महात्मा गांधी के नाम वाली ग्रामीण रोजगार योजना के दिन बीत गए. अब मोदी सरकार इसकी जगह पर नई स्कीम लेकर आई है. ‘वीबी जी राम जी’. यानी विकसित भारत गारंटी फॉर रोजगार एंड आजीविका मिशन- ग्रामीण. सरकार इससे जुड़ा बिल संसद में पेश करने की तैयारी कर चुकी है. लेकिन इस बिल के एक प्रावधान को लेकर राज्य और केंद्र में टकराव की आशंका है. भाजपा की ही सहयोगी पार्टी टीडीपी (तेलुगु देशम पार्टी) ने इसे ‘चिंताजनक’ बता दिया है. पार्टी का कहना है कि इस बिल में जो फंड के बंटवारे की बात की गई है वो राज्यों पर बोझ बढ़ाएगी, जो टेंशन की बात है.
मनरेगा की जगह आई 'G RAM G' योजना का एक रूल नहीं है 'कूल'? BJP की सहयोगी TDP टेंशन में
बिल के इस बिंदु पर हो सकता है कि भाजपा शासित राज्य कोई आपत्ति न उठाएं. लेकिन जिन राज्यों में बीजेपी की सरकार नहीं है, वो इससे असहमत हो सकते हैं. औरों की क्या बात करें, भाजपा की अपनी सहयोगी और आंध्र प्रदेश में सत्ता में बैठी तेलुगु देशम पार्टी ने ही दबी जुबान से इसे ‘चिंताजनक’ बताया है.


साल 2005 में यूपीए सरकार के समय आई मनरेगा योजना का पूरा खर्चा केंद्र सरकार उठाती थी. लेकिन नई वाली स्कीम में बजट केंद्र और राज्यों में बंटेगा. बिल के इस बिंदु पर हो सकता है कि भाजपा शासित राज्य कोई आपत्ति न उठाएं. लेकिन जिन राज्यों में बीजेपी की सरकार नहीं है, वो इससे असहमत हो सकते हैं. औरों की क्या बात करें, भाजपा की अपनी सहयोगी और आंध्र प्रदेश में सत्ता में बैठी तेलुगु देशम पार्टी ने ही दबी जुबान से इसे ‘चिंताजनक’ बताया है.
आंध्र प्रदेश के वित्त मंत्री पय्यावुला केशव ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि फंड शेयर करने की जो शर्त स्कीम में है, वो चिंताजनक है. उन्होंने कहा,
ऐसे बंटेगा बजटअगर हमें अपने हिस्से के तौर पर बड़ी रकम लगानी पड़ी तो इससे राज्य पर काफी बोझ पड़ेगा. अभी हमने योजना की पूरी जानकारी नहीं देखी है.
'वीबी जी राम जी' स्कीम में बजट का बंटवारा राज्यों के हिसाब से अलग-अलग होगा. इस बिल की धारा 22(2) कहती है कि योजना के लिए फंड का बंटवारा ऐसे होगा कि
– पूर्वोत्तर राज्यों, हिमालयी राज्यों और कुछ केंद्र शासित प्रदेशों, जैसे उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर के लिए इसका अनुपात 90:10 का होगा. यानी 90 फीसदी हिस्सा केंद्र देगा और 10 फीसदी हिस्सा राज्य सरकारें लगाएंगी.
– बाकी सभी राज्यों और विधानसभा वाले केंद्र शासित प्रदेशों के लिए यह अनुपात 60:40 का होगा.
– बिना विधानसभा वाले केंद्र शासित प्रदेशों का सारा बजट केंद्र देगा.
हालांकि, आंध्र प्रदेश के वित्त विभाग के अधिकारियों ने योजना के अन्य प्रावधानों की तारीफ की है. उनका कहना है कि नकदी की कमी से जूझ रहे आंध्र प्रदेश जैसे राज्य के लिए यह चिंता की बात जरूर है, लेकिन योजना के कुछ प्रावधान अच्छे भी हैं. जैसे एक वित्तीय वर्ष में 125 दिन के रोजगार की गारंटी, हर हफ्ते मजदूरी का भुगतान और खेती वाले मौसम में काम से ब्रेक. इससे कटाई-बुआई के समय ठीक-ठाक संख्या में मजदूर खेती के काम के लिए उपलब्ध हो सकेंगे.
मंत्री केशव ने भी योजना का साफ विरोध करने से परहेज किया और कहा कि आंध्र प्रदेश की सरकार इस बिल के प्रावधानों को अभी विस्तार से देखेगी. लेकिन योजना का समर्थन करेगी और इसे लागू भी करेगी. बता दें कि बीजेपी और तेलुगु देशम पार्टी केंद्र और राज्य दोनों जगहों पर गठबंधन में हैं.
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