'अगर उसे हथकड़ी नहीं पहनाई, तो अपने हाथ में चूड़ियां पहन लूंगा'.
फिल्म रिव्यू- सत्यमेव जयते 2
'सत्यमेव जयते 2' मसाला जॉनर का नाम खराब करने वाला कॉन्टेंट है.

फिल्म 'सत्यमेव जयते 2' के एक सीन में जॉन अब्राहम.
'तू भारतीय नारी है, ठान ले तो सब पे भारी है'.
ये फिल्म 'सत्यमेव जयते 2' के दो डायलॉग्स हैं. इन दो लाइनों का कॉन्ट्रास्ट आपको फिल्म के बारे में बहुत कुछ बता देता है. अगर ये कम लग रहा है, तो आगे भी हम बहुत कुछ बताने वाले हैं.2018 में 'सत्यमेव जयते' नाम की फिल्म आई थी, अब उसका स्पिरिचुअल सीक्वल 'सत्यमेव जयते 2' आया है. स्पिरिचुअल सीक्वल माने एक ही आइडिया पर बेस्ड एक से ज़्यादा फिल्में जिनकी स्टोरीलाइन अलग हो. फिल्म 'सत्यमेव जयते' एक विजिलांते किलर की कहानी थी, जो बिना किसी लीगल पावर के समाज से करप्शन मिटाना चाहता है. मगर 'सत्यमेव जयते 2' की कहानी लखनऊ में बेस्ड आज़ाद फैमिली के बारे में है. आज़ाद उनका सरनेम है, ज़्यादा एंबिशस होने की ज़रूरत नहीं है. दो भाई हैं सत्य और जय, जिनका नाम ऑब्वियसली सत्यमेव और जयते से लिया गया है.

फिल्म 'सत्यमेव जयते 2' के पोस्टर पर दो-दो जॉन अब्राहम.
सत्य उत्तर प्रदेश में गठबंधन की सरकार में होम मिनिस्टर है. दूसरा भाई जय पुलिस में है. अगर 'सत्यमेव जयते 2' को एक लाइन में डिफाइन करना हो, तो इसे सोशल रिवेंज ड्रामा बुलाया जा सकता है. मगर अपने पास लाइनों की कमी नहीं है, इसलिए विस्तार से बात करते हैं. फिल्म में तीन घटनाएं होती हैं-
1) अस्पताल में स्ट्राइक चल रही है, जिसकी वजह से एक लड़की की डेथ हो जाती है. 2) मदरसे का खाना खाकर 40 बच्चों की मौत हो जाती है. 3) शहर का एक बड़ा पुल टूट जाता है, जिसमें कई लोगों की जान चली जाती है.
यही तीन घटनाएं 'सत्यमेव जयते 2' की कहानी को बिल्ड करती हैं. क्योंकि अपना विजिलांते किलर इन्हीं तीन घटनाओं का बदला लेता है. कैच ये है कि ये विजिलांते किलर है कौन? इस सवाल का जवाब फिल्म शुरुआती 15-20 मिनट में दे देती है. इसके आगे बस आपको ये देखना बचता है कि वो इन तीन घटनाओं के ज़िम्मेदार लोगों से बदला कैसे लेता है. ये सब अपने को फुल लाउड, ढेर सारे वन लाइनर्स और एक्शन सीक्वेंसेज़ की मदद से दिखाया जाता है.

फिल्म के एक एक्शन सीक्वेंस में राइडर समेत बाइक उठाए हुए पुलिसवाला भाई जय.
फिल्म में एक सीन है, जहां लड़की को छेड़ रहे कुछ गुंडों को जय पीट रहा है. गुंडों का सरदार कहता है कि वो पुलिस की वर्दी की धौंस दिखा रहा है. इसके जवाब में अपना हीरो जय कहता है-
'सीधे-सीधे बोल ना बॉडी देखनी है. पब्लिक की भी यही डिमांड है.'
इस सीन में कोई दिक्कत नहीं है. आप देखते ही कहते हैं- ये वाला नया है ब्रो. मगर इस सीन से ये पता चलता है कि फिल्म बनाने वाला पूरी तरह अवेयर है कि वो क्या बना रहा है. बावजूद इसके वो घिसे हुए प्लॉट को भयानक मसाले में लपेटकर प्रॉब्लमैटिक तरीके से दर्शकों के सामने पेश करता है. कई जगह पढ़ने-देखने को मिला कि मिलाप झवेरी जो कि इस फिल्म के डायरेक्टर हैं, वो 80 के दशक में बनी हिंदी फिल्मों से प्रेरित होकर प्रॉपर मसाला एंटरटेनर बना रहे हैं. उन्होंने पिछले दिनों 'सत्यमेव जयते', और 'मर जावां' टाइप फिल्में बनाई हैं. जिन्हें सिंगल स्क्रीन्स पर काफी पसंद किया गया. कहा जाता है कि मिलाप मास के लिए फिल्में बनाते हैं. मगर ये कहां लिखा है कि मास को सेंसिबल सिनेमा देखने का हक़ नहीं है. सबसे पहली बात तो ये कि 80 के दशक में जो फिल्में बनीं, वो अपने समय के हिसाब से नया और फ्रेश कॉन्टेंट था.

फिल्म की स्टारकास्ट और प्रोड्यूसर्स के साथ डायरेक्टर मिलाप जावेरी.
'सत्यमेव जयते 2' में कोई भी कैरेक्टर सीधी बात नहीं कर रहा है. सब लोग पंचलाइन और वन लाइनर्स में बात कर रहे हैं. एकाध लाइन फनी लग सकती है आपको मगर अधिकतर मौकों पर वो लाइंस सही से लैंड नहीं कर पातीं. मगर उससे भी हैरानी की बात ये कि फिल्म में व्हिसल और क्लैप ट्रैक लगा हुआ है. जब पहली बार जॉन अब्राहम ने अपनी शर्ट उतारी, तो अचानक से सीटियों और तालियों की आवाज़ आने लगी. मुझे लगा पब्लिक कुछ ज़्यादा ही एक्साइटेड हो रही है. मगर अगले सीन में मुझे रियलाइज़ हुआ कि ये ताली-सीटी पब्लिक नहीं, फिल्म खुद बजा रही है.
'सत्यमेव जयते 2' देश में चल रहे एक्स्ट्रीम देशभक्ति वाले माहौल को कैश करने की भरपूर कोशिश करती है. मगर अपनी पॉलिटिकल लीनिंग को लेकर कंफ्यूज़्ड लगती है. या यूं कहें कि क्लीयर रहती है. हीरो हर बात पर 56 इंच के सीने और डोले की बात कर रहा है. तो दूसरी तरफ किसानों के मसले पर बात हो रही है. अनशन हो रहे हैं. हिंदु-मुस्लिम एकता पर एक सटल कमेंट होता है. फिल्म किसी पार्टी विशेष से हटकर सिर्फ देश की बात करती है.

बाइक के बाद किसानों के मसलों को उठाते सत्य और जय के पिता के रोल में जॉन अब्राहम.
'सत्यमेव जयते 2' महिलाओं को लेकर बड़ा ऑकवर्ड बिहेव करती है. उसे समझ नहीं आता कि फिल्म की वीमंस से कैसे डील करे. जैसा कि हमने अपनी बातचीत की शुरुआत में दो डायलॉग्स का ज़िक्र किया था. फिल्म के कई इवेंट्स में महिलाएं ही कैटलिस्ट का काम करती हैं. एक तरह महिला सशक्तिकरण की बात हो रही है. तो दूसरी तरफ महिलाओं को कमतर बताकर पुरुषों को हीरो बनाया जा रहा है. जब वीमंस ऑफ 'सत्यमेव जयते 2' की बात हो रही है, तो फिल्म की लीडिंग लेडी दिव्या खोसला कुमार को कैसे छोड़ दें. दिव्या फिल्म में जितनी बार भी बात करती हैं, आपको लगता है कि कोई कहीं से कुछ पढ़ रहा है. वो भी काफी ड्रमैटिक वे में. जिस फिल्म के एक्टिंग फ्रंट पर जॉन अब्राहम खुद खड़े हों, वहां दिव्या खोसला कुमार का खलना अलग लेवल की निराशा है.
हर्ष छाया और गौतमी कपूर वो एक्टर्स हैं, जो फिल्म को एक्टिंग फ्रंट पर थोड़ा-बहुत सपोर्ट दे पाते हैं. अगर उनके पास मौका होता, तो शायद वो फिल्म को कुछ देखने लायक बना पाते. मगर जहां तीन-तीन जॉन अब्राहम बॉडी दिखा रहे हों और चिल्ला-चिल्लाकर अपनी देशभक्ति झाड़ रहे हैं, वहां दूसरे एक्टर्स के लिए कहां कुछ बच पाएगा.

फिल्म की लीडिंग लेडी दिव्या खोसला कुमार. इन्हें फिल्म में भी उतना ही स्क्रीनस्पेस मिला है, जितना म्यूज़िक वीडियोज़ में मिलता है.
कुल मिलाकर बात ये है कि 'सत्यमेव जयते 2' मसाला जॉनर का नाम खराब करने वाला कॉन्टेंट है. आप देशभक्ति के नाम पर एक्स्ट्रा जूडिशियल बीटिंग्स को रोमैंटिसाइज़ कर रहे हैं. विजिलांते किलिंग को सेलीब्रेट कर रहे हैं. और फिल्म के आखिर में सबकुछ अच्छा-अच्छा होने की बात कह रहे हैं. अगर 'सत्यमेव जयते 2' सिर्फ एंटरटेनमेंट के मक़सद से बनाई गई फिल्म है, तब भी उसके प्रॉब्लमैटिक एंगल को इग्नोर नहीं किया जा सकता. क्योंकि इंडिया में सिनेमा बड़े प्रभावी माध्यम के तौर पर देखा जाता है. कई बार लोग स्क्रीन पर दिखाई जा रही चीज़ों और असलियत में फर्क करना भूल जाते हैं. ऐसे में फिल्ममेकर्स की ये रिस्पॉन्सिब्लिटी बनती है कि वो इसका खास ख्याल रखें.

फिल्म की स्टारकास्ट और प्रोड्यूसर्स के साथ डायरेक्टर मिलाप जावेरी.
'सत्यमेव जयते 2' में कोई भी कैरेक्टर सीधी बात नहीं कर रहा है. सब लोग पंचलाइन और वन लाइनर्स में बात कर रहे हैं. एकाध लाइन फनी लग सकती है आपको मगर अधिकतर मौकों पर वो लाइंस सही से लैंड नहीं कर पातीं. मगर उससे भी हैरानी की बात ये कि फिल्म में व्हिसल और क्लैप ट्रैक लगा हुआ है. जब पहली बार जॉन अब्राहम ने अपनी शर्ट उतारी, तो अचानक से सीटियों और तालियों की आवाज़ आने लगी. मुझे लगा पब्लिक कुछ ज़्यादा ही एक्साइटेड हो रही है. मगर अगले सीन में मुझे रियलाइज़ हुआ कि ये ताली-सीटी पब्लिक नहीं, फिल्म खुद बजा रही है.
'सत्यमेव जयते 2' देश में चल रहे एक्स्ट्रीम देशभक्ति वाले माहौल को कैश करने की भरपूर कोशिश करती है. मगर अपनी पॉलिटिकल लीनिंग को लेकर कंफ्यूज़्ड लगती है. या यूं कहें कि क्लीयर रहती है. हीरो हर बात पर 56 इंच के सीने और डोले की बात कर रहा है. तो दूसरी तरफ किसानों के मसले पर बात हो रही है. अनशन हो रहे हैं. हिंदु-मुस्लिम एकता पर एक सटल कमेंट होता है. फिल्म किसी पार्टी विशेष से हटकर सिर्फ देश की बात करती है.

बाइक के बाद किसानों के मसलों को उठाते सत्य और जय के पिता के रोल में जॉन अब्राहम.
'सत्यमेव जयते 2' महिलाओं को लेकर बड़ा ऑकवर्ड बिहेव करती है. उसे समझ नहीं आता कि फिल्म की वीमंस से कैसे डील करे. जैसा कि हमने अपनी बातचीत की शुरुआत में दो डायलॉग्स का ज़िक्र किया था. फिल्म के कई इवेंट्स में महिलाएं ही कैटलिस्ट का काम करती हैं. एक तरह महिला सशक्तिकरण की बात हो रही है. तो दूसरी तरफ महिलाओं को कमतर बताकर पुरुषों को हीरो बनाया जा रहा है. जब वीमंस ऑफ 'सत्यमेव जयते 2' की बात हो रही है, तो फिल्म की लीडिंग लेडी दिव्या खोसला कुमार को कैसे छोड़ दें. दिव्या फिल्म में जितनी बार भी बात करती हैं, आपको लगता है कि कोई कहीं से कुछ पढ़ रहा है. वो भी काफी ड्रमैटिक वे में. जिस फिल्म के एक्टिंग फ्रंट पर जॉन अब्राहम खुद खड़े हों, वहां दिव्या खोसला कुमार का खलना अलग लेवल की निराशा है.
हर्ष छाया और गौतमी कपूर वो एक्टर्स हैं, जो फिल्म को एक्टिंग फ्रंट पर थोड़ा-बहुत सपोर्ट दे पाते हैं. अगर उनके पास मौका होता, तो शायद वो फिल्म को कुछ देखने लायक बना पाते. मगर जहां तीन-तीन जॉन अब्राहम बॉडी दिखा रहे हों और चिल्ला-चिल्लाकर अपनी देशभक्ति झाड़ रहे हैं, वहां दूसरे एक्टर्स के लिए कहां कुछ बच पाएगा.

फिल्म की लीडिंग लेडी दिव्या खोसला कुमार. इन्हें फिल्म में भी उतना ही स्क्रीनस्पेस मिला है, जितना म्यूज़िक वीडियोज़ में मिलता है.
कुल मिलाकर बात ये है कि 'सत्यमेव जयते 2' मसाला जॉनर का नाम खराब करने वाला कॉन्टेंट है. आप देशभक्ति के नाम पर एक्स्ट्रा जूडिशियल बीटिंग्स को रोमैंटिसाइज़ कर रहे हैं. विजिलांते किलिंग को सेलीब्रेट कर रहे हैं. और फिल्म के आखिर में सबकुछ अच्छा-अच्छा होने की बात कह रहे हैं. अगर 'सत्यमेव जयते 2' सिर्फ एंटरटेनमेंट के मक़सद से बनाई गई फिल्म है, तब भी उसके प्रॉब्लमैटिक एंगल को इग्नोर नहीं किया जा सकता. क्योंकि इंडिया में सिनेमा बड़े प्रभावी माध्यम के तौर पर देखा जाता है. कई बार लोग स्क्रीन पर दिखाई जा रही चीज़ों और असलियत में फर्क करना भूल जाते हैं. ऐसे में फिल्ममेकर्स की ये रिस्पॉन्सिब्लिटी बनती है कि वो इसका खास ख्याल रखें.