जिस तरह का भी जो अजाब आए, तुम्हें दौड़ना चाहिए मस्जिदों की तरफ. ये ख़्याल बादिल ख़्याल है कि मस्जिद में जमा होने से बीमारी पैदा होगी. मैं कहता हूं कि अगर तुम्हें तुम्हारे तजुर्बे में ये नजर भी आ जाए कि मस्जिद आने से आदमी मर जाएगा तो इससे बेहतर मरने की जगह कोई हो नहीं सकती. आदमी ये कहे कि मस्जिदों को बंद कर देना चाहिए, इससे बीमारी बढ़ेगी, ये ख्याल दिल से निकाल दो. हां, एहतियात अपनी जगह हैं. लेकिन इस खयाल को लोगों में छोड़ देना, इससे अजाब बढ़ेगा. ये अल्लाहताला के दस्तूर के ख़िलाफ़ है. वहां तो हर अजाब के आने के वक्त मस्जिदों की तरफ बिन इरादा आया जाता था. और इस जमाने में अजाब को हटाने के लिए मस्जिदों को भी छोड़ा जाए? सोचो तो सही, कितना गलत इकदाम है. मस्जिदों को किसी भी हाल में बंद करने का सवाल ही नहीं है.- मौलाना मोहम्मद साद की तकरीर, जो तबलीगी जमात के अमीर यानी मुखिया हैं.
दिल्ली का निज़ामुद्दीन इलाका. तबलीगी जमात के मरकज़ से कोरोना के लिंक जुड़ने के बाद जमात से जुड़े छह लोगों के ख़िलाफ़ FIR दर्ज की गई है. COVID-19 के चलते लगे प्रतिबंध के बावजूद धार्मिक आयोजन करने की वजह से. FIR में मौलाना साद का भी नाम है. हालांकि उनका एक और ऑडियो सामने आया है, जिसमें वो जमात के लोगों से सरकार की बात मानने और घरों में रहने की अपील कर रहे हैं. मौलाना साद ने इसमें दावा किया है कि उन्होंने ख़ुद को क्वारंटीन कर रखा है. पुलिस उनकी तलाश में दिल्ली से उत्तर प्रदेश के शामली तक छान मार रही है. लेकिन शामली में क्यों? इसके लिए पीछे जाना होगा.
चार पीढ़ी पुरानी जड़ें
उत्तर प्रदेश के शामली ज़िले में एक जगह है- कांधला. अंग्रेजों के समय में आर्य समाज ने धर्म परिवर्तन रोकने के लिए अभियान शुरू किया था. इसके जवाब में मौलाना इलियास कांधालवी ने 1926-27 में तबलीगी जमात बनाई, ताकि लोग पैगंबर मोहम्मद की शिक्षाओं और उनके तौर-तरीकों की तरफ लौटें. वो तबलीगी जमात के पहले अमीर बने. वह पहली जमात हरियाणा के मेवात लेकर गए. यहीं से इस सिलसिले की शुरुआत हुई.
मौलाना साद का पूरा नाम मौलाना मोहम्मद साद कांधालवी है. वह मौलाना इलियास के परपोते हैं. मौलाना साद की पैदाइश 10 मई, 1965 की है. शुरुआती पढ़ाई मदरसा काशिफुल उलूम, हजरत निज़ामुद्दीन में हुई. आगे की पढ़ाई सहारनपुर में. मौलाना साद की शादी 1990 में सहारनपुर के मजाहिर उलूम के वीसी मौलाना सलमान की बेटी से हुई.

30 मार्च को निज़ामुद्दीन मरकज़ से सैकड़ों लोगों को बाहर निकाला गया. फोटो: PTI
वर्चस्व की लड़ाई और मौलाना साद
मौलाना इलियास के बाद उनके बेटे मौलाना यूसुफ तबलीगी जमात के कर्ता-धर्ता बने. मौलाना यूसुफ 1965 में नहीं रहे. इससके बाद मौलाना इनामुल हसन तबलीगी जमात के प्रमुख बने. इनामुल हसन के दौर में तबलीगी जमात खूब फैली. देश-विदेश में. तबलीग का अमीर आजीवन इस पद पर रहता है. तीस साल तक वो इस पद पर रहे.
साल 1995 में मौलाना इनामुल हसन का निधन हो गया. उनके बाद तबलीगी जमात में वर्चस्व की लड़ाई शुरू हुई. किसी को भी मुखिया नहीं बनाया गया. 10 सदस्यों की कमेटी थी, जिसे शूरा कहा जाता है, वो जमात का काम देखती थी. इस कमेटी के ज्यादातर सदस्यों की मौत हो चुकी है. इसके बाद तबलीगी जमात में लोगों ने कहा कि कमेटी के जिन सदस्यों के निधन से जगह खाली हुई हैं उन्हें भरा जाए. मौलाना साद इसके लिए तैयार नहीं हुए वो 13 सदस्यों की नई शूरा से सहमत नहीं थे. ये शूरा 16 नवंबर, 2015 को बनाई गई थी. मौलाना मोहम्मद साद ने खुद को तबलीगी जमात का अमीर घोषित कर दिया.

2009 में मलेशिया में हुई जमात की सालाना बैठक. फोटो: विकीमीडिया
टकराव बना हुआ है
साल 2017 में ये टकराव और खुलकर सामने आया. इस साल 10 लोगों के साथ एक अलग शूरा कमेटी बन गई, जो दिल्ली के तुर्कमान गेट पर मस्जिद फैज़-ए-इलाही से अलग तबलीगी जमात चलाती है. इस दूसरी जमात में मौलाना इब्राहीम, मौलाना अहमद लाड और मौलाना जुहैर जैसे इस्लामिक स्कॉलर जुड़े हैं. मस्जिद फैज़-ए-इलाही ने कोरोना संक्रमण के चलते एक मार्च को अपने कार्यक्रम को रद्द कर दिया था लेकिन मोहम्मद साद ने 13 मार्च से मरकज़ में कार्यक्रम आयोजित कराया.

निज़ामुद्दीन मरकज़, जिसे अब खाली करा लिया गया है और सैनिटाइज किया गया है. फोटो: PTI
मस्जिद में मरने से अच्छा कुछ नहीं: साद
साद निज़ामुद्दीन बस्ती में रहते हैं. दिल्ली के ज़ाकिर नगर और उत्तर प्रदेश के कांधला में उनके घर हैं. उनका एक विवादित ऑडियो वायरल हुआ, जिसमें वो 'सलाह' दे रहे हैं कि मस्जिद में मरने से अच्छी जगह कोई नहीं हो सकती. बाद में उनका एक और ऑडियो आया है. इसमें वो दावा करते हैं कि वो ख़ुद क्वारंटीन में हैं और अपील करते हैं कि जमात के लोग इकट्ठा न हों और सरकार के कानून का पालन करें. इसमें वो कह रहे हैं,
इसमें कोई शक नहीं कि दुनियाभर में ये जो अजाब आया है हम इंसानों के गुनाहों का नतीजा है. इस वक्त यकीनी असबाब में जो आएं…..अपने घरों में रहते हुए दावत और तालीम का एहतराम करना है. ये अल्लाह के गुस्से को ठंडा करने का असल ज़रिया है. हुकूमत इंतज़ामिया का बराबर साथ देना है. मसलन, मज़मा जमा ना करना और इन हालात में हुकूमत की पूरी मदद करना ज़रूरी है. बंदा ख़ुद भी अपने आपको दिल्ली पुलिस की हिदायत पर ख़ुद को क्वारंटीन किए हुए है. जहां-जहां भी हमारी जमातें हैं, वो हुकूमत के कानून का पालन करें.थोड़ा सा तबलीगी जमात के बारे में
तबलीगी जमात का काम इस्लाम का प्रचार-प्रसार और मुसलमानों को धर्म की जानकारी देना है. इसके छह उसूल हैं- कलिमा, सलात, इल्म, इक्राम-ए-मुस्लिम, इख्लास-ए-निय्यत, दावत-ओ-तब्लीग. दुनिया के अलग-अलग देशों में हर साल इसका सालाना जलसा होता है, जिसे इज़्तेमा कहते हैं. मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में साल 1949 में सबसे पहले इज़्तेमा हुआ था. तबलीगी जमात की आलोचनाएं भी होती रही हैं. जैसे कि जमात कट्टर है और महिलाओं को भागीदारी नहीं करने देती. जमात महिलाओं को घर में रहने को कहता है. पाकिस्तान में तबलीग के सदस्य राजनीति में भी शामिल हैं. तबलीगी जमात का कनेक्शन कुछ आतंकी गतिविधियों से भी जोड़ा गया है. तबलीगी जमात लगभग सभी देशों में है लेकिन इसके फॉलोवर ज़्यादातर दक्षिण, दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों मलेशिया, सिंगापुर, कंबोडिया में रहते हैं. तबलीगी जमात की सदस्यता लेने की कोई फॉर्मल प्रक्रिया नहीं है. भारत के पूर्व राष्ट्रपति ज़ाकिर हुसैन भी जमात से जुड़े हुए थे.
तकरीर के नाम पर जाहिलियत परोस रहे तबलीगी जमात के मौलाना साद