
तमाम ऑप्शंस खंगालने के बाद मेहुल की खोज नाना पाटेकर तक पहुंची. तब नाना की दो हालिया रिलीज़ें थीं 'सलाम बॉम्बे' और 'परिंदा'. दोनों ही फिल्में क्रिटिकली अक्लेम्ड होने के साथ टिकट खिड़की पर भी सफल रही थीं. इसके अलावा नाना 'प्रहार' के साथ फिल्म डायरेक्शन में भी कदम रख चुके थे. मेहुल ने नाना को 'तिरंगा' का आइडिया सुनाया. नाना ने जवाब में कहा कि वो कॉमर्शियल फिल्मों में काम नहीं करते. कई और लोगों ने भी मेहुल को सलाह दी कि राज कुमार के साथ नाना पाटेकर को फिल्म में लेना खतरनाक आइडिया है. क्योंकि ये दोनों ही एक्टर्स गुस्सैल और अक्खड़ किस्म के हैं. मगर मेहुल नाना को 'तिरंगा' में कास्ट करने की बात ठान चुके थे.
मेहुल के बहुत मनाने पर नाना 'तिरंगा' करने को तैयार हो गए. मगर उन्होंने मेहुल को चेता दिया था कि अगर राज कुमार ने उनके काम में ज़रा भी इंटरफेयर किया, तो वो सेट छोड़कर चले जाएंगे. और कभी वापस नहीं आएंगे. फिल्म बने या मत बने उन्हें कोई परवाह नहीं. मेहुल ने नाना से कहा कि उनकी बाउंड स्क्रिप्ट में शूटिंग शुरू होने के बाद एक भी शब्द नहीं बदला जाएगा. यानी जो कहानी उन्होंने नाना को सुनाई है, फिल्म बिल्कुल वैसी ही बनेगी. नाना से निपटने के बाद मेहुल राज कुमार के पास पहुंचे. साथ कुछ फिल्मों में काम कर चुकने की वजह से दोनों के बीच एक कंफर्ट था. मेहुल ने नाना की सारी बातें राज साहब को बताईं. राज साहब ने कहा कि वो फिल्म की स्क्रिप्ट और नाना के काम में कोई दखल नहीं देंगे. फाइनली फिल्म के दोनों लीड एक्टर्स ऑन बोर्ड आ गए थे.

फिल्म की शूटिंग के दौरान राज कुमार के साथ नाना पाटेकर.
नाना पाटेकर अपने एक इंटरव्यू में बताते हैं कि जब मेहुल कुमार ने उन्हें और राज कुमार को एक फिल्म में साथ कास्ट किया, तब लोगों ने खूब बातें बनाईं. नाना कहते हैं-
''राज कुमार साहब के साथ काम करना मज़ेदार रहा. जब मेहुल ने मुझे और राज साहब को फिल्म में कास्ट किया, तो लोगों ने कहा मेहुल ने अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार ली है. पता नहीं 'तिरंगा' कभी लहराएगा कि नहीं. मगर उन लोगों को मैं बता दूं कि 'तिरंगा' की शूटिंग अगले 6 महीनों में पूरी हो चुकी थी. और जैसा कि आप सब लोग देख सकते हैं, मेरी और राज कुमार की जोड़ी काफी हिट भी रही है.''आज अपन बात कर रहे हैं कल्ट फिल्म 'तिरंगा' की. जब ये फिल्म बनी तब इसे बड़ी पेट्रियोटिक फिल्म माना गया. मगर बीतते समय के साथ फिल्म की इमेज में भारी बदलाव आया. अनेकों बार टीवी पर आने वाली इस फिल्म को अब मज़े और हंसने के लिए देखा जाता है. एक चीज़ जिसने तब भी इस फिल्म के फेवर में काम किया था और आज भी करती है, वो है राज कुमार के डायलॉग्स.
''ना तलवार की धार से, ना गोलियों की बौछार से, बंदा डरता है तो सिर्फ परवरदिगार से''ऐसे डायलॉग्स आपको 'तिरंगा' समेत उस दौर की कई हिंदी फिल्मों में सुनने को मिल जाएंगे. मगर राज कुमार वाली डायलॉग डिलीवरी सिर्फ 'तिरंगा' में ही मिलेगी. आज के समय में पुरानी फिल्मों की सफलता को मापने का एक ही पैमाना है. वो ये कि फिल्म पॉप कल्चर का कितना अहम हिस्सा. इस मामले में 'तिरंगा' सारे रिकॉर्ड तोड़ती नज़र आती है. इस फिल्म के कई सीन्स और डायलॉग्स मीम की भेंट चढ़ चुके हैं. जैसे ये मीम, जो आपको अभी स्क्रीन पर नज़र आ रहा है.

राज कुमार अपने ऐटिट्यूड और खास किस्म की डायलॉग डिलीवरी के लिए जाने जाते हैं. मेहुल कुमार ने उनकी लार्जर दैन लाइफ पर्सनैलिटी को अपनी फिल्मों में बखूबी इस्तेमाल किया.
# क्या फिल्म के सुपरहिट गाने 'पीले-पीले' में नाना पाटेकर शराब पीकर नाच रहे थे? फिल्म 'तिरंगा' में एक गाना था 'पीले पाले ओ मोरे जानी'. इस गाने के साथ दो दिक्कतें थीं. पहली बात, ये एक पार्टी सॉन्ग था, जहां दो दोस्त शराब पीकर पार्टी के बाकी मेहमानों के साथ नाच रहे हैं. नाना को कभी नाचना नहीं आता था और यही कहानी राज कुमार की भी थी. दोनों इस गाने की शूटिंग से पहले काफी पसोपेश में थे कि ये डांसिंग सॉन्ग उनके ऊपर कैसे फिल्माया जाएगा. दूसरी दिक्कत ये था कि इस गाने में राज साहब और नाना को ड्रंक यानी शराब के नशे में झूमते हुए दिखना था. इस गाने में नाचते नाना को देखकर आप ये नहीं कह सकते है कि इस आदमी ने शराब नहीं पी हुई है. इन सीन्स को लेकर नाना से ढेर सारे सवाल हुए. पूछा गया कि क्या इस गाने की शूटिंग से पहले नाना ने वाकई शराब पी थी?
नाना ने फॉर वंस एंड ऑल इसके जवाब में कहा कि उन्होंने अपनी फिल्म के सेट्स पर कभी शराब नहीं पी. बकौल नाना, वो शराब पीकर काम नहीं कर सकते. इस सवाल को वो एक कॉम्प्लिमेंट की तरह लेते हैं कि लोगों को उनकी परफॉरमेंस इतनी रियलिस्टिक लगी. फिल्म 'तिरंगा' का वो गाना आप यहां देख सकते हैं-
बाद में ऐसे ही सवाल शाहरुख खान से पूछे गए, जब उनकी फिल्म 'देवदास' रिलीज़ हुई थी. शाहरुख से कई बार पूछा गया कि वो एक शराबी आशिक का किरदार निभा रहे हैं. क्या उन्होंने किसी सीन की शूटिंग के लिए वाकई शराब पी. शाहरुख ने इसका जवाब हां में दिया. उन्होंने बताया कि फिल्म के कुछ हिस्सों को शूट करने के लिए उन्हें शराब पीनी पड़ी थी. हालांकि शाहरुख खान के बारे में ये भी कहा जाता है कि वो कई बातों को बढ़ा-चढ़ाकर बताते हैं, ताकि सुनने वाले को मज़ेदार लगे. इसमें उनका कोई दोष नहीं है, वही उनका पेशा है. मेक बिलीव. # क्या आपको 'तिरंगा' के विलन गुंडास्वामी/गेंडास्वामी याद हैं? आप 'तिरंगा' का वो भयानक सा दिखने वाला विलन प्रलयनाथ गुंडास्वामी याद है? जो बिना किसी मजबूत वजह के भारत को मिसाइल से तबाह कर देना चाहता था. मज़ेदार बात ये कि इस किरदार का नाम गुंडास्वामी था मगर फिल्म के कई सीन्स में इसे गेंडास्वामी कहकर पुकारा जाता है. इस किरदार को निभाया था एक्टर दीपक शिर्के ने. सिनेमा के जानकार लोगों का मानना है कि जितना मजबूत किसी फिल्म का विलन होगा, फिल्म का हीरो उतना ज़्यादा स्ट्रॉन्ग दिखेगा. 'तिरंगा' के डायरेक्टर मेहुल कुमार ने इस बात को फिज़िकल लेवल पर ले लिया. उन्होंने राज कुमार के सामने दीपक शिर्के को खड़ा कर दिया. खतरनाक सा दिखने वाला विलन, जिसकी आवाज़ सुनकर लगता था कि वो ब्रिगेडियर सूर्यदेव सिंह की खटिया खड़ी कर देगा. मगर ब्रिगेडियर ने फ्यूज़ कंडक्टर निकालकर मजमा लूट लिया.

फिल्म के क्लामैक्स में पाइप पीते ब्रिगेडियर सूर्यदेव सिंह. इसी पाइप की वजह से वो गुंडास्वामी के मिसाइलों से फ्यूज़ कंडक्टर निकाल पाए.
फिल्म का एक सीन है, जिसमें गुंडास्वामी डीआईजी बने सुरेश ओबेरॉय का कत्ल करता है. ये सीन हिंदी सिनेमा के सबसे अजीबोगरीब सीन्स की लिस्ट में शामिल हो सकता है. इस मर्डर सीन में गुंडास्वामी का किरदार घोड़े पर हेल्मेट लगाकर बैठा नज़र आता है. एक इंटरव्यू में दीपक शिर्के से इस सीन के पीछे की कहानी पूछी गई. दीपक ने बताया कि उस सीन में वो थे ही नहीं. ये सीन उनके बॉडी डबल ने शूट किया था. शायद इसलिए क्योंकि दीपक घोड़े पर बैठने को लेकर बहुत श्योर नहीं थे. उनके बॉडी डबल की शक्ल छुपाने के लिए उसे हेल्मेट पहना दिया गया. मगर उस सीन में आवाज़ दीपक की ही इस्तेमाल की गई.

फिल्म के एक सीन में खूंखार हंसी हंसता गुंडास्वामी.
# जहां ये फिल्म चल रही थी, उसी थिएटर में हो गया बम ब्लास्ट 29 जनवरी, 1993 को 'तिरंगा' बनकर रिलीज़ हुई. फिल्म को अच्छा रिस्पॉन्स मिल रहा था. हर जगह थिएटर्स हाउसफुल चल रहे थे. इसी चीज़ का फायदा आतंकवादियों ने उठाया. 12 मार्च, 1993 को मुंबई में कुल 13 लोकेशंस पर बम ब्लास्ट हुए. उन्हीं में से एक लोकेशन दादर इलाके में बना प्लाज़ा सिनेमा भी था. इस सिनेमाहॉल में 'तिरंगा' का हाउसफुल शो चल रहा था. दोपहर 3 बजकर 13 मिनट वहां एक धमाका हुआ. बताया जाता है कि तब उस सिंगल स्क्रीन थिएटर में कुल 881 लोग मौजूद थे. इस ब्लास्ट में वहां बैठे सिनेमा देख रहे 10 लोगों की मौत हो गई और 35 से ज़्यादा लोग घायल हो गए. इस घटना के दो दिन बाद यानी 14 मार्च को मुंबई पुलिस ने यहां बम प्लांट करने वाले असग़र मुकादम और शाहनवाज़ कुरैशी को गिरफ्तार कर लिया था. 19 जुलाई 2007 को इन दोनों को सज़ा-ए-मौत दे दी गई.
इस घटना का ज़िक्र 1993 बॉम्बे ब्लास्ट पर बनी अनुराग कश्यप की फिल्म 'ब्लैक फ्राइडे' में भी आता है. फिल्म में बताया गया है असग़र मुकादम इस ब्लास्ट का षड्यंत्र रचने वाले टाइगर मेमन का सेक्रेटरी था. फिल्म में टाइगर मेमन का रोल पवन मल्होत्रा और असग़र मुकादम का रोल नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी ने किया था. 2004 में बनकर तैयार हो चुकी इस फिल्म को इंडिया में बैन कर दिया गया. इसके पीछे की वजह थी आरोपियों के एक ग्रुप द्वारा बॉम्बे हाई कोर्ट में दाखिल किया हुआ पिटीशन. आरोपियों का मानना था कि फिल्म की रिलीज़ कोर्ट के फैसले को प्रभावित कर सकती है. फाइनली सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर 'ब्लैक फ्राइडे' 9 फरवरी, 2007 को रिलीज़ हुई.

फिल्म 'ब्लैक फ्राइडे' के एक सीन में असग़र मुकादम के किरदार में नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी.
खैर, हम लोग फिल्म 'तिरंगा' की बात कर रहे थे. इस फिल्म में मेहुल और नाना पाटेकर की जोड़ी बड़ी हिट रही. मेहुल ने एक बार फिर नाना पाटेकर को अपनी सोशल फिल्म 'क्रांतिवीर' में कास्ट किया. 'क्रांतिवीर' साल 1994 की तीसरी सबसे कमाऊ फिल्म बनी. इस फिल्म में नाना के परफॉरमेंस के लिए उन्हें बेस्ट एक्टर का नेशनल अवॉर्ड भी मिला. जब तक ये सब हो रहा था, तब अमिताभ अपने करियर के बुरे दौर से गुज़र रहे थे. मेहुल का सक्सेस रेट देखते हुए अमिताभ बच्चन ने उनके साथ फिल्म 'मृत्युदाता' में काम किया. मगर ये फिल्म पिट गई. इसके अमिताभ को मुश्किल से उबारने की ज़िम्मेदारी एक बार फिर से नाना और मेहुल कुमार को दी गई. 1999 में 'कोहराम' नाम की एक फिल्म बनी. मेहुल कुमार डायरेक्टेड इस फिल्म में एक बार फिर से नाना पाटेकर काम कर रहे थे. मगर नाना के साथ अमिताभ बच्चन भी इस फिल्म का हिस्सा थे. ये फिल्म भी फ्लॉप साबित हुई. उसके बाद से लेकर अब तक यानी पिछले 20 सालों ने मेहुल कुमार सिर्फ 3 फिल्में बना पाए. और वो सारी की सारी फ्लॉप रहीं. अमिताभ को मुश्किलों से निकालने के लिए बनी एक फिल्म ने मेहुल कुमार का करियर बर्बाद कर दिया.