क्या है दावा? किसी अख़बार में छपी ख़बर की कतरन का फोटो लिया गया है. इसके एक किनारे विंग कमांडर अभिनंदन की तस्वीर है. बगल में एक स्टेटमेंट छपा. जैसे बयान छपते हैं, उसी स्टाइल में. इसमें लिखा है-
पुलवामा हमला बीजेपी की सोची-समझी साज़िश थी और पाकिस्तान पर नकली हमला करवाया. मोदी को चुनाव जीतने के लिए इमरान खान मदद कर रहा है. बालाकोट पर बमबारी इमरान खान की सहमति से हुई है.इस कतरन के एक किनारे कलम से एक तारीख लिखी दिखती है- 18.05.2019, दैनिक जागरण. लिखने वाले का मकसद ये बताना रहा होगा कि खबर 18 मई, 2019 को दैनिक जागरण अखबार में छपी है.

ये तस्वीर वायरल हो रही है. हमें हमारे रीडर विकास ने ये फोटो मेल करके हमसे इसकी पड़ताल करने को कहा.
ये मेसेज फेसबुक और ट्विटर पर कम, लेकिन वॉट्स ऐप पर काफी शेयर हो रहा है. हमारे कई पाठकों ने हमें इस मेसेज के साथ मेल करके इसकी सच्चाई बताने को कहा.

हमें फेसबुक पर भी ये मेसज शेयर होता मिला. मगर यहां इसकी मौजूदगी कम है. वॉट्सऐप पर काफी शेयर किया जा रहा है ये. इस वाली कटिंग में ऊपर की तरफ विश्वास.न्यूज का नाम भी दिख रहा है. मगर वॉट्सऐप पर शेयर हो रही कतरन और छोटे हिस्से से काटी गई है. उसमें बस बयान दिखता है.
सच क्या है? आम का अमावट बनता है. मगर क्या अमावट से दोबारा आम बना सकते हैं? आप कहेंगे नहीं. हम कहते हैं, सोशल मीडिया है तो सब मुमकिन है. ये वाला वायरल मेसेज इसकी मिसाल है. ये खबर दैनिक जागरण में छपी थी. उनके सहयोगी मीडिया प्लेटफॉर्म विश्वास.न्यूज ने एक वायरल मेसेज की तफ़्तीश की थी.
मेसेज था कि विंग कमांडर अभिनंदन ने पुलवामा हमले को बीजेपी की सोची-समझी साज़िश बताया है. इसके मुताबिक, एस एम मुजम्मिल कुरैशी नाम के एक फेसबुक यूज़र ने 13 मई, 2019 को विंग कमांडर का बयान बताकर ये पोस्ट शेयर की. पोस्ट शेयर करते हुए लिखा- छुपा हुआ सच. यहां से फिर ये मेसेज सब जगह फैलने लगा. विश्वास.न्यूज ने फैक्ट चेक में पाया कि ये पोस्ट फर्ज़ी है. अभिनंदन ने इस तरह का कोई बयान नहीं दिया कभी.

ये है विश्वास.न्यूज की उस खबर का स्क्रीनशॉट
अब हुआ क्या कि अखबार ने जब इस फैक्ट चेक को छापा, तो उस फर्ज़ी पोस्ट को एक अलग बॉक्स में डाल दिया. जैसी कि अख़बार की शैली होती है. लोग इतने मक्कार कि उस बॉक्स वाले हिस्से को काट लिया और उसे फिर से सोशल मीडिया के हवाले कर दिया. ये कहकर कि देखो, अख़बार ने भी छाप दिया है अभिनंदन का बयान. बात सच्ची लगे इसलिए एक किनारे ख़बर छपने की तारीख़ भी लिख दी. मतलब जिस पोस्ट को फर्ज़ी बताने वाली ख़बर की अखबार ने, उसी को लोगों ने फेक न्यूज़ फैलाने का हथियार बना लिया.
तो अब कहिए. अमावट से दोबारा आम बन सकता है कि नहीं?
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