राजधानी दिल्ली में लाल किले के सामने कार में विस्फोट के मामले में डॉ. उमर उन नबी का नाम मुख्य आरोपी के तौर पर सामने आ रहा है. सूत्रों के मुताबिक जांच एजेंसियों को शक है कि उमर नबी ही वह कार चला रहा था, जिसमें विस्फोट हुआ था. फिलहाल कार में मिली लाश का DNA सैम्पल ले लिया गया है. उधर जांच एजेंसियों ने पहले ही कश्मीर से उमर के परिवार के कुछ सदस्यों को हिरासत में ले लिया था. जम्मू-कश्मीर पुलिस ने परिवार के DNA Sample भी लिए हैं. इन Samples को घटनास्थल से मिले DNA से मैच किया जाएगा, जिससे यह साबित हो जाएगा कि गाड़ी में बैठा शख्स उमर था या नहीं.
कौन है डॉ. उमर उन नबी, जो चला रहा था कार? मेडिकल कॉलेज से क्यों निकाला गया था?
Delhi Red Fort Car Blast: कौन है Dr Umar-un-Nabi, जिस पर दिल्ली कार ब्लास्ट का मुख्य आरोपी होने का संदेह है. उसे दो साल पहले मेडिकल कॉलेज से नौकरी से क्यों निकाला गया था? जानिए डॉ उमर उन नबी की पूरी कहानी.


उमर नबी को लेकर इंडिया टुडे को और भी कई अहम जानकारियां मिली हैं, जिसके मुताबिक उमर को दो साल पहले जम्मू-कश्मीर के मेडिकल कॉलेज से नौकरी से निकाला गया था. उसे एक मरीज की मौत का जिम्मेदार माना गया था. इंडिया टुडे की फैक्ट चेक टीम ने एक रिटायर्ड मेडिकल प्रोफेसर डॉ. ग़ुलाम जीलानी रोमशू से बातचीत की है, जो उस वक्त मेडिकल कॉलेज के जनरल मेडिसिन विभाग में उमर नबी के सीनियर थे. डॉ जिलानी उस चांज कमेटी का भी हिस्सा थे, जिसने उमर नबी को मेडिकल कॉलेज से निकालने की सिफारिश की थी.
साथी डॉक्टर और मरीज करते थे शिकायतडॉ जिलानी ने बताया कि उमर ने 2023 में श्रीनगर से MBBS और MD की पढ़ाई करके अनंतनाग गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज में बतौर सीनियर रेजीडेंट डॉक्टर ज्वॉइन किया था. डॉ जिलानी के मुताबिक शुरू से ही उमर का तौर-तरीक़ा ठीक नहीं था. उसके साथी डॉक्टर, पैरामेडिकल स्टाफ और यहां तक कि मरीज़ भी अक्सर शिकायत करते थे कि वह बहुत बदतमीज था, अपने काम में ध्यान नहीं देता था और आए दिन अस्पताल से गायब रहता था.
यह उमर उन नबी की भाभी मुज़म्मिला के उस दावे से ठीक उलट है, जिसमें उसने मीडिया से बातचीत करते हुए कहा था कि नबी एकदम शांत, कमरे में बंद रहकर पढ़ने वाला इंसान रहा है. डॉ. ग़ुलाम जीलानी ने बताया कि एक बार उमर की लापरवाही ने एक मरीज की जान ले ली थी. डॉ. जिलानी के मुताबिक मरीज़ की हालत बेहद गंभीर थी. उसके इलाज की ज़िम्मेदारी डॉ उमर की थी. एक दिन मरीज की हालत बिगड़ गई, लेकिन उमर उस दिन ड्यूटी से गायब था. एक जूनियर डॉक्टर ने मरीज़ को बचाने की कोशिश की थी, लेकिन वो बचा नहीं सका. मृतक मरीज के परिवार वालों ने अस्पताल प्रशासन से उमर नबी की शिकायत की थी. इसके बाद प्रशासन ने चार सीनियर डॉक्टर्स की एक जांच कमेटी बनाई थी.

डॉ. ग़ुलाम जीलानी रोमशू भी उस कमेटी का हिस्सा थे. उनके अलावा मेडिकल सुपरिंटेंडेंट डॉ. मोहम्मद इक़बाल, जनरल सर्जरी के प्रोफेसर डॉ. मुमताज़-उद-दीन वानी और डेंटिस्ट्री के हेड डॉ. संजीत सिंह रिसम भी जांच कमेटी में शामिल थे. डॉ जिलानी के मुताबिक उमर ने कमिटी के सामने झूठ बोला कि वह उस दिन अस्पताल से गायब नहीं था, CCTV फुटेज से उसकी पोल खुल गई. डॉ जिलानी ने बताया कि जांच के दौरान कई बार बुलाने के बाद उमर कमेटी के सामने पेश नहीं हुआ. उसके बाद कमेटी ने उसे नौकरी से निकालने की सिफारिश की थी. वहां से निकाले जाने के बाद उमर ने फरीदाबाद की अल फलाह यूनिवर्सिटी का स्कूल ऑफ मेडिकल साइंस जॉइन कर लिया. इसी कॉलेज से विस्फोटकों का जखीरा पकड़ा गया था. साथ ही इसके कुछ डॉक्टर भी आतंकी मॉड्यूल से जुड़े पाए गए हैं.
आतंकी मॉड्यूल से जुड़े होने का शकइंडिया टुडे से जुड़ी श्रेया ने जांच एजेंसियों के सूत्रों के हवाले से बताया कि उमर ने आतंकी मॉड्यूल से जुड़े दो अन्य लोगों, डॉ अदील राथर और डॉ मुज़म्मिल गनैया के साथ मिलकर काम किया था. मालूम हो कि दोनों डॉक्टरों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है. सूत्रों के मुताबिक तीनों मिलकर एक आतंकी नेटवर्क चलाते थे, जिसमें 5-6 डॉक्टरों समेत 9-10 लोगों के जुड़े होने का शक है. इन लोगों ने कथित तौर पर अपने डॉक्टर के पेशे का दुरुपयोग करते हुए विस्फोटक डिवाइस बनाने के लिए कच्चा माल खरीदा. कथित तौर पर 9 नवंबर को छापेमारी में 2,900 किलो अमोनियम नाइट्रेट बरामद होने के बाद उमर छिप गया था. जांच एजेंसियों को शक है कि वह हरियाणा के धौज गांव के पास छिपा था. उसने बातचीत के सभी डिजिटल मीडियम बंद कर दिए थे. गायब होने से पहले, उमर के पास कथित तौर पर पांच मोबाइल फोन थे, जो 30 अक्टूबर से बंद चल रहे थे. उसने उस समय के आस-पास यूनिवर्सिटी की ड्यूटी भी छोड़ दी थी. सूत्रों ने बताया कि अमोनियम नाइट्रेट की बरामदगी की खबर मिलने के बाद उमर उस इलाके से भाग गया. जांच एजेंसियों को शक है कि उमर अमोनियम नाइट्रेट, फ्यूल और कई अन्य तरह के विस्फोटक लेकर कार में भागा था.

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कार की मूवमेंटसूत्रों के मुताबिक उमर नबी की i-20 कार, जिससे लाल के किले के सामने विस्फोट हुआ था, वह अल फलाह यूनिवर्सिटी के अंदर लगभग 11 दिनों तक खड़ी रही थी. उसके बाद उसे दिल्ली ले जाया गया. संदेह है कि i-20 कार 29 अक्टूबर को खरीदी गई थी. इसके बाद उसका पॉल्यूशन सर्टिफिकेट बनवाने के लिए बाहर ले जाया गया था. जांच एजेंसी के सूत्रों के मुताबिक i-20 कार 29 अक्टूबर से 10 नवंबर तक खड़ी रही. फरीदाबाद आतंकी मॉड्यूल के भंडाफोड़ के बाद उमर ने कथित तौर पर घबराकर 10 नवंबर की सुबह कार बाहर निकाली. सूत्रों के मुताबिक बदरपुर से दिल्ली में एंट्री करने के बाद वह कार को लेकर दिल्ली के कई मेन इलाकों में चक्कर लगाता रहा. दिल्ली के कनॉट प्लेस इलाके में भी 2:30 बजे के आस पास कार की मूवमेंट ट्रैक हुई है. इसके अलावा कथित तौर पर कार को दिल्ली के मयूर विहार इलाके में भी ट्रैक किया गया था. अंत में वह कार को लाल किले के पास स्थित पार्किंग में लेकर गया. फिर कार वहां से निकाली तो लाल किले के सामने आकर उसमें ब्लास्ट हो गया.
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