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फिल्म रिव्यू: विक्रम-वेधा

ओरिजिनल नहीं देखी है, तभी देखें. कहानी में आने वाले ट्विस्ट अच्छे लगेंगे. लेकिन अगर आर माधवन और विजय सेतुपति का शानदार शो देख रखा है, तो दूर ही रहिए.

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सैफ अली खान और ऋतिक रोशन की 'विक्रम-वेधा' को गायत्री-पुष्कर ने डायरेक्ट किया है.

मशहूर सूफी दार्शनिक रूमी का एक जगत प्रसिद्ध कथन है, जिसे इम्तियाज़ अली ने अपनी 'रॉकस्टार' में भी इस्तेमाल किया था.

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"यहां से बहुत दूर, सही और ग़लत के पार, एक मैदान है. मैं वहां मिलूंगा तुझे".

अब इस कथन में रोज़मर्रा की ज़िंदगी का डिलेमा डाल दीजिए. जहां सही-ग़लत की परिभाषाएं वक्त और हालात के मुताबिक़ बदलती रहती हैं. ऐसी ही कुछ ज़िंदगियों का रोजनामचा है 'विक्रम-वेधा'. ऋतिक रोशन और सैफ अली ख़ान की थ्रिलर फिल्म. जो पांच साल पहले इसी नाम से आई तमिल फिल्म का रीमेक है. डायरेक्टर्स, कहानी, ट्रीटमेंट और BGM सब सेम है. तो ओवरऑल कैसा एक्सपीरियंस है हिंदी वाली 'विक्रम वेधा', आइए जानते हैं.

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‘विक्रम-वेधा’ का पोस्टर.

हम चाहें तो ये रिव्यू एक लाइन में यहीं समाप्त कर सकते हैं कि अगर आपने ओरिजिनल 'विक्रम-वेधा' नहीं देखी है, तो आपको मज़ा आएगा. देख रखी है, तो ये वाली खराब लगेगी. तो जिन्होंने देखी है, वो यहीं से लौट सकते हैं. नए वाले लोग आगे हमारे साथ चलें.

# एक कहानी सुनोगे?

राजा विक्रमादित्य और उसके कांधे पर लटके बेताल से हम सबका वास्ता कभी न कभी पड़ा ही है. 'विक्रम-वेधा' का सेंट्रल प्लॉट वहीं से आया है. दुविधा में डालने वाले सवाल पूछता बेताल. अपने सत्य और ईमानदारी की रोशनी में जवाब देता विक्रम. इन दो किरदारों को मॉडर्न डे कॉन्टेक्स्ट में डाल दीजिए तो आपको मिलेंगे सुपर कॉप विक्रम और हार्डकोर क्रिमिनल वेधा. वेधा का लखनऊ में आतंक है. 16 मर्डर कर चुका है. विक्रम क्रिमिनल्स के तुरंत सफाए में यकीन रखता है और 18 एनकाउंटर कर चुका है. अपने काम को सही मानता है और एनकाउंटर जस्टिफाई करने के लिए सबूतों के साथ छेड़छाड़ से भी उसे गुरेज़ नहीं है. ये सत्य का उसका अपना वर्जन है. 

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दूसरी तरफ वेधा किसी मिशन के हवाले है. जिसमें उसके लिए विक्रम समेत सभी मोहरे हैं. क्या है वो मिशन? विक्रम और वेधा में से किसका सत्य ज़्यादा दमदार है? सही और गलत के बीच की लकीर कहां धुंधली होती है? ये सब जानने के लिए आपको 'विक्रम-वेधा' देखनी पड़ेगी.

# स्टाइलिश फिल्म, उम्दा कहानी

'विक्रम-वेधा' एक बेहद स्टाइलिश फिल्म है. स्लो मोशन में घटते फाइट सीक्वेंसेस, लखनऊ को बढ़िया ढंग से कैप्चर करती सिनेमैटोग्राफी और दमदार BGM का संगम. ओरिजिनल 'विक्रम-वेधा' के हिट होने की सबसे बड़ी वजह इसकी कहानी और उसे दिया गया ये ट्रीटमेंट ही थी. फिल्म का नॉन-लीनियर नैरेटिव धीमे-धीमे परतें खोलता है. और इन्स्पेक्टर विक्रम की ही तरह आप भी सही-ग़लत को परिभाषित करने के खेल में कन्फ्यूज़ होने लगते हो. वेधा एक के बाद एक कहानियां सुनाता जाता है और फिल्म की कहानी दिलचस्प ढंग से आगे बढ़ती है. पहली बार देखने वालों की उत्सुकता बनी रहेगी. देख रखी होगी, तो बिलकुल डिटैच्ड महसूस करेंगे.

# दी ऋतिक शो

ओरिजिनल देखी होने के बावजूद मेरे जैसे कई लोग 'विक्रम-वेधा' देखेंगे ही. मैं नौकरी के चक्कर में देख आया, बाकी लोग ऋतिक को देखने पहुंचेंगे. ऐसे तमाम लोगों के लिए ये बात संतोषजनक साबित हो सकती है कि ऋतिक ने अपने रोल में पूरी मेहनत की है. उनका स्क्रीन प्रेज़ेंस उम्दा है और तमाम एक्शन सीन्स में वो खूब जंचते हैं. शॉर्ट में ये समझ लीजिए कि जब-जब वो स्क्रीन पर आते हैं, फिल्म में स्पार्क आ जाता है. उनके हटते ही फिल्म डल होने लगती है. हालांकि उनसे पुरबिया बोली बुलवाने का आइडिया डिबेटेबल है. वो जबरन का लगता है और कई बार हास्यास्पद भी. उसके बिना ऋतिक ज़्यादा कन्विंसिंग लगते.

ऋतिक ने अपने रोल में पूरी मेहनत की है.

सैफ अली खान 'सेक्रेड गेम्स' के इंस्पेक्टर सरताज का एक्सटेंडेड वर्जन लगते हैं. बस यहां पगड़ी नहीं है. उनके हिस्से कुछेक दमदार डायलॉग्स ज़रूर आए हैं लेकिन ओवरऑल शो फीका ही रहा है.

हिंदी 'विक्रम-वेधा' की एक मेजर दिक्कत है इसकी सपोर्टिंग कास्ट का प्रभावशाली न होना. ओरिजिनल में जो सपोर्टिंग कास्ट अपनी हाज़िरी दर्ज करवाने में कामयाब रहती हैं, यहां बस फिलर के तौर पर मौजूद है. वेधा के भाई शतक का किरदार हो, उसकी गर्लफ्रेंड चंदा का, या विक्रम के दोस्त अब्बास का किरदार. इनके हिंदी वर्जन को सतही ढंग से लिखा गया है और किसी भी किरदार में कोई डेप्थ नज़र नहीं आती. ये बात बहुत निराश करती है. सिर्फ शारिब हाशमी का किरदार अपवाद है. उनके कैरेक्टर को थोड़ा स्पेस ज़रूर मिला है और वो अपनी उम्दा एक्टिंग से इसे महसूस भी करवाते हैं. राधिका आपटे अपनी फिल्मोग्राफी में इस फिल्म का ज़िक्र नहीं ही करना चाहेंगी. बावजूद इसके कि उनके किरदार की फिल्म के नैरेटिव में बहुत अहमियत है.

# पुष्कर-गायत्री कहां चूके?

पुष्कर-गायत्री एशिया का इकलौता शादीशुदा डायरेक्टर कपल है. 2017 में 'विक्रम वेधा' से उन्होंने खूब तारीफें बटोरी. इसी साल अमेज़न पर उनकी 'सुडल' नाम से तमिल वेब सीरीज़ आई है. उसे भी काफी सराहा गया. लेकिन अपना सबसे हिट प्रोजेक्ट हिंदी बेल्ट में ले जाते वक्त वो थोड़ा चूक गए से लगते हैं. चाहे ऋतिक के डायलेक्ट का चयन हो या बाकी किरदारों का लेखन. ओरिजिनल से उन्नीस ही रहा है मामला. 

विजय सेतुपति और आर माधवन वाली फिल्म के डायरेक्टर भी गायत्री-पुष्कर ही थे.

संवाद के मामले में भी फिल्म कुछ ख़ास पल्ले नहीं डालती. गानों का होना न होना बराबर है. 'अल्कोहोलिया' गाना कोरियोग्राफी के लिहाज़ से अच्छा तो है, लेकिन फिल्म में जिस जगह वो आता है, कहानी में बाधा ही लगता है.

कुल मिलाकर बात वही है जो शुरू में कही गई थी. ओरिजिनल नहीं देखी है, तभी देखें. कहानी में आने वाले ट्विस्ट अच्छे लगेंगे. लेकिन अगर आर माधवन और विजय सेतुपति का शानदार शो देख रखा है, तो दूर ही रहिए.

वीडियो: मूवी रिव्यू- धोखा: राउंड द कॉर्नर

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