साल 2020; लद्दाख की गलवान घाटी (Galwan Valley Clash) में भारत और चीन के सैनिकों के बीच झड़प हुई. भारत की बिहार रेजिमेंट (Bihar Regiment) के 20 सैनिक इस संघर्ष के दौरान शहीद हो गए. इसके बाद भारत-चीन का तनाव चरम पर पहुंच गया. इस झड़प के बाद भारत ने आपातकालीन रक्षा खरीद (Emergency Procurement) के तहत एक मिसाइल खरीदी. इस मिसाइल का नाम है रैंपेज मिसाइल (Rampage Missile). ये एक हवा से जमीन पर मार करने वाली मिसाइल है. अब यहां एक शब्द आया 'आपातकालीन रक्षा खरीद' या अंग्रेजी में कहें तो Emergency Procurement. यूं तो सेनाएं समय-समय पर अपनी जरूरत के हिसाब से सैन्य उपकरणों और हथियारों की खरीद करती हैं.
सालभर में डिलीवरी नहीं दी तो कैंसिल होगा कॉन्ट्रैक्ट, रक्षा खरीद को लेकर सरकार का बड़ा कदम
Emergency Procurement Powers के साथ 40,000 करोड़ रुपये तक की खरीद व्यवस्था लागू है. इस पावर के तहत आपातकाल में Armed Forces तुरंत 40 हजार करोड़ तक की डील कर सकती हैं.


इनकी डिलीवरी की टाइमलाइन आमतौर पर लंबी होती है. लेकिन गलवान या ऑपरेशन सिंदूर (Operation Sindoor) जैसे इमरजेंसी सिचुएशन में सेनाओं को जल्द से जल्द, काफी कम समय में डिलीवरी चाहिए होती है. लेकिन कई बार देखने को मिला है की रक्षा उत्पाद बनाने वाली कंपनियां Emergency Procurement की डिलीवरी में भी देरी कर देती हैं. लिहाजा, इसका असर सेनाओं की ऑपरेशनल क्षमता पर तो पड़ता ही है, साथ ही हमारे सैनिकों की जान भी खतरे में पड़ जाती है. लेकिन अब साल 2025, जिसकी शुरुआत में ही रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा था कि ये साल 'सुधारों का साल' है, उसका असर अब दिखने लगा है. सरकार ने फैसला किया है कि अगर अब से कोई भी Emergency Procurement की डिलीवरी में एक साल से अधिक समय लगा तो कॉन्ट्रैक्ट कैंसिल कर दिया जाएगा.
रक्षा मंत्रालय से जुड़े अधिकारियों के मुताबिक इमरजेंसी प्रोक्योरमेंट पावर्स के साथ 40,000 करोड़ रुपये तक की खरीद व्यवस्था लागू है. इस पावर के तहत आपातकाल में सेना तुरंत 40 हजार करोड़ तक की डील कर सकती है. उन्होंने कहा कि सशस्त्र बलों की अतिरिक्त मांग अब सिर्फ बजट में अलॉट राशि तक सीमित नहीं होगी. अधिकारी ने बताया
मुझे नहीं लगता कि रक्षा खर्च में बहुत अधिक वृद्धि होनी चाहिए. व्यापार और इमरजेंसी उपायों के लिए पर्याप्त राशि है. भले ही हमें बहुत बड़ी मांग की उम्मीद नहीं है, लेकिन रणनीतिक आवश्यकताओं की मांग कभी सीमित नहीं होती है.
हालिया फैसले के मुताबिक, इमरजेंसी रूट से से रक्षा खरीद को कॉन्ट्रैक्ट साइन होने के एक साल के भीतर अनिवार्य रूप से पूरा करना होगा, नहीं तो कॉन्ट्रैक्ट रद्द कर दिया जाएगा. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय सेनाओं के के लिए जरूरी सैन्य खरीद (Defence Acquisition) में तेजी लाने, और उसे कारगर बनाने के लिए रक्षा मंत्रालय द्वारा नीतिगत बदलाव किए जा रहे हैं. मकसद ये है कि भविष्य के संघर्षों के लिए ऑपरेशनल रेडिनेस को बढ़ाया जा सके.

साल 2025 की शुरुआत में रक्षा मंत्री ने कहा था कि इस साल रक्षा क्षेत्र में कई मूलभूत बदलाव किए जाएंगे. खासतौर पर जो देरी सेनाओं को डिलीवरी देने में की जाती है, उसपर विशेष ध्यान दिया जाएगा. जून 2025 में रक्षा मंत्रालय ने डील्स की समयसीमा को कम करने, कॉन्ट्रैक्ट्स को तेजी से पूरा करने और निजी विक्रेताओं को जल्द पेमेंट करने जैसे कुछ खास कदम उठाए हैं. रक्षा मंत्रालय द्वारा बताए गए खास उपायों में फील्ड इवैल्यूएशन ट्रायल (Evaluation Trial) की जगह पर डिजिटलीकरण (Digitisation) और सिमुलेशन (Simulation) का इस्तेमाल करना शामिल है. इसमें कई बार कुछ साल या उससे भी ज्यादा का समय लग जाया करता है.
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खरीद में तेजी लाने के लिए बातचीत को तेज करना, और एंटी-ड्रोन सिस्टम्स और स्मार्ट गोला-बारूद जैसे जरूरी चीजों के उत्पादन को बढ़ाने के लिए प्राइवेट सेक्टर को प्रोत्साहित करना शामिल है. खरीद की समयसीमा को इस साल के अंत तक बढ़ाने के लिए काम को तेज किया जाएगा. इसमें घरेलू रक्षा उद्योग, खास तौर पर प्राइवेट प्लेयर्स को बढ़ावा देने और सशस्त्र बलों की तमाम सर्विसेज़ के बीच साझा तौर पर इस्तेमाल होने वाले उपकरणों की खरीद पर विशेष ध्यान दिया जाएगा.
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