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मुर्दा जलाने वाले रोल के लिए इस एक्टर ने जो किया, वो कोई एक्टर नहीं करेगा

'मसान' में डोमराजा का किरदार निभाने वाले विनीत कुमार ने अपना अनुभव शेयर किया.

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विनीत के अब तक के निभाये बाकी किरदारों के मुकाबले डोमराजा का किरदार सबसे मुश्किल था.
कुछ दिनों पहले लल्लनटॉप के खास शो 'बरगद' में एडिटर सौरभ द्विवेदी के साथ 'अक्स', 'शूल' और 'लापतागंज' जैसी फिल्मों और टीवी शोज़ से फेम हासिल कर चुके एक्टर विनीत कुमार ने बैठक जमाई. जहां विनीत कुमार ने अपने बचपन से लेकर जवानी, राजनीति से लेकर अभिनय और हिंदी सिनेमा से लेकर तमिल सिनेमा तक सब पर खूब तफसील से बात की. बातों के दौरान उन्होंने कई रोचक किस्से साझा किए. उन्हीं किस्सों में से एक आपके साथ साझा कर रहे हैं. 


'बनारस के दो ही राजा हैं एक काशी नरेश, एक डोमराजा'.

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“'मसान’ में किरदार डोम का था. मुर्दे जलाने वाला. अब मुर्दा जलाने वाला कांड मेरे जीवन में कभी आया नहीं. डायलॉग समझना, स्क्रिप्ट समझना ये सब तो आ ही जाता है. करेंगे कैसे महत्वपूर्ण ये है, तो शरीर उस तरह का नहीं था. मुझे लगा क्या किया जाए. तो बनारस मेरा ननिहाल है. तो हमने वहां अपने मामा को फ़ोन किया. उन्होंने डोमराजा को फ़ोन लगाया कि ऐसे-ऐसे मेरा भांजा है, कुछ करना है उसे काम, आप ज़रा देख लीजिएगा. तो एयरपोर्ट से सीधा मेरा भाई ले आया मणिकर्णिका घाट. वहां से गए सीधे डोमराजा के यहां. उन्होंने वहां एक-दो लोगों को बुलाया और कहा भई ले जाओ इनको, अपने साथ रखो-बिठाओ. अब ये की डोम लोग क्यों बैठाएं. तो बस फ़िर मैंने महादेव का प्रसाद खोला. सब खुश हो गए. फ़िर धोती वगैरह पहनी और लगे लट्ठे उठाने. लट्ठा उठाए, लट्ठा तोले, लट्ठा ऊपर से लेके नीचे उतारे,चिता बनाए, मुर्दा रखे, मुर्दा पलटे जलता हुआ. सब ताम्बई कर दिए थे. सारे बाल जल गए थे. सात दिन ये काम किए रोज़ दस घंटा.
अब इसको हम चाहें तो ग्लोरिफाई करें. लेकिन मुझे लगता है ये मेरा जॉब है .जो मैंने नहीं किया है उसे समझने के लिए. शरीर उस प्रकार का तभी होगा, जब आप उस सांचे में ढलोगे. ये दूर से देख के नहीं हो सकता है, नकल करोगे. मगर ये कहा नहीं जा सकता कि सब लोगों के लिए ये संभव है. हो सकता है किसी को समझ में ही ना आए. कोई वहां रहे और समझे कि यहां बैठे रहो और करते रहो तो हो जाएगा. नहीं. आप अपने दिमाग को ये आदेश देते हो कि अब ये समझना शुरू करो.
मणिकर्णिका घाट से 40 मिनट लगता था अपनी लोकेशन पर पहुंचने में. नंगे पैर जाते थे. क्यों चलके जाते थे? क्योंकि सब नंगे पैर रहते थे. उनको कंकर नहीं गड़ते थे. हम जैसे ही चप्पल उतारें तो चौंक जाएं क्योंकि नीचे कंकड़ लगते थे. तो अगर छोटा सा भी ऐसा होता है तो वो मेरे चरित्र के लिए सही नहीं है. किसी को दिखे ना दिखे इससे लेना-देना नहीं है. मुझे दिखना चाहिए. जब मुझे दिखेगा, तब आपको दिखेगा. अगर मैं आपको दिखाऊंगा तो आपको कुछ नहीं दिखेगा. आपको दिखाने के लिए मुझे स्टार बनना पड़ेगा, तब आप वो पर्सनालिटी देखोगे. मगर अभिनय के लिए मुझे देखना पड़ेगा. मैं देखूंगा, तब आपको दिखेगा स्पष्ट. और इसके लिए ज़रूरी है कि डायरेक्टर एक्टर को देखे. डायरेक्टर अगर एक्टर की समझ पैदा कर लेता है तो अदभुत काम हो जाता है.”

नीरज घैवान की ‘मसान’ के डोमराजा. जो अपने बेटे को पढ़ा-लिखा के सिविल इंजिनियर बना रहे थे. डोमराजा का किरदार निभाया था विनीत ने. ये किरदार विनीत के अब तक के निभाए बाकी किरदारों के मुकाबले थोड़ा मुश्किल था. चरित्र सात्विक लगे उसके लिए उन्होंने असली डोम के जीवन की हर कठिनाई को जानने की कोशिश की. विनीत ने इस किरदार के पीछे की कठिन तैयारी के बारे में बताया. विनीत कहते हैं, 'मसान' में विनीत कुमार डोमराजा बने थे. और इनके बेटे का रोल विक्की कौशल ने किया था.
'मसान' में विनीत कुमार डोमराजा बने थे. और इनके बेटे का रोल विक्की कौशल ने किया था.

#बारीक अभिनय बातचीत में विनीत कुमार ने बाकी कामों और अभिनय के बीच के फर्क को कुछ यूं दर्शाया:
“समाज का अलग डिसिप्लिन है और हमारा (एक्टर्स का) अपना अलग डिसिप्लिन है. सारी दुनिया में जितने भी काम हैं, जब शुरू होते हैं तो इमोशन बंद कर दिया जाता है. लेकिन जब अभिनय शुरू होता है, इमोशन का दरवाज़ा खोला जाता है. मेरे जीवन में तो कितने उदाहरण हैं, जब कोई मेरा बच्चा, बेटा-बेटी बनता है तो महसूस करता है ये मेरा बाप है.”


ये स्टोरी 'दी लल्लनटॉप' के साथ इंटर्नशिप कर रहे शुभम ने लिखी है 

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विडियो: मुर्दा जलाने वाले रोल के लिए इस एक्टर ने जो किया, वो कोई एक्टर नहीं करेगा

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