सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ ने जस्टिस बृजगोपाल लोया केस (Justice Loya Case) पर बात करते हुए कहा है कि उन्होंने हर मसले पर ढंग से जांच की थी, उसके बाद जजमेंट दिया था. उनका कहना है कि आप जजमेंट से सहमत-असहमत हो सकते हैं. लेकिन जजों की नीयत पर सवाल उठाना गलत है.
लल्लनटॉप के न्यूज़रूम में जब जस्टिस लोया डेथ केस पर सवाल उठा तो डीवाई चंद्रचूड़ क्या बोले?
Former CJI DY Chandrachud ने बीते दिनों लल्लनटॉप के साप्ताहिक कार्यक्रम Guest In The Newsroom में शिरकत की. इस दौरान उन्होंने Justice Loya Case पर खुलकर बात की.


जस्टिस लोया की 2014 में मौत हो गई थी. तब वो ‘सोहराबुद्दीन शेख फर्जी मुठभेड़’ मामले की सुनवाई कर रहे थे. इस मामले में एक आरोपी आज के गृह मंत्री अमित शाह भी थे. बाद में जस्टिस लोया की मौत को लेकर सवाल उठे. बॉम्बे हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की गईं.
ऐसी ही एक याचिका की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 19 अप्रैल, 2018 को याचिका खारिज कर दी. सुनवाई कर रही बेंच में तब भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) दीपक मिश्रा और जस्टिस एएम खानविलकर के साथ जस्टिस चंद्रचूड़ भी थे.
बीते दिनों यही जस्टिस चंद्रचूड़ लल्लनटॉप के खास प्रोग्राम ‘गेस्ट इन द न्यूजरूम’ में आए. इस दौरान उनसे संस्थान के संपादक सौरभ द्विवेदी ने पूछा, ‘लाइव लॉ मैनेजिंक एडिटर मनु सेबेस्टियन ने एक लंबा लेख लिखा. इसमें जजमेंट को लेकर कई सवाल पूछे गए. आप जजमेंट के पार्ट थे. आपकी इस पर क्या राय है?’ इसके जवाब में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा,
जस्टिस लोया केस में हमारे सामने पूरी तरह मेरिट के आधार पर बहस (आर्ग्यूमेंट) हुई थी. पूरी क्षमता के आधार पर उन पर जवाब दिए गए. ऐसा कोई मसला नहीं था, जो हमारे सामने रखा गया था और हमने डील न किया हो.
इसके बाद, जस्टिस चंद्रचूड ने पूरे केस की टामलाइन बताई. उन्होंने कहा कि तीन जज मिलकर एक जज साहिबा के घर नागपुर गए थे. क्योंकि उनके (जज साहिबा) घर में शादी थी. नागपुर में तीनों जज रवि भवन नाम के गेस्ट हाउस में रहे थे. सवाल उठे कि तीन जज एक ही कमरे में कैसे रह सकते हैं. इसके जवाब में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा,
सुनवाई के दौरान हमने कोर्ट में कहा था कि आप (सवाल उठाने वाले वकील) न्यायपालिका, देश और समाज के बारे में जानते नहीं हैं. हम भी जब किसी शादी में गए हैं, तो कई जज एक साथ रहते हैं. कई बार तो 20-25 या 10-15 जज एक साथ रहते हैं.
रात में जस्टिस लोया ने कमरे में ठहरे अपने दो साथी जजों को जगाकर कहा था कि उनको कुछ ठीक नहीं लग रहा. फिर दोनों जज ऑटो से जस्टिस लोया को अस्पताल ले गए. सवाल उठा कि वो गाड़ी (कार) से क्यों नहीं ले गए. इसके जवाब में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा,
शायद उनको पता नहीं था, ये एक सामान्य चीज है. हर जज के पास अपना ड्राइवर, अपनी गाड़ी नहीं होती. जब मैं सुप्रीम कोर्ट जज भी था, मेरा ड्राइवर मेरे घर में नहीं रहते थे. उनका मकान अलग होता है. डिस्ट्रिक्ट जुडिशरी में तो बिल्कुल ही नहीं...
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड ने टामलाइन बताते हुए आगे कहा कि दोनों जजों ने जस्टिस लोया को ऑटो में बिठाया. फिर ऑटो ड्राइवर से कहा कि उनको पास में अस्पताल ले जाना है. पास के अस्पताल में शुरुआती इलाज हुआ. फिर डॉक्टरों ने कहा कि कार्डियक का मसला है, कार्डियक अस्पताल ले जाना पड़ेगा. जजों ने पूछा कि नजदीकी कार्डियक अस्पताल कहां पर है.
फिर वो जस्टिस लोया को कार्डियक अस्पताल उनको ले गए. तब तक उनको मैसिव हार्ट अटैक आया और उनका देहांत हो गया. सवाल उठे कि जस्टिस लोया के साथ मौजूद दोनों जजों का रवैया ‘साधारण’ नहीं था, ऑटो में अस्पताल क्यों ले गए. इसके जवाब में डीवाई चंद्रचूड़ कहते हैं,
बड़े-बड़े वकील जब बहस करते हैं सुप्रीम कोर्ट में, शायद उनकी आमदनी अलग होती है. उनको फाइव स्टार होटल्स में रहने की आदत होती है. उनको पता नहीं है कि हमारे जजों की क्या हालत है. मैं चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया रहते हुए भी सर्किट हाउस में रहा हूं. हमें पता है सर्किट हाउस में क्या स्थिति होती है. पर ठीक है. ये जो हमने लिया है, वो हमारी रिस्पांसिबिलिटी है.
तीसरा आर्ग्यूमेंट था कि जब जस्टिस लोया को तकलीफ थी, तो उन्हें सीधा कार्डियक अस्पताल क्यों नहीं ले गए, ऑर्थोपेडिक अस्पताल क्यों ले गए. इसके जवाब में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ कहते हैं,
हमारे घरों में मां-पिता जी को कोई तकलीफ होती है, तब हम सोचते हैं कि इसका तुरंत समाधान कैसे हो. तब उन जजों ने भी वही किया था. बाद में आप कुछ भी बात कर सकते हैं… क्या हम ये कह सकते हैं कि जस्टिस लोया के साथ जो दो जज थे, वो इंटेंशनली उन्हें मारना चाहते थे?
इसके बाद जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने एक हालिया घटना का हवाला दिया. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के एक जज साहब ट्रैवल कर रहे थे. वो महाराष्ट्र गए थे. उनको फॉलो करने के लिए उनके पीछ एक कॉन्वॉय था. उस कॉन्वॉय में एक सिविल जज थे, जो करीब 40 साल के होंगे. उसी समय उन्हें (सिविल जज) हार्ट अटैक आ गया. जब तक वो नेक्स्ट डेस्टिनेशन पर पहुंच पाते, उनका देहांत हो गया. ये एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना थी. लेकिन क्या आप कह सकते हैं कि ये वहां मौजूद लोगों की लापरवाही के चलते हुआ. जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने आगे कहा,
…मैं जजमेंट को डिफेंड नहीं कर रहा. हमने हर मसले पर ढंग से जांच की. किसी को क्रिटिसाइज करना है, कर सकते हैं. ये समाज का हक होता है… पर मैं सोचता हूं ये बहुत डिस्टर्बिंग ट्रेंड चल रहा है समाज में. जजमेंट को क्रिटिसाइज करना फ्रीडम ऑफ स्पीच है. लेकिन जब आप जजों को मोटिव्स ऑफ एट्रिब्यूट (जज की नीयत पर सवाल उठाते) करते हैं, वो ठीक नहीं है.
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के मुताबिक, आजकल कोर्ट के कामकाज में बहुत ज्यादा पॉलिटिक्स लाने की कोशिश हो रही है. इसकी वजह से जजों की नीयत पर सवाल उठाया जा रहा है. लॉ स्कूल्स में तो हर रोज होता है कि आप एक जजमेंट को लेकर उसको सपोर्ट करेंगे, क्रिटिसाइज करेंगे. लेकिन जब आप जजों के खिलाफ मोटिव्स एट्रिब्यूट करेंगे, तो फिर जो समाज में एक इंस्टीट्यूशन के प्रति आस्था है, कॉन्फिडेंस है, उस पर असर पड़ेगा.
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