इस फिल्म की तीन चीज़ें बहुत सही हैं- कास्ट, डायलॉग और कहानी का ट्रीटमेंट. आप जब इस फिल्म की कहानी पर ध्यान देंगे, तो वो कुछ बहुत कमाल नहीं है. बेसिक सी स्टोरी है उसको नैतिक सा मोड़ देकर जैसे-तैसे खत्म किया गया है. लेकिन जिस तरह से ये फिल्म बनी है, उसमें कही आपको ये चीज़ खलती ही नहीं.
'स्त्री' कहानी है भोपाल के एक शहर चंदेरी की. यहां पर एक स्त्री की आत्मा है, जो किसी स्पॉयलरपूर्ण बैकस्टोरी की वजह से मर्दों को अपने साथ ले जाती है. सालाना चार दिवसीय त्योहार के दौरान. सिर्फ मर्दों को. और उनके कपड़े छोड़ जाती है. इस बैकड्रॉप के बाद ये कहानी तीन दोस्तों पर शिफ्ट हो जाती है. इन तीन दोस्तों के रोल में हैं राजकुमार राव, अपारशक्ति खुराना और अभिषेक बैनर्जी. पूरे पैकेज में पंकज त्रिपाठी भी हैं. और श्रद्धा कपूर तो हैं ही. अब ये पूरी कहानी इन्हीं के इर्द-गिर्द घूमती रहती है. जिसमें आप खोए रहते हैं. फिल्म में बाकी सब की एंट्री बहुत कैजुअल है. लेकिन पंकज त्रिपाठी का एंट्री सीन फिल्म के सबसे फनी और डरावने सीन्स में एक है. इसमें वो बाइक से आते हैं और फिर पूरी फिल्म में लहरिया काटते रहते हैं.

पंकज इससे पहले भी फिल्म 'न्यूटन' में राजकुमार राव के साथ काम कर चुके हैं.
पंकज त्रिपाठी के किरदार की जरूरत पिछले पैराग्राफ की पहली लाइन में ही खत्म हो जाती है. लेकिन इसके बावजूद वो फिल्म में अंत तक हैं हर जगह अपनी प्रेजेंस नोटिस करवाते हैं. दूसरे ऐक्टर हैं अभिषेक बैनर्जी. इन्होंने टीवीएफ की वेब सीरीज़ 'पिचर्स' में इंसान और बीयर के बीच समानता बताई थी. इस फिल्म में ये आदमी 'स्त्री' से ऐसे डरता है कि भयानक डर के बीच भी हंसी नहीं रुकती. इनका फिल्म में दो फेज़ हैं. पहला नॉर्मल और दूसरा पजेस्ड. और ये दोनों ही फेज़ में में बिना कुछ एक्सट्रा किए या बहके मजेदार लगते हैं. अपारशक्ति खुराना का फिल्म में एक सीन है, जहां वो राजकुमार को बताते हैं कि उनकी गर्लफ्रेंड ही 'स्त्री' है. और जाने के बाद वापस आकर कहते हैं,
''उसे ये मत बताना कि ये बिट्टू ने कहा है.''
बिट्टू फिल्म में अपार के किरदार का नाम है. ये सीन इतना फनी था कि थिएटर में पीछे से देर तक हंसी की आवाज़ आती रही. ऐसे कई सीन्स हैं फिल्म में जिनके पिछली सीन पर निकली हंसी के चक्कर में डायलॉग सुनाई नहीं देते.

अपारशक्ति आखिरी बार पिछले हफ्ते रिलीज़ हुई 'हैप्पी फिर भाग जाएगी' में दिखाई दिए थे.
ये फिल्म कॉमेडी वाले हिस्से में बहुत सिचुएशनल है. कुछ घट रहा है और लोग बस रिएक्ट कर रहे हैं. बहुत नैचुरल तरीके से. फन वहीं से आता है. अब नैचुरल भाषा में थोड़ी बहुत ऊंच-नीच तो होती ही है, फिल्म में भी है. लेकिन फिल्म बिलकुल साफ-सुथरी है. इस फिल्म के डायलॉग्स इतने रियलिस्टिक हैं कि आपको कहीं फिल्म देखने जैसा फील नहीं आएगा. आप बस एक मजेदार घटना घटते देख रहे होते हैं. फिल्म की लंबाई और रफ्तार इसे और क्रिस्प बनाती है. फिल्म में कोई ऐसा सीन नहीं है, जिससे आपको झिला हुआ महसूस हो. कुछेक सीन्स तो बहुत मजेदार हैं. जैसा फिल्म के शुरुआती हिस्से में लड़कियों को अपने आसपास से गुज़रते देख अपारशक्ति सनग्लास पहन लेते हैं. इस पर उनके दोस्त अभिषेक (फिल्म में उनका नाम जना है) उसे कहते हैं-
''घोड़ा तुम्हारी तरफ देखता भी नहीं है और तुम शरीर पर घास उगा लेते हो.''
ऐसे वाले ढेर सारे हैं फिल्म में. एक और बात इस फिल्म की ये अच्छी है कि इसमें करने के लिए तकरीबन सबको बराबर मिला है. स्क्रीनटाइम में राजकुमार थोड़े आगे हो सकते हैं लेकिन ऐक्टिंग में कोई 19-20 नहीं है. श्रद्धा कुछ सीन्स में थोड़ी कमजोर लगती हैं. बाकी एक्टर्स के बढ़िया काम की वजह से ये चीज़ ज़्यादा खुलकर सामने आती है. फिल्म के क्लाइमैक्स के दौरान एक दृश्य में कोई उन्हें गले से पकड़कर उठा रहा होता है. उस समय उनके एक्सप्रेशंस बहुत बनावटी लगते हैं. लेकिन फिल्म में कोई ऐसा सीन नहीं है, जिसमें श्रद्धा का काम आपको याद रह जाए. ऐसे अधिकतर मौके पंकज, अपार और अभिषेक की तिकड़ी के हिस्से हैं.
राजकुमार ने अपने कॉमेडी वाले हिस्से को भी बड़ी सीरीयसली किया है. फनी बातें बोलते वक्त भी उनके फेस पर एकदम जेनुइन इमोशन देखने को मिलता है. वो फिल्म के उस हिस्से में चमकते हैं, जहां से फिल्म अपने अंत की ओर बढ़ती है. ये वाला पार्ट फिल्म की सबसे कमजोर कड़ी है. फिल्म में सबकुछ ठीक चल रहा था फिर वो खत्म होने लगी. ऐसा ही इस जॉनर की पिछली फिल्म 'नानू की जानू' के साथ भी हुआ था. लेकिन 'स्त्री' अपना बिखेरा थोड़े साफ-सुथरे तरीके से समेटती है.

श्रद्धा कपूर इससे पहले फिल्म 'हसीना पार्कर' में लेडी डॉन के किरदार में दिखी थीं.
लेकिन 'स्त्री' बाकी मामलों कई मामलों में भी एक समझदार फ़िल्म साबित होती है. भूतिया कॉमेडी बनाने वालों को लगता है कि उनका काम बस भूत दिखाकर डराना होता है, जिसमे हंसी का तड़का वो अलग से लगा देंगे. लेकिन 'स्त्री' का सीन ये है कि इसका भूतियापा लगातार बना रहता है. ये आपको डराती रहती है लेकिन उस डर के जवाब में लोगों का रिएक्शन आपको हंसी में सराबोर करता है. रात में यहां की औरतें मर्दों को घर से बाहर निकलने से मना करती हैं. उनकी सुरक्षा के लिए. इस तरह की घटनाओं से फिल्म का एक फेमिनिस्ट एंगल भी दिखता रहता है. लेकिन फ़िल्म का सारा ज़ोर इसी में हो खत्म नहीं हो जाता.
फ़िल्म बेशक भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति का एक नमूना पेश करती है लेकिन इसे ठीक कैसे किया जाए, ये भी बतलाती है. पिंक में 'नो मीन्स नो' वाले कॉन्सेप्ट को 'यस मीन्स यस' के नोशन से रीप्लेस करती है. और इतने गज़ब के माहौल में करती है कि आप डरे और गुदगुदाए हुए मिजाज़ में भी एक पल को शर्मिंदा महसूस कर लेते हैं. लेकिन इसके लिए किसी तरह का कोई खास ताम-झाम नहीं किया गया है. न कोई भारी-भरकम बैकग्राउंड स्कोर. न कोई शॉकिंग मोमेंट जैसा सीन क्रिएट किया गया है. ये घटना बस घटती है और कहानी आगे बढ़ जाती है. आखिर में 'स्त्री' नाम की उस भूतनी पर भी खासा विचार-विमर्श किया जाता है, जो मजाकिया होने के बाबजूद फिल्म के सबसे जरूरी हिस्सों में से है. लेकिन ये सब घट रहा होता है असलियत के बिलकुल करीब से होकर.
इस फिल्म का सबसे फिल्मी हिस्सा इसका म्यूज़िक है लेकिन वो 'माहौलानुसार' सेट किया हुआ है. और 'नज़र ना लग जाए' को छोड़कर सारे गाने बैकग्राउंड में ही चलते हैं और कुछ क्रेडिट्स के दौरान. वो फिल्म का फ्लो नहीं खराब करते. फिल्म का साउंडट्रैक बहुत रेगुलर और मसाला कहा जाएगा. क्योंकि इसमें तीन आइटम नंबर्स हैं. एक फिल्म में दिखता है, दूसरा फिल्म खत्म होने पर, तीसरा सिर्फ प्रमोशन में. फिल्म में जो गाना है नोरा फतेही का 'कमरिया', उसकी कमर एक बार को फूहड़ता की ओर बढ़ती है लेकिन फिर वापस आ जाती है. फिल्म में गाना खत्म होने के बाद कुछ लड़के झुंड में ये गाना गाते हैं, वो ज़्यादा मज़ा देता है. खैर, इस फिल्म से मीम्स को गाने में तब्दील करने का चलन शुरू हो रहा है. अमरीश पुरी का कभी ना बोला हुआ डायलॉग और इंटरनेट का पसंदीदा मीम मटीरियल अब गाने की शक्ल में हमारे सामने है. फिल्म का 'आओ कभी हवेली पे' गाना देखते जाइए:
'स्त्री' में कुछ दिक्कतें हैं. कुछ लूपहोल्स भी हैं. लेकिन अपनी सभी कमियों के बाद भी फिल्म बहुत मजेदार है. एंटरटेमेंट वाले लेवल पर ये बहुत सफल साबित होती है. ज्ञान नहीं झाड़ती. जल्दी-जल्दी में थोड़ा मोरल साइंस पढ़ाने की कोशिश करती है लेकिन 250 रुपए में 500 का मजा देकर जाती है. अगर आपने पिछले काफी समय से कोई कायदे की फिल्म नहीं देखी है, तो इसे देख सकते हैं.
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