेस गठबंधन ने 79 सीटें हासिल कीं. जिला पंचायत स्तर पर, दोनों गठबंधनों ने सात-सात सीटें जीतीं.

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