बिहार में जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव नज़दीक आ रहे हैं, अपराध की घटनाएं बढ़ती नज़र आ रही हैं. राज्य में कानून-व्यवस्था को लेकर सवाल खड़े हो गए हैं. एक तरफ नीतीश कुमार को बिहार में 'जंगल राज' को खत्म करने का श्रेय दिया जाता है. लेकिन बीते एक दशक में उनके शासनकाल में बिहार में अपराध बढ़ा है. कम से कम राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) और बिहार पुलिस के राज्य-स्तरीय आंकड़े तो यही कहते हैं!
बिहार में अपराध कम कर पाई नीतीश सरकार? 10 साल के आंकड़ों ने सच खोल दिया
विपक्ष लंबे समय से नीतीश कुमार वाली NDA सरकार पर हमला बोल रहा है. आकंड़ों के जरिए समझते हैं, क्या है बिहार में कानून व्यवस्था का हाल.

आकंड़ों के जरिए समझते हैं, क्या है बिहार में कानून व्यवस्था का हाल.
बिहार के राज्य अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (SCRB) के आंकड़ों के मुताबिक, 2015 से 2024 तक बिहार में कुल अपराधों की संख्या में 80.2% की बढ़ोतरी हुई है. वहीं, राष्ट्रीय स्तर के आंकड़ों के अनुसार, 2015 से 2022 तक भारत में कुल अपराधों में 23.7% की बढ़ोतरी हुई है.
इंडियन एक्सप्रेस से जुड़े अंजिष्णु दास ने इसे लेकर एक डिटेल रिपोर्ट तैयार की है. इसके मुताबिक़, अगर 2016, 2020 (कोविडकाल) और 2024 के साल को छोड़ दें, तो बिहार में अपराधों की संख्या 2015 से हर साल बढ़ी है. सबसे ज़्यादा बढ़ोतरी 2017 में दर्ज की गई थी, जब अपराध 24.4% बढ़े थे. वहीं, 2023 में बिहार में कुल करीब 3.53 लाख अपराध हुए, जो बीते दस सालों में सबसे ज्यादा थे. जून 2025 तक बिहार में 1.91 लाख अपराध हुए हैं. ज्ञात रहे कि अभी साल 2025 का आधा समय ही बीता है.
2015 से बिहार कुल अपराध दर के मामले में 10 सबसे खराब राज्यों में से एक रहा है. हालांकि, जनसंख्या के हिसाब से बिहार में प्रति लाख लोगों पर अपराध दर राष्ट्रीय औसत से काफी कम रही है. 2022 में बिहार में प्रति लाख जनसंख्या पर 277 अपराध के मामले दर्ज किए गए थे. बिहार 2022 में देश में अपराध की दर के मामले में सातवें स्थान पर रहा. तब भारत में प्रति लाख जनसंख्या पर कुल अपराध दर 422 दर्ज की गई थी.
दरअसल, 2015 के बाद दिल्ली में पांच सालों तक सबसे अधिक अपराध दर दर्ज की गई. जबकि केरल तीन सालों तक सबसे खराब स्थिति में रहा. लेकिन जानकार इसका कारण मामलों को दर्ज करने की टेडेंसी को बताते हैं. बताया जाता है कि दिल्ली और केरल में लोगों की आर्थिक और शैक्षिक स्थिति अच्छी है. तो यहां ज्यादातर मामले दर्ज हो जाते हैं.
साल | कुल अपराध |
2015 | 195,412 |
2016 | 189,696 |
2017 | 236,055 |
2018 | 262,815 |
2019 | 269,109 |
2020 | 257,512 |
2021 | 282,083 |
2022 | 347,835 |
2023 | 353,483 |
2024 | 352,130 |
2025 | 190,544 |
2015 के बाद से बिहार की समग्र अपराध दर (overall crime rate) किसी भी साल राष्ट्रीय औसत से अधिक नहीं रही. लेकिन NCRB के आंकड़ों से पता चलता है कि बिहार में हिंसक अपराध की घटनाओं की संख्या राष्ट्रीय औसत से लगातार अधिक रही है.
बिहार में हत्या के मामले 2015 के 3,178 से घटकर 2022 में 2,930 हो गए हैं. फिर भी 2015 से हर साल होने वाली हत्याओं की संख्या के मामले में बिहार देश में दूसरे स्थान पर है. बिहार से आगे सिर्फ उत्तर प्रदेश है. जबकि उत्तर प्रदेश की आबादी बिहार से कहीं ज़्यादा है. बिहार में हत्या की कोशिशों की संख्या 2015 के 5,981 से बढ़कर 2022 में 8,667 हो गईं. इस मामले में भी सिर्फ उत्तर प्रदेश ही बिहार से आगे है.
लेटेस्ट SCRB आंकड़ों के अनुसार, बिहार में जून 2025 तक 1,379 हत्याएं दर्ज की गईं. जबकि 2024 में कुल 2,786 और 2023 में 2,863 हत्याएं दर्ज की गईं.
इसे जनसंख्या के आंकड़ों के लिहाज से भी समझ लेते हैं. 2022 में बिहार में प्रति लाख जनसंख्या पर 2.3 हत्याएं और 6.9 हत्या के प्रयास दर्ज किए गए. ये राष्ट्रीय औसत क्रमशः 2.1 और 4.1 के आंकड़ों से ज्यादा हैं. 2015 में बिहार में हत्या की दर 3.1 के पहुंच गई थी. वहीं 2017 में हत्या के प्रयास की दर 9.1 के पीक पर पहुंची थी.
बिहार की जनसंख्या के लिहाज़ से अब भी राज्य को हत्या और हत्या की कोशिशों के मामले में राष्ट्रीय स्तर पर मीडियम कैटिगरी में ही रखा जाता है. बिहार सिर्फ 2017 में हत्या के मामले में शीर्ष 10 राज्यों में शामिल था. वहीं, 2022 में हत्या की दर के मामले में 12वें स्थान पर था.
इसके अलावा, 2015 से 2022 तक हर साल अटेंप्ट टू मर्डर की दर के मामले में बिहार शीर्ष पांच राज्यों में रहा है. 2017 में बिहार में अटेंप्ट टू मर्डर की दर दूसरी सबसे अधिक दर्ज की गई थी.
साल | हत्या | हत्या की कोशिशें |
2015 | 3,178 | 5,981 |
2016 | 2,581 | 6,998 |
2017 | 2,803 | 9,586 |
2018 | 2,934 | 7,196 |
2019 | 3,138 | 7,462 |
2020 | 3,150 | 11,784 |
2021 | 2,799 | 7,626 |
2022 | 2,930 | 8,667 |
बिहार में हत्या का सबसे आम कारण संपत्ति विवाद सामने आया है. 2015 से 2022 तक लगभर हर साल 'संपत्ति विवाद के कारण हत्या' के मामले सबसे ज़्यादा हुईं. 2018 में संपत्ति विवाद से जुड़ी 1,016 हत्याएं हुईं. जो बीते दस सालों में सबसे ज़्यादा थीं. अनुपात में देखें, तो संपत्ति से जुड़े मामले 2017 में 36.7% के शिखर पर पहुंचे थे.
इसके अलावा, 2022 में व्यक्तिगत बदला, हत्या का सबसे बड़ा कारण सामने आया. जब 804 मामले आए यानी ये कुल हत्याओं का 27.4% हिस्सा रहा. दरअसल, 2015 से 2022 तक बिहार में हर साल संपत्ति विवाद से जुड़ी हत्याओं की सबसे ज़्यादा घटनाएं दर्ज की गईं. सिवाय 2018 के, जब उत्तर प्रदेश इस मामले में सबसे आगे था.
2015 में जहां बिहार में व्यक्तिगत बदले से जुड़ी हत्याओं की संख्या चौथी सबसे ज़्यादा दर्ज की गई थी. वहीं, 2018 से 2022 तक बिहार इस मामले में पहले स्थान पर रहा.
इसके अलावा, बिहार पुलिस के आंकड़ों के मुताबिक़, 2025 (जून तक) में हत्याओं का मुख्य कारण व्यक्तिगत बदला था. इस साल ऐसे 513 मामले दर्ज किए गए. जो कुल हत्याओं का 37.8% था. वहीं, साल 2025 में संपत्ति विवाद के कारण 139 मामले दर्ज किए गए. जो कुल हत्याओं का 10.2% था.
आर्म्स एक्ट का उल्लंघनबिहार में हत्या की बढ़ती घटनाओं के पीछे आर्म्स एक्ट, 1959 का उल्लंघन भी बड़ा कारण है. बिहार पुलिस की साल, 2025 की एक रिपोर्ट इसकी गवाही देती है. इस रिपोर्ट के मुताबिक़, फर्जी आर्म्स लाइसेंस, अवैध फायर आर्म्स और गोला-बारूद की इललीगल बिक्री बीते दशक में बढ़ते हिंसक अपराध का प्रमुख है.
बिहार में 2015 में प्रति लाख जनसंख्या पर आर्म्स एक्ट उल्लंघन के 1.8 मामले थे. जो 2022 में बढ़कर 2.8 हो गए हैं. हालांकि, ये राष्टीय औसत (5.8) से कम जरूर था.
अन्य हिंसक अपराधों पर भी एक नजर डालते हैं. बिहार में 2015 से 2022 तक किडनैपिंग (65.9%), डकैती (39.2%), खतरनाक तरीकों से जानबूझकर चोट पहुंचाने के मामले (61.3%), और जानबूझकर से गंभीर चोट पहुंचाने के मामलों (17.7%) की संख्या में बढ़ोतरी दर्ज की गई है. 2022 में, बिहार इन मामलों में शीर्ष पांच राज्यों में शामिल रहा.
हालांकि, बिहार में डकैती और जबरन वसूली के मामलों में काफी कमी आई है. फिर भी बिहार राज्यों में क्रमशः तीसरे और सातवें स्थान पर है.
साल | हत्या का सबसे बड़ा कारण | संख्या | प्रतिशत |
2015 | संपत्ति विवाद | 971 | 30.6% |
2016 | संपत्ति विवाद | 946 | 36.7% |
2017 | संपत्ति विवाद | 939 | 33.5% |
2018 | संपत्ति विवाद | 1,016 | 34.6% |
2019 | संपत्ति विवाद | 782 | 24.9% |
2020 | संपत्ति विवाद | 815 | 25.9% |
2021 | संपत्ति विवाद | 635 | 22.7% |
2022 | व्यक्तिगत बदला | 804 | 27.4% |
केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीन आने वाला ‘पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो’ इसमें कुछ और चीजें जोड़ता है. इसके मुताबिक, जनवरी 2023 तक बिहार में देश में सबसे ज़्यादा पुलिस बल की कमी थी. प्रति लाख जनसंख्या पर 114.57 पुलिसकर्मियों के साथ बिहार का ये अनुपात राज्यों में सबसे कम है. जबकि केंद्र शासित प्रदेशों में भी ये सिर्फ ‘दादरा और नगर हवेली’ और ‘दमन और दीव’ से ज़्यादा है.
बिहार में पुलिस के लिए कुल 1.44 लाख स्वीकृत पद हैं. जबकि 42,000 से ज़्यादा पद रिक्त हैं.
वीडियो: नेतानगरी: सावन में मटन पर सियासत, बिहार में क्या पक रहा है, मानसून सत्र से पहले मंत्री के घर क्या प्लान बना?